- प्रतापगढ़ जिला अब बांसवाड़ा संभाग में शामिल हो गया है। पहले उदयपुर संभाग का जिला था।
- नवगठित सलूंबर जिले की सीमा प्रतापगढ़ से लगती है। प्रतापगढ़ जिले की सीमा अब 4 जिलों- चित्तौड़गढ़, सलूंबर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा से लगती है । प्रतापगढ़ की मध्यप्रदेश से अंतर्राज्यीय सीमा लगती है।
- प्रतापगढ़ जिला प्रमेशचन्द्र कमेटी की सिफारिश पर बनाया गया था।
- 26 जनवरी 2008 को राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे सिंधिया ने चित्तौड़गढ़ जिले की प्रतापगढ़, अरणोद, छोटी सादड़ी तहसील, बाँसवाड़ा जिले की पीपलखूँट तहसील, उदयपुर जिले की धरियावद तहसील को मिलाकर प्रतापगढ़ को 33वाँ जिला घोषित किया।
- प्रतापगढ़ पर लगभग आठ सौ सालों तक सिसोदिया वंश के शासकों का शासन रहा है । इसी वंश के शासक क्षेमकरण का पुत्र राजकुमार सूरजमल 1514 ई. में देवगढ़ का शासक बना। इस शासन को कालान्तर में प्रतापगढ़ के नाम से जाना गया। प्रतापसिंह ने 1699 ई. में देवगढ़ के समीप प्रतापगढ़ कस्बे की स्थापना की। कालान्तर में प्रतापगढ़ देवगढ़ की राजधानी था।
- प्रतापगढ़ जिले का शुभकर- उडन गिलहरी
- प्रतापगढ़ 580 मीटर की ऊँचाई पर बसा है।
- यह माउंट आबू के बाद राजस्थान का दूसरा सबसे ऊँचा स्थान है।
- यहां काली मिट्टी और आर्द्र जलवायु पाई जाती है।
- यह जिला पूर्वी मैदानी भाग का हिस्सा है।
- यहाँ मुख्यरूप से सागवान एवं महुआ (आदिवासियों का कल्पवृक्ष) के वृक्ष पाए जाते हैं।
- इस जिले में सर्वाधिक तरल हींग और अफीम का उत्पादन किया जाता है।
- कांठल : माही नदी के किनारे प्रतापगढ़ का भू-भाग कांठल कहलाता है ; इसलिए माही नदी को कांठल की गंगा कहते हैं । (भौगोलिक नाम)
- छप्पन का मैदान : बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ के मध्य का भू- भाग छप्पन का मैदान कहलाता है । माही नदी इसका निर्माण करती है।
- जाखम नदी : जाखम नदी प्रतापगढ़ जिले की छोटी सादडी में स्थित भंवर माता की पहाड़ी से निकलती है।
- जाखम बांध : प्रतापगढ़ में।
- जाखम परियोजना : जाखम परियोजना 1 962 में प्रारंभ की गई। यह चित्तौड़गढ़ व प्रतापगढ़ मार्ग पर अनुपपुरा गांव में बनी हुई है। यह राजस्थान का सबसे ऊंचाई पर स्थित बांध है।
- राजस्थान परिवहन विभाग द्वारा प्रतापगढ़ जिले में पंजीकृत होने वाले वाहनों को कोड (RJ-35)जारी किया गया है यह जिला राजस्थान का दूसरा सबसे उऊंचा बसा हुआ स्थान है । इसमें औसत वार्षिक वर्ष्षा लगभग 90 से. मी. है । इस जिले की मुख्य फसलें गेहूं एवं मक्का है।
- बाण माता का मंदिर, रामकृष्ण मंदिर, छोटी माजी साहिवा का किला, काकाजी की दरगाह (कांठल का ताजमहल) श्वेताम्बर महिला स्थानक श्री बामोत्तर तीरथ जो प्रतापगढ़ के समीप स्थित जैन धर्म का प्रसिद्ध स्थल है, सोली के हनुमानजी एवं महाकाल के प्रसिद्ध मंदिर तथा कालिका माता का मन्दिर विशाल और ऊंची कुर्सी पर बना बहुत प्राचीन मन्दिर है।
- कालिका माता मन्दिर का निर्माण मेवाड़ के गुहिल वंशीय राजाओं ने आठवीं/नवीं शताब्दी में करवाया था।
- जिले की अरनोद तहसील में प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण गौतमेश्वर नामक स्थल है। यह गातम ऋ्ष का स्थान माना जाता है।
- सीतामाता अभयारण्य मुख्य रूप से इस जिले की धरियावाद एवं चित्तौड़गढ़ की बड़ी सादड़ी तहसील में स्थित है। यह राजस्थान का एकमात्र सांगवान के वनों का अभयारण्य है तथा यह हिमालय के पश्चात् अत्यधिक मात्रा में दुर्लभ औषधियां पाई जाने का दूसरा वन क्षेत्र है। इस अभयारण्य से होकर बहने वाली नदियों में जाखम, सीतामाता टांकिया भूदो एवं नालेश्वर मृख्य है । इस अभयारण्य में पाई जाने वाली आकिड की दो दुर्लभ प्रंजातियां एरीडीस क्रिस्पम और जुकजाइन स्ट्रैटमेटिका एवं इसके अतिरिक्त फन्स्स की नौ दुर्लभ प्रजातियां मिलती हैं।
- इस अभयारण्य का उपनाम चीतल की मातृभूमि एवं उड़न गिलहरियों का स्वर्ग है और यही इस अभयारण्य की मुख्य विशेषता है । इस अभयारण्य में दो जल स्रोतों को लव-कुश के नाम से जाना जाता है।
- गौतमेश्वर महादेव मंदिर- यह अरनोद, प्रतापगढ़ में स्थित है। इसे कांठल का हरिद्वार एवं प्रतापगढ़ का हरिद्वार भी कहा जाता है। यहाँ मंदाकिनी कुण्ड स्थित है । यहाँ प्रतिवर्ष वैसाख पूर्णिमा को तीन दिवसीय मेला लगता है ।
- काका जी की दरगाह- इसका संबंध बोहरा मुस्लिम संप्रदाय से है। इसे कांठल का ताजमहल कहा जाता है।
- भँवरमाता का मंदिर- यह छोटी सादड़ी में स्थित है। यहाँ प्रतिवर्ष चैत्र व आश्विन नवरात्रा को मेला भरता है।
- दीपनाथ महादेव भेला – इस मेले का आयोजन कार्तिक पूर्णिमा को होता है।
- शांतिनाथ तीर्थ- यह प्रतापगढ़ का प्रसिद्ध जैन तीर्थ है।
- स्वामीनारायण मंदिर- धरियावाद में स्थित इस मंदिर पर पंचशिखर बने हुए हैं।
- जानागढ़ दुर्ग- यह दुर्ग सुहागपुरा पर्वत पर स्थित है ।
- देवगढ़ किला- देवगढ़ का ऐतिहासिक दुर्ग की छत पर घड़ी लगी हुई है, जी धूप से समय दिखाने के लिए बनाई गई थी।
- छोटी सादडी को प्रतापगढ़ की स्वर्ण नगरी कहा जाता है।
- राजस्थान में हीरे की खदान केसरपुूरा, प्रतापगढ़ में स्थित है।
- 1857 की क्रान्ति के समय प्रतापगढ़ का शासक दलपत सिंह था।
- देवगढ़ पवन ऊर्जा परियोजना- यह राजस्थान की दूसरी पवन ऊर्जा इकाई है। उद्घाटन 6 मार्च, 2001 को।
- थेवा कला- थेवा कला ‘प्रतापगढ़’ की प्रसिद्ध है। जस्टिन वकी ने इस कला को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाया। इस कला पर भारतीय डाक-विभाग ने वर्ष 2004 में डाक- टिकट जारी किया गया ।
- प्रतापगढ़ प्रजामंडल – स्थापनाः प्रतापगढ़ प्रजामण्डल की स्थापना अमृतलाल पाठक व चुन्नीलाल द्वारा 1945 में की गई।
- प्रतापगढ़ का ताम्रपत्र (1817 ई.) महारावल सांमतसिंह के समय के इस ताम्रपत्र में ब्राह्मणों पर लगने वाले टंकी कर को समाप्त करने का उल्लेख है।
- प्रतापगढ़ में पहली बार जनगणना 1881 ई. में रावत उदय सिंह के समय हुई।
- प्रतापगढ़ के गुहिल वंश का अंतिम शासक रामसिंह थे।
प्रतापगढ़ (Pratapgarh) जिला दर्शन
By LM GYAN
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