सिख धर्म, जिसकी स्थापना गुरु नानक देव जी ने 15वीं सदी में की, भारतीय उपमहाद्वीप में एक प्रमुख एकेश्वरवादी धर्म है। यह धर्म समानता, भक्ति, और सामाजिक न्याय पर आधारित है, जिसने अपनी स्थापना से लेकर आज तक विश्व भर में लाखों लोगों को प्रेरित किया है। यहाँ सिख धर्म का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत है, जिसमें दस गुरुओं की शिक्षाएँ, प्रमुख प्रथाएँ, आदिग्रंथ, खालसा पंथ, और स्वर्ण मंदिर का इतिहास शामिल है। 🌟
Table of Contents
सिख धर्म की स्थापना और गुरु परंपरा 🙏
गुरु नानक देव (1469–1538 ई.) 🌍
- जन्म: 1469 ई., तलवंडी (वर्तमान ननकाना साहब, पाकिस्तान)।
- ईश्वरीय ज्ञान: 1499 ई., सुल्तानपुर के निकट बई नदी के किनारे।
- स्थापना: सिख धर्म के प्रवर्तक, सिकंदर लोदी के काल में।
- शिक्षाएँ:
- “कोई हिन्दू और कोई मुसलमान नहीं” – सभी मनुष्य समान।
- ईश्वर को अकाल पुरुष (अनंत और अनादि) कहा।
- प्रथाएँ: लंगर प्रथा शुरू, सामुदायिक भोजन की समानता।
- रचनाएँ: कविताएँ और गीत आदिग्रंथ में संकलित (गुरुवाणी)।
- मृत्यु: 1538 ई., करतारपुर (पंजाब)।
- स्मृति: हुजूर साहब गुरुद्वारा (ननकाना साहब)।
गुरु अंगद (1538–1552 ई.) 📜
- योगदान:
- गुरुमुखी लिपि का आविष्कार।
- लंगर प्रथा को स्थायी रूप प्रदान किया।
गुरु अमरदास (1552–1574 ई.) ⚖️
- प्रशासन: धार्मिक साम्राज्य को 22 मज्जियों (प्रशासनिक इकाइयों) में बाँटा।
- प्रथाएँ: लवन पद्धति शुरू (विवाह संस्कार)।
- संगठन: सिख सम्प्रदाय को संगठित किया।
गुरु रामदास (1574–1581 ई.) 🏛️
- जन्म: 1534 ई., लाहौर।
- योगदान:
- अकबर द्वारा दी गई 500 बीघा भूमि पर अमृतसर (रामदासपुर/चकगुरु) की स्थापना।
- पवित्र तालाब (अमृत सरोवर) का निर्माण शुरू।
- अनुयायी: रामदासी।
गुरु अर्जुन देव (1581–1606 ई.) 📖
- जन्म: 15 अप्रैल, 1563, गोइंदवाल।
- योगदान:
- आदिग्रंथ का संकलन (गुरुवाणी), जिसमें गुरु नानक और अन्य गुरुओं की रचनाएँ।
- मसंद प्रथा: आय का दसवाँ हिस्सा (दशमांश) गुरु को देना।
- नगर: तरनतारन, करतारपुर, गोविंदपुर।
- स्वर्ण मंदिर (हरमंदिर साहब) की आधारशिला (1588 ई., हजरत मियां मीर द्वारा)।
- मृत्यु: जहाँगीर के साथ मतभेद (खुसरो को आशीर्वाद), फाँसी (1606 ई.)।
- स्मृति: गुरुद्वारा शीशगंज (दिल्ली)।
गुरु हरगोविंद (1606–1645 ई.) ⚔️
- उपाधि: सच्चा बादशाह।
- सैन्यकरण:
- सिखों को सैनिक सम्प्रदाय में संगठित।
- अकाल तख्त (12 फीट ऊँचा सिंहासन) की स्थापना।
- दो तलवारें: मीरी (राजसत्ता), पीरी (धार्मिक सत्ता)।
- अमृतसर की किलेबंदी, भेंट में शस्त्र और घोड़े।
- युद्ध: जहाँगीर द्वारा ग्वालियर किले में बंदी।
- निर्माण: कीरतपुर नगर (कश्मीर)।
- मृत्यु: 1645 ई., कीरतपुर।
गुरु हरराय (1645–1661 ई.) 🛡️
- संबंध:
- दाराशिकोह को सैनिक सहायता और आशीर्वाद (सामूगढ़ युद्ध में पराजय के बाद)।
- औरंगजेब का कट्टर शत्रु।
गुरु हरकिशन (1661–1664 ई.) 🙏
- उपनाम: बाला पीर।
- मृत्यु: चेचक से, 1664 ई.।
गुरु तेग बहादुर (1664–1675 ई.) 🕉️
- जन्म: 1 अप्रैल, 1621, अमृतसर।
- उपनाम: बाकला दे बाबा।
- योगदान:
- जफरनामा: फारसी में औरंगजेब को पत्र (विजय की चिट्ठी)।
- मृत्यु: इस्लाम न स्वीकारने पर औरंगजेब द्वारा मृत्युदंड (11 नवंबर, 1675)।
- स्मृति: गुरुद्वारा शीशगंज (दिल्ली)।
गुरु गोविंद सिंह (1675–1708 ई.) 🌟
- जन्म: 1666 ई., पटना (बिहार), सिखों के अंतिम (दसवें) गुरु।
- कार्यालय: मक्खोवाल (आनंदपुर साहब)।
- पुत्र: अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फतेह सिंह।
- खालसा पंथ:
- 1699 ई., वैशाखी के दिन आनंदपुर में स्थापना।
- पंच प्यारे को दीक्षा, पाहुल प्रथा शुरू।
- सिख पुरुष: सिंह, महिलाएँ: कौर।
- पंच ककार: केश, कंघा, कच्छा, कड़ा, कृपाण।
- युद्ध:
- आनंदपुर का प्रथम युद्ध (1701 ई.): मुगलों के खिलाफ।
- आनंदपुर का दूसरा युद्ध (1703–04 ई.): जोरावर सिंह और फतेह सिंह को दीवार में जिंदा चुनवाया गया।
- चकमौर युद्ध (1705 ई.): अजीत सिंह और जुझार सिंह मारे गए।
- खिदराना युद्ध (1705 ई.): गुरु गोविंद सिंह विजयी, आदिग्रंथ लुप्त।
- रचनाएँ:
- विचित्र नाटक: आत्मकथा।
- आदिग्रंथ का पुनःसंकलन (मणि सिंह द्वारा), दसम पादशाह का ग्रंथ।
- प्रसिद्ध कथन:
- “मैं चारों वर्गों के व्यक्तियों को सिंह बना दूँगा और मुगलों को बर्बाद कर दूँगा।”
- “जब-जब होत अरिस्ट अपार। तब-तब देह धरत अवतारा।”
- “सवा लाख से एक लडाऊँ, चिड़ियों सों मैं बाज तड़के, तो गोविंद सिंह नाम कहाऊँ।”
- “वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह।”
- “जहाँ पाँच सिख इकट्ठे होंगे, वहीं मैं निवास करुँगा।”
- शिष्य: बंदा बहादुर।
- मृत्यु: 1708 ई., नांदेड़ (महाराष्ट्र)।
आदिग्रंथ (गुरु ग्रंथ साहिब) 📖
- विशेषता: सिख धर्म का पवित्र ग्रंथ, सिखों का जीवंत गुरु।
- संकलन:
- गुरु अर्जुन देव द्वारा 1604 ई. में प्रथम संकलन (गुरुवाणी)।
- गुरु गोविंद सिंह ने गुरु तेग बहादुर, कबीर, और बाबा फरीद की रचनाएँ जोड़ीं।
- 1705 ई. में पुनःसंकलन (मणि सिंह), दसम पादशाह का ग्रंथ।
- प्रकाशन: 16 अगस्त, 1604, हरमंदिर साहब (अमृतसर)।
- संरचना: कविताएँ, भजन, और उपदेश, मुख्यतः गुरुमुखी लिपि में।
स्वर्ण मंदिर (हरमंदिर साहब) 🏛️
- स्थान: अमृतसर, पंजाब।
- नाम: हरमंदिर साहब, दरबार साहब।
- स्थापना:
- आधारशिला: दिसंबर 1588, हजरत मियां मीर (लाहौर के सूफी संत) द्वारा।
- निर्माण: गुरु अर्जुन देव द्वारा पर्यवेक्षण।
- तालाब (अमृत सरोवर): गुरु अमरदास की योजना।
- महत्व: सिखों का सबसे पवित्र तीर्थ स्थल, समानता और भक्ति का प्रतीक।
प्रमुख प्रथाएँ और सिद्धांत 🙏
- लंगर प्रथा: गुरु नानक द्वारा शुरू, सभी के लिए मुफ्त भोजन, समानता का प्रतीक।
- खालसा पंथ: गुरु गोविंद सिंह द्वारा 1699 ई. में स्थापना, धर्म और समाज की रक्षा।
- पाहुल प्रथा: दीक्षा समारोह, खालसा बनने की प्रक्रिया।
- पंच ककार: सिख पहचान के पाँच प्रतीक (केश, कंघा, कच्छा, कड़ा, कृपाण)।
- समानता: कोई जाति, धर्म, या लिंग भेद नहीं।
- अकाल पुरुष: एक ईश्वर में विश्वास, अनंत और अनादि।
सिख धर्म का सैन्यकरण ⚔️
- गुरु हरगोविंद द्वारा सिखों को सैनिक सम्प्रदाय में संगठित।
- अकाल तख्त: सिखों का सर्वोच्च धार्मिक और राजनैतिक केंद्र।
- गुरु गोविंद सिंह द्वारा खालसा पंथ के माध्यम से सिखों को वीरता और आत्मरक्षा का संदेश।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व 🌟
- साहित्य:
- आदिग्रंथ (गुरु ग्रंथ साहिब): भक्ति और नैतिकता का संदेश।
- जफरनामा और विचित्र नाटक: सिख इतिहास और दर्शन का दस्तावेज।
- स्थापत्य:
- स्वर्ण मंदिर: विश्व प्रसिद्ध, सिख स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण।
- अकाल तख्त: सिखों की सैन्य और राजनैतिक शक्ति का प्रतीक।
- संघर्ष:
- मुगलों के खिलाफ युद्ध (आनंदपुर, चकमौर, खिदराना)।
- औरंगजेब के अत्याचारों का विरोध (गुरु तेग बहादुर, गुरु गोविंद सिंह)।
निष्कर्ष 🙏
सिख धर्म एक समावेशी और प्रगतिशील धर्म है, जो गुरु नानक की शिक्षाओं से शुरू होकर गुरु गोविंद सिंह के खालसा पंथ तक विकसित हुआ। इसने समानता, भक्ति, और वीरता को बढ़ावा दिया। आदिग्रंथ (गुरु ग्रंथ साहिब) सिखों का जीवंत गुरु है, और स्वर्ण मंदिर उनकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहचान का केंद्र है। सिख गुरुओं ने सामाजिक सुधार, सैन्य संगठन, और साहित्यिक योगदान के माध्यम से भारतीय इतिहास में अमिट छाप छोड़ी। “वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह” – यह नारा सिखों की एकता और शक्ति का प्रतीक है। 🌟

