राजस्थान, जो भारत के शुष्क प्रदेशों में गिना जाता है, में नदियों और जल राशियों का विशेष महत्व है, हालाँकि यहाँ पूरे वर्ष प्रवाहित होने वाली राजस्थान की नदियाँ कम हैं। राजस्थान की अपवाह प्रणाली इसकी भूगर्भिक संरचना, अरावली पर्वत शृंखला, और जलवायु द्वारा नियंत्रित होती है। यहाँ की एक प्रमुख विशेषता आंतरिक जल प्रवाह प्रणाली है, जिसमें नदियाँ कुछ दूरी तक बहने के बाद रेत या भूमि में समाहित हो जाती हैं। नीचे राजस्थान की अपवाह प्रणाली, नदियों के वर्गीकरण, और जल संसाधनों का विस्तृत विवरण दिया गया है।
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राजस्थान की नदियाँ और जल संसाधन
- जल की उपलब्धता: राजस्थान में देश के कुल सतही जल का केवल 1.16% उपलब्ध है।
- जल संसाधन का प्रतिशत:
- भारत का कुल जल: 0.99%।
- सतही जल: 1.16%।
- भूमिगत जल: 1.70%।
- नदी बेसिन: कुल 15 बेसिन और 58 उप-बेसिन।
- अरावली का महत्व: इसे ‘राजस्थान की जल विभाजक रेखा’ कहा जाता है, जो अपवाह तंत्र को बंगाल की खाड़ी (पूर्व) और अरब सागर (पश्चिम) की नदियों में विभाजित करती है।
- अपवाह तंत्र की विशेषता: आंतरिक जल प्रवाह प्रणाली, जिसमें नदियाँ रेत या भूमि में विलीन हो जाती हैं।
अपवाह प्रणाली का वर्गीकरण
प्रवाह के आधार पर राजस्थान की नदियों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है:
- बंगाल की खाड़ी की ओर जाने वाली राजस्थान की नदियाँ (24%):
- ये नदियाँ अरावली के पूर्व में बहती हैं और यमुना-गंगा नदी तंत्र में मिलती हैं।
- प्रमुख नदियाँ:
- चंबल: सबसे बड़ी नदी, मध्य प्रदेश से उत्पत्ति, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, करौली, धौलपुर से होकर बहती है, यमुना में मिलती है।
- बाणगंगा: भरतपुर जिले में उत्पन्न, यमुना में मिलती है।
- कालीसिंध: मध्य प्रदेश से, कोटा और बाराँ में बहती है, चंबल में मिलती है।
- पार्वती: मध्य प्रदेश से, कोटा में चंबल में मिलती है।
- कुंठी: सवाई माधोपुर में चंबल में मिलती है।
- मेज: कोटा में चंबल में मिलती है।
- खारी: सवाई माधोपुर में चंबल में मिलती है।
- विशेषता: ये नदियाँ अपेक्षाकृत अधिक जल ले जाती हैं और सिंचाई में उपयोगी हैं।
- अरब सागर की ओर जाने वाली राजस्थान की नदियाँ (16%):
- ये नदियाँ अरावली के पश्चिम में बहती हैं और अरब सागर में पहुँचती हैं।
- प्रमुख नदियाँ:
- लूनी: अजमेर के पास अरावली से उत्पन्न, पाली, जालौर, बाड़मेर से होकर बहती है, रण ऑफ कच्छ में समाहित।
- साबरमती: उदयपुर जिले में उत्पन्न, गुजरात में अरब सागर में मिलती है।
- माही: मध्य प्रदेश से, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर से होकर गुजरात में अरब सागर में मिलती है।
- वेस्ट बाणास: उदयपुर से उत्पन्न, साबरमती में मिलती है।
- जाखम: उदयपुर से उत्पन्न, माही में मिलती है।
- सोम: उदयपुर से उत्पन्न, माही में मिलती है।
- विशेषता: ये नदियाँ सीमित प्रवाह वाली हैं और शुष्क क्षेत्रों में महत्वपूर्ण हैं।
- आंतरिक जल प्रवाह की राजस्थान की नदियाँ (60%):
- ये नदियाँ अरावली के दोनों ओर बहती हैं लेकिन अंततः रेगिस्तान या भूमि में विलीन हो जाती हैं।
- प्रमुख नदियाँ:
- घग्घर: हिमाचल से उत्पन्न, हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर में विलीन।
- कांधली: नागौर, जोधपुर में विलीन।
- मोरेल: टोंक, सवाई माधोपुर में विलीन।
- बनास: अजमेर से उत्पन्न, टोंक, सवाई माधोपुर, भीलवाड़ा से होकर धुंध विलासागर में समाहित।
- खारी: उदयपुर, राजसमंद में विलीन।
- देढवाली: नागौर में विलीन।
- सहोदरा: टोंक में विलीन।
- कागर: उदयपुर में विलीन।
- विशेषता: ये नदियाँ मुख्य रूप से वर्षा पर निर्भर हैं और शुष्क मौसम में सूख जाती हैं।
अन्य महत्वपूर्ण नदियाँ और बेसिन
- चंबल बेसिन: कोटा, बूंदी, बाराँ, सवाई माधोपुर (चंबल और सहायक नदियाँ)।
- बनास बेसिन: अजमेर, टोंक, भीलवाड़ा, उदयपुर (बनास और सहायक नदियाँ)।
- माही बेसिन: डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर (माही और सहायक नदियाँ)।
- लूनी बेसिन: अजमेर, पाली, जालौर, बाड़मेर (लूनी और सहायक नदियाँ)।
- घग्घर बेसिन: हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर (घग्घर)।
नदियों की विशेषताएँ
- प्रवाह: अधिकांश नदियाँ मौसमी (मानसून पर निर्भर) हैं, पूरे वर्ष प्रवाहित होने वाली नदियाँ (चंबल, लूनी) सीमित हैं।
- जल संग्रहण: बाँध और जलाशय (जैसे राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर) सिंचाई और जल संरक्षण के लिए उपयोगी।
- अपरदन: चंबल क्षेत्र में बीहड़ (अवनालिका अपरदन)।
- जल उपयोग: सिंचाई (चंबल परियोजना), पेयजल, औद्योगिक उपयोग।
निष्कर्ष
राजस्थान की अपवाह प्रणाली अरावली द्वारा नियंत्रित है, जो इसे बंगाल की खाड़ी (24%) और अरब सागर (16%) की नदियों में विभाजित करती है, जबकि 60% आंतरिक जल प्रवाह वाली नदियाँ हैं। चंबल, लूनी, माही, और बनास प्रमुख नदियाँ हैं, जो जल संसाधन और कृषि में महत्वपूर्ण हैं। 1.16% सतही जल के साथ, नदियाँ शुष्क जलवायु में जीवन रेखा का काम करती हैं।