मध्यकालीन राजस्थान की प्रशासनिक एवं राजस्व व्यवस्था (मुगलों से संपर्क के बाद से 1818 ई. तक अंग्रेजों के साथ संधियों तक) राजपूत रियासतों और मुगल सूबा अजमेर की सामंती संरचना पर आधारित थी। इस व्यवस्था में राजा सर्वोच्च होता था, और प्रशासन रक्त संबंधों, कुलीय भावना, और जागीरदारी प्रथा पर टिका था। यहाँ 22 रियासतों की अपनी-अपनी व्यवस्थाएँ थीं, जिनमें कुछ समानताएँ थीं। नीचे इस व्यवस्था का विस्तृत विवरण दिया गया है।
Table of Contents
प्रशासनिक व्यवस्था
केन्द्रीय प्रशासन
राजा
- स्वतंत्र शासक: राजपूताना की रियासतों में राजा सर्वोच्च, स्वतंत्र, और प्रभुता संपन्न था।
- शक्तियाँ: प्रशासनिक, न्यायिक, और सैन्य शक्तियाँ राजा में निहित थीं।
- उपाधियाँ: महाराजाधिराज, राजराजेश्वर, खुम्माण (राज्य रक्षक) आदि।
- सामंती आधार: शासन सगोत्रीय और रक्त संबंधों पर आधारित था।
मंत्रिमंडल
- सहायता: राजा की सहायता के लिए मंत्रिमंडल था, जिसमें मंत्री वंशानुगत या बाहरी होते थे।
- प्रमुख अधिकारी:
- प्रधान:
- दीवान:
- आर्थिक, वित्त, और राजस्व परामर्श।
- नियुक्तियाँ, पदोन्नति, स्थानांतरण में सलाह।
- राजस्व विभाग का अध्यक्ष, कर संग्रह और धन प्रबंधन।
- राजा के बाहर जाने पर देशदीवान।
- स्वतंत्र मुहर, दफ्तर (दीवान-ए-हजूरी) में कागजात।
- महकमा-ए-बकायात: परगनों को राजस्व दरें, बकाया वसूली, और राशि भेजने के निर्देश।
- बक्शी:
- सैन्य विभाग का अध्यक्ष (रक्षा मंत्री)।
- सेना का वेतन, रसद, भर्ती, प्रशिक्षण, और घायलों का उपचार।
- गुप्त मंत्रणाओं में भागीदार, रेख (जागीर आय) का हिसाब।
- सहायक: नायब-बक्शी, अधीन: किलेदार, खबर नवीस।
- जोधपुर में फौज बक्षी।
- खान सामां:
- राजपरिवार का निकटस्थ, दीवान के अधीन।
- कारखानों और राजकीय महल की आवश्यकताओं का प्रबंधन।
- कोतवाल:
- राजधानी और कस्बों में शांति, चोरी-डकैती की रोकथाम, मूल्य निर्धारण, नाप-तौल नियंत्रण, मार्ग देखभाल, रात्रि गश्त, और साधारण विवाद निपटारा।
- शिकदार:
- नगर प्रशासन, सैन्य खर्चों की जाँच (मुगल कोतवाल के समान)।
- मीरमुंशी: कूटनीतिक पत्र व्यवहार।
- वकील: ठिकाने का राजधानी में प्रतिनिधि, वकील रिपोर्ट भेजता।
- किलेदार: किलों की देखरेख।
- नैमेत्तिक: राज ज्योतिषी।
- खजांची: रुपये जमा-खर्च का हिसाब, मेवाड़ में कोषपति।
- ड्योढ़ीदार: महल सुरक्षा और निरीक्षण।
- मुत्सद्दी: प्रशासन संचालन।
- दरोगा-ए-सायर: दान वसूली।
- वाक्या-नवीस: सूचना विभाग।
- दरोगा-ए-डाक चौकी: डाक प्रबंध।
- पत्र व्यवहार:
- रूक्का: राजा और सामंतों/अधिकारियों के बीच।
- खरीता: एक राजा से दूसरे राजा को।
- वाक्या: शासक की गतिविधियाँ, राजपरिवार की रस्में।
- अर्जदाश्त: सम्राट/शहजादों को प्रार्थना पत्र।
परगना प्रशासन
- विभाजन: राज्य को परगनों में बाँटा गया। परगना में ग्राम, मंडल, दुर्ग शामिल।
- अधिकारी:
- आमिल:
- परगने का मुख्य अधिकारी, भू-राजस्व दरें लागू करना और वसूली।
- सहायक: कानूनगो, पटेल, पटवारी, चौधरी।
- हाकिम:
- शासकीय और न्यायिक सर्वोच्च अधिकारी, मारवाड़ में नियुक्ति/पदच्युति राजा द्वारा।
- सहायक: शिकदार, कानूनगो, खजांची।
- फौजदार:
- पुलिस और सेना का अध्यक्ष, सीमा सुरक्षा, आमिल को राजस्व वसूली में सहायता।
- मारवाड़ में डाकुओं के खिलाफ अभियान को बाहर चढ़ना।
- ओहदेदार: बड़े परगनों में हाकिम की सहायता।
- खुफिया नवीस: परगना रिपोर्ट दीवान को।
- पोतदार: परगना आय-व्यय का हिसाब।
- आमिल:
- अन्य: ग्राम (ग्रामिक), मंडल (मंडलपति), दुर्ग (दुर्गाधिपति, तलारक्ष)।
ग्राम प्रशासन
- इकाई: गाँव (मौजा), सबसे छोटी इकाई।
- वर्गीकरण: असली (पुराने गाँव), दाखिली (नए गाँव)।
- अधिकारी:
- ग्रामिक: गाँव का मुखिया।
- पटवारी: भूमि रिकॉर्ड और राजस्व वसूली।
- संस्थाएँ:
- ग्राम पंचायत: न्याय, झगड़े, धार्मिक-सामाजिक कार्य, राज्य द्वारा मान्यता।
- संघ: धार्मिक उत्सव, यात्राएँ, प्रवचन।
- गोष्ठी: धार्मिक संस्थाओं की देखरेख।
- पंचकुल: भूमि आदेशों का पालन, अर्द्ध-राजनीतिक/सामाजिक।
- पंचायत: भूमि विवाद, जन्म-मृत्यु गणना।
- अन्य: कनवारी (खेत रक्षक), दफेदार (लेखा-जोखा), तलवाटी (उपज तौल)।
- मेवाड़ में:
- गाड़ा: राजपूत बहुल गाँव।
- गमेती: भील/मीणा बहुल।
- पटवारी: महाजन बहुल।
सैनिक संगठन
- विभाजन:
- अहदी: शासक की सेना, दीवान और मीरबक्शी द्वारा भर्ती, प्रशिक्षण, वेतन।
- जमीयत: सामंत की सेना, सामंत द्वारा प्रबंधन।
- प्रकार:
- पैदल सैनिक:
- राजपूत सेना का बड़ा हिस्सा, हथियार: तीर-कमान, तलवार, कटार।
- सेहबंदी: अस्थायी, मालगुजारी वसूली के लिए।
- सवार:
- घुड़सवार और ऊँटसवार, सेना का आधार।
- बारगीर: राज्य द्वारा घोड़े, हथियार।
- सिलेदार: स्वयं की व्यवस्था।
- श्रेणियाँ: यक अस्पा (1 घोड़ा), दुअस्पा (2), सिह अस्पा (3), निम अस्पा (2 सैनिक, 1 घोड़ा)।
- पैदल सैनिक:
- अन्य:
- पीलखाना: हाथी सेना विभाग।
- तोपखाना:
- जिंसी/रामचंगी: भारी तोपें।
- दस्ती: हल्की तोपें।
- नरनाल: पीठ पर।
- शुतरनाल: ऊँट पर।
- रहकला: पहिए वाली गाड़ी।
- गोलन्दाज: तोप चलाने वाला।
जागीरदारी/सामंती प्रथा
- आधार: रक्त संबंध, कुलीय भावना, प्रशासनिक-सैन्य व्यवस्था।
- उद्देश्य: राज्य व्यवस्था और बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा।
- वर्णन: राजा ने रिश्तेदारों/अधिकारियों को भूमि (जागीर) दी, जिन्हें सामंत कहा गया। कर्नल टॉड ने इसे मध्ययुगीन यूरोपीय सामंती प्रथा से तुलनीय माना।
- अधिकार:
- शांति-व्यवस्था, कर वसूली, न्याय।
- प्रतिबंध: मृत्युदंड, अन्य सामंतों से संबंध, सिक्के ढालना।
- मंत्री नियुक्ति: सामंतों में से।
सामंतों का श्रेणीकरण
- मेवाड़:
- उमराव: सोलह (प्रथम), बत्तीस (द्वितीय), गोल (तृतीय)। सलूम्बर का विशेष स्थान।
- मारवाड़:
- राजवी: राजपरिवार की तीन पीढ़ियाँ, रेख/हुक्मनामा/चाकरी से मुक्त।
- सरदार: गैर-राजपरिवार।
- गनायत: बाहरी सरदार (वैवाहिक संबंध)।
- मुत्सद्दी: जागीर प्राप्त अधिकारी।
- सिरायत: प्रथम श्रेणी के राठौड़ सरदार।
- आमेर:
- बारह कोटड़ी: राजावत (प्रथम, निकट संबंधी), नाथावत, खंगारोत, बांकावत।
- भौमिए: बलिदान के बदले भूमि।
- ग्रासिया: सैनिक सेवा के बदले।
- कोटा:
- 30 मुख्य सामंत, अधिकांश हाड़ा राजपूत।
- देश के सामंत: राजकीय सेवा।
- दरबार के सामंत: देशथी (राज्य रक्षा), हजूरथी (राज्य से बाहर), जूरथी (मुगल सेवा)।
- बीकानेर:
- प्रथम: राव बीका परिवार।
- द्वितीय: अन्य रक्त संबंधी।
- तृतीय: राठौड़ों से पूर्व की जातियाँ।
- जैसलमेर:
- डावी (प्रथम), जीवणी (द्वितीय), हरराज के समय निर्मित।
- भरतपुर:
- सोलह कोटड़ी के ठाकुर।
सामंतों के विशेषाधिकार
- मेवाड़:
- ताजीम: महाराणा द्वारा खड़े होकर स्वागत।
- बाँह पसाव: राजा द्वारा तलवार से घुटना छूना, सामंत की पीठ थपथपाना।
- सिरोपाव: वीरता/सेवा के लिए वस्त्र/आभूषण।
- हाथ कुरब: सामंत का घुटना छूना, राजा का कंधे पर हाथ।
- सिर का कुरब: विशेष सरदारों को, ऊँची बैठक।
- बड़ी ओल: दायीं ओर उमराव।
- कुंवरों की ओल: बायीं ओर राजकुमार।
सामंतों से कर
- उत्तराधिकारी शुल्क:
- नए सामंत की गद्दीशिनी पर, जागीर नवीनीकरण।
- मेवाड़: कैद खालसा, तलवार बंधाई।
- मारवाड़: पेशकशी, हुक्मनामा (मोटा राजा उदय सिंह से शुरू)।
- जैसलमेर: एकमात्र रियासत बिना शुल्क।
- रेख: जागीर की वार्षिक आय।
- मारवाड़: पट्टा रेख (अनुमानित आय), भरतु रेख (जमा राशि)।
- चाकरी: युद्ध/शांति में सेवा, जैसलमेर में धन मिलता।
- नजराना: बड़े बेटे की पहली शादी।
- हलबराड़: कृषि कर।
- न्यौत बराड़/दशोद: विवाह कर।
- गनीम बराड़: युद्ध कर।
राजस्व प्रशासन
आय का स्रोत
- कृषि: प्रमुख स्रोत।
- भूमि वर्गीकरण:
- खालसा: शासक के नियंत्रण में।
- जागीर:
- सामंत जागीर: जन्मजात, सामंत द्वारा लगान वसूली।
- हुकूमत जागीर: मुत्सद्दियों को, मृत्यु पर खालसा।
- भौम जागीर: बलिदान के बदले।
- सासण/माफी जागीर: धर्मार्थ, शिक्षण (मंदिर, मस्जिद, चारण, भाट, ब्राह्मण), कर मुक्त।
भूमि के प्रकार
- चरणोत/चारागाह/गोचर: पशु चारा, सार्वजनिक।
- बीड़: नदी के पास।
- डीमडू: कुएँ के पास।
- गोरमो: गाँव के पास।
- माल: काली उपजाऊ।
- पीवल: कुएँ/तालाब से सिंचित।
- बारानी: वर्षा पर निर्भर।
- हकत-बकत: जोती जाने वाली।
- बंजर: अकृषित।
लगान निर्धारण प्रणालियाँ
- मौजा: गाँव, पटवारी मुख्य अधिकारी।
- भोग हासिल: निश्चित भू-राजस्व (अनाज में भोग, नकद में हिरण्य)।
- पटेल/चौधरी: लगान निर्धारण में भूमिका।
- प्रणालियाँ:
- लाटा: फसल कटाई, तौल कर राज्य हिस्सा अलग।
- कूंता: खड़ी फसल का अनुमान।
- बीघोड़ी: प्रति बीघा उर्वरता/पैदावार आधार।
- मुकाता: एकमुश्त लगान।
- डोरी: नाप कर मालगुजारी।
- घूघरी: बीज के बराबर उपज।
- नकदी/भेज: पूर्वी राजस्थान में नकद।
- भींत की भाछ: बीकानेर में घरों की संख्या आधार।
भूमि वर्गीकरण
- इजारा: ठेके पर, बीकानेर में मुकाता।
- मुश्तरका: राज्य और सामंत में आय बँटवारा।
- ग्रासिये: सैनिक सेवा के बदले।
- भौमिये: बलिदान के बदले, बेदखली नहीं, नाममात्र कर।
- तनखा: निश्चित सैनिक सेवा।
- इनाम: सेवा के बदले, कर मुक्त, बिक्री निषिद्ध।
- अलूफाती: राजपरिवार की महिलाओं को।
- पसातिया: सेवा के लिए, सेवा समाप्ति पर वापस, कर मुक्त।
- डोली: पुण्यार्थ, कर मुक्त।
- डूमबा: बसावट, कृषि योग्य, कर योग्य।
भू-राजस्व प्रशासन
- दीवान: आय वृद्धि, खर्च पूर्ति।
- आमिल: परगना राजस्व वसूली।
- हाकिम: कोटा (हवालगिर), जयपुर (फौजदार), शांति, न्याय, राजस्व।
- साहणे: राज्य का हिस्सा निर्धारित।
- तफेदार: गाँव राजस्व हिसाब।
- सायर दरोगा: चुंगीकर।
- सायर: जयपुर में आयात-निर्यात, सीमा शुल्क, चुंगीकर।
- छटूंद: मेवाड़ में जागीरदार की आय का 1/6।
- अड़सट्टा: जयपुर का भूमि रिकॉर्ड।
- बिचेती: परगने में व्यापारियों को बेची उपज।
कृषक वर्ग
- बापीदार:
- खालसा में स्थायी भू-स्वामी, वंशानुगत पट्टा।
- गैर-बापीदार: खेतिहर मजदूर।
- रैयती:
- अस्थायी भू-स्वामी, फसल वर्ष के लिए पट्टा।
- पाहीकाश्त: दूसरे गाँव में कृषि।
- गेवती: गाँव में स्थायी निवासी।
प्रमुख लाग-बाग और कर
- चंवरीलाग: किसान की पुत्री के विवाह पर।
- न्यौता-लाग: सामंत के बच्चों के विवाह पर।
- खिचड़ी लाग: जागीरदार के दौरे पर।
- अखराई: राजकोष रसीद कर।
- दस्तूर: अवैध वसूली।
- बाईजी लाग: जागीरदार की बेटी जन्म पर।
- कागली/नाता: विधवा पुनर्विवाह।
- मलवा: नौकरों का खर्च।
- सिगोंटी: पशु विक्रय।
- जाजम लाग: भूमि विक्रय।
- हलमा: हल जोतने की बेगार।
- डाण: अंतरराज्यीय व्यापार।
- बंदोली री लाग: जागीरदार के घर विवाह।
- कमठा लाग: दुर्ग निर्माण/मरम्मत।
- घरेची: अवैध सहवास।
- कारज खर्च: जागीरदार के संबंधी की मृत्यु।
- उद्रंग/भाग: उपज के रूप में।
- हिरण्यक: मुद्रा में कर।
- सायरा जिहात: त्योहारों पर कर।
- आबवाब: धर्मशास्त्र विरुद्ध कर।
- फरौही: व्यवसायों पर।
न्याय प्रशासन
- परंपरागत व्यवस्था:
- राजा: मुख्य न्यायिक अधिकारी, बड़े अपराध, मृत्युदंड।
- सामंत: जागीर में न्याय।
- हाकिम: खालसा में।
- ग्राम/जातीय पंचायत: छोटे अपराध।
- आधार: सामाजिक-धार्मिक व्यवस्था।
- विशेषताएँ:
- अपराध व्यक्ति के विरुद्ध, समाज के नहीं।
- कोई लिखित रिकॉर्ड नहीं।
- सामाजिक स्थिति आधारित दंड।
- सरणा: सामंत की शरण में दंड से मुक्ति।
- कठोर दंड नहीं।
- सस्ता और शीघ्र न्याय।
निष्कर्ष
मध्यकालीन राजस्थान की प्रशासनिक और राजस्व व्यवस्था सामंती और कृषि-आधारित थी। राजा और सामंतों के बीच घनिष्ठ रक्त संबंध, जागीरदारी प्रथा, और परंपरागत न्याय ने इसे विशिष्ट बनाया। यह व्यवस्था स्थानीय आवश्यकताओं और सांस्कृतिक मूल्यों पर आधारित थी, जो रियासतों की स्वायत्तता को दर्शाती थी। क्या आप इस व्यवस्था की तुलना आधुनिक प्रशासन से करना चाहेंगे?