राजस्थान का आंतरिक अपवाह तंत्र — आंतरिक अपवाह तंत्र की नदियाँ वे हैं जो अपने जल को किसी सागर या समुद्र में डालने से पहले ही लुप्त हो जाती हैं, रेत या भूमि में समाहित हो जाती हैं। भारत में यह तंत्र केवल राजस्थान से संबंधित है और यहाँ की अपवाह प्रणाली का 60% हिस्सा इस तंत्र पर आधारित है, जो इसे राजस्थान का सबसे बड़ा अपवाह तंत्र बनाता है। नीचे आंतरिक अपवाह तंत्र की प्रमुख नदियों, उनके उद्गम, अपवाह क्षेत्र, और विशेषताओं का विस्तृत विवरण दिया गया है।
Table of Contents
राजस्थान का आंतरिक अपवाह तंत्र का अवलोकन
- परिभाषा: नदियाँ जो सागर में नहीं मिलती, रेगिस्तान या झीलों में विलीन हो जाती हैं।
- प्रतिशत: राजस्थान की अपवाह का 60%।
- विशेषता: शुष्क जलवायु, मानसून पर निर्भरता, रेत में समाहित होना।
- प्रमुख नदियाँ: घग्घर, कांतली, काकनेय, साबी, रूपारेल, रूपनगढ़, मेंथा, कुकुंद, रेल, कोटड़ी।
प्रमुख नदियाँ और विशेषताएँ
- घग्घर नदी:
- अन्य नाम: दृषद्वती, प्राचीन सरस्वती, मृतनदी, नट नदी।
- उद्गम: कालका पहाड़ी (शिवालिक हिमालय, हिमाचल प्रदेश)।
- राजस्थान में प्रवेश: टिब्बी (हनुमानगढ़)।
- अपवाह क्षेत्र: हनुमानगढ़, अनूपगढ़, श्रीगंगानगर (नाली क्षेत्र)।
- विशेषताएँ:
- राजस्थान में हिमालय से आने वाली एकमात्र नदी।
- लंबाई: भारत में आंतरिक अपवाह की सबसे लंबी नदी (465 किमी)।
- वर्षा ऋतु में बाढ़, शेष समय शुष्क।
- बाढ़ का पानी फोर्ट अब्बास (पाकिस्तान) तक पहुँचता है, जहाँ इसे ‘हकरा’ कहते हैं।
- कालीबंगा और रंगमहल (हनुमानगढ़) में हड़प्पाकालीन स्थल।
- मैदान: श्रीगंगानगर, अनूपगढ़, हनुमानगढ़ में ‘पाट’ या ‘नाली’।
- नोट: नाली क्षेत्र में भेड़ की एक नस्ल भी ‘नाली’ कहलाती है।
- कांतली नदी:
- उद्गम: खंडेला की पहाड़ी (सीकर)।
- अपवाह क्षेत्र: सीकर, झुंझुनू, नीमकाथाना (तोरावाटी क्षेत्र, तंवर राजपूतों का क्षेत्र)।
- विशेषताएँ:
- राजस्थान में आंतरिक अपवाह की सबसे लंबी नदी (100 किमी)।
- नीमकाथाना में गणेश्वर सभ्यता (ताम्र युग) की खोज।
- नोट: ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व।
- काकनेय नदी:
- अन्य नाम: मसूरदी नदी।
- उद्गम: कोटड़ी की पहाड़ियाँ (जैसलमेर)।
- विशेषताएँ: राजस्थान की आंतरिक अपवाह की सबसे छोटी नदी।
- अपवाह: जैसलमेर में मीठे पानी की झील ‘बुझ झील’ का निर्माण।
- साबी नदी:
- उद्गम: सेवर की पहाड़ियाँ (जयपुर ग्रामीण)।
- अपवाह क्षेत्र: जयपुर ग्रामीण, कोटपुतली-बहरोड़, खैरथल-तिजारा, हरियाणा में विलीन।
- विशेषताएँ:
- राजस्थान की एकमात्र नदी जो हरियाणा में जाती है।
- कोटपुतली-बहरोड़ में जोधपुरा सभ्यता के अवशेष।
- रूपारेल नदी:
- अन्य नाम: रूपनारायण, वाराह, लसवाड़ी नदी।
- उद्गम: उदयनाथ की पहाड़ियाँ, थानागाजी (अलवर)।
- अपवाह क्षेत्र: अलवर, भरतपुर।
- विशेषताएँ:
- भरतपुर में मोती झील बाँध (‘भरतपुर की जीवन रेखा’)।
- सुजान गंगा चैनल लोहागढ़ तक।
- नौह सभ्यता (लौहयुगीन) के अवशेष।
- रूपनगढ़ नदी:
- उद्गम: किसनगढ़ की पहाड़ी (अजमेर)।
- अपवाह क्षेत्र: अजमेर, जयपुर ग्रामीण, सांभर झील में विलीन।
- विशेषताएँ: सलेमाबाद (अजमेर) में निम्बार्क सम्प्रदाय की पीठ।
- मेंथा नदी:
- अन्य नाम: मेढा, मथाई नदी।
- उद्गम: मनोहरपुर की पहाड़ियाँ (जयपुर ग्रामीण)।
- अपवाह क्षेत्र: जयपुर ग्रामीण, सांभर झील में विलीन।
- विशेषताएँ:
- सांभर में सर्वाधिक नमक लाती है।
- सांभर झील आंतरिक अपवाह का प्रमुख उदाहरण (बालसन प्रकार)।
- नोट: ढूँढ, खारी, खंडेला भी सांभर में मिलती हैं।
- बाणगंगा नदी:
- अन्य नाम: अर्जुन की गंगा, ताला नदी, खंडित नदी।
- उद्गम: बैराठ की पहाड़ियाँ, कोटपुतली-बहरोड़।
- अपवाह क्षेत्र: जयपुर ग्रामीण, दौसा, भरतपुर।
- सहायक नदियाँ: सूरी, पलासन, गोमती नाला।
- विशेषताएँ:
- रामगढ़ बाँध (जयपुर), अजान बाँध (भरतपुर)।
- केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के लिए पांचना बाँध से जलापूर्ति।
- 2012 में रूंडित नदी का दर्जा (मुख्य नदी में मिलने से पहले समाप्त)।
- कुकुंद नदी:
- उद्गम: अरावली क्षेत्र (विशिष्ट स्थान अस्पष्ट)।
- अपवाह क्षेत्र: बाड़मेर क्षेत्र में विलीन।
- विशेषताएँ: सीमित प्रवाह, रेगिस्तान में समाहित।
- रेल नदी:
- उद्गम: बाड़मेर क्षेत्र की पहाड़ियाँ।
- अपवाह क्षेत्र: बाड़मेर में विलीन।
- विशेषताएँ: छोटी नदी, आंतरिक अपवाह।
- कोटड़ी नदी:
- उद्गम: जैसलमेर क्षेत्र की पहाड़ियाँ।
- अपवाह क्षेत्र: जैसलमेर में विलीन।
- विशेषताएँ: सीमित जल प्रवाह।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- सांभर झील: चारों ओर से नदियाँ (मेंथा, ढूँढ, खारी, खंडेला) मिलती हैं, बालसन प्रकार का जल बेसिन।
- नमक उत्पादन: मेंथा नदी सांभर में सर्वाधिक नमक लाती है।
- पुरातात्विक महत्व: घग्घर (हड़प्पा), कांतली (गणेश्वर), साबी (जोधपुरा), रूपारेल (नौह)।
- रूंडित नदी: बाणगंगा को 2012 में यह दर्जा दिया गया।
निष्कर्ष
राजस्थान का आंतरिक अपवाह तंत्र (60%) इसकी शुष्क जलवायु और अरावली प्रभाव को दर्शाता है। घग्घर (465 किमी) भारत की सबसे लंबी आंतरिक प्रवाह नदी है, जबकि कांतली (100 किमी) राजस्थान में सबसे लंबी है। ये नदियाँ मानसून पर निर्भर हैं और रेगिस्तान या झीलों (सांभर, बुझ) में विलीन हो जाती हैं। पुरातात्विक और सांस्कृतिक महत्व के साथ, ये नदियाँ जल संरक्षण और स्थानीय पारिस्थितिकी में योगदान देती हैं।