कच्छवाहा राजवंश: सूर्यवंशी गौरव की कहानी

By: LM GYAN

On: 13 June 2025

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कच्छवाहा राजवंश

कच्छवाहा राजवंश सूर्यवंशी क्षत्रिय वंश से उत्पन्न हुआ, जो श्री रामचंद्र जी के पुत्र कुश का वंशज होने का दावा करता है। 1612 ई. के आमेर लेख में इसे रघुवंश तिलक कहा गया। प्रारंभ में चौहानों के सामंत रहे कच्छवाहाओं ने 12वीं सदी में स्वतंत्र राज्य स्थापित किया। उनकी कुलदेवी जमुवाय माता (अन्नपूर्णा माता) और आराध्य देवी शीला माता हैं।

राजधानियाँ

  1. दौसा: प्रारंभिक राजधानी
  2. जमुवारामगढ़: दूसरी राजधानी, ‘ढूंढाड़ का पुष्कर’
  3. आमेर: 1207 से 1727 ई. तक
  4. जयपुर: 1727 ई. से, भारत का पहला आधुनिक नियोजित शहर

शाखाएँ

  • नरूका: नरू से उत्पन्न
  • शेखावत: शेखा से उत्पन्न, जिनका क्षेत्र शेखावाटी कहलाया।

कच्छवाहा राजवंश – प्रमुख शासक और उनकी उपलब्धियाँ

1. दुल्हेराय (1137 ई. में स्थापना)

  • आदिपुरुष: दूल्हेराय (वास्तविक नाम: तेजकरण), नरवर के शासक सोढ़ा सिंह के पुत्र।
  • ढूंढाड़ की स्थापना: 1137 ई. में दौसा के बड़गुजरों और रामगढ़ के मीणाओं को हराकर ढूंढाड़ राज्य स्थापित किया। दौसा को पहली राजधानी बनाया।
  • निर्माण: जमुवारामगढ़ में रामगढ़ दुर्ग और जमुवाय माता मंदिर बनवाया। जमुवारामगढ़ को दूसरी राजधानी बनाया।
  • अंत: 1170 ई. में मीणाओं के आक्रमण में वीरगति प्राप्त की।

2. कोकिलदेव (1207 ई. से)

  • आमेर विजय: दुल्हेराय के पुत्र कोकिलदेव ने 1207 ई. में आमेर के मीणाओं को हराकर आमेर को राजधानी बनाया (1207-1727 ई.)।
  • विस्तार: मेड़, बैराठ, खोह, झोटवाड़ा, और गैटोर के मीणाओं को हराया।
  • निर्माण: आमेर में अंबिकेश्वर महादेव मंदिर बनवाया।

3. पृथ्वीराज कच्छवाहा (1503-1527 ई.)

  • शासक: 1503 ई. में आमेर का शासक बना। प्रारंभ में कापालिक कनफटे नाथ योगी का शिष्य, बाद में कृष्णदास पयहारी (रामानंदी संप्रदाय) का अनुयायी।
  • राज्य विभाजन: 12 पुत्रों के बीच राज्य को 12 भागों में बाँटा, इसलिए आमेर को बारहकोटड़ी कहा जाता है।
  • खानवा युद्ध: 1527 ई. में राणा सांगा की ओर से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की।
  • सांगानेर: उनके पुत्र सांगा ने सांगानेर कस्बा बसाया।

4. पूर्णमल (1527-1533 ई.)

  • उत्तराधिकारी: पृथ्वीराज की रानी बालाबाई (बीकानेर की राजकुमारी) के कहने पर पूर्णमल शासक बने। उनके भाई भीमदेव ने विद्रोह किया।
  • मुगल संबंध: प्रथम कच्छवाहा शासक, जिसने मुगलों का प्रभाव स्वीकार किया। हुमायूँ ने उन्हें राजा और मरातिब की उपाधियाँ दीं।

5. भीमदेव (1533-1536 ई.) और रतन सिंह (1536-1546 ई.)

  • भीमदेव: पूर्णमल को हराकर शासक बने। उनके बाद पुत्र रतन सिंह शासक बने।
  • रतन सिंह: विलासी शासक, जिनका शासन तेजसी रायमलोत संभालता था। 1540 ई. तक स्वतंत्र रहे, फिर शेरशाह सूरी की अधीनता स्वीकार की। उनके भाई आसकरण ने उन्हें विष देकर मारा, लेकिन भारमल ने आसकरण को हटाकर गद्दी हथिया ली।

6. राजा भारमल (1547-1573 ई.)

  • शासक: 1547 ई. में 50 वर्ष की आयु में शासक बने। हुमायूँ के सरदार मजनू खाँ ने 1556 ई. में उन्हें अकबर से मिलवाया, जहाँ भारमल ने एक उन्मादी हाथी को काबू कर अकबर को प्रभावित किया।
  • मुगल अधीनता: 1562 ई. में चगताई खाँ की मदद से अकबर की अधीनता स्वीकार की। हरखावाई (मरियम उज्जमानी) का विवाह अकबर से किया, जिससे जहाँगीर पैदा हुआ। यह राजपूत-मुगल वैवाहिक संबंध का पहला उदाहरण था।
  • प्रथम शासक: कच्छवाहा राजवंश राजपूताना का पहला वंश था, जिसने मुगल अधीनता स्वीकार की।
  • सहयोग: 1568 ई. में रणथंभौर घेरे में राव सुरजन हाड़ा को अकबर की अधीनता के लिए राजी किया। 1570 ई. में नागौर दरबार में अकबर का सहयोग किया।
  • उपाधियाँ: अकबर ने भारमल को 5000 का मनसब, राजा, और अमीर-उल-उमरा की उपाधियाँ दीं।
  • निर्माण: लवाण कस्बा (दौसा) बसाया।

7. राजा भगवंत दास (1573-1589 ई.)

  • शासक: भारमल के ज्येष्ठ पुत्र, 1573 ई. में शासक बने। अकबर ने उन्हें 5000 का मनसब और अमीर-उल-उमरा की उपाधि दी। अकबर उन्हें बांका राजा या बांका बहादुर कहते थे, इसलिए उनके वंशज बांकावत कहलाए।
  • मुगल सेवा: सरनाल (गुजरात) के मिर्जा विद्रोह में वीरता दिखाई, जिसके लिए अकबर ने नगाड़ा और झंडा दिया।
  • विवाह: 1585 ई. में पुत्री मानबाई (शाह बेगम, सुल्तान निस्सा/मस्ताना) का विवाह जहाँगीर से किया। खुसरो इनका पुत्र था। मानबाई ने जहाँगीर की बुरी आदतों से तंग आकर विष खाकर आत्महत्या की। खुसरो की 1622 ई. में हत्या हुई, जिसके लिए मानबाई को पुत्रहंता माता कहा गया।
  • अंत: 1589 ई. में लाहौर में मृत्यु हुई।

8. राजा मान सिंह प्रथम (1589-1614 ई.)

  • जन्म: 1550 ई. में मौजमाबाद। 1589 ई. में शासक बने, लेकिन अधिकांश समय मुगल सेवा में बीता।
  • मुगल सहयोग: कच्छवाहा पहला राज्य था, जिसने मुगलों के साथ सहयोग की नीति अपनाई। मान सिंह अकबर के नवरत्नों में शामिल थे। अकबर ने उन्हें फर्जंद (मानस पुत्र), मिर्जाराजा, और 7000 का मनसब दिया।
  • अभियान:
    • 1569 ई.: रणथंभौर में सुरजन हाड़ा को मुगल अधीनता के लिए राजी किया।
    • 1573 ई.: महाराणा प्रताप को समझाने गए, लेकिन असफल रहे।
    • 1576 ई.: हल्दीघाटी युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व किया।
    • 1581-85 ई.: काबुल और सिंध में रोशनाईयों का विद्रोह दबाया।
    • 1587-92 ई.: बिहार और बंगाल के सूबेदार। राजमहल को अकबर नगर बनाया। जैस्सोर के राजा केदार को हराकर शीला माता की मूर्ति आमेर लाए।
    • 1592 ई.: उड़ीसा पर विजय प्राप्त की, जो पहली बार मुगल साम्राज्य का हिस्सा बना।
    • 1596 ई.: कूचबिहार को मुगल प्रभाव में लाया और राजा लक्ष्मीनारायण की बहन अबलादेवी से विवाह किया।
  • निर्माण:
    • आमेर: 1592 ई. में महल (लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर), मानसागर झील, शिलादेवी मंदिर
    • वृंदावन: गोविंददेव जी मंदिर
    • बिहार: मानपुर नगर, रोहतासगढ़ दुर्ग, भवानी शंकर मंदिर (बैंकटपुर)।
    • काशी: सरोवर घाट, मानमंदिर
    • अजमेर: पुष्कर झील के पास मानमहल
  • साहित्य:
    • दरबारी: हाया बारहठ (महाराजाकोष, मानप्रकाश), मुरारीदास (मानचित्र), नरोत्तम (मानचित्र रासो), जगन्नाथ (मान सिंह कीर्ति मुक्तावली), दलपतराज (पत्र प्रशस्ति, पवन पश्चिम), दादू दयाल (दादू जी री वाणी), पुण्डरीक विट्ठल (नर्तन निर्णय, रागचन्द्रोदय, दूनी प्रकाश, रागमंजरी), हरिनाथ, सुंदरदास
    • ब्ल्यू पॉटरी: मान सिंह ने जयपुर में शुरू की।
  • अंत: 1614 ई. में एलिचपुर (महाराष्ट्र) में मृत्यु। उनकी छतरी हाड़ीपुर (आमेर) में है।
  • पुत्र: जगत सिंह (रायजादा), जिनकी मृत्यु 1598 ई. में हुई। उनकी रानी कनकावती ने जगतशिरोमणि मंदिर बनवाया, जहाँ मीरा बाई की पूजी कृष्ण प्रतिमा स्थापित है।

9. भाव सिंह (1614-1621 ई.)

  • शासक: जहाँगीर ने गद्दी पर बिठाया। विलासी और शराबी। 1621 ई. में मृत्यु।

10. मिर्जाराजा जयसिंह प्रथम (1621-1667 ई.)

  • शासक: 1621 ई. में 11 वर्ष की आयु में गद्दी पर बैठे। 46 वर्ष तक शासन, जो कच्छवाहा राजवंश में सबसे लंबा है। जहाँगीर, शाहजहाँ, और औरंगजेब की सेवा की।
  • अभियान:
    • जहाँगीर: मलिक अंबर (अहमदनगर) के खिलाफ।
    • शाहजहाँ: 1629 ई. में जाट विद्रोह, उजबेग विद्रोह, और खानेजहाँ लोदी विद्रोह दबाया। 1636 ई. में बीजापुर और गोलकुंडा अभियान। 1637 ई. में कंधार अभियान, जहाँ मिर्जाराजा की उपाधि मिली। 1647-51 ई. में मध्य एशिया, कांगड़ा, पेशावर, और कंधार में सक्रिय।
    • औरंगजेब: 1658 ई. में बहादुरपुर युद्ध में शुजा को हराया। 1659 ई. में दौराई युद्ध में दाराशिकोह के खिलाफ नेतृत्व किया। शिवाजी को 1665 ई. में पुरंदर संधि में हराया, जिसमें शिवाजी ने 23 किले दिए। 1666 ई. में शिवाजी को आगरा दरबार में लाए।
  • निर्माण: जयगढ़ दुर्ग (चील का टोला), बनारस में संस्कृत शिक्षा संस्थान, औरंगाबाद में जयसिंहपुरा
  • साहित्य: दरबारी बिहारी (बिहारी सतसई), कुलपति मिश्र, राम कवि (जयसिंह चरित्र)।
  • अंत: 1667 ई. में बुरहानपुर में मृत्यु। छतरी मोहना-ताप्ती संगम पर।

11. महाराजा रामसिंह प्रथम (1667-1689 ई.)

  • शासक: 1667 ई. में गद्दी पर बैठे। शिवाजी को उनकी हवेली में कैद किया गया, लेकिन शिवाजी भाग निकले, जिससे औरंगजेब नाराज हुए।
  • साहित्य: गणेश देवल (मुहूर्त तत्व), कुलपति मिश्र (रस रहस्य), दलपतिराम (चगता पातशाही), शंकर भट्ट (वैद्य विनोद संहिता)।
  • अंत: 1689 ई. में काबुल में मृत्यु।

12. विष्णु सिंह/बिशन सिंह (1689-1699 ई.)

  • शासक: रामसिंह का पौत्र, 1689 ई. में शासक बने। आमेर दुर्ग की सैन्य किलेबंदी की।
  • अभियान: मुल्तान में खख्खर किला जीता। काबुल में पठान विद्रोह दबाते समय 1700 ई. में मृत्यु।

13. सवाई जयसिंह द्वितीय (1700-1743 ई.)

  • जन्म: 1688 ई., नाम विजय सिंह। औरंगजेब ने सवाई और जयसिंह नाम दिया।
  • शासक: 1700 ई. में गद्दी पर बैठे। नरूका सामंतों का दमन किया। मालवा का तीन बार सूबेदार।
  • अभियान:
    • 1700 ई.: खेलना दुर्ग (बुरहानपुर) जीता। 2000 का मनसब मिला।
    • 1707 ई.: जाजऊ युद्ध में आजम का साथ दिया, लेकिन मुअज्जम (बहादुरशाह प्रथम) विजयी हुआ। बहादुरशाह ने आमेर को इस्लामाबाद/मोमिनाबाद नाम दिया।
    • 1715 ई.: पिलसुद युद्ध में मराठों को हराया। 1733 ई.: मंदसौर युद्ध में मराठों से हारे।
    • 1722 ई.: जाट विद्रोह दबाया, जिसके लिए मुहम्मद शाह ने राजराजेश्वर श्री राजाधिराज की उपाधि दी।
    • 1741 ई.: गंगवाणा युद्ध में अभय सिंह (जोधपुर) और बख्त सिंह (नागौर) को हराया।
  • संधियाँ:
    • 1708 ई.: देबारी समझौता के बाद मेवाड़ की मदद से आमेर पर पुनः कब्जा।
    • 1741 ई.: धौलपुर समझौता पेशवा बालाजी बाजीराव के साथ, लेकिन असफल।
  • हुरड़ा सम्मेलन: 1734 ई. में मराठों के खिलाफ राजपूतों को संगठित करने के लिए आयोजित, लेकिन असफल।
  • निर्माण:
    • जयपुर: 1727 ई. में स्थापना। वास्तुकार विद्याधर, ज्योतिषी जगन्नाथ सम्राट9 वर्गों के सिद्धांत पर निर्मित। केन्टन (चीन) और बगदाद से प्रेरित। पहला नियोजित शहरयूनेस्को विश्व धरोहर (2019)। पहली इमारत बादल महल (शिकार होदी)। सिटी पैलेस (1729-32), हरमाड़ा नहर
    • वेधशालाएँ: जंतर-मंतर (जयपुर, 1728-34, यूनेस्को विश्व धरोहर 2010, सम्राट यंत्र), दिल्ली, मथुरा, उज्जैन, बनारस।
    • महल: जलमहल (मानसागर झील), चंद्रमहल, सिसोदिया रानी महल
    • मंदिर: गोविंददेव जी मंदिर (आमेर, 1714, गौड़ीय संप्रदाय का केंद्र)।
    • दुर्ग: नाहरगढ़/सुदर्शनगढ़ (1734, मराठों से सुरक्षा), जयगढ़ में जयबाण तोप (एशिया की सबसे बड़ी)।
  • साहित्य:
    • दरबारी: पुण्डरीक रत्नाकर (जयसिंह कल्पद्रुम), केवलराम (लोगोरिथम अनुवाद), जगन्नाथ (सिद्धांत कौस्तूभ, सम्राट सिद्धांत), जनार्दन भट्ट गोस्वामी (मंत्र चंद्रिका, श्रृंगारशतक, वैराग्यशतक), चक्रपाणि (पंचायतन प्रकाश), सूरत मिश्र (बिहारी सतसई टीका), नयन चन्द्र मुखर्जी (ऊकर अनुवाद), कृष्ण भट्ट (रामरसाचार्य)।
    • ज्योतिष: जयसिंह कारिका, जीज मोहम्मदशाही (1733)।
    • ब्रह्मपुरी (साहित्यकारों के लिए), वैराग्यपुरा (मथुरा, सन्यासियों के लिए)।
  • सुधार: जजिया कर (1720), तीर्थकर (1728, गया), गंगा स्नान कर (1733, इलाहाबाद) समाप्त। सती प्रथा और बाल विवाह पर नियंत्रण।
  • अश्वमेध यज्ञ: 1740 ई. में आयोजित, पुरोहित पुण्डरीक रत्नाकर
  • चित्रकला: सूरतखाना स्थापित।
  • अंत: 1743 ई. में मृत्यु। जवाहरलाल नेहरू ने डिस्कवरी ऑफ इंडिया में उनकी प्रशंसा की।

14. सवाई ईश्वरी सिंह (1743-1750 ई.)

  • उत्तराधिकार: देवारी समझौता के अनुसार माधो सिंह शासक बनने वाले थे, लेकिन जयसिंह ने ईश्वरी सिंह को चुना। राजमहल युद्ध (1747) में ईश्वरी सिंह विजयी। ईसरलाट/सरगासूली बनवाया।
  • बगरू युद्ध: 1748 ई. में माधो सिंह ने मराठों की मदद से ईश्वरी सिंह को हराया, जिससे जयपुर का विभाजन हुआ।
  • अंत: 1750 ई. में मराठों के युद्ध हर्जाने के दबाव में आत्महत्या। छतरी जयनिवास उद्यान में।

15. सवाई माधो सिंह प्रथम (1750-1768 ई.)

  • शासक: मराठा (मल्हार राव होल्कर, जयप्पा सिंधिया) की मदद से 1751 ई. में शासक बने। चंद्रकुँवरी (मेवाड़) और जयसिंह के पुत्र।
  • जनविद्रोह: 1751 ई. में मराठों के अत्याचारों के खिलाफ जयपुर में राजस्थान का पहला जनविद्रोह। 1500 मराठा सैनिक मारे गए।
  • भटवाड़ा युद्ध: 1761 ई. में रणथंभौर के लिए कोटा के शत्रुशाल से हारे। जालिम सिंह का उदय।
  • निर्माण: सवाईमाधोपुर (1763), मोती डूंगरी महल, चाकसु में शीतला माता मंदिर
  • अंत: 1768 ई. में मृत्यु।

16. सवाई प्रताप सिंह (1778-1803 ई.)

  • शासक: 1778 ई. में गद्दी पर बैठे। पृथ्वी सिंह की मृत्यु के बाद।
  • युद्ध:
    • 1787 ई.: तुंगा युद्ध में महादजी सिंधिया को हराया।
    • 1790 ई.: पाटन युद्ध में डी-बोई (मराठा) से हारे।
    • 1800 ई.: मालपुरा युद्ध में मराठों से हारे, 25 लाख रुपये खिराज दिया।
    • 1799 ई.: जॉर्ज थॉमस और खेतड़ी के ठाकुर ने शेखावटी पर आक्रमण किया।
  • साहित्य:
    • ब्रजनिधि उपनाम से कविता। संग्रह: ब्रजनिधि ग्रंथावली
    • संगीत: राधा गोविंद संगीत सार (ब्रजनिधि सम्मेलन, अध्यक्ष: बृजपाल भट्ट), चाँद खाँ (स्वर सागर, बुद्ध प्रकाश), गणपति भारती (काव्य गुरु), पुण्डरीक विट्ठल (नर्तन निर्णय, ब्रजकला निधि, राग चंद्रसेन), राधाकृष्ण (राज रत्नाकर)।
    • प्रताप बाईसी/गंधर्व बाईसी: 22 विद्वान, प्रधान चाँद खाँ
  • निर्माण:
    • हवामहल (1799, वास्तुकार लालचंद, कृष्ण मुकुट आकृति, 953 झरोखे, 5 मंजिल: शरद, रतन, विचित्र, प्रकाश, हवा मंदिर)।
    • जलमहल का निर्माण पूर्ण।
  • चित्रकला: जयपुर चित्रकला स्कूल की स्थापना। लालचंद ने पशु युद्ध चित्र बनाए।
  • लोकनाट्य: तमाशा लोकप्रिय, वंशीधर भट्ट (महाराष्ट्र) को बुलाया।
  • अंत: 1803 ई. में मृत्यु।

17. सवाई जगत सिंह द्वितीय (1803-1818 ई.)

  • संधि: 1818 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि।
  • विवाद: नर्तकी रसकपुर को आधा राज्य और सिक्कों पर नाम अंकित करवाया, इसलिए जयपुर का बदनाम शासक कहा गया।
  • गिंगोली युद्ध: 1807 ई. में जोधपुर के मान सिंह को कृष्णा कुमारी के विवाह विवाद में हराया।

18. सवाई रामसिंह द्वितीय (1835-1880 ई.)

  • शासक: अल्पवयस्क होने के कारण मेजर लुडलो का नियंत्रण। सती प्रथा, कन्या वध, और मानव क्रय-विक्रय पर रोक।
  • 1857 की क्रांति: अंग्रेजों की मदद की। सितार-ए-हिंद की उपाधि।
  • शिक्षा:
    • 1844: महाराणा कॉलेज
    • 1857: मदरसा हुनरी (बाद में राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स)।
    • 1866: कन्या विद्यालय (राजस्थान का पहला)।
    • 1861: मेडिकल कॉलेज
  • निर्माण:
    • रामबाग पैलेस (1836, केसर बढ़ारण का बाग)।
    • अल्बर्ट हॉल संग्रहालय (1876, उद्घाटन 1887, वास्तुकार स्टीवन जैकब, राजस्थान का पहला संग्रहालय)।
    • पोथीखाना (1876)।
    • रामप्रकाश थियेटर (1878, भारत का पहला रंगमंच)।
  • सुधार: राजकीय परिषद गठन। 1868 ई. में एडवर्ड पंचम के आगमन पर जयपुर को गुलाबी रंगा, जिसे गोल्डन बर्ड कहा गया।
  • चित्रकला: ब्ल्यू पॉटरी का स्वर्णकाल।
  • सिक्के: झाड़शाही सिक्के चलाए।
  • अंत: 1880 ई. में मृत्यु।

19. सवाई माधो सिंह द्वितीय (1880-1922 ई.)

  • सुधार: 1882 ई. में चुंगी कर समाप्त।
  • निर्माण: मुबारक महल (1900, मुगल-राजपूत-यूरोपीय शैली), माधवेंद्र भवन
  • गंगाजल: 1902 ई. में एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक के लिए लंदन में दो विशाल चाँदी के कलशों में गंगाजल ले गए (सिटी पैलेस में सुरक्षित)।
  • शिक्षा: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय को 5 लाख रुपये दिए।
  • रेलवे: 1903 ई. में झुंझुनू-सवाईमाधोपुर रेल सेवा।
  • डाक: 1904 ई. में जयपुर में डाक व्यवस्था शुरू।
  • उपाधि: बब्बर शेर
  • अकाल: छप्पनिया अकाल
  • अंत: 1922 ई. में मृत्यु।

20. सवाई मान सिंह द्वितीय (1922-1949 ई.)

  • शासक: कच्छवाहा राजवंश के अंतिम शासक। मिर्जा इस्माइल (प्रधानमंत्री) को आधुनिक जयपुर का निर्माता कहा गया।
  • सुधार: 1923 ई. में सैटलमेंट कमीशनर नियुक्त। पंचायती कानून लागू। विद्युत सेवा शुरू।
  • निर्माण: तख्त-ए-शाही (मोती डूंगरी, गायत्री देवी के लिए), रामबाग पोलो ग्राउंड, सांगानेर हवाई अड्डा
  • विश्व युद्ध: द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया। लेफ्टिनेंट का पद।
  • पोलो: उत्कृष्ट पोलो खिलाड़ी।
  • रानी: गायत्री देवी, राजस्थान की पहली महिला लोकसभा सदस्य (स्वतंत्र पार्टी, जयपुर)।
  • विलय: 1949 ई. में वृहत राजस्थान में विलय। राजप्रमुख (1949-1956)।
  • लोकसभा: 1962 ई. में लोकसभा सदस्य।
  • अंत: 1970 ई. में लंदन में पोलो खेलते समय हृदय गति रुकने से मृत्यु।

कच्छवाहा राजवंश की विरासत

  • स्थापत्य: हवामहल, जंतर-मंतर, सिटी पैलेस, जयगढ़, नाहरगढ़, गोविंददेव मंदिर, अल्बर्ट हॉल।
  • साहित्य: बिहारी सतसई, जयसिंह कारिका, ब्रजनिधि ग्रंथावली
  • संस्कृति: ब्ल्यू पॉटरी, जयपुर चित्रकला, तमाशा लोकनाट्य, गौड़ीय संप्रदाय।
  • विज्ञान: जंतर-मंतर, जीज मोहम्मदशाही।
  • सुधार: सती प्रथा, जजिया कर, कन्या वध पर रोक।

निष्कर्ष

कच्छवाहा राजवंश ने ढूंढाड़ को जयपुर के रूप में एक वैश्विक पहचान दी। सवाई जयसिंह द्वितीय की वेधशालाएँ और मान सिंह प्रथम की मुगल सहयोग नीति ने इसे अनूठा बनाया। क्या आपने जयपुर की गुलाबी सड़कों का आनंद लिया है? अपनी राय साझा करें!

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