उत्तर का विशाल मैदानी भाग (The Great Plains of Northern India)

By: LM GYAN

On: 20 March 2025

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उत्तर का विशाल मैदानी भाग (The Great Plains of Northern India)

उत्तर का विशाल मैदानी भाग

विस्तार और भौगोलिक विशेषताएँ

  • लम्बाई: लगभग 2400 कि.मी.
  • चौड़ाई: औसतन 100-500 कि.मी.
  • उच्चावच: अधिकतम 250 मी.
  • क्षेत्रफल: 7.5 लाख वर्ग किमी.

निर्माण और नामकरण

  • यह मैदानी भाग सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के अपवाह तंत्र द्वारा लाए गए अवसादों से निर्मित है।
  • इसे सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र का मैदान भी कहा जाता है।

जलवायु और प्राकृतिक विभाजन

  • पूर्वी भाग: आर्द्र प्रदेश
  • पश्चिमी भाग: शुष्क रेगिस्तान
  • थार का मरुस्थल: यह मैदान का पश्चिमी शुष्क प्रदेश है, जो जलवायुविक परिवर्तन के कारण निर्मित हुआ है।
  • बालू के टीलों की अधिकता: यहाँ बालू के टीलों की अधिकता पाई जाती है।

भूगर्भिक संरचना के अनुसार विभाजन

भूगर्भिक संरचना के अनुसार उत्तर के विशाल मैदानी भाग को पाँच भागों में बाँटा जा सकता है:

  • भाबर
  • तराई
  • बांगर
  • खादर
  • डेल्टा

1. भाबर

  • स्थिति और विस्तार:
  • शिवालिक के पर्वतपदीय क्षेत्र में तीस्ता नदी तक 8 से 16 किलोमीटर चौड़ी पट्टी में फैला हुआ है।
  • यह सिंधु से तीस्ता नदी तक लगभग अविछिन्न रूप में फैला है।
  • निर्माण और विशेषताएँ:
  • पर्वतीय कक्ष से निकलकर मैदानी कक्ष में प्रवेश करते ही नदियाँ भारी चट्टान चूर्ण (गिरिपद क्षेत्र) में जमा कर देती हैं।
  • इसे शिवालिक का जलोढ़ पंख भी कहा जाता है।
  • यहाँ कंकड़, पत्थर, रेत की अधिकता के कारण अत्यधिक पारगम्यता मिलती है।
  • छोटी-छोटी नदियाँ यहाँ विलुप्त हो जाती हैं या अंतः प्रवाही हो जाती हैं।
  • वनस्पति और कृषि:
  • कृषि की दृष्टि से अनुपयोगी क्षेत्र।
  • लम्बी जड़ों वाले वृक्ष पाए जाते हैं।

2. तराई

  • स्थिति और विस्तार:
  • भाबर के दक्षिण में स्थित है।
  • पश्चिम में 15 किलोमीटर से पूर्व में लगभग 30 किलोमीटर चौड़ाई में फैला हुआ है।
  • निर्माण और विशेषताएँ:
  • भाबर प्रदेश का भूमिगत जल प्रवाह यहाँ फिर से धरातल पर प्रकट हो जाता है।
  • अनियमित जल प्रवाह के कारण दलदली क्षेत्र पाए जाते हैं।
  • पश्चिमी भाग में वर्षा की कमी के कारण तराई का अभाव है।
  • वनस्पति और जैव विविधता:
  • सघन वन, लम्बी घासें (जैसे कांस, हाथी घास) और वन्य जीव पाए जाते हैं।
  • तराई प्रदेश अत्यधिक जैव विविधता का केंद्र है।
  • कृषि:
  • उत्तर प्रदेश में जल प्रवाह को नियंत्रित करके फसलों और जूट की कृषि की जाती है।

3. बांगर

  • स्थिति और विशेषताएँ:
  • उच्च मैदानी भागों में पाए जाते हैं, जहाँ बाढ़ का पानी नहीं पहुँचता।
  • पुराने जलोढ़ों से निर्मित हैं।
  • रेत और कंकड़ की अधिकता होती है।
  • औसतन 30 मीटर की ऊँचाई रखते हैं।
  • उप-विभाजन:
  • असमतल और कंकड़ युक्त क्षेत्र को भूड़ कहा जाता है।
  • बांगर और खादर के ढाँचे युक्त क्षेत्र को खोल कहते हैं।
  • शुष्क क्षेत्रों में लवणीय उत्फुलन को रेह कहा जाता है।
  • कृषि:
  • खादर की तुलना में कम उपजाऊ होते हैं।
  • उत्तर प्रदेश के उत्तर-पश्चिमी भाग और उत्तराखंड में अधिक पाए जाते हैं।

4. खादर

  • स्थिति और विशेषताएँ:
  • निम्न मैदानी भाग हैं, जहाँ नदियाँ प्रत्येक वर्ष नवीन जलोढ़कों का जमाव करती हैं।
  • नई तलछट और काँप मिट्टी से बने हुए हैं।
  • बाढ़ का पानी प्रति वर्ष पहुँचकर मिट्टी की नई परत जमाता रहता है।
  • कृषि और उर्वरता:
  • बांगर की तुलना में अधिक उपजाऊ होते हैं।
  • पश्चिमी बंगाल, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड में अधिक विस्तार पाया जाता है।
  • निर्माण काल:
  • खादर मिट्टियाँ होलोसीन काल की उत्पत्ति हैं।

5. डेल्टा

  • स्थिति और निर्माण:
  • नदियाँ समुद्र में गिरते समय कई धाराओं में बँट जाती हैं, जिससे डेल्टा का निर्माण होता है।
  • विशेषताएँ:
  • उच्च भूमि को चार और दलदली क्षेत्र को बिल कहते हैं।
  • यह क्षेत्र अत्यधिक उपजाऊ होता है और कृषि के लिए उपयुक्त है।
  • प्रमुख डेल्टा:
  • गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा (सुंदरवन) विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा है।

क्षेत्रीय आधार पर विभाजन

क्षेत्रीय आधार पर उत्तर के विशाल मैदान को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है:

  1. सिंधु-सतलुज का मैदान
  2. गंगा नदी तंत्र का मैदान
  3. ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र का मैदान

1. सिंधु-सतलुज का मैदान

  • मिट्टी:
  • बांगर मिट्टियों की प्रधानता है, क्योंकि यहाँ बाढ़ की घटनाएँ नहीं होती और नवीन जलोढ़ों की आपूर्ति नहीं हो पाती।
  • दोआब क्षेत्र:
  • यह मैदान अनेक दोआब (दो नदियों के बीच का क्षेत्र) में विभाजित है:
    • सिंधु सागर दोआब: सिंधु और झेलम नदियों के बीच स्थित है।
    • चाज दोआब: झेलम और चिनाब नदियों के बीच स्थित है।
    • रचना दोआब: चिनाब और रावी नदियों के बीच स्थित है।
    • बारी दोआब: रावी और व्यास नदियों के बीच स्थित है।
    • बिस्त दोआब: व्यास और सतलुज नदियों के बीच स्थित है।
  • ऐतिहासिक महत्व:
  • दक्षिण में राजस्थान क्षेत्र में कभी सरस्वती नदी प्रवाहित होती थी।
  • सतलुज और सरस्वती के बीच भी दोआब क्षेत्र थे, लेकिन सरस्वती के विलुप्त होने के बाद यह दिखाई नहीं पड़ता।
  • घग्घर-हकरा पाट इस दोआब के अवशेष के रूप में बचे हैं।
  • पश्चिमी शुष्क प्रदेश:
  • पश्चिमी शुष्क प्रदेशों को भी सिंधु नदी तंत्र से जोड़कर देखा जाता है।

2. गंगा नदी तंत्र का मैदान

  • विभाजन:
  • यह मैदान कई भागों में विभक्त है:
    • ट्रान्स गंगा मैदान: गंगा-यमुना दोआब क्षेत्र, जिसमें बांगर मिट्टियों की प्रधानता है।
    • ऊपरी गंगा मैदान: बांगर मिट्टियों की प्रधानता है।
    • मध्य गंगा मैदान: बांगर के साथ खादर मिट्टियाँ भी मिलती हैं।
  • नदियों का योगदान:
  • प्रायद्वीपीय भारत से आने वाली चम्बल, सोन जैसी नदियाँ गंगा नदी तंत्र के मैदान के निर्माण में सहायक हैं।
  • सीमा:
  • सिंधु-सतलुज मैदानों से गंगा नदी तंत्र के मैदान अम्बाला के आस-पास के भूमि द्वारा अलग होते हैं।

3. ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र का मैदान

  • स्थिति:
  • मुख्यतः असम और बांग्लादेश में फैला हुआ है।
  • निर्माण:
  • असम के रैम्प घाटी क्षेत्र में अवसादों के जमाव से इस मैदानी भाग का निर्माण हुआ।
  • बांग्लादेश में गंगा नदी तंत्र से मिलकर गंगा-ब्रह्मपुत्र का डेल्टा बनाती है।
  • मिट्टी:
  • खादर मिट्टियों की प्रधानता है।

उत्तर के विशाल मैदान का महत्त्व

  1. उपजाऊ मिट्टी:
  • यह मैदान काँप मिट्टी से बना है, जो अत्यंत उपजाऊ है।
  • प्रति वर्ष बाढ़ द्वारा मिट्टी की नई परत बिछ जाने से उर्वरता का प्राकृतिक नवीनीकरण होता रहता है।
  1. नदियों का जाल:
  • नदियों के पानी का उपयोग सिंचाई, जल परिवहन, जल-विद्युत उत्पादन और उद्योगों में किया जाता है।
  1. सिंचाई सुविधाएँ:
  • समतल मैदान होने के कारण नहरों के निर्माण और कुओं की खुदाई पर अधिक व्यय नहीं होता।
  1. कृषि उत्पादन:
  • पूर्वी भाग में गन्ना, चाय, चावल और पश्चिमी भाग में गेहूँ, कपास का प्रमुख उत्पादन होता है।
  1. जनसंख्या और आवागमन:
  • यहाँ देश की लगभग 45% जनसंख्या निवास करती है।
  • समतल होने के कारण आवागमन के साधनों का सघन जाल है।
  1. शहरीकरण और औद्योगिक विकास:
  • भारत के अधिकांश बड़े नगर, व्यापारिक और औद्योगिक केंद्र इसी मैदान में स्थित हैं।
  • विभिन्न सुविधाओं के कारण औद्योगिक प्रगति को प्रोत्साहन मिला है।
  1. पर्यटन और दर्शनीय स्थल:
  • यहाँ कई दर्शनीय स्थल हैं, जो पर्यटन को बढ़ावा देते हैं।
  1. आर्थिक महत्त्व:
  • उत्तर का विशाल मैदान व्यापक आर्थिक महत्त्व रखता है और देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

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