राजस्थान की धरती इतिहास के अनमोल खजानों से भरी पड़ी है। राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ और यहाँ के पुरातात्विक स्थल हमें पाषाण काल की आदिम बस्तियों से लेकर ताम्र, कांस्य, और लौह युग की विकसित सभ्यताओं तक की यात्रा कराते हैं। कालीबंगा की सुनियोजित सड़कों से लेकर बैराठ के बौद्ध मठों तक, हर स्थल अपनी अनोखी कहानी कहता है। आइए, इन प्रमुख स्थलों और उनके अवशेषों की सैर करें, जो राजस्थान के प्राचीन अतीत को जीवंत करते हैं!
राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ
Table of Contents
पाषाण युगीन सभ्यता स्थल
बागोर (भीलवाड़ा)
- स्थान: भीलवाड़ा, मांडल तहसील, कोठारी नदी के तट पर
- काल: मध्य पाषाणकाल
- उत्खनन: 1967-68 में डॉ. वीरेन्द्रनाथ मिश्र और डॉ. एल.एस. लेश्निक के नेतृत्व में, डेक्कन कॉलेज पूना और राजस्थान पुरातत्व विभाग
- खासियत: “आदिम संस्कृति का संग्रहालय”। तीन स्तरों के अवशेष।
- अवशेष:
- पाँच ताँबे के उपकरण, जिनमें 10.5 सेमी की छेद वाली सुई शामिल।
- मध्य पाषाणकालीन लघु पाषाण उपकरण: ब्लेड, छिद्रक, स्क्रेपर, चांद्रिक।
- एक मानव कंकाल।
- कृषि और पशुपालन के प्राचीनतम साक्ष्य।
तिलवाड़ा (बाड़मेर)
- स्थान: बाड़मेर, लूणी नदी के किनारे
- काल: 500 ई.पू.-200 ई.
- उत्खनन: 1967-68 में डॉ. वी.एन. मिश्र, राजस्थान पुरातत्व विभाग
- अवशेष:
- मध्य पाषाणकालीन लघु पाषाण उपकरण।
- एक अग्निकुंड और पाँच आवास स्थल।
- विकसित सभ्यताओं के साक्ष्य।
जायल (डीडवाना)
- स्थान: नागौर, लूणी नदी बेसिन
- काल: निम्न पुरापाषाणकाल
- अवशेष: पुरापाषाणकालीन उपकरण।
बूढ़ा पुष्कर (अजमेर)
- काल: उत्तर-पुरापाषाणकाल
- अवशेष: पाषाणकालीन अवशेष।
ताम्र युगीन सभ्यता स्थल
गणेश्वर (सीकर)
- स्थान: सीकर, नीम का थाना, कांतली नदी के किनारे
- काल: प्राक्-हड़प्पा, 2800 ई.पू. (रेडियोकार्बन डेटिंग, डी.पी. अग्रवाल)
- उत्खनन: 1977-78 में रतनचंद्र अग्रवाल और विजय कुमार
- खासियत: “पुरातत्व का पुष्कर”, “ताम्रयुग की जननी”, “ताम्र संचयी संस्कृति”
- अवशेष:
- लगभग 2000 ताम्र उपकरण (99% शुद्ध): तीर, भाले, सुइयाँ, कुल्हाड़ी, मछली कांटे, वाण।
- कपिषवर्णी मृद्पात्र, छल्लेदार बर्तन (केवल यहीं)।
- दोहरी पेचदार ताम्रपिन।
- बाढ़ से बचाव के लिए पत्थर के बाँध।
- ईंटों के उपयोग के प्रमाण नहीं।
आहड़ (उदयपुर)
- स्थान: उदयपुर, आयड़ (बेड़च) नदी के किनारे
- काल: 1900 ई.पू.-1200 ई.पू. (डॉ. गोपीनाथ शर्मा)
- उपनाम: आघाटपुर, ताम्रवती नगरी, धूलकोट, बनास संस्कृति
- उत्खनन: 1953 में अक्षयकीर्ति व्यास, 1954 में आर.सी. अग्रवाल, 1961-62 में वी.एन. मिश्र और एच.डी. सांकलिया
- खासियत: ग्रामीण सभ्यता, आहड़ और गिलूण्ड में समान संस्कृति
- अवशेष:
- कच्ची ईंटों के मकान, 4-6 चूल्हों वाले मकान (संयुक्त परिवार, हथेली की छाप)।
- लाल, काले मृद्पात्र, “गोरे/कोठे” (अनाज भंडार)।
- रंगाई-छपाई के ठप्पे, चक्की, चित्रित बर्तन, ताम्र उपकरण।
- नारी की खंडित मृण्मूर्ति (लहँगा पहने), बनासियन बुल (टेराकोटा वृषभ)।
- त्रिशूल और अपोलो देवता वाली यूनानी मुद्रा।
- मृतकों को कपड़े-आभूषणों के साथ दफनाने के साक्ष्य।
- उल्टी तिपाई विधि से बर्तन पकाना।
- चावल की खेती, पशुपालन (कुत्ता, हाथी)।
- ताम्र शोधन के साक्ष्य (मतून, उमरा)।
- महासतियों का टीला।
गिलूण्ड (राजसमंद)
- स्थान: राजसमंद, बनास नदी के तट पर (मोडिया मगरी)
- काल: ताम्रयुग
- उत्खनन: 1957-58 में बी.बी. लाल
- अवशेष:
- पकी ईंटों के उपयोग के साक्ष्य।
- लाल, काले मृद्भांड, पशु आकृतियाँ, ज्यामितीय/प्राकृतिक चित्रांकन।
- ताम्रयुग और बाद की सभ्यताएँ।
रंगमहल (हनुमानगढ़)
- स्थान: हनुमानगढ़, सरस्वती (घग्घर) नदी के पास
- काल: ताम्रयुग, कुषाणकाल
- उत्खनन: 1952-54 में डॉ. हन्नारिड (स्वीडिश दल)
- अवशेष:
- लाल, गुलाबी मृद्भांड, गांधार शैली की मृण्मूर्तियाँ, टोंटीदार घड़े, घंटाकार पात्र।
- ब्राह्मी लिपि की दो कांस्य सीलें, पंचमार्क (आहत) मुद्राएँ।
- गुरु-शिष्य की मिट्टी की मूर्ति।
- चावल की खेती, ईंटों के मकान।
- सैंधव, कुषाण, पूर्व गुप्तकालीन अवशेष।
- तीन बार बसने-उजड़ने के साक्ष्य।
मलाह (भरतपुर)
- स्थान: भरतपुर, घना पक्षी अभयारण्य
- अवशेष: ताँबे की तलवारें, हार्पून।
कुराड़ा (नागौर)
- काल: ताम्रयुग
- अवशेष: ताम्र उपकरण, प्रणालीयुक्त अर्घ्यपात्र।
किराड़ोत (जयपुर)
- अवशेष: 58 ताम्र चूड़ियाँ (सैंधव सभ्यता जैसी)।
ओझियाना (भीलवाड़ा)
- स्थान: भीलवाड़ा, बदनौर, खारी नदी के तट पर
- काल: 2500 ई.पू.-1500 ई.पू.
- उत्खनन: 2000 में बी.एल. मीणा और आलोक त्रिपाठी
- खासियत: आहड़ संस्कृति, पहाड़ी पर बस्ती
- अवशेष:
- सफेद चित्रित वृषभ (ओझियाना बुल), गाय की मृण्मूर्तियाँ।
अन्य ताम्रयुगीन स्थल
- चित्तौड़: पिण्ड पाडलिया
- बीकानेर: साबणिया, पूगल
- उदयपुर: झाड़ौल
- जयपुर: नन्दलालपुरा, किराड़ोत, चीथवाड़ी
- सवाई माधोपुर: कोल माहोली
- जालोर: ऐलाना
- अजमेर: बूढ़ा पुष्कर
- नागौर: कुराड़ा
- अवशेष: ताम्र उपकरणों के भंडार
कांस्य युगीन सभ्यता स्थल
कालीबंगा (हनुमानगढ़)
- स्थान: हनुमानगढ़, सरस्वती (घग्घर) नदी के बाएँ तट
- काल: 2350 ई.पू.-1750 ई.पू. (कार्बन डेटिंग)
- खोज: 1952, अमलानंद घोष
- उत्खनन: 1961-69, बी.बी. लाल, बी.के. थापर
- खासियत: सैंधव सभ्यता की तीसरी राजधानी (डॉ. दशरथ शर्मा), “दीन-हीन बस्ती”
- नगर योजना: नगरीय सभ्यता, दो भाग (पश्चिम: दुर्ग, पूर्व: निचला नगर)
- अवशेष:
- काली चूड़ियों के टुकड़े (नाम का कारण)।
- कच्ची और पक्की ईंटों के मकान, अलंकृत ईंटें।
- समकोण पर कटती सड़कें, लकड़ी की चतुर्भुज नालियाँ।
- दोहरे जुते खेत (विश्व का प्राचीनतम), ग्रिड पैटर्न, गेहूँ-जौ की दो फसलें।
- सात अग्निवेदियाँ, सींग वाले मानव।
- मिट्टी की मूर्तियाँ: कुत्ता, भेड़िया, चूहा, हाथी, बगुले (पंख फैलाए)।
- सैंधव लिपि (ब्रुस्ट्रोफेदन, दायीं से बायीं), मेसोपोटामिया की मुहर।
- कत्थई मृद्भांड, हाथी दाँत का कंघा, वृषभ मूर्ति।
- कपालछेदन शल्य क्रिया, कलश शवदान।
- विश्व का प्राचीनतम भूकंप साक्ष्य।
- बेलनाकार तंदूर, छेद वाले किवाड़, व्याघ्र अंकन वाली मुद्रा।
- प्राक्-हड़प्पा, हड़प्पा, उत्तर-हड़प्पा अवशेष।
- विशेष:
- मातृदेवी मूर्तियाँ नहीं मिलीं।
- मंदिरों के अवशेष नहीं।
- “बहुधान्यदायक क्षेत्र” (संस्कृत साहित्य)।
- 1961 में 90 पैसे का डाक टिकट।
- 1985-86 में संग्रहालय।
ताम्र-पाषाण युगीन सभ्यता स्थल
बालाथल (उदयपुर)
- स्थान: उदयपुर, बल्लभनगर, बेड़च नदी के पास
- काल: ताम्र-पाषाणकाल
- खोज: 1962-63, डॉ. वी.एन. मिश्र
- उत्खनन: 1993, डॉ. बी.एन. मिश्र, डॉ. वी.एस. शिंदे, आर.के. मोहन्ते, डॉ. देव कोठारी
- अवशेष:
- 11 कमरों का विशाल भवन, दुर्ग जैसी इमारत।
- बुने वस्त्र का टुकड़ा, ताम्र औज़ार, मिट्टी की साँड आकृतियाँ।
- 4000 साल पुराना कुष्ठ रोगी कंकाल (भारत का प्राचीनतम)।
- योगी मुद्रा में शवाधान।
- ताम्र आभूषण, बैल, कुत्ते की मृण्मूर्तियाँ।
- लोहा गलाने की भट्टी।
- खासियत: आहड़ संस्कृति से स्वतंत्र, बाद की सभ्यता। कृषि, शिकार, पशुपालन।
लौह युगीन सभ्यता स्थल
बैराठ (जयपुर)
- स्थान: जयपुर, शाहपुरा, बाणगंगा नदी
- काल: लौहयुग, मत्स्य महाजनपद की राजधानी (विराटनगर)
- उत्खनन: 1936-37 में दयाराम साहनी, 1962-63 में नीलरत्न बनर्जी और कैलाशनाथ दीक्षित
- अवशेष:
- भाब्रू शिलालेख (1837, कैप्टन बर्ट, कलकत्ता संग्रहालय), अशोक को “मगध का राजा”।
- बीजक की पहाड़ी से अशोक का शिलालेख (1871, कार्लाइल, रूपनाथ संस्करण)।
- 1999 में गोल बौद्ध मंदिर, स्तूप, मठ (हीनयान सम्प्रदाय)।
- 36 मुद्राएँ: 8 पंचमार्क, 28 इण्डो-ग्रीक (16 मिनाण्डर की)।
- शंख लिपि (चट्टानों पर), लोहे के तीर, भाले।
- मिट्टी की ईंटों के भवन, शुंग-कुषाण अवशेष।
- खासियत:
- उत्तर भारतीय चमकीले मृद्भांड संस्कृति का प्रमुख स्थल।
- ग्रामीण संस्कृति।
- ह्वेनसांग (634 ई.): 8 बौद्ध मठ।
- मुगलकालीन टकसाल (“बैराठ” अंकित सिक्के)।
- 713 ई. मानसरोवर अभिलेख: मानमौर्य शासन।
- 738 ई. कणसवा अभिलेख: मौर्य राजा धवल।
नगरी (चित्तौड़गढ़)
- स्थान: चित्तौड़गढ़, बेड़च नदी (माध्यमिका/मज्झमिका)
- काल: लौहयुग, शिवि जनपद की राजधानी
- उत्खनन: 1904 में डॉ. डी.आर. भण्डारकर, 1962-63 में केन्द्रीय पुरातत्व विभाग
- खोज: 1872, कार्लाइल
- अवशेष:
- शिवि जनपद के ताम्र सिक्के, गुप्तकालीन कला।
- चार चक्राकार कुएँ, घोसुण्डी अभिलेख (2nd सदी ई.पू.)।
- विशेष:
- पाणिनी (अष्टाध्यायी), पतंजलि (महाभाष्य) में माध्यमिका का उल्लेख।
- महाभारत (सभा पर्व): नकुल की दिग्विजय।
- बड़ली अभिलेख: जैन केन्द्र।
- पुष्यमित्र शुंग का हिस्सा।
रैढ़ (टोंक)
- स्थान: टोंक, निवाई, ढील नदी
- काल: लौहयुग, पूर्व गुप्तकाल
- उत्खनन: 1938-39 में दयाराम साहनी, 1938-40 में डॉ. केदारनाथ पुरी
- खासियत: “प्राचीन भारत का टाटानगर”
- अवशेष:
- 3075 आहत मुद्राएँ, 300 मालव सिक्के, अपोलोडोट्स का खंडित सिक्का।
- ब्रह्मी लिपि में “मालव जनपदस” वाली सीसे की मुद्रा।
- लोहा गलाने के साक्ष्य, मातृदेवी मूर्तियाँ, शुंगकालीन यक्षिणी।
- हल्के गुलाबी रंग का संकीर्ण गर्दन वाला फूलदान।
- चक्र-निर्मित मृद्भांड, रिंग वेल्स।
- एशिया का सबसे बड़ा सिक्का भंडार।
- विशेष: धातु केंद्र, मोटा-बारीक कपड़ा, जस्ता शोधन।
सुनारी (झुंझुनू)
- स्थान: झुंझुनू, खेतड़ी, कांतली नदी
- काल: लौहयुग
- उत्खनन: 1980-81, राजस्थान पुरातत्व विभाग
- खासियत: वैदिक आर्यों की बस्ती
- अवशेष:
- लोहा गलाने की प्राचीनतम भट्टियाँ, लोहे का कटोरा (भारत में पहला)।
- स्लेटी मृद्भांड, मातृदेवी मूर्तियाँ, धान का कोठा।
- काली पॉलिश युक्त मौर्यकालीन मृद्भांड।
- चावल का भोजन, घोड़ों से रथ।
जोधपुरा (जयपुर)
- स्थान: जयपुर, कोटपुतली, साबी नदी
- काल: लौहयुग
- उत्खनन: 1972-73, आर.सी. अग्रवाल, विजय कुमार
- अवशेष:
- स्लेटी चित्रित मृद्भांड (सिंधु सभ्यता का प्रभाव)।
- लौह निष्कर्षण भट्टियाँ, डिश ऑन स्टैंड।
- कपिषवर्णी मृद्पात्र, शुंग-कुषाण, मौर्यकालीन अवशेष।
- घोड़ों से रथ।
ईसवाल (उदयपुर)
- काल: लौहयुग
- खासियत: प्राचीन औद्योगिक नगरी
- उत्खनन: राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर
- अवशेष:
- 5वीं सदी ई.पू. में लोहा गलाने का उद्योग।
- प्रारंभिक कुषाणकालीन सिक्के।
- ऊँट का दाँत और हड्डियाँ।
नोह (भरतपुर)
- स्थान: रूपारेल नदी
- काल: लौहयुग
- उत्खनन: 1963-67, रतनचंद्र अग्रवाल
- अवशेष:
- विशालकाय शुंगकालीन यक्ष प्रतिमा (जाख बाबा)।
- मौर्यकालीन पॉलिश युक्त चुनार पत्थर, चक्रकूप।
- काले, लाल, कपिषवर्णी मृद्भांड, स्वास्तिक चिह्न वाला पात्र।
- ब्रह्मी लिपि वाला पात्र।
- हुविष्क, वासुदेव के सिक्के।
- ताम्र, आर्य, महाभारतकालीन अवशेष।
- पाँच सांस्कृतिक युग।
नगर (टोंक)
- स्थान: टोंक, उणियारा (मालव नगर, खेड़ा सभ्यता)
- काल: लौहयुग
- उत्खनन: 1942-43, श्रीकृष्ण देव
- अवशेष:
- 6000 मालव सिक्के, आहत मुद्राएँ।
- लाल मृद्भांड, गुप्तोत्तर स्लेटी पत्थर की महिषासुरमर्दिनी।
- गणेश, फणधारी नाग, कमल धारण लक्ष्मी की प्रतिमाएँ।
भीनमाल (जालोर)
- स्थान: श्रीमाल
- काल: 1st सदी ई., गुप्तकाल
- उत्खनन: 1953-54, रतनचंद्र अग्रवाल
- अवशेष:
- शक क्षत्रप सिक्के, यूनानी दुहत्थी सुराही, रोमन ऐम्फोरा।
- विदेशी प्रभाव वाले मृद्पात्र।
- विशेष: महाकवि माघ, ब्रह्मगुप्त का जन्मस्थान। ह्वेनसांग: “पी-लो-मो-लो”।
नैनवा (बूँदी)
- उत्खनन: श्रीकृष्ण देव
- अवशेष: 2000 साल पुरानी महिषासुरमर्दिनी मृण्मूर्ति।
विविध तथ्य
- वैदिक सभ्यता: अनूपगढ़, तरखान वाला डेरा, चक-64 (श्री गंगानगर)।
- रामायण: राम के अमोघ अस्त्र से मरुस्थल निर्माण।
- महाभारत: जंगलदेश (बीकानेर) कौरव-पांडवों के अधीन। पांडवों का अज्ञातवास मत्स्य देश (विराटनगर) में।
- महाजनपद:
- मत्स्य: राजधानी विराटनगर (जयपुर, अलवर)। ऋग्वेद, शतपथ ब्राह्मण, कौषीतकि उपनिषद में उल्लेख।
- शूरसेन: राजधानी मथुरा (अलवर, भरतपुर, करौली, धौलपुर)।
- शिवि: राजधानी माध्यमिका (चित्तौड़, उदयपुर)।
- मालव: राजधानी नगर (टोंक)।
- राजन्य: भरतपुर।
- शाल्व: अलवर।
- यौद्धेय: गंगानगर, हनुमानगढ़। रूद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख: कुषाण विरोधी।
- गुप्तकाल: बयाना (भरतपुर) से सर्वाधिक सिक्के, नील खेती। बड़वा (बारां) अभिलेख: मौखरी शासक।
- हूण: बाड़ोली शिवमंदिर (मिहिरकुल)।
- नलियासर (जयपुर): 3rd सदी ई.पू.-6th सदी, चौहान युग से पहले।
- बरोर (श्री गंगानगर): प्राक्-हड़प्पा, विकसित हड़प्पा। 2003 से उत्खनन, 8000 सेलखड़ी मनके, बटन मुहरें।
- सोंथी (बीकानेर): हड़प्पा सभ्यता का उद्गम (अमलानंद घोष, 1953)। सावणिया, पूगल केन्द्र।
- गरड़दा (बूँदी): पहली बर्ड राइडर रॉक पेंटिंग।
- बाँका (भीलवाड़ा): राजस्थान की पहली अलंकृत गुफा।
- लाधूरा (भीलवाड़ा): शुंगकालीन प्याले, ललितासन नारी मूर्ति (1998-99, बी.आर. मीणा)। 700 ई.पू.-200 ई.।
समापन
राजस्थान के ये पुरातात्विक स्थल हमें पाषाण काल की सादगी से लेकर लौह युग की औद्योगिक प्रगति तक की कहानी सुनाते हैं। बागोर की आदिम बस्ती, कालीबंगा की सुनियोजित सड़कें, गणेश्वर के ताम्र उपकरण, और बैराठ के बौद्ध मठ—हर स्थल इतिहास का एक पन्ना है। ये अवशेष न सिर्फ़ राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर हैं, बल्कि मानव सभ्यता के विकास की गवाही भी देते हैं।