मुगलकालीन अर्थव्यवस्था: एक विस्तृत अध्ययन 💰

By: LM GYAN

On: 3 September 2025

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मुगलकालीन अर्थव्यवस्था

मुगलकालीन अर्थव्यवस्था- मुगल काल (1526–1857 ई.) में अर्थव्यवस्था समृद्ध और विविध थी, जिसमें कृषि, व्यापार, उद्योग, और राजस्व व्यवस्था का महत्वपूर्ण योगदान था। मुगल शासकों ने सिक्कों, भू-राजस्व प्रणालियों, और व्यापारिक ढांचे के माध्यम से अर्थव्यवस्था को संगठित और सुव्यवस्थित किया। अकबर और शेरशाह सूरी के सुधारों ने इसे विशेष रूप से मजबूत बनाया। यहाँ मुगलकालीन अर्थव्यवस्था का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत है, जिसमें सिक्के, राजस्व व्यवस्था, कृषि, उद्योग, और व्यापार पर ध्यान दिया गया है। 🌍

मुगलकालीन अर्थव्यवस्था – मुगलकालीन सिक्के 🪙

मुगलकालीन अर्थव्यवस्था में सिक्कों का महत्वपूर्ण स्थान था। शासकों ने सोने, चाँदी, और ताँबे के सिक्के प्रचलित किए, जो व्यापार और लेन-देन का आधार बने।

बाबर (1526–1530):

  • सिक्के:
    • शाहरुख: काबुल में चाँदी का सिक्का।
    • बाबरी: कंधार में चाँदी का सिक्का।
  • विशेषता: बाबर ने सिक्कों की गुणवत्ता पर ध्यान दिया, पर व्यवस्थित टकसालें स्थापित नहीं कीं।

शेरशाह सूरी (1540–1545):

  • सिक्के:
    • रुपया: 180 ग्रेन (14 ग्राम) का शुद्ध चाँदी का सिक्का, आधुनिक भारत की मुद्रा का आधार।
    • पैसा: ताँबे का सिक्का।
  • विशेषता: शेरशाह ने सिक्कों की शुद्धता और मानकीकरण पर जोर दिया।

अकबर (1556–1605):

  • सुधार:
    • 1577 ई. में दिल्ली में टकसाल स्थापित, अध्यक्ष: ख्वाजा अब्दुस्समद (शीरी कलम)।
    • आइन-ए-अकबरी के अनुसार टकसालें:
      • सोने की: 4
      • चाँदी की: 14
      • ताँबे की: 42
  • प्रमुख सिक्के:
    • मुहर: सोने का सिक्का, 169 ग्रेन (13.30 ग्राम), मूल्य: 9 रुपये।
    • इलाही: गोल सोने का सिक्का, मूल्य: 10 रुपये।
    • शंसब: सबसे बड़ा सिक्का, 101 तौला, बड़े लेन-देन के लिए।
    • जलाली: चाँदी का चौकोर सिक्का।
    • दाम: ताँबे का सिक्का, 1/40 रुपये।
    • अन्य: दरब (50 पैसे), चर्न (25 पैसे), पनडाऊ (20 पैसे), अष्ठा (12.5 पैसे), काला (6.25 पैसे), सूकी (5 पैसे).
  • विशेष सिक्के:
    • राम-सिया सिक्का (1605): चाँदी, भगवान राम और सीता की मूर्ति, देवनागरी लिपि में “राम-सिया”।
    • असीरगढ़ सिक्का (1601): सोने का, एक तरफ बाज का चित्र, दूसरी तरफ टकसाल और तिथि।
  • विशेषता:
    • सिक्कों पर अल्लाहो अकबर और जिल्ले जलाल हूँ का अंकन।
    • सूर्य और चंद्रमा के श्लोकों का उपयोग, जो अकबर को एकमात्र शासक बनाता है।

जहाँगीर (1605–1627):

  • सिक्के:
    • निसार: चाँदी, रुपये का 1/4।
    • खैर-ए-काबुल: सोने का सिक्का।
    • अन्य सोने के सिक्के: नुरेअफ्शा, नूरशाही (100 तोला), नूर सल्तानी, नूर दौलत, नूर करम, नूर मिहिर।
  • विशेषता:
    • जहाँगीर ने सिक्कों पर अपनी और नूरजहाँ की तस्वीर अंकित की।
    • 12 राशि चक्रों का अंकन चाँदी के सिक्कों पर।
    • राज्याभिषेक पर अकबर की तस्वीर वाला सोने का सिक्का।
    • तटीय क्षेत्रों में 2500 कौड़ियाँ = 1 रुपये।

शाहजहाँ (1628–1658):

  • सिक्का: आना, रुपये और दाम के मध्य।
  • विशेषता: सिक्कों में निरंतरता, पर नए सिक्कों का सीमित परिचय।

औरंगजेब (1658–1707):

  • सुधार:
    • सिक्कों पर कलमा खुदवाना बंद।
    • सर्वाधिक सिक्के ढाले गए।
  • जीतल (फूलूस/पैसा): हिसाब-किताब के लिए।
  • मूल्य ह्रास:
    • 1 वर्ष पुराने सिक्के: 3% कटौती।
    • 2 वर्ष से अधिक पुराने: 5% कटौती।

माप-तौल इकाइयाँ 📏

  • इलाही गज (अकबर): 41 अंगुल (33.5 इंच), सिकंदरी गज का स्थान।
  • दक्षिण भारत: कोवाड़।
  • गोवा: फैण्डी।
  • समुद्री तट: अरब व्यापारियों द्वारा बहार।

राजस्व व्यवस्था 🌾

मुगल अर्थव्यवस्था का आधार भू-राजस्व था, जिसे शेरशाह और अकबर ने सुव्यवस्थित किया।

शेरशाह सूरी:

  • जाब्ती प्रणाली: भूमि माप (सन की रस्सी), उपज का 1/3 राजस्व।
  • सुधार: शुद्ध सिक्के, सड़क-ए-आजम (व्यापार और डाक)।

अकबर:

  • कनकूत और मुक्ताई (1569): शिहाबुद्दीन अहमद की सिफारिश पर जाब्ती बंद।
  • टोडरमल की भूमिका:
    • गुजरात का दीवान नियुक्त।
    • 1570–71 में साम्राज्य की भूमि माप का आदेश।
    • सन की रस्सी के स्थान पर बाँस की जरीब।
  • आइन-ए-दहसाला (1580):
    • उपनाम: जाब्ती, बंदोबस्त अर्जी, टोडरमल व्यवस्था।
    • प्रक्रिया: पिछले 10 वर्षों की उपज और मूल्य का औसत, 1/3 राजस्व (नकद)।
    • रैयतवाड़ी जैसी: किसान सीधे सरकार को राजस्व।
    • सुविधाएँ:
      • अग्रिम ऋण (तकावी)।
      • फसल खराब होने पर छूट।
    • लागू क्षेत्र: इलाहाबाद, आगरा, अवध, अजमेर, मालवा, दिल्ली, लाहौर, मुल्तान।
    • चरण:
      1. भूमि माप।
      2. भूमि वर्गीकरण।
      3. राजस्व निर्धारण।
      4. अनाज से नकद में रूपांतरण।
      5. राजस्व संग्रह।

शाहजहाँ:

  • इजारा प्रणाली: ठेकेदारी, भू-राजस्व संग्रह।
  • जागीर: 70% भूमि जागीरदारों को।
  • मुर्शिदकुली खाँ: दक्कन में टोडरमल जैसी राजस्व व्यवस्था, “दक्कन का टोडरमल”।

अन्य राजस्व विधियाँ:

  • गल्ला बख्शी (भाओली): फसल का सरकार और किसान के बीच बँटवारा।
  • नशक: नकद राजस्व।
  • कनकूत: उपज का अनुमान।

भूमि वर्गीकरण:

  1. पोलज: प्रतिवर्ष बोई जाने वाली।
  2. परती: 1 वर्ष छोड़कर बोई।
  3. चच्चर: 3–4 वर्ष छोड़कर बोई।
  4. बंजर: 5 वर्ष से अधिक समय तक नहीं बोई।

आय के अन्य स्रोत 💸

  1. जजिया: गैर-मुस्लिमों से कर (अकबर ने समाप्त, औरंगजेब ने पुनः लागू)।
  2. जकात: मुस्लिमों से 2.5% आय पर।
  3. खुम्स: युद्ध की लूट का 20% बादशाह को।
  4. नजराना: बादशाह को नकद भेंट।
  5. पेशकस: अधीनस्थ राजाओं/मनसबदारों से भेंट।

भूमि और गाँवों के प्रकार 🏡

भूमि के प्रकार:

  • खालसा भूमि:
    • सरकारी भूमि, राजस्व शाही खजाने में।
    • अकबर के काल में सर्वाधिक, जहाँगीर में न्यूनतम।
    • कुल भूमि का 20% खालसा अनिवार्य।
  • जागीर: मनसबदारों को वेतन के बदले, गैर-वंशानुगत, 4 वर्ष तक।
  • वतन जागीर: जमींदारों को वंशानुगत, गैर-स्थानांतरणीय।
  • मदद-ए-माश (मिल्क/सयूरगल): धार्मिक/गरीबों को कर-मुक्त।
    • उदाहरण: अकबर ने सिख गुरु रामदास को 500 बीघा, अमरदास की पुत्री और विट्ठलनाथ को जागीरें।
  • वक्फ: धार्मिक संस्थानों के लिए।
  • अलतमगा: जहाँगीर द्वारा, विशेष धार्मिक व्यक्तियों को।
  • मालिकान: जमींदारों को 10% उपज।
  • गैर-अमली क्षेत्र: मुगल राजस्व व्यवस्था से बाहर, नजराना।
  • नानकर/बंथ: जमींदारों को कर-मुक्त।

गाँवों के प्रकार:

  • असली ग्राम: प्राचीन, पूर्ण बसे।
  • दाखिली ग्राम: नवनिर्मित।
  • एम्मा ग्राम: मुफ्त अनुदान।
  • रैती ग्राम: जमींदारी क्षेत्र से बाहर।
  • जमींदारी ग्राम: जमींदारों (देशमुख, पाटिल, नायक) द्वारा नियंत्रित, 10–25% कमीशन।
  • जागीरदारी ग्राम: मनसबदारों को।

मुगलकालीन कृषि 🌾

  • उल्लेख: आइन-ए-अकबरी (अबुल फजल)।
  • मुख्य फसलें: गेहूँ, बाजरा, चावल, दाल, तिलहन।
  • नगदी फसलें: नील (बयाना, सरखेज), कपास, गन्ना, अफीम।
  • किसान:
    • खुदकाश्त: अपनी भूमि पर खेती।
    • पाहीकाश्त: अन्य गाँवों में बटाईदार।
    • मुजारीयन: किराए पर खेती।

मुगलकालीन उद्योग 🏭

  • सूती वस्त्र:
    • सबसे प्रमुख उद्योग, निर्यात का आधार।
    • कैलिको (सूती), ढाका की मलमल विश्व प्रसिद्ध।
    • केंद्र: ढाका, आगरा, कश्मीर, लाहौर, दिल्ली।
    • जहाँगीर: अमृतसर में सूती वस्त्र उद्योग।
  • रेशमी वस्त्र: पटौला, केंद्र: ढाका, आगरा, लाहौर।
  • तंबाकू: 1605 में पुर्तगालियों द्वारा शुरू।

मुगलकालीन व्यापार और बंदरगाह 🚢

  • बंदरगाह:
    • सिंध: लाहरी।
    • गुजरात: सूरत, भड़ौच, खम्भात।
    • महाराष्ट्र: बसाई, चौल, काभौई।
    • कर्नाटक: भट्टकल।
    • आंध्रप्रदेश: मसूलीपट्टनम।
    • केरल: कालीकट।
    • बंगाल: सतगाँव, चटगाँव, श्रीपुर, हुगली, सोनार गाँव।
  • विशेषता:
    • सूरत और हुगली प्रमुख व्यापारिक केंद्र।
    • यूरोपीय व्यापारियों (पुर्तगाली, डच, अंग्रेज) का आगमन।

निष्कर्ष 🙏

मुगलकालीन अर्थव्यवस्था कृषि, उद्योग, और व्यापार पर आधारित थी, जिसमें भू-राजस्व प्रमुख स्रोत था। शेरशाह के रुपये और अकबर की दहसाला प्रणाली ने इसे सुव्यवस्थित किया। सिक्कों का मानकीकरण, टकसालों की स्थापना, और टोडरमल के सुधारों ने आर्थिक स्थिरता प्रदान की। सूती और रेशमी वस्त्रों का निर्यात, नगदी फसलों, और बंदरगाहों ने वैश्विक व्यापार को बढ़ावा दिया। जहाँगीर और शाहजहाँ ने इसे और समृद्ध किया, जबकि औरंगजेब के काल में सिक्कों की संख्या बढ़ी, पर कट्टरता और युद्धों ने अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया। मुगल अर्थव्यवस्था ने भारत को वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित किया। 🌟

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