जैन धर्म: एक विस्तृत और गहन अध्ययन 🌟🙏

By: LM GYAN

On: 2 September 2025

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जैन धर्म, भारत का एक प्राचीन और शाश्वत धर्म है, जो अहिंसा, सत्य, और आत्म-संयम पर आधारित है। यह अनादिकाल से चला आ रहा है और 24 तीर्थंकरों की परंपरा के लिए जाना जाता है। जैन धर्म का उद्देश्य जीव को कर्म बंधन से मुक्त कर मोक्ष प्राप्त करना है। इस लेख में जैन धर्म के तीर्थंकरों, सिद्धांतों, संप्रदायों, साहित्य, संगीतियों, और सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव का विस्तृत वर्णन है। 😊🌍

जैन धर्म का परिचय 🌿

जैन धर्म की मान्यता के अनुसार, यह धर्म अनादिकाल से प्रचलित है। ऋग्वेद में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव और 22वें तीर्थंकर अरिष्टनेमी का उल्लेख है। वायु पुराण और भागवत पुराण में ऋषभदेव को विष्णु का अवतार माना गया है। जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों ने धर्म का प्रचार किया, जिनमें अंतिम दो, पार्श्वनाथ और महावीर, ऐतिहासिक व्यक्तित्व माने जाते हैं। 😇

जैन तीर्थंकर 🚩

जैन धर्म में 24 तीर्थंकरों की परंपरा है, जो जीवों को मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं। प्रत्येक तीर्थंकर का एक प्रतीक और विशिष्ट योगदान है। 🌟

  1. ऋषभदेव (आदिनाथ):
    • प्रतीक: सांड। 🐂
    • विवरण: प्रथम तीर्थंकर, कैलाश पर्वत पर शरीर त्याग। भागवत पुराण में विष्णु अवतार। कृषि, शिल्प, और राज्य व्यवस्था के संस्थापक। 👑
  2. अजितनाथ: प्रतीक – हाथी। 🐘
  3. 22वाँ – अरिष्टनेमी (नेमीनाथ):
    • प्रतीक: शंख। 🐚
    • विवरण: वसुदेव कृष्ण के भाई, सौराष्ट्र के राजा। यदुवंशी क्षत्रिय। 🙏
  4. 23वाँ – पार्श्वनाथ:
    • प्रतीक: साँप। 🐍
    • विवरण: बनारस के राजा अश्वसेन के पुत्र, माता वामा। वैदिक कर्मकांड और देववाद के आलोचक। चार व्रत (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह) पर जोर। 100 वर्ष की आयु में सम्मेद शिखर पर शरीर त्याग। 🏔️
  5. 24वाँ – वर्धमान महावीर:
    • प्रतीक: सिंह। 🦁
    • विवरण: जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक माने जाते हैं। उनके जीवन और शिक्षाओं ने जैन धर्म को नया स्वरूप दिया। 😇

महावीर का जीवन 🧘‍♂️

जन्म और प्रारंभिक जीवन:

  • जन्म: 540 ई.पू. (कुछ विद्वान 599 ई.पू.) वैशाली के निकट कुंडग्राम में। 🌿
  • माता-पिता: पिता सिद्धार्थ (ज्ञात्रिक गण के प्रधान), माता त्रिशला (लिच्छवी राजा चेटक की बहन)। 👑
  • जन्म कथा: जैन अनुश्रुतियों के अनुसार, महावीर पहले ब्राह्मण ऋषभदत्त की पत्नी देवनंदा के गर्भ में आए, पर इंद्र ने उन्हें त्रिशला के गर्भ में स्थापित किया, क्योंकि तीर्थंकर क्षत्रिय वंश में जन्म लेते हैं। 😇
  • विवाह: यशोदा से, पुत्री प्रियदर्शना। प्रियदर्शना का विवाह जमाली से, जो बाद में महावीर का शिष्य बना। 👨‍👩‍👦
  • गृहत्याग: 30 वर्ष की आयु में, माता-पिता की मृत्यु के बाद गृहत्याग। 🏛️

तप और कैवल्य:

  • तपस्या: 12 वर्ष तक कठोर तप, जिसमें 6 वर्ष आजीवक संप्रदाय के गोशालक के साथ। 🌊
  • कैवल्य: 42 वर्ष की आयु में जम्बक ग्राम में ऋजुपालिका नदी के किनारे साल वृक्ष के नीचे कैवल्य (पूर्ण ज्ञान) प्राप्त। 🌳
  • उपाधियाँ:
    • केवलिन: पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने वाला।
    • जिन: इंद्रियों पर विजय।
    • महावीर: पराक्रमी। 🌟

प्रचार और शिष्य:

  • प्रथम उपदेश: दिगंबर मान्यता के अनुसार, राजगृह के विपुलाचल पर्वत पर। 🗣️
  • प्रमुख केंद्र: चंपा, वैशाली, राजगृह, नालंदा, श्रावस्ती, कौशांबी। 🏛️
  • प्रमुख शिष्य:
    • मेघकुमार: राजगृह में प्रथम शिष्य।
    • देवनंदा और ऋषभदत्त: कुंडग्राम में ब्राह्मण दंपति।
    • प्रियदर्शना और जमाली: महावीर की पुत्री और दामाद।
    • उदयन: कौशांबी के राजा शतानिक का पुत्र।
    • 11 गणधर: इंद्रभूति गौतम, सुधर्मन, गर्दभालि, आनंद, कामदेव, चुलनीपिया, सुरदेव, चुल्लसयग, कुण्डकोलिय, सद्दालपुत्र, महासयग, नंदिणीपिया, सालिहीपिया। 😇
  • जमाली का मतभेद: जमाली ने बहुरतवाद संप्रदाय शुरू किया। ⚔️
  • गोशालक: 6 वर्ष तक महावीर के साथ तप, बाद में आजीवक संप्रदाय की स्थापना। 🙅‍♂️

महापरिनिर्वाण:

  • मृत्यु: 468 ई.पू. (कुछ विद्वान 527 ई.पू.), 72 वर्ष की आयु में पावापुरी (राजा हस्तिपाल के यहाँ)। 💔
  • प्रकाशोत्सव: मृत्यु पर काशी, कौशल के 18 गणराज्यों, 9 मल्लों, और 9 लिच्छवियों ने दीपावली मनाई। 🪔

जैन धर्म के सिद्धांत 📜

जैन धर्म का आधार त्रिरत्न (सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चरित्र), पंच महाव्रत, और द्रव्य सिद्धांत है। 😊

त्रिरत्न:

  1. सम्यक् दर्शन: सात तत्वों (जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जर, मोक्ष) में विश्वास। 👁️
  2. सम्यक् ज्ञान: असंदिग्ध और दोषरहित ज्ञान। 🧠
  3. सम्यक् चरित्र: सत्य को व्यवहार में लाना, पंच महाव्रत का पालन। 🤝

पंच महाव्रत:

  1. अहिंसा: सभी जीवों (स्थावर और त्रस्त) के प्रति हिंसा का त्याग। 🕊️
  2. सत्य: सत्य और मधुर वाणी, असत्य से बचाव। 🗣️
  3. अस्तेय: बिना अनुमति दूसरों की वस्तु न लेना। 🤝
  4. अपरिग्रह: अनावश्यक संग्रह का त्याग। 🌿
  5. ब्रह्मचर्य: वासना का त्याग, मन-वचन-कर्म से संयम। 😇
    • पार्श्वनाथ: चार व्रत (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह)।
    • महावीर: ब्रह्मचर्य को पाँचवाँ व्रत जोड़ा। 🌟

अणुव्रत:

  • गृहस्थों के लिए पंच महाव्रत का सरल रूप:
    • अहिंसा अणुव्रत: हिंसा, बंधन, पीड़ा से बचना।
    • सत्य अणुव्रत: झूठ, कठोर वाणी, निंदा से बचना।
    • अस्तेय अणुव्रत: चोरी, मिलावट, धोखाधड़ी से बचना।
    • ब्रह्मचर्य अणुव्रत: कामवासना पर नियंत्रण।
    • अपरिग्रह अणुव्रत: धन-संपत्ति में ममता का त्याग। 🌍

गुणव्रत:

  1. दिग्व्रत: दिशाओं में भ्रमण की सीमा।
  2. अनर्थदण्डव्रत: पापजनक कार्यों का त्याग।
  3. भोगोपभोग परिमाण: भोग्य वस्तुओं का नियंत्रण। 📜

शीलव्रत:

  1. दिग्व्रत: विशिष्ट परिस्थितियों में नियंत्रण।
  2. देशव्रत: कार्य को विशिष्ट क्षेत्रों तक सीमित करना।
  3. अनर्थदण्डव्रत: बिना कारण अपराध न करना।
  4. सामायिक: चिंतन के लिए समय निश्चित करना।
  5. प्रोषधोपवास: मानसिक-शारीरिक शुद्धि के लिए उपवास।
  6. उपभोग-प्रतिभोग परिमाण: दैनिक वस्तुओं का नियंत्रण।
  7. अतिथि संविभाग: अतिथि को भोजन कराने के बाद भोजन। 🙏

धर्म के दस लक्षण:

  1. उत्तम क्रमा: क्रोधहीनता।
  2. उत्तम मार्दव: अहंकार का अभाव।
  3. उत्तम मार्जव: सरलता, कुटिलता का अभाव।
  4. उत्तम सोच: आत्मा को सांसारिक बंधनों से मुक्त रखना।
  5. उत्तम सत्य: सत्य के प्रति अनुरक्ति।
  6. उत्तम संयम: संयमित जीवन।
  7. उत्तम तप: कठोर तपस्या।
  8. उत्तम अकिचन: आत्मा के स्वाभाविक गुणों में आस्था।
  9. उत्तम ब्रह्मचर्य: ब्रह्मचर्य का कठोर पालन।
  10. उत्तम त्याग: त्याग की भावना। 🌟

द्रव्य सिद्धांत:

  • छह द्रव्य:
    1. जीव: चेतन, अनंत ज्ञान, श्रद्धा, शांति, वीर्य। 🧠
      • प्रकार: मुक्त (मोक्ष प्राप्त) और बद्ध (बंधनयुक्त)।
      • बद्ध जीव: त्रस्त (2-5 इंद्रिय), स्थावर (1 इंद्रिय: जल, अग्नि, वायु, वनस्पति)। 🌿
    2. पुद्गल: जड़, स्पर्श, रूप, रस, गंध से युक्त। शरीर और अनुभव की वस्तुएँ। 🪨
    3. आकाश: लोकाकाश (गति संभव), अलोकाकाश (गति असंभव)। 🌌
    4. धर्म: गति का सहायक (जल मछली के लिए)। 🐟
    5. अधर्म: स्थिरता का सहायक (पेड़ पथिक के लिए)। 🌳
    6. काल: परिवर्तन, प्राचीनता, नवीनता का कारण। ⏳
  • विशेषता: सभी द्रव्य शाश्वत, पर रूप में परिवर्तनशील। 😇

बंधन और मोक्ष:

  • बंधन: जीव और पुद्गल का संयोग, कर्म के कारण। 😔
    • आस्रव: कर्म का जीव में प्रवेश।
    • कषाय: मानसिक विकार (मान, माया, लोभ, क्रोध)।
    • कारण: मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, योग, कषाय।
  • मोक्ष: कर्म से मुक्ति, जीव का स्वाभाविक रूप (अनंत ज्ञान, दर्शन, वीर्य, आनंद)। 🌟
    • संवर: नए कर्मों का प्रवेश रोकना।
    • निर्जर: पुराने कर्मों का क्षय, तपस्या द्वारा। 🙏

अनेकांतवाद और स्यादवाद:

  • अनेकांतवाद: सत्य एक और अनेक, स्थिर और परिवर्तनशील। 🌍
  • स्यादवाद: सत्य सापेक्ष, “स्यात्” (शायद) के साथ विचार। 🧠
  • सप्तभंगी नय:
    1. स्यात् अस्ति (शायद है)।
    2. स्यात् नास्ति (शायद नहीं है)।
    3. स्यात् अस्ति नास्ति (शायद है और नहीं है)।
    4. स्यात् अवक्तव्यः (शायद अनिर्वचनीय)।
    5. स्यात् अस्ति अवक्तव्यः (शायद है और अनिर्वचनीय)।
    6. स्यात् नास्ति अवक्तव्यः (शायद नहीं है और अनिर्वचनीय)।
    7. स्यात् अस्ति नास्ति अवक्तव्यः (शायद है, नहीं है, और अनिर्वचनीय)। 📜
  • आलोचना: रामानुजाचार्य और शंकराचार्य ने विरोध किया, पर जैन आगमों में प्रथम चार नय महत्वपूर्ण। 😇

सम्यक् ज्ञान के प्रकार:

  1. मति ज्ञान: इंद्रियों और मन से प्राप्त।
  2. श्रुति ज्ञान: सुनकर प्राप्त।
  3. अवधि ज्ञान: कर्म क्षय से सूक्ष्म द्रव्यों का ज्ञान।
  4. मनःपर्याय ज्ञान: दूसरों के मन का बोध।
  5. केवल ज्ञान: पूर्ण, अनंत ज्ञान, कर्म से मुक्त। 🧠

जैन संप्रदाय 🚩

दिगंबर:

  • विशेषताएँ:
    • वस्त्र त्याग, मोक्ष के लिए अनिवार्य।
    • महिलाओं को इस जन्म में मोक्ष नहीं।
    • केवलिन को भोजन की आवश्यकता नहीं।
    • महावीर अविवाहित।
    • 19वाँ तीर्थंकर मल्लीनाथ पुरुष।
  • प्रसार: दक्षिण भारत (कर्नाटक), उत्तर और मध्य भारत। 🌏
  • उपसंप्रदाय:
    • बीसपंथी: तीर्थंकरों के साथ क्षेत्रपाल, भैरव की पूजा।
    • थेरापंथी: केवल तीर्थंकरों की मूर्तियाँ।
    • तारणपंथी: तारणतारण स्वामी (15वीं सदी), ग्रंथ पूजा, जाति-पाँति में विश्वास नहीं। 😇

श्वेतांबर:

  • विशेषताएँ:
    • वस्त्र धारण, मोक्ष के लिए अनावश्यक।
    • महिलाओं को मोक्ष का अधिकार।
    • केवलिन को भोजन आवश्यक।
    • महावीर का विवाह यशोदा से, पुत्री प्रियदर्शना।
    • मल्लीनाथ स्त्री।
  • प्रसार: गुजरात, राजस्थान, मध्य भारत, पंजाब, हरियाणा। 🌏
  • उपसंप्रदाय:
    • पूजेरा (मंदिर मार्गी): मूर्तियों को वस्त्र-आभूषणों से सजाना।
    • ढुंढिया (स्थानकवासी): लोकाशाह, मूर्तिपूजा का निषेध, स्थानकों में निवास।
    • थेरापंथी: स्वामी भिक्खन (1760 ई.), 13 विशिष्ट नियम। 😇
  • यापानीय संप्रदाय: 6वीं सदी, कलस द्वारा, महिलाओं को मोक्ष और केवलिन को भोजन की मान्यता। 🌟

दिगंबर-श्वेतांबर विभाजन:

  • कारण: 200 ई.पू. में मगध में अकाल, भद्रबाहु के नेतृत्व में दिगंबर दक्षिण गए, स्थूलभद्र उत्तर में रहे। श्वेतांबरों ने वस्त्र धारण किया। ⚔️
  • सैद्धांतिक मतभेद: वस्त्र, मोक्ष, भोजन, महावीर का विवाह, मल्लीनाथ का लिंग, आगमों की मान्यता। 😇

जैन संगीतियाँ 🗳️

जैन धर्म में दो प्रमुख संगीतियों का आयोजन किया गया था, पहली पाटलिपुत्र में स्थूलभद्र की अध्यक्षता में चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में और दूसरी वल्लभी में देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में 512 ईस्वी में आयोजित हुई थी। 

प्रथम जैन संगीति 

  • समय: 300 ईसा पूर्व के आसपास
  • स्थान: पाटलिपुत्र
  • अध्यक्षता: स्थूलभद्र
  • प्रमुख कार्य: जैन धर्म के 12 अंगों का संपादन किया गया और धर्म दो संप्रदायों श्वेतांबर और दिगंबर में विभाजित हुआ।

द्वितीय जैन संगीति 

प्रमुख कार्य: जैन धर्म के पवित्र ग्रंथों (आगमों) को अंतिम रूप से लिपिबद्ध किया गया और उनका संकलन किया गया।

समय: 512 ईस्वी

स्थान: वल्लभी

अध्यक्षता: देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण

जैन साहित्य 📚

प्रारंभिक साहित्य:

  • 14 पूर्व: महावीर द्वारा प्रचारित, भद्रबाहु को जानकारी, अब विलुप्त। 📜
  • 12 अंग:
    • आचारांग सूत्र: अहिंसा और संघ के नियम।
    • सूत्रकृत, स्थान, समवाय, भगवती, ज्ञानधर्मकथा, उपासक-दशा, अंतकृतदशा, अनुत्तरोपपातिक दशा, विपाक
  • चार मूल: उत्तराध्ययन, आवश्यक, दशवैकालिक, पिण्डनियुक्ति। 📖

परवर्ती साहित्य:

  • उमास्वाति: तत्वार्थाधिगमसूत्र (द्रव्य सिद्धांत)। 🧠
  • नेमिचंद्र: द्रव्य संग्रह।
  • मल्लिसेन: स्यादवाद मंजरी।
  • सिद्धसेन दिवाकर: न्यायावतार। 📜

जैन धर्म का प्रसार 🌍

  • भारत:
    • मगध: बिंबिसार, अजातशत्रु, चेटक का संरक्षण। 👑
    • चंपा: प्रमुख केंद्र।
    • कर्नाटक: 3वीं सदी ई.पू. से पुरातात्विक साक्ष्य, वसदि (जैन मठ)। 🏛️
    • उड़ीसा: खारवेल (1वीं सदी ई.पू.) का संरक्षण। 🚩
    • तमिलनाडु: 1-2वीं सदी ई.पू. में प्रसार।
    • मथुरा: जैन मंदिर अवशेष। 🗿
    • उज्जैन: कालकाचार्य, 1वीं सदी में प्रसार। 😇
  • राजकीय संरक्षण:
    • चंद्रगुप्त मौर्य: जैन, श्रवणबेलगोला में प्राण त्याग। 🌿
    • सम्प्रति: चंद्रगुप्त का पौत्र, जैन धर्म का प्रचार। 👑
    • गंग, कदंब, चालुक्य, राष्ट्रकूट: दक्षिण भारत में संरक्षण। 😇
    • सिद्धराज, कुमार पाल: गुजरात, 11-12वीं सदी, हेमचंद्र (अपभ्रंश व्याकरण)। 📜

जैन कला और स्थापत्य 🖼️

  • प्रारंभ: स्तूप निर्माण (लोहानीपुर, पटना)। 🪔
  • मथुरा: कुषाण और गुप्तकाल में जैन कला का केंद्र। 🗿
  • उड़ीसा: उदयगिरि की जैन गुफाएँ। 🏞️
  • मंदिर:
    • दिलवाड़ा (आबू): वस्तुपाल-तेजपाल, संगमरमर मंदिर। 🏛️
    • शत्रुंजय (सौराष्ट्र): आदिनाथ मंदिर। 🌟
    • देवगढ़, ओसिया: शांतिनाथ, महावीर मंदिर। 🗿
    • रौनकपुर, चित्तौड़: जैन स्तंभ और मंदिर। 🏛️
  • चित्रकला: तालपत्र पर चित्र, जैन कला का विकास। 🎨

सामाजिक दृष्टि 🤝

  • जाति व्यवस्था: कठोर विरोध नहीं, अस्पृश्यता और दास प्रथा स्वीकार। 😔
  • मोक्ष: केवल भिक्षुओं के लिए, गृहस्थों के लिए नहीं। 🙏
  • संस्कार: हिंदू संस्कारों को अपनाया, इसलिए हिंदू धर्म से पृथक नहीं हुआ। 🌍
  • व्यवसाय: व्यापार और उद्योग में प्रभुत्व, कर्नाटक-महाराष्ट्र में कृषि। 💼

जैन धर्म का पतन 😔

  1. अहिंसा का अव्यवहारिक स्वरूप: कृषि-प्रधान भारत में कठिन। 🚜
  2. कठोर तपस्या: गृहस्थों के लिए दुष्कर। 😓
  3. राजकीय संरक्षण का अभाव: बाद में शैव-वैष्णव राजाओं का प्रभुत्व। 👑
  4. धर्म प्रचारकों का अभाव: प्रभावी प्रचारकों की कमी। 🙅‍♂️
  5. जैन संघ की राजतंत्रात्मक व्यवस्था: सामान्य सदस्यों की उपेक्षा। 🗳️
  6. भेदभाव: बाद में जातिगत भेदभाव। 😔
  7. वैदिक धर्म का सुधार: शैव-वैष्णव धर्म का प्रचार। 🚩

निष्कर्ष 🌟

जैन धर्म ने अहिंसा, सत्य, और आत्म-संयम का संदेश दिया। महावीर ने पार्श्वनाथ के चार व्रतों में ब्रह्मचर्य जोड़कर जैन धर्म को सुदृढ़ किया। त्रिरत्न, द्रव्य सिद्धांत, और स्यादवाद इसके मूल दर्शन हैं। दिगंबर और श्वेतांबर संप्रदायों ने इसे विविधता प्रदान की। दो प्रमुख संगीतियों (पाटलिपुत्र और माथुरी) ने आगमों को संरक्षित किया। जैन साहित्य (आचारांग, भगवती, तत्वार्थाधिगमसूत्र) और कला (दिलवाड़ा, शत्रुंजय) ने सांस्कृतिक समृद्धि को बढ़ाया। राजकीय संरक्षण (बिंबिसार, चंद्रगुप्त, सम्प्रति) ने इसके प्रसार में योगदान दिया। आज भी जैन धर्म अहिंसा और नैतिकता का प्रतीक है। 🌍🙏

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