राजस्थान के प्रतीक चिन्ह

By LM GYAN

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राजस्थान के प्रतीक

इस लेख के माध्यम से हम राजस्थान के प्रतीक चिन्हों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करेंगे।

राजस्थान के प्रतीक चिन्ह

राज्य वृक्ष  :- खेजड़ी

  • राज्य वृक्ष का दर्जा :- 31 अक्टूबर, 1983 
  • वैज्ञानिक नाम :- प्रोसेपिस सिनरेरिया 
  • विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून, 1988 को 60 पैसे का डाक टिकट खेजड़ी वृक्ष पर जारी किया गया था।
  • यह रेगिस्तान का गौरव, थार का कल्प वृक्ष, राजस्थान का कल्प वृक्ष आदि नामों से जाना जाता है।
  • वैज्ञानिकों ने बताया कि खेजड़ी के वृक्ष की आयु पांच हजार वर्ष है। राज्य में सर्वाधिक प्राचीन खेजड़ी के दो वृक्ष मांगलियावास गावं (अजमेर) में हैं। मांगलियावास गांव में हरियाली अमावस्या (श्रावण) पर वृक्ष मेला लगता है।
  • सेलेस्ट्रेना और ग्लाइकोट्रमा नामक कीड़े खेजड़ी के वृक्ष को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
  • 1991 में ऑपरेशन खेजडा की शुरुआत हुई। 
  • हरियाणवी और पंजाबी भाषा में इसे जांटी कहते हैं। तमिल में इसका नाम पेयमेय है। कनड़ भाषा में इसका नाम बन्नी है। सिंधी में इसे छोकड़ा कहते हैं। बंगाली में इसे शाईगाछ कहते हैं। विश्नोई समाज इसे शमी कहता है। स्थानीय भाषा में इसे सीमलो कहा जाता है। 
  • विजया दशमी / दशहरे (आश्विन शुक्ल पक्ष 10) पर इसके वृक्ष की पूजा की जाती है। इसके वृक्ष के नीचे झुंझार बाबा और गोगाजी मंदिर हैं। 
  • इसकी हरी फलियां सांगरी कहलाती हैं, मीझर नामक पुष्प है। 
  • इसकी सूखी फलियों को खोखा कहा जाता है। पत्तियों से बना चारा लूंग या लूंम कहलाता है।
  • 1730 में जोधपुर के खेजडली ग्राम या गुढा विश्नोई गावं में भाद्प्रद शुक्ल दशमी को अमृता देवी विश्नोई ने इसके लिए पहली बार बलिदान दिया, जिसमें 69 महिलाएं और 294 पुरुष थे।
  • भाद्प्रद शुक्ल दशमी पर विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला खेजडली गावं में होता है। 12 सितंबर, खेजडली दिवस मनाया जाता है।
  • 12 सितंबर 1978 को पहला खेजडली दिवस था |
  • 1994 में, वनस्पति संरक्षण का सर्वोच्च पुरस्कार, “अमृता देवी वनस्पति पुरस्कार” शुरू हुआ। गंगाराम विश्नोई (जोधपुर) ने प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया |

राज्य पक्षी  :- गोडावण 

  • 21 मई, 1981 को गोडावण को राज्य पक्षी का दर्जा मिला |
  • वैज्ञानिक नाम :- “क्रायोटिस नाइग्रीसेप्स” 
  • अंग्रेजी में गोडावण को ग्रेट इण्डियन बस्टर्ड कहा जाता है। स्थानीय लोग गोडावण को सोहन चिड़ी या शर्मीला पक्षी कहते हैं।
  • राजस्थान में सबसे अधिक गोडावण तीन क्षेत्रों में पाया जाता है: सोरसन (बारा) जैसलमेर, बाड़मेर
  • यह सारंग, हुकना, तुकदर, बड़ा तिलोर और गुधनमेर भी कहलाता है।
  • हाडौती क्षेत्र में गोडावण को मालमोरडी कहा जाता है।
  • जोधपुर जन्तुआलय इसके प्रजनन के लिए प्रसिद्ध है, प्रजनन अक्टूबर और नवंबर में होता है।
  • 2011 में IUCN की रेड डाटा लिस्ट में इसे संकटग्रस्त (संकटग्रस्त) प्रजाति घोषित किया गया था।
  • गोडावण को बचाने के लिए राज्य सरकार ने 5 जून 2013 को विश्व पर्यावरण दिवस पर जैसलमेर के राष्ट्रीय मरू उद्यान में प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड शुरू किया। भारत में यह परियोजना शुरू करने वाला पहला राज्य राजस्थान है |

राज्य पुष्प  :- रोहिड़ा

  • 31 अक्टूबर 1983 को रोहिड़े को राज्य पुष्प का दर्जा दिया गया।
  • वैज्ञानिक नाम :- टिकोमेला अंडूलता (Tecomella Undulata)
  • राजस्थान का सागवान और मरुशोभा 
  • पश्चिमी क्षेत्र में अधिक रोहिड़ा देखने को मिलता है। मार्च और अप्रेल में इसके पुष्प खिलते हैं |
  • रोहिड़े के पुष्प गहरे केसरिया हिरमीच पीले रंग के होते हैं।
  • जोधपुर में रोहिड़े के पुष्प का नाम मारवाड़ टीक है।


राज्य पशु  :- चिंकारा (वन्य जीव श्रेणी)

  • 22 मई 1981 को चिंकारे को राज्य पशु का दर्जा मिला | 
  • वैज्ञानिक नाम :- गजेला–गजेला
  • छोटा हरिण भी चिंकारे का उपनाम है।
  • राज्य में जोधपुर में सबसे अधिक चिंकारे देखे जा सकते हैं।
  • नाहरगढ़ अभयारण्य (जयपुर) इसके लिए प्रसिद्ध है |
  • हल्के भूरे रंग का एक सुंदर जानवर चिंकारा है |
  • हिरण हर साल अपने सींग गिरा देता है, लेकिन चिंकारा के सींग आजीवन रहते हैं।
  • श्रीगंगानगर जिले का शुभंकर चिंकारा है।


राज्य पशु  :- ऊँट (पशुधन श्रेणी)

  • बीकानेर में कैबिनेट बैठक में 30 जून 2014 को ऊँट को राजकीय पशु घोषित किया गया था।
  • 19 सितंबर 2014 को ऊँट को राज्य पशु का दर्जा दिया गया।
  • वैज्ञानिक नाम :- केमेलस ड्रोमेडेरियस
  • स्थानीय लोग ऊँट को रेगिस्तान का जहाज या मरुस्थल का जहाज कहते हैं। ऊँटो की संख्या में राजस्थान भारत में सर्वोच्च है |
  • सर्वाधिक ऊँटो वाला जिला :- जैसलमेर
  • सबसे कम ऊँटो वाला जिला :- प्रतापगढ़
  • ऊँट अनुसंधान केंद्र जोहड़बीड (बीकानेर) में है | बीकानेर में कैमल मिल्क डेयरी है।
  • जैसलमेर का नाचना ऊंट सुंदरता की दृष्टि से बहुत प्रसिद्ध है। नाचना ऊंट का प्रयोग जैसेलमेर में सेना के जवानों द्वारा प्रयोग किया जाता है। 
  • गोमट: फलौदी जोधपुर में ऊँट सवारी के लिए जाना जाता है। बीकानेरी ऊँट बोझा ढोने के लिए जाना जाता है | ऊँट की सबसे भारी नस्ल है बीकानेरी ऊँट। राज्य के लगभग 50% लोग इसी नस्ल के हैं |
  • पाबूजी को ऊँटो देवता के रूप में पूजा जाता है। ऊँटो को राजस्थान में लाने का श्रेय पाबूजी को जाता है। ऊँट बीमार होने पर रात भर पाबूजी की फड़ पढ़ी जाती है
  • ऊंटों के पालन के लिए राइका या रेबारी जाति को जाना जाता है।
  • ऊँटो के गले पर लगने वाले आभूषण को गोरबंद कहते हैं। 
  • ऊँटो में सर्रा रोग या तिवर्षा होता है।
  • ऊँट के बच्चों को टोरडी या टोडिया कहा जाता है।

राज्य खेल :- बास्केटबॉल

  • 1948 में बास्केटबॉल को राज्य खेल का दर्जा दिया गया
  • बास्केटबॉल अकादमी –  जैसलमेर 
  • महिला बास्केटबॉल अकादमी – जयपुर
  • बास्केटबॉल में 5 खिलाडी होते है। 


राज्य नृत्य :- घूमर 

  • घूमर को राज्य की आत्मा के उपनाम से जाना जाता है |
  • घूमर नृत्य की उत्पत्ति मूलत: मध्य एशिया भरग नृत्य से हुई है |
  • घूमर नृत्य मांगलिक अवसरों, तीज, त्यौहारो पर आयोजित होता है |
  • घूमर के तीन रूप है –
    • (i) झूमरिया – बालिकाओ द्वारा किया जाने वाला नृत्य
    • (ii) लूर – गरासिया जनजाति की स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला नृत्य
    • (iii) घूमर – इसमें सभी स्त्रियाँ भाग लेती है


राज्य गीत :- केसरिया बालम

  • इसे अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने का श्रेय बीकानेर की अल्ला जिल्ला बाई को है |
  • उदयपुर की मांगी बाई ने इस गीत को पहली बार गाया था।
  • उस्ताद अली बख्श खान अल्ला जिल्ला बाई के गुरु है।
  • मांड गायिकी शैली में यह गीत गाया जाता है |
  • गायिकाओं के नाम: बीकानेर की स्व. हाजन अल्ला जिल्ला बाई, बीकानेर की स्व. गवरी बाई, उदयपुर की मांगी बाई, पाली की गवरी देवी।


LM GYAN

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