अरब सागरीय नदी तंत्र की नदियाँ वे हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपना जल अरब सागर में ले जाती हैं। यह राजस्थान का सबसे छोटा अपवाह तंत्र है, जो कुल अपवाह का लगभग 17% हिस्सा बनाता है। नीचे अरब सागरीय नदी तंत्र से संबंधित प्रमुख नदियों, उनके उद्गम, अपवाह क्षेत्र, और विशेषताओं का विस्तृत विवरण दिया गया है।
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अरब सागरीय नदी तंत्र का अवलोकन
- प्रतिशत: राजस्थान के कुल अपवाह तंत्र का 17%।
- विशेषता: अरावली पर्वत के पश्चिम में बहने वाली नदियाँ, जो अंततः अरब सागर या इसके सहायक जलाशयों में मिलती हैं।
- प्रमुख नदियाँ: माही, लूनी, साबरमती, पश्चिमी बनास।
प्रमुख नदियाँ और विशेषताएँ
- माही नदी:
- उद्गम: मेंहद झील (अमरेरू पहाड़ी, विंध्याचल, मध्य प्रदेश)।
- उपनाम: आदिवासियों की गंगा, कांठल की गंगा, वागड़ की गंगा, दक्षिणी राजस्थान की गंगा।
- कुल लंबाई: 576 किमी।
- राजस्थान में लंबाई: 171 किमी।
- अपवाह क्षेत्र: छप्पन का मैदान, कांठल का मैदान (डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़)।
- सहायक नदियाँ: चाप, मोरेन, सोम, जाखम, अन्नास, अराव/ऐराव, हरण, नोरी।
- विशेषताएँ:
- खांदू (बांसवाड़ा) से राजस्थान में प्रवेश, खंभात की खाड़ी (गुजरात) में मिलती है।
- प्राचीन काल में पुष्प प्रदेश (महुआ क्षेत्र)।
- त्रिवेणी संगम: बेणेश्वर (डूंगरपुर) में माही, सोम, जाखम मिलते हैं, जहाँ माघ पूर्णिमा को ‘आदिवासियों का कुंभ’ मेला होता है (भील जनजाति प्रमुख)।
- कर्क रेखा को काटने वाली विश्व की एकमात्र नदी।
- अंग्रेजी के उल्टे ‘U’ का निर्माण।
- दक्षिण से पश्चिम की ओर बहने वाली एकमात्र नदी।
- परियोजनाएँ:
- माही बजाज सागर (बांसवाड़ा), कागदी पिकअप (बांसवाड़ा), कड़ाना (गुजरात), सोम-कागदर (उदयपुर), सोम-कमला-अम्बा (डूंगरपुर), जाखम (प्रतापगढ़), भीखा भाई सागवाड़ (डूंगरपुर)।
- नोट: ‘सुजलाम-सुफलाम’ परियोजना माही की सफाई के लिए (सुजलम परियोजना BARC द्वारा बाड़मेर में संचालित)।
- मृदा: लाल चिकनी/लोमी मिट्टी, मक्का के लिए उपयुक्त।
- बांसवाड़ा: 100 द्वीपों का शहर।
- लूनी नदी:
- अन्य नाम: अंत: सलीला, लवणवती, सागरमती, आधी मीठी-आधी खारी।
- प्रारंभिक नाम: सागरमती।
- उद्गम: नाग पहाड़, पुष्कर (अजमेर)।
- कुल लंबाई: 495 किमी।
- राजस्थान में लंबाई: 350 किमी।
- अपवाह क्षेत्र: अजमेर, ब्यावर, पाली, नागौर, बाड़मेर, जालौर, जोधपुर ग्रामीण।
- सहायक नदियाँ: गुहिया, लीलड़ी, मीठड़ी, सागी, जवाई, जोजड़ी, खारी, बांडी, सुकड़ी।
- विशेषताएँ:
- कच्छ के रण (गुजरात) में विलुप्त।
- बालोतर तक मीठा पानी, बाद में लवणीय।
- पश्चिमी राजस्थान की प्रमुख और सबसे प्रदूषित नदी (रंगाई-छपाई उद्योग)।
- अपवाह तंत्र में 10.40% योगदान।
- जालौर में ‘रेल/नाडा’ क्षेत्र।
- परियोजनाएँ:
- जसवंत सागर (जोधपुर ग्रामीण), हेमावास (पाली), बांकली (जालौर), जवाई (पाली, सुमेरपुर)।
- मृदा: बांगर (काप मृदा), गौडवाड बेसिन में भूरी कछारी मिट्टी।
- महत्वपूर्ण स्थान: मल्लीनाथ पशुमेला (तिलवाड़ा, बालोतरा)।
- साबरमती नदी:
- उद्गम: अरावली की पहाड़ियाँ (झाड़ोल, उदयपुर)।
- संगम: खंभात की खाड़ी (गुजरात)।
- कुल लंबाई: 416 किमी।
- राजस्थान में लंबाई: 45 किमी।
- अपवाह क्षेत्र: उदयपुर, सिरोही।
- सहायक नदियाँ: मानसी, वाकल, माजम, वेतरक, सेई, हथमति, मेश्वा।
- विशेषताएँ:
- अपवाह क्षेत्र मुख्य रूप से गुजरात में (अहमदाबाद, साबरमती आश्रम, गांधीनगर)।
- राजस्थान की सबसे लंबी जल सुरंग (11.5 किमी, मानसी वाकल)।
- जल सुरंगें: मानसी वाकल, सेई।
- परियोजनाएँ:
- देवास परियोजना, मोहनलाल सुखाड़िया परियोजना (उदयपुर से पाली), जवाई बाँध को जलापूर्ति।
- नोट: मानसी वाकल परियोजना (70% उदयपुर शहर, 30% हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड)।
- पश्चिमी बनास नदी:
- उद्गम: नया सनवारा (सिरोही, अरावली)।
- संगम: लिटिल कच्छ (गुजरात)।
- कुल लंबाई: 226 किमी।
- अपवाह क्षेत्र: सिरोही।
- सहायक नदियाँ: कूकड़ी, सुकली/सीपू।
- विशेषताएँ:
- सिरोही से गुजरात के बनास कांठा जिले में प्रवेश, कच्छ की खाड़ी में विलुप्त।
- आबू शहर (सिरोही) और डीसा शहर (गुजरात) इसके किनारे।
सहायक नदियों की जानकारी
- जाखम नदी:
- उद्गम: भंवरमाता पहाड़ियाँ (जाखमिया गाँव, प्रतापगढ़)।
- सहायक नदियाँ: सरमई, करमई।
- विशेषता: बेणेश्वर में त्रिवेणी संगम, जाखम बाँध (81 मीटर, सबसे ऊँचा)।
- अपवाह क्षेत्र: प्रतापगढ़, डूंगरपुर।
- सोम नदी:
- उद्गम: बीछामेड़ा पहाड़ियाँ (ऋषभदेव, उदयपुर)।
- सहायक नदियाँ: गोमती, टीडी, झूमरी।
- परियोजनाएँ: सोम-कागदर (उदयपुर), सोम-कमला-अम्बा (डूंगरपुर)。
- अनास नदी:
- उद्गम: आबोर ग्राम पहाड़ियाँ (मध्य प्रदेश)।
- विशेषता: माही में अंतिम सहायक, गलियाकोट में मिलती है (दाउदी बोहरा उर्स)。
निष्कर्ष
राजस्थान का अरब सागरीय नदी तंत्र (17%) अरावली के पश्चिम में फैला है, जिसमें माही, लूनी, साबरमती, और पश्चिमी बनास प्रमुख हैं। ये नदियाँ शुष्क क्षेत्रों में जल आपूर्ति और सिंचाई में महत्वपूर्ण हैं। माही कर्क रेखा को काटती है, लूनी प्रदूषण की समस्या से जूझती है, और साबरमती जल सुरंगों के लिए प्रसिद्ध है।