राजस्थान के जनजातीय एवं किसान आंदोलन

By: LM GYAN

On: 13 June 2025

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राजस्थान के जनजातीय एवं किसान आंदोलन

राजस्थान में जनजातीय और किसान आंदोलनों ने 20वीं शताब्दी में सामंती शोषण, ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों, और सामाजिक-आर्थिक अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई। जनजातीय आंदोलनों में भील, मेर, और मीणा समुदायों ने वन अधिकारों, बेगार, और प्रशासनिक अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष किया, जबकि किसान आंदोलनों में धाकड़, जाट, गुर्जर, और मेव किसानों ने ऊँचे लगान, लाग-बाग, और बेगार के विरुद्ध आंदोलन चलाए। ये आंदोलन सामाजिक जागृति, जातिगत संगठन, और राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरित थे। नीचे इन आंदोलनों का विस्तृत विवरण है।

राजस्थान के जनजातीय एवं किसान आंदोलन: 20 वीं शताब्दी

जनजातीय आंदोलन

पृष्ठभूमि

  • कारण: सामंती और ब्रिटिश शोषण, वन अधिकारों की समाप्ति, नई प्रशासनिक व्यवस्था, और सामाजिक परंपराओं में हस्तक्षेप।
  • प्रमुख जनजातियाँ: भील, मेर, मीणा।
  • उद्देश्य: सामाजिक-आर्थिक सुधार, अधिकारों की रक्षा, और आत्म-सम्मान।

भगत आंदोलन (लसाडिया आंदोलन, 1921-1929)

  • स्थान: वागड़ (डूंगरपुर, बांसवाड़ा)।
  • नेतृत्व: गोविंद गुरु, सुरजी भगत
  • विशेषताएँ:
    • उद्देश्य: भीलों का नैतिक और आध्यात्मिक उत्थान, कुरीतियों (शराब, मांसाहार) का उन्मूलन, एकेश्वरवाद, स्वदेशी पर बल।
    • प्रभाव: दयानंद सरस्वारी (आर्य समाज) का प्रभाव, भगत पंथ की स्थापना।
    • गोविंद गुरु:
      • जन्म: वेदसा (डूंगरपुर), बंजारा परिवार।
      • धूणी और ध्वज: बसियां गाँव, सफेद झंडा (शांति का प्रतीक)।
      • संप सभा: 1883 में स्थापना, पहला अधिवेशन 1903 में मानगढ़ पहाड़ी (बांसवाड़ा) पर।
      • क्षेत्र: मेवाड़, डूंगरपुर, ईडर, मालवा।
      • गतिविधियाँ: पंचायतें, सामाजिक सुधार, अधिकारों की जागृति।
      • अधिवेशन: आश्विन शुक्ल पूर्णिमा, मानगढ़।
  • मानगढ़ हत्याकांड (17 नवंबर, 1913):
    • स्थान: मानगढ़ पहाड़ी (बांसवाड़ा)।
    • घटना: पुलिस गोलीबारी, 1500+ भील मारे गए, “राजस्थान का जलियांवाला बाग”।
    • परिणाम: गोविंद गुरु और पुंजा धीरजी गिरफ्तार, बाद में रिहा।
    • गोविंद गुरु का शेष जीवन: काम्बिया (गुजरात) में शांतिपूर्ण।

एकी आंदोलन (भोमट आंदोलन, 1921)

  • स्थान: मेवाड़ (चित्तौड़गढ़, कोटड़ा, झाड़ोल, गोगुंदा), वागड़, ईडर, विजयनगर (गुजरात)।
  • नेतृत्व: मोतीलाल तेजावत (“बावजी”, “आदिवासियों का मसीहा”)।
  • उद्गम: मातृकुण्डिया (चित्तौड़गढ़, “राजस्थान का हरिद्वार”)।
  • उद्देश्य: अवैध लाग-बाग और बेगार का विरोध, भील-किसान एकता।
  • विशेषताएँ:
    • 21 सूत्री माँगपत्र: “मेवाड़ की पुकार”, मेवाड़ महाराणा को प्रस्तुत।
    • क्षेत्र: मेवाड़, सिरोही, विजयनगर।
    • नीमड़ा हत्याकांड (6 मार्च, 1922, विजयनगर, गुजरात):
      • मेजर सटन और मेवाड़ भील कोर की गोलीबारी, ~1200 भील मारे गए।
      • मोतीलाल तेजावत फरार, 1929 में गांधीजी के कहने पर ईडर में आत्मसमर्पण।
    • रिहाई: 1936, महाइन्द्राज सभा (मेवाड़ का सर्वोच्च न्यायालय, 1880 में महाराजा सज्जन सिंह द्वारा स्थापित) के हस्तक्षेप से।
    • मेवाड़ भील कोर: 1841 में स्थापित, मुख्यालय खैरवाड़ा।
    • सिरोही: जनवरी 1922, भील-गरासियों ने तेजावत को “मेवाड़ का गांधी” कहा।
    • सियावा हत्याकांड (12 अप्रैल, 1922, सिरोही): 3 गरासिया मरे, 40 घर नष्ट।
    • बालोलिया-भूला हत्याकांड (5-6 मई, 1922, सिरोही): मेजर प्रिचार्ड के नेतृत्व में ~50 मरे।
    • जाँच: राजस्थान सेवा संघ द्वारा रामनारायण चौधरी और सत्य भक्त, समाचार पत्र तरुण राजस्थान में प्रकाशन।
    • विजय सिंह पथिक और रमाकांत मालवीय: 12 फरवरी 1922, गोपेश्वर (सिरोही) में शांतिपूर्ण संचालन का अनुरोध।
  • शेष जीवन: मोतीलाल तेजावत ने गांधीजी के रचनात्मक कार्यों में समय बिताया।
  • अन्य नेता: भोगीलाल पंड्या, बलवंत सिंह मेहता, माणिक्यलाल वर्मा, बालेश्वर दयाल, हरिदेव जोशी।

मीणा आंदोलन

  • कारण:
    • क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट 1924 और जरायम पेशा कानून 1930: 12 वर्ष से अधिक उम्र के मीणाओं को थाने में उपस्थिति अनिवार्य।
    • सामाजिक भेदभाव, शोषण।
  • संगठन:
    • मीणा क्षेत्रीय महासभा (1933)।
    • जयपुर मीणा सुधार समिति (1944): वंशीधर शर्मा, लक्ष्मीनारायण झारवाल
    • मीणा जाति सुधार समिति: छोटूलाल झारवाल, महादेव राम पबड़ी, जवाहर राम
  • नेतृत्व:
    • जैन संत मगनसागर: “मीन पुराण” रचना, मीणा इतिहास की जागृति।
    • अप्रैल 1944, नीम का थाना (सीकर): राज्य मीणा सुधार समिति गठन, अध्यक्ष वंशीधर शर्मा, सचिव लक्ष्मीकांत, नेता लक्ष्मीनारायण झारवाल, राजेंद्र कुमार अजेय
  • आंदोलन:
    • 1945: जरायम पेशा कानून वापसी की माँग, लक्ष्मीनारायण झारवाल के नेतृत्व में।
    • 3 जुलाई, 1946: महिलाओं और बच्चों को कानून से राहत।
    • 28 अक्टूबर, 1946: बागावास सम्मेलन, चौकीदार मीणाओं ने इस्तीफा दिया, “मुक्ति दिवस”।
    • 1952: हीरालाल शास्त्री, टीकाराम पालीवाल के प्रयासों से कानून पूर्णतः समाप्त।
  • ठक्कर बापा: जयपुर प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माइल को पत्र, मीणा सुधार की माँग।

मेर विद्रोह (1818-1824)

  • स्थान: अजमेर-मेरवाड़ा (अजमेर, मेवाड़, मारवाड़)।
  • कारण: अंग्रेजों द्वारा मेरों को राजनीतिक नियंत्रण में लाने का प्रयास, थानों की स्थापना।
  • घटनाएँ:
    • 1818: अजमेर सुपरिंटेंडेंट एफ. विल्डर का मेरों के साथ समझौता (लूट-पाट बंदी)।
    • 1820: मेरों ने थानों के खिलाफ विद्रोह शुरू किया।
    • 1821: अंग्रेज, मेवाड़, मारवाड़ की संयुक्त सेनाओं ने विद्रोह दबाया, भारी जन-धन हानि।
    • 1822: मेरवाड़ा बटालियन (ब्यावर), 1947 तक अंग्रेजी नियंत्रण।

किसान आंदोलन

पृष्ठभूमि

  • कारण:
    • ऊँचा लगान, लाग-बाग, लाटा-कूंता, बेगार।
    • कठोर वसूली, पैतृक संपत्ति से वंचन।
    • सामंती अत्याचार, ठिकानेदारों का दमन।
    • राजाओं का कमजोर प्रभाव, ठिकानेदारों की मनमानी।
  • विशेषता: जातिगत आधार (धाकड़, जाट, गुर्जर, मेव, भील, गरासिया), पंचायतों और संगठनों की भूमिका।
  • प्रमुख क्षेत्र: बिजोलिया, बेंगू, बूँदी, अलवर, सीकर, बीकानेर, मारवाड़।

मेवाड़ जाट किसान आंदोलन (1880)

  • स्थान: मातृकुण्डिया (चित्तौड़गढ़)।
  • नेतृत्व: जाट किसान।
  • कारण: नई भू-राजस्व व्यवस्था।
  • परिणाम: सीमित प्रभाव, सामंती नीतियों का विरोध।

बिजोलिया किसान आंदोलन (1897-1941, भीलवाड़ा)

  • स्थान: बिजोलिया (ऊपरमाल/उत्तमाद्रि), मेवाड़ का प्रथम श्रेणी ठिकाना।
  • पृष्ठभूमि:
    • स्थापना: अशोक परमार (खानवा युद्ध, राणा सांगा द्वारा जागीर)।
    • महाराणा फतेह सिंह के समय ठिकाने पर नियंत्रण, गोविंद सिंह ने किसानों की मदद से आजाद कराया।
  • चरण:
    • प्रथम चरण (1897-1915):
      • जागीरदार: कृष्ण सिंह (1894, 84 लाग, आधा उपज लगान, बेगार), पृथ्वी सिंह (1906, तलवार बंधाई लाग)।
      • नेतृत्व: नानजी पटेल, ठाकरी पटेल, साधु सीताराम दास, फतेहकरण चारण, ब्रह्मदेव
      • 1897: गंगाराम धाकड़ के मृत्यभोज (गिरधारीपुरा), किसानों की सभा।
      • 1903: चंवरी कर (कन्या विवाह, 5 रु.)।
      • हामिद हुसैन जाँच: शिकायतें सही, कोई कार्रवाई नहीं।
      • नानजी-ठाकरी निष्कासित, असिंचित जमीनें सामंतों को लौटाईं।
      • भंवरलाल: गीतों से प्रोत्साहन।
    • द्वितीय चरण (1915-1923):
      • विजय सिंह पथिक (मूल: भूपसिंह, गुठावली, उत्तर प्रदेश):
        • 1915: टॉडगढ़ जेल से फरार, साधु सीताराम दास के आग्रह पर शामिल।
        • 1916: माणिक्यलाल वर्मा, प्रेमचंद भील से मुलाकात।
        • 1917: ऊपरमाल पंच बोर्ड (बैरीसाल, भीलवाड़ा), संरपच मुन्ना पटेल
        • ऊपरमाल का डंका: हस्तलिखित अखबार (मेवाड़ी)।
        • राजस्थान सेवा संघ (1919, वर्धा; 1920, अजमेर): राजस्थान केसरी, नवीन राजस्थान
        • 1920: नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में धरना, गांधीजी से मुलाकात।
      • समाचार पत्र: प्रताप (गणेश शंकर विद्यार्थी), अभ्युदय, भारतमित्र, मराठा
      • प्रेमचंद: “रंगभूमि” नाटक।
      • बिंदुलाल भट्टाचार्य आयोग (1919): लाग-बाग, बेगार समाप्ति की सिफारिश, लागू नहीं।
      • जाँच आयोग: राज सिंह (बेदला), रमाकांत मालवीय, तख्तसिंह
      • महादेव देसाई: गांधीजी के प्रतिनिधि।
      • 1922: रॉबर्ट हालैंड, विलकिन्स समझौता, ठिकानेदारों ने अस्वीकार किया।
      • 5 फरवरी, 1922: 35 कर माफ, ठिकानेदारों ने पालन नहीं किया।
    • तृतीय चरण (1923-1941):
      • नेतृत्व: माणिक्यलाल वर्मा, जमनालाल बजाज, हरिभाऊ उपाध्याय
      • वर्मा: “मेवाड़ का वर्तमान शासन”, “पंछीड़ा गीत”।
      • 1927: ट्रेंच (भूमि बंदोबस्त), लाग-बाग समाप्त, ऊँचा लगान जारी।
      • 1927, 1931: वर्मा गिरफ्तार, 1933 में निर्वासित।
      • 1941: टी. विजय राघवाचार्य, मोहनसिंह मेहता ने समाधान किया, आंदोलन समाप्त।
  • विशेष:
    • 44 वर्ष, विश्व का सबसे लंबा अहिंसक आंदोलन।
    • रूसी क्रांति (1917) और बोल्शेविक प्रभाव।
    • बेंगू, बूँदी आंदोलनों के लिए प्रेरणा।
    • जमनालाल बजाज, हरिभाई किंकर: आर्थिक सहायता।
    • पथिक को “बोल्शेविक” कहा गया।

बेंगू किसान आंदोलन (1921-1923, चित्तौड़गढ़)

  • कारण: ऊँचा राजस्व, लाग-बाग, बेगार, लाटा-कूंता।
  • नेतृत्व: विजय सिंह पथिक, रामनारायण चौधरी, माणिक्यलाल वर्मा, अंजना देवी चौधरी (महिलाएँ)।
  • घटनाएँ:
    • 1921: भैरुकुण्ड (मेनाल), धाकड़ किसानों की सभा।
    • 1922-23: जागीरदार अनूपसिंह ने समझौता किया, मेवाड़ रियासत ने अस्वीकार।
    • ट्रेंच (जाँच): “बोल्शेविक समझौता”।
    • 13 जुलाई, 1923: गोविंदपुरा गोलीकांड, रूपाजी धाकड़, कृपाजी धाकड़ शहीद (प्रथम शहीद)।
    • अनूपसिंह नजरबंद, अमृतलाल प्रशासक।
    • समाचार पत्र (राजस्थान केसरी, तरुण राजस्थान, प्रताप) प्रतिबंधित।
    • 10 सितंबर, 1923: पथिक गिरफ्तार, आंदोलन शिथिल।
  • विशेष: मेवाड़ में पहला किसान समझौता, तरुण राजस्थान ने महाराणा फतेह सिंह को शासन लेने की माँग की।

अलवर किसान आंदोलन

  • पृष्ठभूमि: 80% खालसा, 20% जागीरी भूमि।
  • नीमूचाणा किसान आंदोलन (1924-1925):
    • स्थान: नीमूचाणा (बानसूर, अलवर)।
    • कारण: एन.एल. टिक्को द्वारा राजपूत विशेषाधिकार समाप्त, भू-राजस्व 40% वृद्धि।
    • माँगें: लगान कमी, बेगार समाप्ति, चराई कर हटाना, जंगली सूअर मारने की अनुमति।
    • नेतृत्व: माधो सिंह, अमर सिंह, गोविंद सिंह, गंगा सिंह
    • घटनाएँ:
      • जनवरी 1925: अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा (दिल्ली), “पुकार” पर्चा।
      • 6 मई, 1925: हथियार, सभा पर रोक।
      • 7 मई, 1925: रामचंद्र ओझा वार्ता असफल।
      • 14 मई, 1925: छज्जूसिंह (“राजस्थान का जनरल डायर”) गोलीबारी, 156 शहीद।
      • गांधीजी: “यंग इंडिया” में “दोहरी डायर शाही”।
      • रियासत: “जलियांवाला बाग” की तुलना।
      • जाँच: कन्हैयालाल कलंत्री आयोग (राजस्थान सेवा संघ), मणिलाल कोठारी समिति (रामनारायण चौधरी), अलवर आयोग (छाजू सिंह, सुल्तान सिंह, रामचरण).
      • नवंबर 1925: समझौता, पुराना भूमि बंदोबस्त बहाल।
  • मेव किसान आंदोलन:
    • स्थान: रामगढ़, तिजारा, किशनगढ़, लक्ष्मणगढ़।
    • माँगें: अकाल में लगान कमी, बेगार समाप्ति, आयात-निर्यात कर कमी, जंगली सूअर मारने की अनुमति।
    • नेतृत्व: चौधरी यासीन खाँ, भीक नारंग, मोहम्मद अली
    • संगठन: अंजुमन खादिम उल इस्लाम, जमीयत तबलीग उल इस्लाम (उर्दु, मुस्लिम प्रतिनिधित्व)।
    • घटनाएँ:
      • सांप्रदायिक दंगे (तिजारा), हिंसक स्वरूप।
      • अंग्रेज हस्तक्षेप: महाराजा जयसिंह को यूरोप भेजा, मेवात में विशेष अधिकारी, कर-लगान कमी।
    • विशेष: किसान से सांप्रदायिक आंदोलन।

बूँदी किसान आंदोलन (बरड़ किसान आंदोलन, 1920-1927)

  • स्थान: बरड़ (बूँदी-बिजोलिया के मध्य पथरीला क्षेत्र)।
  • कारण: ऊँचा भू-राजस्व, भ्रष्टाचार, लाटा-कूंता, युद्ध कर, बेगार।
  • प्रेरणा: बिजोलिया आंदोलन, राजस्थान सेवा संघ।
  • नेतृत्व: नयनूराम शर्मा, नारायण सिंह, भंवरलाल सुनार
  • घटनाएँ:
    • 1920: साधु सीतारामदास ने डाबी किसान पंचायत स्थापित, अध्यक्ष हरला भड़क
    • 1922: किसानों ने न्यायालय बहिष्कार, चारागाह पर कब्जा।
    • पंचायतें: डाबी, बरड़, गरदड़ा, बरूंगन।
    • 2 अप्रैल, 1923: डाबी सभा, इकराम हुसैन गोलीकांड, नानक भील, देवा गुर्जर शहीद।
      • माणिक्यलाल वर्मा: “अर्जी” गीत (नानक भील)।
    • जाँच: बूँदी आयोग (पृथ्वी सिंह, राम प्रताप, भैरोलाल), राजस्थान सेवा संघ (रामनारायण चौधरी, सत्य भक्त).
    • 10 मई, 1923: नयनूराम शर्मा गिरफ्तार।
    • 1927: आंतरिक विरोध, आंदोलन समाप्त।
  • विशेष: गुर्जर किसानों की अधिक भागीदारी, सामाजिक सुधार की ओर रुख।

गुर्जर आंदोलन (1936-1945)

  • स्थान: बरड़, लाखेरी (बूँदी)।
  • कारण: युद्ध कर, चराई कर, पशु गणना, नुक्ता प्रथा, चारागाहों पर सरकारी कब्जा।
  • घटनाएँ:
    • 5 अक्टूबर, 1936: हिंडोली सम्मेलन, 500 गुर्जर-मीणा, माँगें स्वीकार।
    • 1939: लाखेरी, तोरण की बावड़ी सभा (3 सितंबर, 1939), भंवरलाल जमादार, गोवर्धन चौकीदार, राम निवास तम्बोली
    • 21 अक्टूबर, 1936: अपराध कानून संशोधन अधिनियम 1936
    • मार्च 1945: शुल्क-मुक्त चराई, आंदोलन समाप्त।
  • विशेष: नेतृत्व की कमी, गुर्जर-सीमित, सीमित सफलता।

बीकानेर किसान आंदोलन

  • गंग नहर क्षेत्र (1929):
    • कारण: पानी की कमी, आबियाना, किश्तों का ब्याज।
    • संगठन: जमींदार संघ (अप्रैल 1929), माँगें स्वीकार, लगान-पानी दरों में छूट।
  • महाजन ठिकाना (1942):
    • कारण: लाग-बाग, बेगार, भू-राजस्व।
    • परिणाम: लगान कमी, दिसंबर 1942 में शिथिल।
  • दुधवाखारा (1944, चुरु):
    • कारण: सूरजमल सिंह द्वारा बेदखली।
    • नेतृत्व: हनुमान सिंह (बीकानेर प्रजापरिषद), खेतूबाई (महिलाएँ)।
    • विशेष: बीकानेर का पहला किसान आंदोलन।
  • उदरासर (1937):
    • नेतृत्व: जीवनराम चौधरी
    • कारण: लाग-बाग, बेगार।
  • कांगड़ कांड (1946):
    • कारण: खरीफ फसल नष्ट, कर रियायत माँग।
    • नेतृत्व: मघाराम वैद्य
    • घटना: 35 किसानों को बंधक, अत्याचार।
    • विशेष: बीकानेर का अंतिम आंदोलन।

मारवाड़ किसान आंदोलन

  • पृष्ठभूमि: 13% खालसा, 87% जागीरी।
  • तौल आंदोलन (1920-21):
    • नेतृत्व: चांदमल सुराणा
    • कारण: 100 तौल सेर को 80 तौल में परिवर्तन।
  • मंडोर आंदोलन (1930-31):
    • कारण: बीघोड़ी (नकद भू-राजस्व)।
    • नेतृत्व: माली जाति।
  • चंद्रावल कांड (1945):
    • घटना: मारवाड़ लोक परिषद सम्मेलन पर हमला, कई घायल।
  • डाबड़ा कांड (13 मार्च, 1947, डीडवाना):
    • घटना: जागीरदारों का हमला, 12 मरे, चुन्नीलाल शर्मा, रुघाराम चौधरी शहीद (अंतिम शहीद)।
    • आलोचना: वंदेमातरम, लोकवाणी, प्रजा सेवक
    • परिणाम: 1948, वी.पी. मेनन ने समझौता, उत्तरदायी सरकार की स्थापना।

शेखावाटी किसान आंदोलन (1922-1947)

  • कारण: लगान वृद्धि (25-30%), जरीब परिवर्तन (165 से 82.5 फुट), रजाका कर, असिंचित भूमि पर सिंचित कर।
  • नेतृत्व: रामनारायण चौधरी, हरी ब्रह्मचारी, ठाकुर देशराज
  • घटनाएँ:
    • 1922: राव राजा कल्याणसिंह (सीकर) द्वारा लगान वृद्धि।
    • 1923: चिड़ावा सेवा समिति (रामनारायण चौधरी), तरुण राजस्थान प्रतिबंधित।
    • 1925: डेली हेराल्ड (लंदन), हाउस ऑफ कॉमन्स में पैंथिक लॉरेन्स ने माँगें उठाईं।
    • 1931: राजस्थान जाट क्षेत्रीय महासभा (ठाकुर देशराज), 1933 में पलथाना (सीकर) अधिवेशन।
    • 1934: जाट प्रजापति महायज्ञ (मथैना), खेमराज शर्मा (पुरोहित), हुकुमसिंह (यजमान)।
    • 1947: हीरालाल शास्त्री ने समझौता।
  • विशेष: स्वतंत्रता के बाद भी चला (राजस्थान का एकमात्र)।

कटराथल कृषक आंदोलन

  • नेतृत्व: हरलाल सिंह खर्रा (“सरदार”), किशोरी देवी (महिलाएँ), मास्टर प्यारेलाल गुप्ता (“चिड़ावा का गांधी”)।
  • संगठन: किसान पंचायतें, अमर सेवा समिति, विद्यार्थी भवन (झुंझनू)।
  • कटराथल महिला सम्मेलन (25 अप्रैल, 1934):
    • कारण: मान सिंह (सीहोट) द्वारा सोतिया का बास में दुर्व्यवहार।
    • वक्ता: उत्तमा देवी (ठाकुर देशराज की पत्नी), रमा देवी, लक्ष्मी, दुर्गा देवी, फूलां देवी
  • जयसिंहपुरा हत्याकांड (21 जून, 1934):
    • ठाकुर ईश्वरी सिंह की गोलीबारी, सजा (जयपुर में पहला मुकदमा)।
    • 21 जुलाई, 1934: शहीद दिवस।
  • कुदन हत्याकांड (25 अप्रैल, 1935, सीकर):
    • कारण: धापी देवी के कहने पर कर अस्वीकार।
    • वेब (अंग्रेज) की गोलीबारी, चेतराम, आशाराम, टीकूराम, तुलछाराम शहीद।
    • प्रभाव: हाउस ऑफ कॉमन्स में चर्चा।

निष्कर्ष

20वीं शताब्दी में राजस्थान के जनजातीय और किसान आंदोलनों ने सामंती और औपनिवेशिक शोषण के खिलाफ ऐतिहासिक संघर्ष किया। गोविंद गुरु, मोतीलाल तेजावत, विजय सिंह पथिक, और माणिक्यलाल वर्मा जैसे नेताओं ने सामाजिक जागृति और अधिकारों की लड़ाई लड़ी। बिजोलिया आंदोलन (44 वर्ष) विश्व का सबसे लंबा अहिंसक आंदोलन था, जिसने राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम को बल दिया। हत्याकांडों (मानगढ़, नीमूचाणा, डाबी) ने जनता की कुर्बानियों को उजागर किया। ये आंदोलन जातिगत संगठन और अहिंसा पर आधारित थे, जिन्होंने राजस्थान में सामाजिक-राजनीतिक चेतना को नई दिशा दी। क्या आप किसी विशिष्ट आंदोलन या नेता पर और जानकारी चाहेंगे?

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