मराठा साम्राज्य: 🌟 एक विस्तृत अध्ययन ⚔️

By: LM GYAN

On: 30 August 2025

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मराठा साम्राज्य

मराठा साम्राज्य (17वीं–19वीं शताब्दी) भारतीय इतिहास में एक शक्तिशाली हिंदू साम्राज्य था, जिसने दक्षिण भारत में स्वराज्य की स्थापना कर मुगल साम्राज्य को चुनौती दी। शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित इस साम्राज्य ने अपनी सैन्य शक्ति, गुरिल्ला युद्ध नीति, और संगठित प्रशासन के बल पर दक्षिण से उत्तर भारत तक विस्तार किया। पेशवाओं के काल में मराठा शक्ति अपने चरम पर थी, परंतु आंतरिक कलह और आंग्ल-मराठा युद्धों ने इसके पतन का मार्ग प्रशस्त किया। यहाँ मराठा साम्राज्य का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत है, जिसमें शिवाजी का जीवन, प्रशासन, सैन्य व्यवस्था, राजस्व प्रणाली, और पेशवाओं का योगदान शामिल है। 🌟

Table of Contents

शिवाजी महाराज (1627–1680) 🏰

प्रारंभिक जीवन:

  • जन्म: 20 अप्रैल 1627, शिवनेर किला (पुणे के निकट)।
  • माता-पिता: माता जीजाबाई, पिता शाहजी भोसले।
  • गुरु: समर्थ रामदास।
  • प्रारंभिक प्रशिक्षण: 1637 में शाहजी ने शिवाजी और जीजाबाई को पुणे की पैतृक जागीर की देखभाल के लिए दादाजी कोंडदेव को सौंपा और स्वयं कर्नाटक चले गए।

उद्देश्य:

  • मराठों की बिखरी शक्ति को एकत्रित कर दक्षिण भारत में स्वतंत्र हिंदू राज्य (हिंदू पद पादशाही) की स्थापना।
  • हिंदुत्व का संरक्षण और ब्राह्मणों की रक्षा।

सैन्य विजय:

  • 1643: बीजापुर के सिंहगढ़ किले पर पहला कब्जा।
  • 1646: तोरण किला।
  • 1656 तक: चाकन, पुरंदर, बारामती, सूपा, तिकोना, लोहगढ़।
  • जावली विजय (1656): मराठा सरदार चंद्रराव मोरे से कब्जा।
  • रायगढ़ (अप्रैल 1656): मराठा साम्राज्य की राजधानी।
  • 1657: मुगलों से पहला मुकाबला, बीजापुर की ओर से। जुन्नर लूटा।
  • 1659: अफजल खाँ (बीजापुर) की हत्या, प्रतापगढ़ किले में (ब्राह्मण दूत कृष्णजी भास्कर ने सूचना दी)।
  • 1663: शाइस्ता खाँ (मुगल गवर्नर) पर पूना में रात्रि हमला, शाइस्ता खाँ भागा।
  • 1664: सूरत की प्रथम लूट (22 मई 1664)।
  • 1670: सूरत की दूसरी लूट, चौथ की मांग। कोंडाना किला (सिंहगढ़) पुनः जीता।

पुरंदर की संधि (1665):

  • पृष्ठभूमि: औरंगजेब ने मिर्जा राजा जयसिंह को दक्षिण भेजा।
  • शर्तें:
    1. शिवाजी ने 23 किले (4 लाख हूण आय) मुगलों को सौंपे, 12 किले बचे।
    2. शम्भाजी को 5,000 मनसब और जागीर।
    3. शिवाजी ने बीजापुर के खिलाफ मुगलों को सहायता का वादा।

आगरा यात्रा (1666):

  • जयसिंह के आश्वासन पर औरंगजेब से मिलने आगरा गए।
  • अपमान के कारण दरबार छोड़ा, जयपुर भवन में कैद।
  • फल और मिठाई की टोकरियों में छिपकर भाग निकले।

राज्याभिषेक:

  • 14 जून 1674: रायगढ़ में गंगाभट्ट द्वारा छत्रपति के रूप में प्रथम राज्याभिषेक।
  • 4 अक्टूबर 1674: निश्चतपुरी गोस्वामी द्वारा दूसरा राज्याभिषेक।
  • उपाधि: हिंदू पद पादशाही, छत्रपति।

मृत्यु:

  • 1680: रायगढ़ में मृत्यु।

शिवाजी का प्रशासन 🏛️

शिवाजी का प्रशासन दक्षिणी राज्यों और मुगल प्रणालियों से प्रभावित था, जिसमें केंद्रीकृत शासन और हिंदू परंपराएँ शामिल थीं।

केंद्रीय प्रशासन:

  • शीर्ष: छत्रपति (शिवाजी)।
  • अष्टप्रधान मंडल (आठ मंत्रियों की परिषद):
    1. पेशवा (मुख्य प्रधान): शासन प्रबंधन, राजा की अनुपस्थिति में कार्य।
    2. अमात्य (मजमुआदार): वित्त और राजस्व।
    3. सेनापति (सर-ए-नौबत): सेना भर्ती, रसद, संगठन।
    4. वाकिया नवीस (मंत्री): दैनिक कार्य और दरबार का लेखा।
    5. दबीर (सुमंत): विदेश नीति।
    6. पंडितराव: धार्मिक अनुदान और विद्वानों की देखभाल।
    7. न्यायाधीश: दीवानी और फौजदारी मामलों का निर्णय।
    8. शुरु-नवीस (सचिव): पत्र-व्यवहार, परगनों का हिसाब।

प्रांतीय प्रशासन:

  • विभाजन: चार प्रांत, प्रत्येक राज प्रतिनिधि (वायसराय) के अधीन।
  • उप-विभाग: परगना और तालुका।
  • विशेषता: जागीर प्रथा समाप्त, नकद वेतन।

राजस्व प्रशासन:

  • आधार: मलिक अंबर की रैयतवाड़ी प्रणाली।
  • लगान:
    • प्रारंभ में 33% उपज।
    • बाद में स्थानीय कर माफ कर 40%।
  • प्रक्रिया:
    • भूमि पैमाइश (काठी/जरीब)।
    • कबूलियत (भू-स्वामियों से विवरण)।
    • 1679 में अन्नाजी दत्तो द्वारा भू-सर्वेक्षण।
  • प्रोत्साहन: नए क्षेत्र बसाने के लिए लगान-मुक्त भूमि।
  • कर:
    • चौथ: विजित क्षेत्रों से 1/4 उपज, सुरक्षा कर।
      • बँटवारा: 25% राजा, 6% पंत सचिव, 3% नाडगुंडा, 66% मराठा सरदार (मोकासा)।
    • सरदेशमुखी: 10% अतिरिक्त कर, राजा के लिए।

सैन्य प्रशासन:

  • संरचना:
    • पैदल और घुड़सवार सेना:
      • बरगीर: राज्य द्वारा घोड़े और शस्त्र।
      • सिलेदार: स्वयं के शस्त्र।
    • संगठन:
      • 25 घुड़सवार: 1 हवलदार।
      • 5 हवलदार: 1 जुमलादार।
      • 10 जुमलादार: 1 हजारी।
      • 5 हजारी: 1 पंचहजारी।
      • पंचहजारी: सर-ए-नौबत।
    • किलों का प्रशासन:
      • अधिकारी: हवलदार, सर-ए-नौबत (मराठा), सबनीस (ब्राह्मण)।
      • सबनीस: असैन्य और राजस्व।
      • कारखाना नवीस: रसद और सामग्री।
    • नौसेना: कोलाबा में जहाजी बेड़ा, दो कमान: दारिया सारंग (मुस्लिम), नायक (हिंदू)।
    • मावली: पहाड़ी योद्धा, शिवाजी के अंगरक्षक।
  • विशेषता:
    • मुस्लिम सैनिकों की भर्ती।
    • नकद वेतन।
    • गुरिल्ला युद्ध नीति।

न्याय प्रशासन:

  • ग्राम स्तर: पाटिल (आपराधिक मामले)।
  • उच्च स्तर: ब्राह्मण न्यायाधीश (स्मृतियों पर आधारित)।
  • अंतिम अपील: हाजिर-मजलिस।

शम्भाजी (1680–1689) ⚔️

  • उत्तराधिकार: शिवाजी की मृत्यु के बाद शम्भाजी और राजाराम में विवाद।
  • सिंहासनारोहण: 20 जुलाई 1680, रायगढ़।
  • मृत्यु: 11 मार्च 1689, औरंगजेब द्वारा हत्या, रायगढ़ पर कब्जा।
  • परिणाम: शाहू और येसूबाई कैद।

राजाराम (1689–1700) 🏰

  • सिंहासनारोहण: शम्भाजी की मृत्यु के बाद।
  • प्रशासन: रायगढ़ छोड़कर जिंजी (1689–1698, राजधानी), फिर सतारा (1699)।
  • मृत्यु: 1700।

शिवाजी द्वितीय और ताराबाई (1700–1707) 👑

  • सिंहासनारोहण: राजाराम की विधवा ताराबाई ने पुत्र शिवाजी द्वितीय को गद्दी पर बिठाया।
  • विजय: रायगढ़, सतारा, सिंहगढ़ पुनः जीते।

शाहू (1707–1748) 🏛️

  • मुक्ति: औरंगजेब की मृत्यु (1707) के बाद आजमशाह ने मुक्त किया।
  • खेड़ा युद्ध (1707): ताराबाई से जीत, बालाजी विश्वनाथ की सहायता।
  • सतारा (1708): राजधानी।
  • वार्ना संधि (1731):
    • शम्भाजी द्वितीय: कोल्हापुर (दक्षिणी मराठा राज्य)।
    • शाहू: सतारा (उत्तरी मराठा राज्य)।
  • मृत्यु: 15 दिसंबर 1749, निस्संतान।
  • उत्तराधिकारी: ताराबाई के पौत्र राजाराम द्वितीय (1750)।

पेशवाओं का काल: मराठा शक्ति का उत्कर्ष 🌟

पेशवाओं ने मराठा साम्राज्य को राष्ट्रीय शक्ति बनाया, विशेषकर दिल्ली और दक्षिण में।

बालाजी विश्वनाथ (1713–1720):

  • पृष्ठभूमि: धनाजी जाधव की सेवा (1699–1708), शाहू के सेनाकर्ते, 1713 में पेशवा।
  • संधि (1719): मुगल सूबेदार सैयद हुसैन अली के साथ:
    • स्वराज्य पर राजस्व अधिकार।
    • दक्कन के 6 सूबों, मैसूर, त्रिचिरापल्ली, तंजौर में चौथ और सरदेशमुखी।
    • गौडवाना, बरार, खानदेश, हैदराबाद, कर्नाटक पर मराठा अधिकार।
    • उद्देश्य: फर्रुखसियर को हटाना।

बाजीराव प्रथम (1720–1740):

  • नियुक्ति: बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के बाद, पेशवा पद वंशानुगत।
  • विजय:
    • शुकरखेड़ा युद्ध (1724): निजाम-उल-मुल्क की मदद से मुबारिज खाँ पराजित।
    • पालखेड़ा युद्ध (1728): निजाम पराजित, मुंशी शिवगाँव संधि (1728, चौथ और सरदेशमुखी)।
    • डभोई युद्ध (1731): त्र्यंबकराव पराजित।
    • भोपाल युद्ध (1737): निजाम पराजित, दुरई-सराय संधि (1738, मालवा और नर्मदा-चंबल क्षेत्र मराठों को)।
    • बसीन (1739): पुर्तगालियों से जीता।
    • जंजीरा (1733): सिद्दियों के खिलाफ अभियान।
  • विशेषता: गुरिल्ला युद्ध का प्रबल समर्थक, “योग्य पिता का योग्य पुत्र” (शाहू), हिंदू पद पादशाही।

बालाजी बाजीराव (1740–1761):

  • नियुक्ति: बाजीराव प्रथम की मृत्यु के बाद, नाना साहब के नाम से प्रसिद्ध।
  • विजय:
    • मुर्शिदाबाद (1741): रघुजी भोसले पराजित।
    • मालवा (1741): मुगल बादशाह से वैधता।
    • दिल्ली (1754): रघुनाथ राव ने आलमगीर द्वितीय को गद्दी पर बिठाया।
    • लाहौर और सरहिंद (1758): नजीब-उद-दौला हटाया।
    • झलकी संधि (1752): निजाम ने बरार का आधा क्षेत्र दिया।
  • संगोला संधि (1750): राजाराम द्वितीय और पेशवा के बीच।
  • 1752 संधि: मुगल बादशाह ने मराठों को पूरे भारत में चौथ वसूलने का अधिकार दिया।

पानीपत का तृतीय युद्ध (14 जनवरी 1761):

  • कारण:
    • अहमदशाह अब्दाली का लूट का इरादा।
    • मराठों की हिंदू पद पादशाही और दिल्ली पर प्रभाव की इच्छा।
  • नेतृत्व: सदाशिव राव भाऊ, विश्वास राव, इब्राहिम खाँ गर्दी (तोपखाना)।
  • विरोधी: अब्दाली, रुहेला नजीबुद्दौला, शुजाउद्दौला।
  • परिणाम: मराठों की हार, मल्हारराव होल्कर भागा, केवल इमाद-उल-मुल्क का समर्थन।

माधवराव प्रथम (1761–1772):

  • नियुक्ति: बालाजी बाजीराव की मृत्यु के बाद, 17 वर्ष की आयु में।
  • विजय:
    • निजाम (1763): पराजित, राक्षस-भुवन संधि।
    • दिल्ली (1771): महादजी सिंधिया ने शाह आलम को गद्दी पर बिठाया।
  • मृत्यु: 1772, क्षय रोग।

माधवराव नारायण (1774–1796):

  • नियुक्ति: नारायण राव की हत्या के बाद, नाना फडनवीस के नेतृत्व में।
  • प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध (1775–1782): सूरत संधि (1775), सालबाई संधि (1782)।

बाजीराव द्वितीय (1796–1818):

  • बेसीन संधि (1802): सहायक संधि, पूना में अंग्रेज सेना।
  • द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1803–1806):
    • देवगाँव संधि (भोसले, 1803), सुरजी-अर्जनगाँव संधि (सिंधिया, 1803), राजपुर घाट संधि (होल्कर, 1804)।
  • तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1817–1818):
    • लॉर्ड हेस्टिंग्स द्वारा अपमानजनक संधियाँ।
    • पूना का विलय अंग्रेजी राज्य में।

मराठा प्रशासन: पेशवा काल 🏛️

केंद्रीय प्रशासन:

  • छत्रपति: सतारा का राजा, शाहू के बाद पेशवा प्रमुख।
  • हुजूर दफ्तर: पूना में पेशवा सचिवालय, राजस्व और बजट प्रबंधन।
  • 1719 संधि: शाहू ने फर्रुखसियर से 10,000 मनसब और 10 लाख रुपये खिराज स्वीकार किया।

प्रांतीय और जिला प्रशासन:

  • सूबा: सर सूबेदार के अधीन।
  • महल: परगना, मामलतदार और कामविसदार।
  • कर्नाटक: सर सूबेदार को विशेष अधिकार।
  • देशमुख और देशपाण्डे: जमींदारों के वंशज, कर वसूली और भ्रष्टाचार नियंत्रण।
  • कारकून: केंद्र को सूचना।

स्थानीय प्रशासन:

  • पाटिल: ग्राम मुखिया, कर और न्याय।
  • कुलकर्णी: ग्राम लेखा।
  • चौगुले: पाटिल की सहायता।
  • पोतदार: सिक्कों की शुद्धता।
  • वलूतो: 12 कारीगर, ग्राम की औद्योगिक जरूरतें।
  • कोतवाल: नगर का दंडाधिकारी और पुलिस प्रमुख।

न्याय प्रणाली:

  • पाटिल: ग्राम आपराधिक मामले।
  • मामलतदार: जिला।
  • सर सूबेदार: प्रांत।
  • पंचायत: दीवानी मामले।
  • हाजिर-मजलिस: अंतिम अपील।

आय के स्रोत:

  • भू-राजस्व: मुख्य स्रोत, वास्तविक उपज या निश्चित।
  • विविध कर: गृह कर, कूप सिंचाई, सीमा शुल्क, विधवा पुनर्विवाह (पतदाम), जस्ती पट्टी।
  • चौथ और सरदेशमुखी:
    • कामविसदार: चौथ वसूली।
    • गुमाश्ता: सरदेशमुखी।
    • राजस्थान में खानदानी और मामलत (खराज)।
  • मीरासदार: अपनी भूमि और साधन।
  • उपरिस: बटाईदार, बेदखल हो सकते थे।

सैन्य प्रशासन:

  • आधार: मुगल सैन्य व्यवस्था, घुड़सवारों पर जोर।
  • शिवाजी: सामंती सेना के बजाय नकद वेतन।
  • पेशवा: सामंती पद्धति, जागीर बाँटे।
  • तोपखाना: पुर्तगाली/भारतीय ईसाई, पूना और जुन्नर में कारखाने।
  • विशेषता: टोन ने “सैनिक गणतंत्र” कहा, स्मिथ ने “डाकू राज्य”।

निष्कर्ष 🙏

मराठा साम्राज्य शिवाजी महाराज की दूरदर्शिता और सैन्य कुशलता का प्रतीक है। उनकी गुरिल्ला युद्ध नीति, रैयतवाड़ी राजस्व, और अष्टप्रधान प्रशासन ने स्वराज्य को मजबूत किया। पेशवाओं, विशेषकर बाजीराव प्रथम और बालाजी बाजीराव, ने मराठा शक्ति को दिल्ली तक विस्तारित किया। पानीपत का तृतीय युद्ध (1761) एक बड़ा झटका था, पर माधवराव प्रथम ने पुनरुत्थान किया। आंग्ल-मराठा युद्धों और बेसीन संधि ने मराठा शक्ति को कमजोर किया, और 1818 में अंग्रेजों ने पूना पर कब्जा कर लिया। फिर भी, मराठा साम्राज्य ने भारतीय इतिहास में हिंदू स्वराज्य और संगठित प्रशासन का अमर योगदान दिया। 🌟

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