सांचौर जिला बनने के बाद पुनर्गठित जालोर जिले में अब 5 उपखंड ( जालोर , आहोर , सायला , भीनमाल , जसवंतपुरा ) . व 6 तहसीलें ( जालोर , आहोर , भाद्राजून , सायला , भीनमाल , जसवंतपुरा ) रह गई हैं ।
पुनर्गठित जालोर जिले की सीमा 4 जिलों- बालोतरा , पाली , सिरोही , सांचौर जिले से लगती है । जालोर जिले की सीमा अब अंतर्राज्यीय सीमा ( गुजरात ) से नहीं लगती है । इसके साथ ही बाड़मेर जिले से भी जालोर की सीमा नहीं लगेगी ।
- उपनाम- ग्रेनाइट सिटी
- जालोर जिले का शुभंकर – भालू / रींछ
- नर्मदा नदी का बहाव क्षेत्र बाड़मेर – जालोर की जगह अब बाड़मेर – सांचौर होगा ।
- प्राचीन समय में वर्तमान के जालोर को जाबालिपुर , सुवर्ण नगरी के नाम से जाना जाता था ।
- जालोर के चौहान वंश की स्थापना 1181 ई . ( 1178 ई . ) में कीर्तिपाल द्वारा की गई ।
- अलाउद्दीन ने जालोर जीतकर उसका नाम जलालाबाद कर दिया था ।
- यह जिला ईसबगोल , जीरा , अरण्डी , टमाटर उत्पादन में राज्य का अग्रणी जिला है ।
- कीर्तिपाल ( कीतू ) – 1181 में जालोर चौहान वंश ( सोनगरा ) की स्थापना की गई ।
- कान्हड़देव ( 1296-1312 ) – जालोर का सबसे शक्तिशाली राजा । अलाउद्दीन खिलजी का कान्हड़देव के प्रति नाराजगी का कारण- कान्हड़देव द्वारा खिलजी की गुजरात से लौट रही सेना पर आक्रमण करना और फिरोजा एवं वीरमदेव के बीच प्रेम – प्रसंग |
- जालोर का युद्ध- 1311 ई . में कान्हड़देव और अलाउद्दीन खिलजी के मध्य लड़ा गया । इसमें अलाउद्दीन खिलजी विजयी हुए । अलाउद्दीन ने जालौर का नाम बदलकर जलालाबाद रखा ।
- भीनमाल- ब्रह्म स्फुट सिद्धांत के प्रवर्तक ब्रह्मगुप्त व कवि माघ ( शिशुपाल वध के रचयिता ) का जन्म स्थान । गुर्जर प्रतिहार वंश की सबसे प्रमुख राजधानी भीनमाल का प्राचीन नाम श्रीमाल था ।
- जालौर दुर्ग- कनकांचल पहाड़ी पर स्थित इस दुर्ग को सुवर्णगिरी या सोनल गढ़ कहते हैं । डॉ . दशरथ शर्मा के अनुसार इसका निर्माण नागभट्ट प्रथम ( प्रतिहार शासक ) द्वारा करवाया गया जबकि डॉ . गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार इसका निर्माण परमार राजाओं ने करवाया । हसन निजामी के अनुसार- इस दुर्ग के द्वार कोई आक्रमणकारी खोल नहीं पाया ।
- नसौली- यहाँ पीले रंग के ग्रेनाइट के भंडार मिले हैं । जालोर में गुलाबी रंग का ग्रेनाइट पाया जाता है ।
- जालोर के अरब सागर के रेगिस्तानी तट पर जो दल – दल का विस्तार उसे नेहड़ के नाम से जाना जाता है ।
- आशा पुरी मंदिर ( मोद्रा ) जालोर के सोनगरा चौहानों की कुल देवी का मंदिर जिसमें नवरात्रि के दिनों में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है ।
- पीरजी का उर्स- एतिहासिक सुवर्णगिरी दुर्ग ( जालौर का दुर्ग ) की सर्वोच्च चोटी पर मलिकशाह पीर के उर्स का आयोजन किया जाता है जो कि धामिक एकता व हिन्दू – मुस्लिम संस्कृति के समन्वय का परिचायक है । नाथ सम्प्रदाय के महन्त भी यहां पर चादर चढ़ाते हैं ।
- बांकली बांध- यह बांध सूकड़ी नदी पर बनाया गया है । सूकड़ी लूनी नदी की सहायक नदी है ।
- सुन्धा मंदिर- सुन्धा पर्वत पर स्थित चामुण्डा देवी प्रख्यात मंदिर , राजस्थान व गुजरात के लाखों दर्शनार्थी इस मेले में भाग लेते हैं । यह मंदिर ‘ सागी नदी ‘ के किनारे स्थित है । जो सांचौर के रानीवाड़ा क्षेत्र में सुंधा पर्वत पर स्थित है । यह राजस्थान का प्रथम रोप – वे 20 दिसंबर 2006 को प्रारम्भ किया गया ।
- सुंधा / सुंडा पर्वत अभिलेख ( 1262 ई . ) – सांचौर स्थित सुंडा पर्वत का यह अभिलेख चौहान शासक चाचिगदेव के समय का है । जिले की सबसे ऊँची पर्वत चोटी सुन्धा ( 991 मीटर ) है , जो जसवंतपुरा की पहाड़ियों में स्थित है ।
- भालू अभयारण्य – सुंधा माता ( भीनमाल ) में स्थापित । राजस्थान का पहला और देश का चौथा भालू संरक्षण रिजर्व है ।
- भावतरा- भारत सरकार की यहां प्रदेश का दूसरा सूखा बंदरगाह स्थापित करने की योजना है । राजस्थान में पहला सूखा बंदरगाह बाखासर ( बाड़मेर ) में है ।
- क्षेमकरी माता मंदिर- यह भीनमाल , जालौर में स्थित है । यह ‘ सोलंकी वंश ‘ की कुलदेवी है ।
- अपराजितेश्वर / आपेश्वर महादेव मंदिर- यह 13 वीं सदी में निर्मित मंदिर है । यहाँ राजस्थान का प्रथम सफेद स्फटिक शिवलिंग स्थित है । इस मंदिर के बाँयी ओर खारे पानी का गोमती नामक कुण्ड स्थित है ।
- श्री लक्ष्मी वल्लभ पार्श्वनाथ 72 जिनालय जैन मंदिर निर्माण : श्री सुमेरमल व सुआबाई लुकंड द्वारा निर्माण आरम्भ करवाया गया । यह देश का सबसे बड़ा जैन मंदिर एवं राजस्थान में क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा मंदिर है । यह मंदिर जालोर के साँथू गाँव में स्थित है ।
- तल्लीनाथ जी का मंदिर- यह मंदिर जालोर जिले के ‘ पांचोटा गाँव ‘ में स्थित है ।
- जगनाथ महादेव मंदिर- निर्माण : रूदल देवी द्वारा ( कीर्तिपाल चौहान की पुत्री ) अपने भाई समरसिंह के शासन काल में ।
- सियाणा के खेतला जी मंदिर- यहां खेतला जी की मूर्ति जंजीरों से बँधी हुई है ।
- मांडोली तीर्थ / गुरू मंदिर – निर्माण : किशनचंद जी द्वारा ( विजय शान्ति जी के शिष्य ) । यह जालोर के मांडोली स्थल पर स्थित है ।
- नीलकण्ठ महादेव मंदिर- निर्माण : अलाउद्दीन खिलजी द्वारा । यह मंदिर मस्जिदाकार आकृति में बना हुआ है , जिसमें आधा शिवलिंग काले रंग का और आधा शिवलिंग पीले रंग का है । यह मंदिर भाद्राजून तहसील ( जालोर ) में जालोर + पाली + बाड़मेर की सीमा पर स्थित है ।
- कोटा कास्तां दुर्ग / नाथों का दुर्ग- यह दुर्ग जालोर जिले की भीनमाल तहसील में स्थित है ।
- भाटा गैर- जालोर की प्रसिद्ध है , इसका आयोजन होली के दूसरे दिन किया जाता है ।
- महाकवि माघ व गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त का पैनोरमा – भीनमाल ,
- जालोर जिले में कोई बारहमासी नदी नहीं है ।
- भीनमाल , जालोर की चमड़े की मोजड़ी / जूतियाँ प्रसिद्ध है ।
- खेसला उद्योग- यह लोटा ग्राम में हथकरघा आधारित उद्योग है । यहाँ के स्थानीय कारीगर बड़ी सफाई से पक्के रंगों वाली सूती खेस बनाते हैं ।
- बड़गाँव को जालोर का कश्मीर कहा जाता है ।
- चीनी यात्रा ह्वेनसांग- इन्होंने भीनमाल ( जालोर ) की यात्रा की थी 641 ई . में । इन्होंने भीनमाल को पोलो- मिलो और कोट्याधिपतियों ( करोड़पतियों ) का नगर कहा ।
- उद्योतन सूरी- इन्होंने जालोर दुर्ग में ” कुवलय माला ” की रचना की ।
- पद्मनाभ- इन्होंने 1512 ई . में राजा कान्हड़देव के पुत्र वीरमदेव को नायक बनाकर ‘ कान्हड़देव प्रबंध ‘ नामक ग्रंथ की रचना की ।