प्रतापगढ़ जिले का संपूर्ण विवरण
प्रतापगढ़ जिला राजस्थान के दक्षिणी भाग में स्थित है और यह राजस्थान का सबसे नया जिला (2008 में बना) है। यह जिला अपने अपने सुंदर प्राकृतिक दृश्यों, सागवान के घने जंगलों, काली सिंध नदी और हाथ से बनी मिट्टी की वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध है।
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भौगोलिक स्थिति
- देशांतर एवं अक्षांशीय विस्तार: 24.03° N, 74.78° E
- कुल क्षेत्रफल: लगभग 4,117 वर्ग किमी
- सीमाएँ:
- उत्तर में चित्तौड़गढ़ जिला
- दक्षिण में मध्य प्रदेश का मंदसौर जिला
- पूर्व में बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले
- पश्चिम में उदयपुर जिला
- जलवायु:
- गर्मियों में तापमान 42°C तक और सर्दियों में 5°C तक गिर सकता है।
- भूभाग:
- अरावली पर्वत श्रेणी और सागवान के जंगल।
स्थापना एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- गठन: 26 जनवरी 2008 को तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया द्वारा राजस्थान का 33वाँ जिला घोषित।
- सम्मिलित तहसीलें:
- चित्तौड़गढ़ से: प्रतापगढ़, अरणोद, छोटी सादड़ी
- बांसवाड़ा से: पीपलखूँट
- उदयपुर से: धरियावद
- शुभंकर: उड़न गिलहरी (सीतामाता अभयारण्य की विशेषता)।
- सीमाएँ:
- राजस्थान: चित्तौड़गढ़, नवगठित सलूंबर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा।
- मध्यप्रदेश: अंतर्राज्यीय सीमा।
ऐतिहासिक विरासत
- सिसोदिया वंश का 800 वर्षों तक शासन।
- राजकुमार सूरजमल (1514 ई.) ने देवगढ़ को राजधानी बनाया।
- महाराणा प्रतापसिंह (1699 ई.) ने प्रतापगढ़ कस्बे की स्थापना की।
- 1857 की क्रांति: शासक दलपत सिंह ने अंग्रेजों का विरोध किया।
- प्रतापगढ़ प्रजामंडल: 1945 में अमृतलाल पाठक द्वारा स्थापित।
भौगोलिक विशेषताएँ
- ऊँचाई: 580 मीटर (राजस्थान का दूसरा सबसे ऊँचा स्थान, माउंट आबू के बाद)।
- मिट्टी: काली मिट्टी (कपास व गेहूँ के लिए उपयुक्त)।
- जलवायु: आर्द्र, औसत वर्षा 90 सेमी।
- प्रमुख नदियाँ:
- माही नदी: “कांठल की गंगा” (प्रतापगढ़ का माही-तटीय क्षेत्र कांठल कहलाता है)।
- जाखम नदी: छोटी सादड़ी की भंवर माता पहाड़ी से निकलती है।
- जाखम बाँध: राजस्थान का सबसे ऊँचाई पर स्थित बाँध (1962 में निर्मित)।
वन्यजीव एवं अभयारण्य
- सीतामाता अभयारण्य:
- विशेषता:
- राजस्थान का एकमात्र सागवान वन।
- “उड़न गिलहरियों का स्वर्ग” व “चीतल की मातृभूमि”।
- दुर्लभ प्रजातियाँ: आकिड (एरीडीस क्रिस्पम), फन्स्स की 9 प्रजातियाँ।
- जल स्रोत: लव-कुश कुंड।
प्रमुख धार्मिक स्थल
- कालिका माता मंदिर:
- निर्माण: 8वीं-9वीं शताब्दी में गुहिल वंश द्वारा।
- विशेष: ऊँची कुर्सी पर बना प्राचीन मंदिर।
- गौतमेश्वर महादेव:
- स्थान: अरणोद, “प्रतापगढ़ का हरिद्वार”।
- मंदाकिनी कुंड: वैशाख पूर्णिमा पर तीन दिवसीय मेला।
- काका जी की दरगाह: बोहरा समुदाय का तीर्थ, “कांठल का ताजमहल”।
- शांतिनाथ तीर्थ: प्रसिद्ध जैन तीर्थ।
ऐतिहासिक दुर्ग एवं स्थापत्य
- देवगढ़ किला:
- घड़ी यंत्र: धूपघड़ी से समय बताने वाली प्राचीन व्यवस्था।
- जानागढ़ दुर्ग: सुहागपुरा पर्वत पर स्थित।
- छोटी सादड़ी: “स्वर्ण नगरी” के नाम से प्रसिद्ध।
कृषि एवं अर्थव्यवस्था
- मुख्य फसलें: गेहूँ, मक्का, तरल हींग व अफीम (राजस्थान में सर्वाधिक)।
- खनिज संपदा:
- हीरे की खदान: केसरपुरा।
- थेवा कला: सोने पर कांच की नक्काशी, जस्टिन वकी द्वारा वैश्विक पहचान।
- ऊर्जा परियोजना:
- देवगढ़ पवन ऊर्जा परियोजना (2001 में स्थापित)।
सांस्कृतिक विरासत
- मेले:
- भँवरमाता मेला: चैत्र व आश्विन नवरात्र पर।
- दीपनाथ महादेव मेला: कार्तिक पूर्णिमा पर।
- वाहन कोड: RJ-35।
प्रमुख तथ्य
- ताम्रपत्र (1817 ई.): महारावल सांमतसिंह द्वारा ब्राह्मणों से टंकी कर हटाया गया।
- पहली जनगणना: 1881 ई. में रावत उदय सिंह के शासनकाल में।
प्रतापगढ़ जिला अपनी ऐतिहासिक गौरवगाथा, प्राकृतिक समृद्धि, धार्मिक विविधता और कृषि-खनिज संपदा के लिए विख्यात है। यहाँ के सागवान वन, उड़न गिलहरियाँ, प्राचीन मंदिर और थेवा कला इसे राजस्थान का एक अनूठा जिला बनाते हैं।