राजस्थान के लोक गीत 2025: संस्कृति की मधुर धुनें 🎶

By: LM GYAN

On: 8 September 2025

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राजस्थान के लोक गीत

राजस्थान के मधुर लोक गीत 🎵 जैसे घूमर, मूमल, कुरजाँ, पणिहारी, और माण्ड गायिकी की विस्तृत जानकारी। जनजातियों, क्षेत्रों, और वाद्य यंत्रों के साथ 2025 की ताजा जानकारी!


Table of Contents

परिचय: राजस्थान के लोक गीतों की मधुरता 🌟

राजस्थान, रंग-बिरंगी संस्कृति की धरती, अपने लोक गीतों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। 🏜️ कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इन्हें संस्कृति का सुखद सन्देश ले जाने वाली कला कहा, तो गाँधीजी ने इन्हें जनता की भाषा और संस्कृति के पहरेदार बताया। 😊 स्टैंडर्ड डिक्शनरी ऑफ फोकलोर माइथोलॉजी एण्ड लेजेण्ड के अनुसार, लोक गीत वे संगीतमयी काव्य रचनाएँ हैं जो मौखिक परम्परा से जीवित रहती हैं, न कि लेखनी या छपाई से। 📜

राजस्थान के लोक गीत राजस्थान की आत्मा हैं, जो शृंगार, भक्ति, और वीर रस के साथ जीवन के हर रंग को बयाँ करते हैं। 💖 घूमर की मधुर धुन से लेकर मूमल की प्रेम कहानी, कुरजाँ के विरह से लेकर माण्ड की शास्त्रीयता तक, ये गीत हर दिल को छूते हैं। 🎵 इस लेख में हम जन साधारण, व्यावसायिक, और क्षेत्रीय लोक गीतों, गायक जातियों, और संगीत घरानों की पूरी जानकारी देंगे। तालिकाएँ, उपशीर्षक, और मस्ती भरे अंदाज के साथ तैयार हो जाओ राजस्थान की मधुर यात्रा के लिए! 🚪🎶


राजस्थान के लोक गीत: एक अवलोकन 🌈

राजस्थान के लोक गीतों को तीन प्रमुख श्रेणियों में बाँटा जा सकता है:

  1. जन साधारण के लोक गीत
  2. व्यावसायिक लोक गीत
  3. क्षेत्रीय लोक गीत

राजस्थान के लोक गीतों में शृंगार रस (विशेषकर वियोग शृंगार) का आधिक्य है, क्योंकि यहाँ पुरुष अक्सर जीविकोपार्जन या व्यापार के लिए परदेस जाते हैं। 💔 इसके बाद शांत रस और वीर रस के गीत आते हैं।

  • सांस्कृतिक महत्व: ये गीत न केवल मनोरंजन करते हैं, बल्कि सामुदायिक एकता, परंपराओं, और भावनाओं को व्यक्त करते हैं। 😊
  • प्रमुख अवसर: विवाह, त्योहार (होली, गणगौर, तीज), ऋतु उत्सव, और धार्मिक अवसर। 🎉
  • वाद्य यंत्र: ढोल, नगाड़ा, सारंगी, कामायचा, खड़ताल, मंजीरा, रावणहत्था, और शहनाई। 🥁

1. जन साधारण के लोक गीत 🎤

ये गीत जन सामान्य द्वारा विभिन्न अवसरों पर गाए जाते हैं और इन्हें पाँच श्रेणियों में बाँटा जा सकता है:

(i) संस्कार संबंधित लोक गीत 👰

विवाह और अन्य संस्कारों में गाए जाने वाले गीत:

  • सगाई बधावा: सगाई के समय।
  • चाकभात, रतजगा, मायरा, हल्दी: विवाह की रस्में।
  • घोड़ी, बन्ना-बन्नी, वर निकासी, तोरण, हथलेवा, कँवर कलेवा, जीमणवार, काँकणडोरा: बारात और स्वागत।
  • जला, जुआ-जुई: वधू के घर की रस्में।
  • ओल्यूँ: बेटी की विदाई पर। 😢
  • पीठी: वर-वधू को उबटन लगाते समय।
  • कामण: जादू-टोने से बचाव के लिए।
  • पावणा: दामाद के ससुराल में स्वागत।
  • बीरा: भात के समय (ढूँढाड़ अंचल)।

(ii) त्योहार संबंधित लोक गीत 🎉

  • तीज: पीपली, हींडो।
  • गणगौर: “खेलण दो गणगौर, भँवर म्हानै खेलण दो गणगौर…”।
  • होली: रसिया, होरी, धमाल, काजलियो।
  • घुड़ला: शीतलाष्टमी से गणगौर तक कन्याएँ।
  • लांगुरिया: कैला देवी की आराधना (करौली)।

(iii) ऋतु संबंधित लोक गीत 🌧️

  • शरद: शियाळा, जाड़ा।
  • ग्रीष्म: चेती।
  • वर्षा: चौमासा, पपैयो, बदली, मोर संबंधित गीत, इन्द्रदेव की स्तुति।
  • बसंत: फाग, बीजण, बारहमासा, कजली।

(iv) धार्मिक लोक गीत 🙏

  • तेजा: खेती शुरू करते समय तेजाजी की भक्ति।
  • चिरजा, लांगुरिया, हरजस: राम-कृष्ण की लीलाएँ।
  • रातीजगा: रात-भर जागकर देवता की स्तुति।

(v) विविध विषयों के लोक गीत 💖

  • गोरबन्द: ऊँट का शृंगार करते समय। “म्हारो गोरबन्द नखरालो…”। 🐪
  • मूमल: लोद्रवा की राजकुमारी का शृंगारिक वर्णन।
  • पपैयो: प्रेमिका का बाग में मिलने का आह्वान।
  • ढोलामारु: सिरोही में ढोला-मरवण की प्रेम कथा।
  • सूवटियां: मेवाड़ में भील स्त्री का विरह गीत।
  • कुरजाँ: विरहिणी का कुरजाँ पक्षी को संदेश।
  • पणिहारी: पतिव्रत धर्म का चित्रण।
  • कांगसियो: पति का उपहार पड़ोसन द्वारा ले जाना।
  • हिचकी: अलवर-मेवात में याद आने की धारणा।
  • चिरमी: नई वधू की भाई-पिता की प्रतीक्षा।
  • झोरावा: जैसलमेर में विरह गीत।
  • सुपणा: विरहिणी के स्वप्न।
  • कागा: कौए को संबोधित शगुन गीत।
  • लोटिया: चैत्र में पानी लाते समय।
  • जच्चा (होलर): पुत्र जन्मोत्सव पर मंगल गीत।
  • मोरिया: विवाह की प्रतीक्षा में बालिका।

2. व्यावसायिक जातियों के लोक गीत 🎸

राजस्थान में कई जातियों ने संगीत को पेशे के रूप में अपनाया है। ये हैं: ढोली, मिरासी, लंगा, ढाढ़ी, कलावन्त, भाट, राव, जोगी, कामड़, वैरागी, गन्धर्व, भोपे, भवाई, राणा, कालबेलिया, कथिक

  • गीत: माँड, देस, सोरठ, मारू, परज, कालिंगड़ा, जोगिया, आसावरी, बिलावल, पीलू, खमाज।
  • विशेषताएँ:
    • ये गीत शास्त्रीय रागों से प्रेरित हैं।
    • मांगलिक अवसरों और उत्सवों में गाए जाते हैं।

प्रमुख गायक जातियाँ 🎤

  1. मिरासी: सारंगी मुख्य वाद्य, मारवाड़ में बहुलता, वंशावली बखान।
  2. कलावन्त: निपुण गायक-वादक, सेन या खाँ उपनाम, गौड़ ब्राह्मण-चौहान राजपूत।
  3. ढाढ़ी: जैसलमेर, बाड़मेर, कामायचा, खड़ताल, सुरणाई
  4. ढोली: ढोल वादक, गंधर्व मूल, मृदुभाषी।
  5. रावल: चारणों के यजमान, लोकनाट्य में विशिष्ट।
  6. लंगा: सारंगी, कामायचा, जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, सिंधी-उर्दू मिश्रित।
  7. राणा: नगाड़ा, शहनाई, युद्ध में प्रेरणा।
  8. जोगी: नाथ संप्रदाय, बीकानेर, जोधपुर, अलवर, शेखावाटी।
  9. औघड़ जोगी: कटे कान, जटा।
  10. डोम (डूम): मारवाड़, मिरासियों जैसे रीति-रिवाज।
  11. भवाई: घूम-घूम कर करतब।
  12. कामड़: रामदेवजी भक्त, तेरहताली नृत्य में प्रवीण।
  13. भोपा: रावणहत्था, पाबूजी, देवनारायण, गोगाजी, भैरूजी की फड़ वाचन।
  14. कानगूजरी: राधा-कृष्ण भक्ति, रावणहत्था।
  15. सरगरा: बर्गू (सुषिर वाद्य), कच्छी घोड़ी नृत्य।

3. क्षेत्रीय लोक गीत 🗺️

(i) मरुस्थलीय लोक गीत 🌵

  • क्षेत्र: बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, जोधपुर
  • प्रमुख गीत: कुरजाँ, पीपली, रतन राणो, मूमल, घूघरी, केवड़ा।
  • गायक जातियाँ: कामड़, भोपे, सरगरे, लंगे, मिरासी, कलावन्त।
  • विशेषताएँ: ऊँचे स्वर, लंबी धुन, अधिक स्वर विस्तार, उन्मुक्त वातावरण।

(ii) पर्वतीय लोक गीत 🏞️

  • क्षेत्र: उदयपुर, डूँगरपुर, बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़, सिरोही।
  • प्रमुख गीत: पटेल्या, बीछियो, लालर, माछर, नोखीला, थारी ऊँटा री असवारी, नावरी असवारी, शिकार।
  • विशेषताएँ: सरल, संक्षिप्त, कम स्वरों वाली धुनें।

(iii) मैदानी लोक गीत 🌾

  • क्षेत्र: जयपुर, कोटा, अलवर, भरतपुर, करौली, धौलपुर।
  • विशेषताएँ: भक्ति और शृंगार रस के गीतों का आधिक्य।

विशेष गीत 🎶

  • लोवड़ी, हरणी: मेवाड़ में दीपावली से 15 दिन पहले लड़के-लड़कियाँ घर-घर गाते।
  • घड़ल्यों: मेवाड़ में लड़कियों द्वारा दीपावली से पहले।

बच्चों के खेल-गीत 🎠

खेल बच्चों के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, और गीत इनमें सरसता जोड़ते हैं।

  • कान कतरनी: “कान कतरनी, छब्बक छैया, बोल मेरा भैया।”
  • टम्पो घोड़ी: “टम्पो घोड़ी फूल गुलाब रो।”
  • काकड़ वेल: “राजाजी खोलो कुँवाड़।”
  • मछली: “मछली मछली कितणो पाणी?”

अवसरों के अनुसार गीत 🎉

  1. पुरुषों के गीत: भजन, चंग, धमाल, रात्रि जागरण, कीर्तन।
  2. स्त्रियों के गीत: होली, तीज (चौमासा), गणगौर (घूमर), विवाह, पुत्र जन्म, रातीजगा, हरजस, बारहमासा, शीतला, पावणा, कार्तिक स्नान, जच्चा, मेले।
  3. बालकों के गीत: चौक च्यानणी (गणेश चतुर्थी), ढप, धमाल, दीपावली।
  4. बालिकाओं के गीत: गणगौर, जीजा आगमन, चानाचट, तीज (झूले), होली, दीपावली।

प्रमुख लोक गीत: विस्तृत विवरण 🎵

  1. गोरबन्द:
    • ऊँट का शृंगार करते समय।
    • “म्हारो गोरबन्द नखरालो, लड़ली लूमाँ झूमाँ ए…” 🐪
  2. मूमल:
    • शृंगारिक, लोद्रवा की राजकुमारी का नख-शिख वर्णन।
    • “काली तो काली काजलिया री रेख सा…” 💖
  3. पपैयो:
    • प्रेमिका का बाग में मिलने का आह्वान।
    • दाम्पत्य प्रेम का प्रतीक।
  4. ढोलामारु:
    • सिरोही में ढोला-मरवण की प्रेम कथा।
  5. सूवटियां:
    • मेवाड़ में भील स्त्री का परदेस गए पति को संदेश।
  6. घूमर:
    • गणगौर और मांगलिक अवसरों पर।
    • “म्हारी घूमर छै नखराली ए माँ…” 💃
  7. ओल्यूँ:
    • बेटी की विदाई पर।
    • “कँवर बाई री ओल्यूँ आवै ओ राज…” 😢
  8. कुरजाँ:
    • विरहिणी का कुरजाँ पक्षी को संदेश।
    • “कूरजाँ ए म्हारो भँवर मिला देनी…”
  9. पणिहारी:
    • पतिव्रत धर्म का चित्रण।
  10. कांगसियो:
    • पति का उपहार पड़ोसन द्वारा ले जाना।
    • “म्हारै छैल भँवर रो कांगसियो पणिहारियाँ ले गई रे…”
  11. हिचकी:
    • अलवर-मेवात, याद आने की धारणा।
    • “म्हारा पियाजी बुलाई म्हानै आई हिचकी…”
  12. चिरमी:
    • नई वधू की भाई-पिता की प्रतीक्षा।
  13. काजलियो:
    • होली पर चंग के साथ शृंगारिक।
  14. झोरावा:
    • जैसलमेर में विरह गीत।
  15. कामण:
    • विवाह में जादू-टोने से बचाव।
  16. दुपट्टा:
    • दूल्हे की सालियों द्वारा।
  17. जला और जलाल:
    • बरात का डेरा देखने पर।
    • “म्हैं तो थारा डेरा निरखण आई ओ…”
  18. बन्ना-बन्नी:
    • विवाह पर।
  19. बिंदोला (बंदोला):
    • वर के रिश्तेदारों के यहाँ जाने पर।
  20. पीठी:
    • उबटन लगाते समय।
  21. कुकड़लू:
    • तोरण पर दूल्हा पहुँचने पर।
  22. पावणा:
    • दामाद के ससुराल में स्वागत।
  23. बीरा:
    • ढूँढाड़ में भात पर।
  24. रातीजगा:
    • रात-भर देवता की स्तुति।
  25. पीपली:
    • शेखावाटी, मारवाड़, तीज से पहले, विरहिणी के प्रेमोद्गार।
  26. गणगौर:
    • “खेलण दो गणगौर, भँवर म्हानै खेलण दो गणगौर…”
  27. सीठणे (गाली):
    • विवाह में हँसी-ठिठोली।
  28. हींडो (हिंडोल्या):
    • श्रावण में झूला गीत।
    • “सावणियै रो हींडो रे बाँधन जाय…”
  29. घुड़ला:
    • मारवाड़, शीतलाष्टमी से गणगौर तक।
    • “घुड़ळो घूमेला जी घूमेला…”
  30. बीछूड़ो:
    • हाड़ौती, बिच्छू डसने पर पत्नी का संदेश।
    • “मैं तो मरी होती राज, खा गयो बैरी बीछूड़ो…”
  31. पंछीड़ा:
    • हाड़ौती, ढूँढाड़, मेलों में अलगोजे, ढोलक, मंजीरे के साथ।
  32. कागा:
    • कौए को संबोधित शगुन।
    • “उड़-उड़ रे म्हारा काळा रे कागला…”
  33. सुपणा:
    • विरहिणी के स्वप्न।
  34. तेजा:
    • खेती शुरू करते समय।
  35. जीरो:
    • वधू की जीरा न बोने की विनती।
    • “यो जीरो जीव रो बैरी रे…”
  36. इंडोणी:
    • पानी भरने जाते समय।
  37. लांगुरिया:
    • करौली, कैला देवी की आराधना।
  38. रसिया:
    • ब्रज, भरतपुर, धौलपुर।
  39. हरजस:
    • राम-कृष्ण की लीलाएँ।
  40. लावणी:
    • नायिका को बुलाने के लिए, मोरध्वज, सेऊसमन, भरथरी।
  41. घोड़ी:
    • विवाह निकासी पर।
    • “घोड़ी म्हारी चंद्रमुखी सी…”
  42. बीणजारा:
    • प्रश्नोत्तर, पत्नी का पति को व्यापार के लिए प्रेरणा।
  43. लालर:
    • पर्वतीय क्षेत्रों में आदिवासी।
  44. कोयलड़ी:
    • वधू की विदाई पर।
  45. हमसीढ़ो:
    • मेवाड़ में भील युगल गीत।
  46. जच्चा (होलर):
    • पुत्र जन्म पर मंगल।
  47. मोरिया:
    • विवाह की प्रतीक्षा में।
  48. लोटिया:
    • चैत्र में तालाब-कुओं से पानी लाते समय।
  49. हालरिया:
    • जैसलमेर में बच्चे के जन्म पर (दाई, हारलोगोरा, धतूरी, खाँखलो, खटोड़ली)।
  50. हवेली संगीत:
    • मंदिरों में (नाथद्वारा, काँकरोली, जयपुर, कोटा, भरतपुर)।

राजस्थान की लोक गायन शैलियाँ 🎸

  1. माण्ड गायिकी:
    • उद्गम: 10वीं सदी, जैसलमेर (माण्ड क्षेत्र)।
    • विशेषताएँ: शृंगार रसात्मक राग।
    • प्रसिद्ध गायिकाएँ:
      • अल्लाह जिलाई बाई (बीकानेर, पद्मश्री 1982, “केसरिया बालम…”).
      • गवरी देवी (बीकानेर, पाली).
      • माँगी बाई (उदयपुर, राज्य गीत प्रथम बार).
      • जमीला बानो (जोधपुर).
      • बन्नो बेगम (जयपुर, गौहर जान की पुत्री).
  2. मांगणियार गायिकी:
    • क्षेत्र: बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर।
    • विशेषताएँ: मांगलिक अवसर, मुस्लिम मूल (सिंध), गायन-वादन पेशा।
    • वाद्य: कामायचा, खड़ताल।
    • प्रसिद्ध कलाकार:
      • लाखा खाँ (पद्मश्री, सिंधी सारंगी).
      • साफर खाँ, गफूर खाँ, रमजान खाँ (ढोलक).
      • सद्दीक खाँ (खड़ताल, लोक कला अनुसंधान परिषद् 2002).
      • साकर खाँ (कामायचा).
  3. लंगा गायिकी:
    • क्षेत्र: बीकानेर, बाड़मेर, जोधपुर, जैसलमेर।
    • विशेषताएँ: मांगलिक अवसर, उत्सव।
    • वाद्य: सारंगी, कामायचा।
    • प्रसिद्ध कलाकार: फूसे खाँ, महरदीन लंगा, करीम खाँ लंगा।
  4. तालबंदी गायिकी:
    • क्षेत्र: भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर।
    • विशेषताएँ: शास्त्रीय परंपरा, औरंगजेब के संगीत प्रतिबंध के बाद ब्रज साधुओं द्वारा।
    • वाद्य: नगाड़ा, सारंगी, हारमोनियम, ढोलक, तबला, झाँझ।

संगीत घराने 🎻

संगीत घराना किसी विशिष्ट गुरु-शिष्य परंपरा को दर्शाता है।

  1. जयपुर घराना:
    • प्रवर्तक: मनरंग (भूपत खाँ).
    • प्रसिद्ध संगीतज्ञ: मुहम्मद अली खाँ, केसर बाई केरकर, मोगूबाई, कुडीकर, मंजी खाँ, भूजी खाँ।
  2. पटियाला घराना:
    • प्रवर्तक: फतेह अली (आलिया फत्तू), अली बख्श।
    • विशेषता: जयपुर घराने की उपशाखा, गौकीबाई से शिक्षा।
    • प्रसिद्ध: गुलाम अली (पाकिस्तानी गजल गायक).
  3. जयपुर का बीनकार घराना:
    • प्रवर्तक: रज्जब अली खाँ।
    • प्रसिद्ध: साँवल खाँ, मुशर्रफ खाँ, सादिक अली खाँ।
  4. अतरौली घराना:
    • प्रवर्तक: साहब खाँ, अल्लादिया खाँ।
    • प्रसिद्ध: मानतोल खाँ (रुलाने वाले फकीर).
  5. अल्लादिया घराना:
    • प्रवर्तक: अल्लादिया खाँ।
    • प्रसिद्ध: किशोरी अमोणकर।
  6. मेवाती घराना:
    • प्रवर्तक: उस्ताद घग्घे नजीर खाँ।
    • प्रसिद्ध: पं. जसराज, मोतीराम, ज्योतिराम, पूरण चंद।
  7. डागर घराना:
    • प्रवर्तक: बहराम खाँ डागर।
    • प्रसिद्ध: बाबा गोपालदास, तानसेन, जाकिरुद्दीन खाँ, नसीर मुइनुद्दीन खाँ।
  8. जयपुर का सेनिया घराना:
    • प्रवर्तक: सूरत सेन (तानसेन के पुत्र).
    • प्रसिद्ध: अमृत सेन (सितार).
  9. रंगीला घराना:
    • प्रवर्तक: रमजान खाँ (मियाँ रंगीले).
  10. आगरा घराना:
    • प्रवर्तक: हाजी सुजान खाँ।
    • प्रसिद्ध: घग्घे खुदा बख्श खाँ।
  11. ग्वालियर घराना:
    • प्रवर्तक: अब्दुल्लाह खाँ, कादिर बख्श खाँ।
    • प्रसिद्ध: हद्दू खाँ, हस्सू खाँ।
  12. किराना घराना:
    • प्रवर्तक: बन्दे अली खाँ।
    • प्रसिद्ध: पं. भीमसेन जोशी, गंगू बाई हंगल, रोशन आरा बेगम।
  13. दिल्ली घराना:
    • प्रवर्तक: सदारंग (नियामत खाँ).
    • विशेषता: ख्याल गायन शैली।
  14. जयपुर का कत्थक घराना:
    • प्रवर्तक: भानूजी।
    • विशेषता: कत्थक नृत्य का आदिम घराना, 13वीं सदी में उद्भव।

प्रमुख संगीतज्ञ 🎤

  1. अल्लाह जिलाई बाई:
    • बीकानेर, माण्ड गायिका, पद्मश्री 1982, राजस्थान रत्न 2012
    • गीत: “केसरिया बालम…”, “काली काली काजलिये री रेख…”।
    • गुरु: उस्ताद हुसैनबक्श लंगड़े।
  2. बन्नो बेगम:
    • जयपुर, माण्ड गायिका, गौहर जान की पुत्री।
  3. जमीला बानो:
    • जोधपुर, माण्ड गायिका।
  4. पं. रविशंकर:
    • विश्व प्रसिद्ध सितारवादक, ग्रेमी पुरस्कार
    • गुरु: उस्ताद अलाउद्दीन खाँ।
  5. पं. विश्वमोहन भट्ट:
    • जयपुर, सितारवादक, पद्मश्री 2002, पद्मभूषण 2017, ग्रेमी 1994
    • मोहनवीणा का आविष्कार, राग गौरीम्मा का सृजन।
  6. हरिसिंह:
    • राजस्थान का तानसेन, राग से पत्थर पिघलाने की किंवदंती।
  7. पुण्डरीक विट्‌ठल:
    • सवाई माधोसिंह, सवाई मानसिंह द्वितीय के आश्रित।
  8. उस्ताद चाँद खाँ:
    • सवाई प्रतापसिंह के संगीत गुरु।

सांस्कृतिक महत्व 🌟

राजस्थान के लोक गीत इस धरती की सांस्कृतिक और भावनात्मक गहराई को दर्शाते हैं। 😊 शृंगार रस के गीत परदेस गए प्रियतम की याद में गाए जाते हैं, तो भक्ति रस के गीत राम-कृष्ण की लीलाओं को जीवंत करते हैं। 🌈 माण्ड, मांगणियार, और लंगा गायिकी ने विश्व मंच पर राजस्थान को गौरवान्वित किया।

  • पर्यटन: पुष्कर मेला, जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल, और रामदेवजी मेला में ये गीत सुनने पर्यटक खिंचे चले आते हैं। 📸
  • विश्व पहचान: अल्लाह जिलाई बाई, पं. रविशंकर, और पं. विश्वमोहन भट्ट ने इन गीतों को वैश्विक मंच पर ले जाया।

राजस्थान के लोक गीत: तालिका 📋

गीतश्रेणीक्षेत्रअवसरवाद्य यंत्र
गोरबन्दविविधमरुस्थलीयऊँट शृंगार
मूमलविविधमरुस्थलीयशृंगार
पपैयोविविधमरुस्थलीयप्रेम
ढोलामारुविविधसिरोहीप्रेम
सूवटियांविविधमेवाड़विरह
घूमरत्योहारराज्यव्यापीगणगौरढोल, नगाड़ा
ओल्यूँसंस्कारराज्यव्यापीविदाई
कुरजाँविविधमरुस्थलीयविरह
पणिहारीविविधराज्यव्यापीपतिव्रत
कांगसियोविविधराज्यव्यापीशृंगार
हिचकीविविधअलवर-मेवातशृंगार
चिरमीविविधराज्यव्यापीविरह
काजलियोत्योहारराज्यव्यापीहोलीचंग
झोरावाविविधजैसलमेरविरह
कामणसंस्कारराज्यव्यापीविवाह
दुपट्टासंस्कारराज्यव्यापीविवाह
जला-जलालसंस्कारराज्यव्यापीबरात
बन्ना-बन्नीसंस्कारराज्यव्यापीविवाह
बिंदोलासंस्कारराज्यव्यापीविवाह
पीठीसंस्कारराज्यव्यापीविवाह
कुकड़लूसंस्कारराज्यव्यापीतोरण
पावणासंस्कारराज्यव्यापीदामाद स्वागत
बीरासंस्कारढूँढाड़भात
रातीजगाधार्मिकराज्यव्यापीरात्रि जागरण
पीपलीत्योहारशेखावाटी, मारवाड़तीज
गणगौरत्योहारराज्यव्यापीगणगौर
सीठणेसंस्कारराज्यव्यापीविवाह
हींडोत्योहारराज्यव्यापीश्रावण
घुड़लात्योहारमारवाड़शीतलाष्टमी-गणगौर
बीछूड़ोविविधहाड़ौतीविरह
पंछीड़ाविविधहाड़ौती, ढूँढाड़मेलेअलगोजा, ढोलक, मंजीरे
कागाविविधराज्यव्यापीशगुन
सुपणाविविधराज्यव्यापीविरह
तेजाधार्मिकराज्यव्यापीखेती
जीरोविविधराज्यव्यापीविरह
इंडोणीविविधराज्यव्यापीपानी भरना
लांगुरियाधार्मिककरौलीकैला देवी
रसियात्योहारब्रज, भरतपुर, धौलपुरहोली
हरजसधार्मिकराज्यव्यापीराम-कृष्ण
लावणीविविधराज्यव्यापीशृंगार, भक्ति
घोड़ीसंस्कारराज्यव्यापीविवाह
बीणजाराविविधराज्यव्यापीप्रश्नोत्तर
लालरपर्वतीयउदयपुर, सिरोहीउत्सव
कोयलड़ीसंस्कारराज्यव्यापीविदाई
हमसीढ़ोपर्वतीयमेवाड़युगल
जच्चासंस्कारराज्यव्यापीपुत्र जन्म
मोरियाविविधराज्यव्यापीविवाह प्रतीक्षा
लोटियात्योहारराज्यव्यापीचैत्र
हालरियासंस्कारजैसलमेरबच्चे का जन्म
हवेलीधार्मिकनाथद्वारा, जयपुरमंदिर

निष्कर्ष: राजस्थान के लोक गीतों की मधुर धुनें 🌈

राजस्थान के लोक गीत इस धरती की सांस्कृतिक और भावनात्मक गहराई को जीवंत करते हैं। 😊 घूमर, मूमल, कुरजाँ, और माण्ड की धुनें हर दिल को छूती हैं। 🌟 पुष्कर मेला, रामदेवजी मेला, और जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में इन गीतों को सुनने का अनुभव अविस्मरणीय है। 📸

अगर आप राजस्थान की सैर पर जा रहे हैं, तो होली, गणगौर, या नवरात्रि में इन गीतों को जरूर सुनें। अल्लाह जिलाई बाई की माण्ड, लंगा की सारंगी, और भोपे का रावणहत्था आपके अनुभव को और मधुर बनाएगा! 🚪


प्रश्न और जवाब (FAQs)

  1. राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध लोक गीत कौन सा है?
    घूमर और केसरिया बालम सबसे प्रसिद्ध हैं। 🎶
  2. माण्ड गायिकी की खासियत क्या है?
    शृंगार रसात्मक राग, अल्लाह जिलाई बाई ने विश्व प्रसिद्ध बनाया।
  3. कुरजाँ गीत का भाव क्या है?
    विरहिणी का अपने प्रियतम को संदेश भेजना। 💔
  4. लंगा और मांगणियार गायिकी में अंतर क्या है?
    दोनों मांगलिक अवसरों पर गाते हैं, लेकिन लंगा सारंगी और मांगणियार कामायचा पर जोर देते हैं।
  5. किन अवसरों पर लोक गीत गाए जाते हैं?
    विवाह, होली, गणगौर, तीज, दीपावली, और धार्मिक अवसर। 🌸

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