राजस्थान में 1857 की क्रांति–1857 की क्रांति भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में जानी जाती है, जिसमें राजस्थान की रियासतों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1818 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ संधियों के बावजूद, कंपनी के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप और लॉर्ड डलहौजी की हड़प नीति ने असंतोष को जन्म दिया। एनफील्ड राइफल के चर्बी वाले कारतूस तात्कालिक कारण बने, जिसने हिंदू-मुस्लिम सैनिकों में विद्रोह की चिंगारी भड़काई। राजस्थान में यह क्रांति विभिन्न छावनियों और रियासतों में फैली, जिसमें सामंतों, सैनिकों, और आम जनता ने हिस्सा लिया। नीचे इस क्रांति का विस्तृत विवरण है।
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पृष्ठभूमि
- 1818 की संधियाँ: राजस्थान की रियासतें ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ संधि कर बाह्य आक्रमणों से सुरक्षित हुईं, लेकिन कंपनी ने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप शुरू किया।
- प्रशासनिक व्यवस्था:
- हड़प नीति: लॉर्ड डलहौजी की डाक्ट्रिन ऑफ लेप्स के तहत ब्यावर (प्रथम क्षेत्र) और उदयपुर (प्रथम रियासत) हड़पी गई।
- तात्कालिक कारण: एनफील्ड राइफल के चर्बी वाले कारतूस, जिसने हिंदू-मुस्लिम सैनिकों में असंतोष पैदा किया।
अंग्रेजी एजेंसियाँ (1857)
नाम | केन्द्र | अंग्रेज अधिकारी |
---|---|---|
मेवाड़ राजपूताना स्टेट एजेंसी | उदयपुर | मेजर शॉवर्स |
राजपूताना स्टेट एजेंसी | कोटा | मेजर बर्टन |
पश्चिम राजपूताना स्टेट एजेंसी | जोधपुर | मैक मोसन |
जयपुर राजपूताना स्टेट एजेंसी | जयपुर | कर्नल ईडन |
सैनिक छावनियाँ
राजस्थान में 6 सैनिक छावनियाँ थीं, जिनमें से खैरवाड़ा और ब्यावर में विद्रोह नहीं हुआ:
छावनी | रियासत | सैनिक टुकड़ी |
---|---|---|
खैरवाड़ा | उदयपुर | भील रेजीमेंट |
नीमच | कोटा | कोटा बटालियन |
एरिनपुरा | पाली | जोधपुर लीजियन |
ब्यावर | अजमेर | मेर रेजीमेंट |
नसीराबाद | अजमेर | बंगाल नेटिव इन्फेंट्री |
देवली | टोंक | कोटा रेजीमेंट |
राजस्थान में 1857 की क्रांति के प्रमुख विद्रोह
नसीराबाद में विद्रोह
- स्थान: अजमेर, नसीराबाद छावनी (गठन: 25 जून, 1818)।
- तिथि: 28 मई, 1857, राजस्थान में क्रांति की शुरुआत।
- नेतृत्व: 15वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री का सैनिक बख्तावर सिंह।
- घटनाएँ:
- अंग्रेज अधिकारी स्पोटिश वुड और कर्नल न्यूबरी मारे गए।
- विद्रोही दिल्ली की ओर रवाना हुए।
- विशेष: अजमेर में ब्रिटिश शस्त्रागार और गोला-बारूद भंडार था।
नीमच में विद्रोह
- स्थान: कोटा।
- तिथि: 3 जून, 1857।
- नेतृत्व: मुहम्मद अली बेग और हीरासिंह।
- घटनाएँ:
- 2 जून, 1857 को मुहम्मद अली बेग ने कर्नल एबॉट के समक्ष वफादारी की शपथ से इंकार किया।
- शाहपुरा के राजा लक्ष्मण सिंह ने विद्रोहियों का साथ दिया।
- चित्तौड़गढ़ के डूंगला गाँव के किसान रूघाराम ने 40 अंग्रेजों को शरण दी।
- महाराणा स्वरूप सिंह ने अंग्रेजों को उदयपुर के जगमंदिर महल में रखा।
- कैप्टन शॉवर्स ने 8 जून, 1857 को विद्रोह दबाया, नीमच पर कंपनी का पुनः नियंत्रण।
एरिनपुरा में विद्रोह
- स्थान: पाली, जोधपुर लीजियन (गठन: 1835, मुख्यालय: एरिनपुरा)।
- तिथि: 21 अगस्त, 1857।
- नेतृत्व: शीतल प्रसाद, तिलकराम, मोती खाँ।
- घटनाएँ:
- A.G.G. लॉरेन्स के पुत्र एलेक्जेंडर की हत्या।
- 23 अगस्त, 1857 को शिवनाथ (ईडर, डूंगरपुर) के नेतृत्व में विद्रोही “चलो दिल्ली, मारो फिरंगी” नारे के साथ दिल्ली रवाना।
आउवा में विद्रोह
- स्थान: पाली, आउवा परगना।
- नेतृत्व: ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत।
- घटनाएँ:
- एरिनपुरा के विद्रोही खैरवा (पाली) पहुँचे, कुशाल सिंह ने सहयोग दिया।
- जोधपुर महाराजा तख्तसिंह ने A.G.G. लॉरेन्स के कहने पर किलेदार ओनाड़ सिंह और लेफ्टिनेंट हीथकोट को विद्रोह दबाने भेजा।
- बिथौड़ा युद्ध (8 सितंबर, 1857, पाली): कुशाल सिंह विजयी, ओनाड़ सिंह मारा गया, हीथकोट भागा।
- चेलावास युद्ध (18 सितंबर, 1857, पाली): क्रांतिकारियों ने पोलिटिकल एजेंट मोक मेसन का सिर काटकर आउवा किले पर लटकाया। इसे गोरों-कालों का युद्ध कहा गया।
- कोठारिया (भीलवाड़ा) के जोधसिंह ने कुशाल सिंह को शरण दी।
- 29 जनवरी, 1858 को कर्नल होम्स ने आउवा पर नियंत्रण लिया, सुगाली माता की मूर्ति अजमेर ले गए (वर्तमान: बांगड़ संग्रहालय, पाली)।
- सुगाली माता: 1857 की क्रांति की देवी।
- विजय स्तंभ: पाली में दो स्तंभ।
- कुशाल सिंह ने अगस्त 1860 में नीमच में आत्मसमर्पण किया, टेलर आयोग (नवंबर 1860) ने रिहा किया।
- कुशाल सिंह की मृत्यु 1864 में उदयपुर में।
- विशेष: मारवाड़ का प्रमुख केंद्र, गिरवर दान ने इसे “भारत की आजादी का संघर्ष” कहा।
- अन्य विद्रोही: शिवनाथ सिंह आसोप, जगत सिंह तुलगिरी, पेम सिंह बांता, विशन सिंह गूलर, अजीत सिंह आलणियावास, चांद सिंह बसवाना।
कोटा में विद्रोह
- तिथि: 15 अक्टूबर, 1857।
- नेतृत्व: लाला जयदयाल और मेहराब खाँ।
- घटनाएँ:
- नारायण और भवानी पलटन ने समर्थन किया।
- पोलिटिकल एजेंट कैप्टन बर्टन, उनके पुत्र फ्रेंक और आर्थर, डॉ. सेडलर, और कांटम मारे गए। बर्टन का सिर कोटा में घुमाया गया।
- महाराव रामसिंह द्वितीय को कोटा दुर्ग में नजरबंद किया, करौली के राजा मदनपाल ने रिहा करवाया (मदनपाल अंग्रेज समर्थक)।
- मथुराधीश मंदिर के महंत कन्हैयालाल गोस्वामी ने सुलह का प्रयास किया।
- 22 मार्च, 1858 को जनरल रॉबर्टस ने कोटा को विद्रोहियों से मुक्त कराया।
- विशेष: राजस्थान की सबसे सुनियोजित और सुनियंत्रित क्रांति।
अलवर में विद्रोह
- नेतृत्व: दीवान फैजुल्ला खाँ (क्रांतिकारी समर्थक)।
- घटनाएँ:
- महाराजा विनय सिंह ने अंग्रेजों के लिए आगरा में सेना भेजी।
- गुर्जर जनता ने क्रांतिकारियों का साथ दिया।
- तिथि: 11 जुलाई, 1857।
धौलपुर में विद्रोह
- शासक: भगवंत सिंह (अंग्रेज समर्थक)।
- तिथि: 27 अक्टूबर, 1857।
- नेतृत्व: देवा गुर्जर (गुर्जर समुदाय), राव रामचंद्र, हीरालाल (ग्वालियर और इंदौर के विद्रोही)।
- घटनाएँ:
- बाहरी क्रांतिकारियों ने स्थानीय सैनिकों की मदद से राज्य पर कब्जा किया।
- दिसंबर, 1857 में पटियाला की सेना ने विद्रोह दबाया।
- विशेष: राजस्थान की एकमात्र रियासत जहाँ बाहरी क्रांतिकारियों ने विद्रोह किया।
टोंक में विद्रोह
- स्थान: एकमात्र मुस्लिम रियासत, नवाब वजीरूद्दौला (अंग्रेज समर्थक)।
- तिथि: 14 जून, 1857।
- नेतृत्व: मीर आलम खान (नवाब का मामा), नासिर मोहम्मद।
- घटनाएँ:
- 1858 में नासिर मोहम्मद ने तांत्या टोपे को सहयोग दिया।
- निम्बाहेड़ा में ताराचंद पटेल ने कर्नल जेक्सन का सामना किया, मृत्युदंड।
- मोहम्मद मुजीब के नाटक आजमाइस के अनुसार टोंक की महिलाओं ने भी हिस्सा लिया।
अजमेर में विद्रोह
- तिथि: 9 अगस्त, 1857।
- घटना: केन्द्रीय कारागार में कैदियों का विद्रोह, 50 कैदी भागे।
- अधिकारी: कमीश्नर डिक्सन।
भरतपुर में विद्रोह
- तिथि: 31 मई, 1857।
- नेतृत्व: गुर्जर और मेव समुदाय।
- घटनाएँ:
- पोलिटिकल एजेंट मॉरिसन के शासन में सेना विद्रोह दबाने भेजी गई।
- मेव और गुर्जर जनता ने क्रांतिकारियों का साथ दिया, अंग्रेजों को भरतपुर छोड़ना पड़ा।
बीकानेर
- शासक: सरदार सिंह (अंग्रेज समर्थक)।
- घटना: 5000 सैनिकों के साथ पंजाब में विद्रोह दबाने में सहायता, राजस्थान का एकमात्र राजा जिसने ऐसा किया।
- पुरस्कार: टिब्बी परगना के 41 गाँव।
जयपुर
- शासक: महाराजा रामसिंह द्वितीय।
- घटना: पोलिटिकल एजेंट ईडन के कहने पर विद्रोहियों सादुल्ला खाँ, विलायत खाँ, उस्मान खाँ के खिलाफ कार्रवाई।
- पुरस्कार: सितार-ए-हिंद उपाधि, कोटपूतली परगना।
अंग्रेज समर्थक रियासतें
- डूंगरपुर, जैसलमेर, सिरोही, बूँदाी ने अंग्रेजों का साथ दिया।
क्रांति की तिथियाँ
तिथि | स्थान |
---|---|
28 मई, 1857 | नसीराबाद |
31 मई, 1857 | भरतपुर |
3 जून, 1857 | नीमच |
10 जून, 1857 | देवली |
14 जून, 1857 | टोंक |
11 जुलाई, 1857 | अलवर |
9 अगस्त, 1857 | अजमेर (कारागार) |
21 अगस्त, 1857 | एरिनपुरा |
23 अगस्त, 1857 | जोधपुर लीजियन |
8 सितंबर, 1857 | बिथौड़ा युद्ध |
18 सितंबर, 1857 | चेलावास युद्ध |
27 अक्टूबर, 1857 | धौलपुर |
15 अक्टूबर, 1857 | कोटा |
प्रमुख व्यक्तित्व
1. अमरचंद बांठिया
- मूल: बीकानेर, ग्वालियर में व्यापारी।
- उपाधि: “ग्वालियर का नगर सेठ”, “कोषाध्यक्ष”।
- योगदान: रानी लक्ष्मी बाई की आर्थिक सहायता।
- परिणाम: 22 जून, 1858 को ग्वालियर के सर्राफा बाजार में फाँसी।
- विशेष: “राजस्थान का प्रथम शहीद”, “मंगल पांडे”, “1857 का भामाशाह”।
2. डूंगरजी और जवाहरजी
- मूल: सीकर के बठोट-पटोदा।
- योगदान: 1875 में नसीराबाद छावनी लूटी, छापामार युद्ध।
- परिणाम: डूंगरजी को आगरा दुर्ग में बंदी, जवाहरजी को बीकानेर ने संरक्षण दिया।
- विशेष: शेखावटी रेजीमेंट (मुख्यालय: झुंझुनू)।
3. मेहराब खान
- पद: कोटा स्टेट आर्मी में रिसालदार।
- योगदान: अक्टूबर 1857 में लाला जयदयाल के साथ कोटा एजेंसी हाउस पर आक्रमण, शासन पर कब्जा।
- परिणाम: 1859 में मृत्युदंड।
4. रावत जोधसिंह (कोठारिया)
- पद: मेवाड़ के कोठारिया ठिकाने के रावत।
- योगदान: कुशाल सिंह चम्पावत, तांत्या टोपे, और नाना साहब की सहायता।
- विशेष: अगस्त 1858 में तांत्या टोपे का समर्थन।
5. लाला जयदयाल भटनागर
- पद: कोटा महाराव के वकील।
- योगदान: 1858 में जनता की विप्लवकारी टुकड़ियों का नेतृत्व, कोटा क्रांति का मुख्य संगठनकर्ता।
- परिणाम: 17 सितंबर, 1860 को कोटा एजेंसी हाउस में फाँसी।
6. तांत्या टोपे
- राजस्थान में योगदान:
- 1858 में दो बार राजस्थान आए: माण्डलगढ़ (भीलवाड़ा) और बांसवाड़ा।
- कुआड़ा युद्ध (9 अगस्त, 1858, कोठारी नदी, भीलवाड़ा): जनरल रॉबर्टस से पराजय।
- बांसवाड़ा: महारावल लक्ष्मण सिंह को हराया, लेकिन लिन माउथ और मेजर रॉक ने पराजित किया।
- झालावाड़: राजा पृथ्वी सिंह से 5 लाख रुपये वसूले।
- शरण: मेवाड़ में केसरी सिंह सलूम्बर और जोध सिंह कोठारिया ने दी।
- सीकर: जनवरी 1859 में मान सिंह के विश्वासघात के कारण 7 अप्रैल, 1859 को नरवर के जंगलों में गिरफ्तार।
- परिणाम: 18 अप्रैल, 1859 को शिवपुरी में फाँसी।
- विशेष:
- जैसलमेर को छोड़कर सभी रियासतों में गए।
- कैप्टन शॉवर्स: “तांत्या टोपे को फाँसी देना ब्रिटिश सरकार का अपराध।”
- सीकर सामंत को शरण देने के लिए फाँसी।
7. रामसिंह हाड़ा
- पद: बूँदी के महाराजा।
- योगदान: अप्रत्यक्ष रूप से तांत्या टोपे की सहायता।
- साहित्यकार: सूर्यमल्ल मिश्रण, हाथी पर बैठकर क्रांतिकारियों का उत्साहवर्धन।
निष्कर्ष
1857 की क्रांति में राजस्थान ने सैनिक छावनियों (नसीराबाद, नीमच, एरिनपुरा, कोटा) और रियासतों (आउवा, धौलपुर, टोंक, अलवर, भरतपुर) में सक्रिय भागीदारी दिखाई। कुशाल सिंह चम्पावत, लाला जयदयाल, तांत्या टोपे, और अमरचंद बांठिया जैसे व्यक्तियों ने क्रांति को दिशा दी। हालाँकि कुछ रियासतों (बीकानेर, जयपुर, डूंगरपुर, जैसलमेर, सिरोही, बूँदी) ने अंग्रेजों का साथ दिया, लेकिन जनता का उत्साह और विद्रोहियों की वीरता ने राजस्थान को स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण केंद्र बनाया। क्या आप किसी विशेष रियासत या व्यक्तित्व के बारे में और जानना चाहेंगे?