दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश (हाड़ौती का पठार)

By: LM GYAN

On: 24 June 2025

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दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश

दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश, जिसे हाड़ौती का पठार कहा जाता है, राजस्थान का सबसे छोटा भौतिक प्रदेश है। यह अपने उपजाऊ काली मृदा, उच्च वर्षा, और कृषि संभावनाओं के लिए जाना जाता है। प्राचीनकाल में इस पर हाड़ा वंश का शासन होने के कारण इसे हाड़ौती के नाम से जाना जाता है। नीचे इसकी उत्पत्ति, विस्तार, विशेषताएँ, और वर्गीकरण का विस्तृत विवरण दिया गया है।

दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश की उत्पत्ति

  • भू-वैज्ञानिक उत्पत्ति:
    • मध्यजीवी महाकल्प (मिसोजोइक एरा, द्वितीयक महाकल्प) के क्रिटेशियस काल में गौंडवाना लैंड में ज्वालामुखी क्रिया के दरारी उद्गार से निकले लावा के जमाव से निर्मित।
    • यह क्षेत्र मालवा पठार का उत्तरी विस्तार है, जो ज्वालामुखी बैसाल्ट चट्टानों से बना।

दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश का विस्तार

  • स्थान: राजस्थान के दक्षिण-पूर्व में, अरावली पर्वतमाला और विंध्याचल के मध्य।
  • क्षेत्रफल: 24,185 वर्ग किमी, जो राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का 7% है।
  • जनसंख्या: राजस्थान की कुल जनसंख्या का 13% निवास।
  • अक्षांशीय विस्तार: 23°51′ उत्तरी से 25°27′ उत्तरी अक्षांश।
  • देशांतरीय विस्तार: 75°15′ पूर्वी से 77°25′ पूर्वी देशांतर।
  • ऊँचाई: औसत 500 मीटर
  • ढाल: दक्षिण से उत्तर।
  • जिले: कोटा, बूंदी, झालावाड़, बाराँ, चित्तौड़गढ़ (आंशिक), भीलवाड़ा (आंशिक).
  • विशेष: क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का सबसे छोटा भौतिक प्रदेश

दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश की विशेषताएँ

  • संक्रांति प्रदेश: अरावली, विंध्याचल, और प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्र के बीच संक्रमण स्थल।
  • भ्रंश घाटी: बूंदी से सवाई माधोपुर के मध्य महान सीमा भ्रंश (ग्रेट बाउंड्री फॉल्ट)
  • चट्टानें: क्रिटेशियस कालीन बैसाल्ट, बलुआ पत्थर, और एल्यूमिनियम भंडार।
  • मृदा: काली मृदा (वर्टीसोल), ज्वालामुखी लावा के विखंडन से निर्मित, कृषि के लिए उपयुक्त।
  • नदियाँ:
    • चंबल: प्रमुख नदी, दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवाह।
    • सहायक नदियाँ: कालीसिंध, पार्वती, मेज
    • सर्वाधिक नदियाँ: राजस्थान का सबसे बड़ा चंबल नदी तंत्र
  • अपवाह तंत्र: अंत: अस्पष्ट- अधर प्रवाह तंत्र, नदियों की अधिकता के कारण।
  • मृदा अपरदन: नदियों के कारण सर्वाधिक मृदा अपरदन।
  • जलवायु:
    • सर्वाधिक वर्षा: 80 सेमी से अधिक, अति आर्द्र जलवायु
    • मानसून: दक्षिण-पश्चिम मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा इस क्षेत्र से राजस्थान में प्रवेश करती है।
  • कृषि: काली मृदा और उच्च वर्षा के कारण खरीफ (धान, सोयाबीन, मक्का) और रबी (गेहूँ, चना) फसलों का उत्पादन।
  • खनिज: बलुआ पत्थर, चूना पत्थर, एल्यूमिनियम; सीमेंट उद्योग (कोटा)।
  • आर्थिक गतिविधियाँ: कृषि, सीमेंट और रासायनिक उद्योग (कोटा), पर्यटन।

दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश का वर्गीकरण

धरातलीय संरचना के आधार पर हाड़ौती के पठार को पाँच उप-प्रदेशों में विभाजित किया गया है:

1. अर्ध-चंद्राकार पर्वत श्रेणियाँ

  • विशेषताएँ: बूंदी और मुकुंदरा पर्वत चोटियों के रूप में अर्ध-चंद्राकार पर्वत श्रेणियाँ।
  • विस्तार: इंद्रगढ़ (बूंदी) से लाखेरी के दक्षिण-पश्चिम तक।
  • उप-विभाग:
    • (क) बूंदी की पर्वत श्रेणियाँ:
      • विस्तार: उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम, लंबाई 96 किमी
      • ऊँचाई: 300-350 मीटर।
      • सर्वोच्च शिखर: सतूर (353 मीटर)।
      • दर्रे:
        1. बूंदी दर्रा (देवली-कोटा मार्ग)
        2. जैतवास दर्रा
        3. रामगढ़-खटगढ़ (मेज नदी मार्ग)
        4. लाखेरी दर्रा
    • (ख) मुकुंदरा की पर्वत श्रेणियाँ:
      • विस्तार: उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व, 120 किमी
      • ऊँचाई: 335-503 मीटर।
      • सर्वोच्च शिखर: चाँदवाड़ी (517 मीटर)।
      • विशेष: मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व।

2. नदी निर्मित मैदान

  • विशेषताएँ: चंबल और सहायक नदियों (कालीसिंध, पार्वती, मेज) द्वारा उपजाऊ जलोढ़ मृदा का जमाव।
  • विस्तार: कोटा, बूंदी, बाराँ।
  • कृषि: धान, सोयाबीन, गेहूँ, मक्का।
  • विशेष: उच्च कृषि उत्पादकता, नहरों और नलकूपों से सिंचाई।

3. शाहबाद का उच्च क्षेत्र

  • विस्तार: बाराँ के पूर्वी भाग, मध्य प्रदेश की सीमा पर।
  • ऊँचाई: 300 मीटर (समुद्र तल से)।
  • सर्वोच्च शिखर: कस्बा थाना (456 मीटर)।
  • विशेष भू-आकृति: रामगढ़ की पहाड़ी (घोड़े की नाल/हॉर्स शू आकृति), टेक्टोनिक कारणों से निर्मित।
  • विशेषताएँ: मिश्रित कृषि, वन क्षेत्र।

4. झालावाड़ का पठार

  • विस्तार: मुकुंदरा श्रेणियों के दक्षिण, 300-450 मीटर ऊँचाई।
  • विशेषताएँ: मालवा पठार का हिस्सा, काली मृदा, कृषि-प्रधान।
  • कृषि: धान, मूँग, सोयाबीन।
  • विशेष: छोटे उद्योग, नदियों द्वारा मृदा अपरदन।

5. डग-गंगधर उच्च प्रदेश

  • विस्तार: हाड़ौती के दक्षिण-पश्चिम, 450 मीटर ऊँचाई।
  • सीमा: पश्चिम में चंबल नदी
  • विशेषताएँ: उच्च क्षेत्र, फिर भी कृषि-प्रधान (गेहूँ, चना)।
  • जिले: झालावाड़।

ऊपरमाल

  • विस्तार: भैंसरोड़गढ़ (चित्तौड़गढ़) से बिजौलिया (भीलवाड़ा)।
  • विशेषताएँ: पठारी क्षेत्र, हाड़ौती का हिस्सा, काली मृदा, मक्का-गेहूँ की खेती।

निष्कर्ष

दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश (हाड़ौती का पठार) राजस्थान का सबसे छोटा (7% क्षेत्रफल) और सर्वाधिक वर्षा (80 सेमी से अधिक) वाला भौतिक प्रदेश है। क्रिटेशियस काल में ज्वालामुखी लावा से निर्मित, यह मालवा पठार का उत्तरी हिस्सा है। काली मृदा (वर्टीसोल) और चंबल नदी तंत्र इसे कृषि के लिए आदर्श बनाते हैं। महान सीमा भ्रंश और मुकुंदरा पर्वत इसकी विशिष्ट भू-आकृतियाँ हैं। बूंदी, मुकुंदरा, शाहबाद, झालावाड़, और डग-गंगधर इसके प्रमुख उप-प्रदेश हैं। यह क्षेत्र कृषि, सीमेंट उद्योग, और पर्यटन (मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व) में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

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