मौर्योत्तर काल (185 ई.पू. – 300 ई.) भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण संक्रमणकाल था, जिसमें मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद विभिन्न स्वदेशी और विदेशी राजवंशों का उदय हुआ। इस काल में शुंग, कण्व, सातवाहन, चेदि, इक्वाकु, वाकाटक, और विदेशी (यवन, शक, पार्थियन, कुषाण) राजवंशों ने भारत के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, और धार्मिक परिदृश्य को आकार दिया। यहाँ मौर्योत्तर काल का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत है, जिसमें साक्ष्य, राजवंश, शासक, प्रशासन, अर्थव्यवस्था, और सामाजिक-धार्मिक स्थिति का गहन विश्लेषण शामिल है। 🌍
Table of Contents
साक्ष्य 📜
मौर्योत्तर काल के इतिहास को समझने के लिए निम्नलिखित साक्ष्य उपलब्ध हैं:
पुरातात्विक साक्ष्य 🏺
- अभिलेख:
- रूद्रदामन का गिरनार/जूनागढ़ अभिलेख: संस्कृत में सबसे बड़ा अभिलेख, रूद्रदामन की सातकर्णी पर विजय, सुदर्शन झील का इतिहास।
- अयोध्या अभिलेख: पुष्यमित्र शुंग की यवनों पर विजय, 2 अश्वमेध यज्ञ।
- हाथीगुम्फा अभिलेख: खारवेल की उपलब्धियाँ, मगध, यवन, सातकर्णी, और पाण्ड्य पर विजय।
- नासिक प्रसस्ति: गौतमीपुत्र सातकर्णी की शक, पल्लव, यवन पर विजय।
- अमरावती अभिलेख: सातवाहन वंश का प्रथम अभिलेख।
- नानाघाट अभिलेख: सातकर्णी प्रथम के 2 अश्वमेध यज्ञ।
- बेसनगर अभिलेख: यूनानी राजदूत हेलियोडोरस द्वारा, भागवत धर्म और वासुदेव (विष्णु) को समर्पित।
- कन्हेरी अभिलेख: सातवाहन शासकों से संबंधित।
सिक्के 💰
- सिक्कों पर शासकों और राजवंशों के नाम अंकित करने की प्रथा शुरू।
- इण्डो-ग्रीक: सर्वप्रथम सोने के सिक्के।
- सातवाहन: सीसे के सिक्के चलाए।
- कुषाण: सबसे शुद्ध सोने और ताँबे के सिक्के।
साहित्यिक साक्ष्य 📖
- स्वदेशी:
- गार्गी संहिता: ज्योतिष शास्त्र, यवन आक्रमण।
- मालविकाग्निमित्रम (कालिदास): अग्निमित्र की विदर्भ विजय, वसुमित्र की यवनों पर विजय।
- दिव्यावदान: बौद्ध ग्रंथ, पुष्यमित्र को बौद्धों का शत्रु बताया।
- महाभाष्य (पतंजलि): यवन आक्रमण, पुष्यमित्र के राजपुरोहित।
- विदेशी:
- पेरीप्लस ऑफ द इरिथ्रियन सी: भारत-रोम व्यापार।
- प्लिनी (नेचुरल हिस्टोरिका, 77 ई.): भारत-रोम व्यापार, भारत का 5500 करोड़ सिस्टर्स का निर्यात।
- टॉलमी, स्ट्रेबो: भौगोलिक और व्यापारिक जानकारी।
प्रमुख मौर्योत्तर राजवंश 👑
शुंग वंश (185–73 ई.पू.) 🛡️
- संस्थापक: पुष्यमित्र शुंग (ब्राह्मण), अंतिम मौर्य सम्राट वृहद्रथ की हत्या।
- राजधानी: अयोध्या।
- उपलब्धियाँ:
- यवनों पर विजय (अयोध्या अभिलेख)।
- 2 अश्वमेध यज्ञ।
- भरहुत स्तूप निर्माण, साँची स्तूप की लकड़ी की वेदिका को पत्थर में बदला। 🏛️
- उत्तराधिकारी:
- अग्निमित्र: कालिदास के मालविकाग्निमित्रम का नायक, विदर्भ विजय।
- वसुमित्र: यवनों को हराया।
- भागभद्र: हेलियोडोरस का दौरा, गरुण स्तंभ (विदिशा)।
- देवभूति: अंतिम शासक, वसुदेव द्वारा हत्या। 😔
कण्व वंश (73–28 ई.पू.) 👑
- संस्थापक: वसुदेव, देवभूति की हत्या।
- शासक: वासुदेव, भूमिमित्र, नारायण, सुशर्मा/सुशर्मन (अंतिम, सिमुक द्वारा हत्या)।
- अवधि: केवल 4 शासक, छोटा शासन।
सातवाहन वंश (28 ई.पू.–250 ई.) 🌟
- संस्थापक: सिमुक, सुशर्मा की हत्या।
- राजधानी: प्रतिष्ठान (उत्तरी महाराष्ट्र), बाद में अमरावती।
- प्रमुख शासक:
- कृष्ण: नासिक तक विस्तार, नासिक गुफाएँ। 🏛️
- सातकर्णी प्रथम:
- अनूप (नर्मदा घाटी), विदर्भ पर कब्जा।
- दक्षिणाधिपति उपाधि, 2 अश्वमेध यज्ञ (नानाघाट अभिलेख, रानी नागानिका)।
- ब्राह्मणों और बौद्धों को भूमिदान (प्रथम अभिलेखीय साक्ष्य)। 🌾
- हाल: सेनापति विजयानन्द ने श्रीलंका पर विजय।
- गौतमीपुत्र सातकर्णी:
- महानतम शासक, नासिक प्रसस्ति (माँ गौतमी बलश्री द्वारा)।
- शक (नहपान), पल्लव, यवन पर विजय, गुजरात, सौराष्ट्र, मालवा पर कब्जा।
- उपाधियाँ: खतियदपमानमदनस (क्षत्रियों का मर्दन, परशुराम समकक्ष), त्रिसमुद्रतोयपितवाहन, राजाराज, वेंकटस्वामी, विन्ध्य नरेश।
- वशिष्ठीपुत्र पुलमावी:
- शक रूद्रदामन से दो बार पराजित, दक्षिणापथेश्वर।
- समुद्र व्यापार और नौसैनिक शक्ति में विकास। ⚓
- यज्ञश्री सातकर्णी:
- अंतिम शासक, सिक्कों पर नाव के चित्र। 🚤
- विशेषताएँ:
- सर्वप्रथम सीसे के सिक्के।
- पुरुष: वैदिक धर्म, महिलाएँ: बौद्ध धर्म।
- मातृसत्तात्मक समाज, शिक्षित महिलाएँ, कोई पर्दा प्रथा, अंतर्जातीय विवाह। 🙏
चेदि वंश (कालिंग, महामेघवाहन) 🏰
- उदय: सातवाहनों के समकालीन।
- प्रमुख शासक: खारवेल
- हाथीगुम्फा अभिलेख (उदयगिरी, भुवनेश्वर): प्रथम प्रशस्ति अभिलेख।
- मगध (बृहस्पतिमित्र), यवन, सातकर्णी, चोल, चेर, पाण्ड्य पर विजय।
- जैन तीर्थकर शीतलनाथ की मूर्ति को कालिंग वापस लाया।
- भुवनेश्वर मंदिर निर्माण, नहरों का प्रथम अभिलेखीय साक्ष्य। 🏛️
इक्वाकु वंश (आंध्रप्रदेश) 🌾
- संस्थापक: शान्तमूल, सातवाहनों के सामंत।
- उत्तराधिकारी: वीरपुरुषदत्त, नागार्जुन कोण्डा स्तूप निर्माण।
- विशेषता: बौद्ध मत के पोषक, तीसरी शताब्दी में पल्लवों के अधीन। 🏛️
वाकाटक वंश (विदर्भ) 🏰
- संस्थापक: विन्ध्यशक्ति (पुराणों के अनुसार, ब्राह्मण)।
- राजधानी: पुरिका (बरार), बाद में प्रवरपुर।
- शाखाएँ:
- विन्ध्यशक्ति शाखा:
- प्रवरसेन प्रथम: 4 अश्वमेध यज्ञ, महाराज उपाधि, बुंदेलखंड से हैदराबाद तक विस्तार।
- पृथ्वीसेन प्रथम: रूद्रसेन II का विवाह चन्द्रगुप्त II की पुत्री प्रभावती गुप्त से।
- प्रवरसेन II/दामोदर सेन: सेतुबंध काव्य, राजधानी प्रवरपुर।
- पृथ्वीसेन II: अंतिम शासक।
- बेसिम शाखा: संस्थापक सर्वसेन, हरिषेण अंतिम शासक।
- विन्ध्यशक्ति शाखा:
- विशेषता: सातवाहनों और चालुक्यों के बीच दक्कन का प्रमुख वंश।
विदेशी आक्रमण ⚔️
हिन्द-यवन/इण्डो-ग्रीक 👑
- कारण:
- सेल्यूकस साम्राज्य की कमजोरी।
- शकों का बढ़ता प्रभाव।
- डियोडोट्स II का बैक्ट्रिया को स्वतंत्र करना।
- शाखाएँ:
- डेमेट्रियस वंश:
- डेमेट्रियस प्रथम: प्रथम यवन आक्रमणकारी, राजधानी साकल (श्यालकोट)।
- मिनांडर (मिलिन्द): गंगा-यमुना दोआब पर आक्रमण, बौद्ध धर्म अपनाया (मिलिन्दपन्हो, नागसेन के साथ वार्तालाप)।
- यूक्रेटाइड्स वंश:
- यूक्रेटाइड्स: तक्षशिला राजधानी।
- एण्टियाल कीड्स: हेलियोडोरस को भागभद्र के दरबार में भेजा।
- डेमेट्रियस वंश:
- योगदान:
- सोने के सिक्के, सांचों से सिक्का निर्माण।
- सिक्कों पर नाम, चित्र, तिथि।
- काल गणना, सप्ताह का 7 दिन, 12 राशियाँ, ज्योतिष।
- यवनिका (नाटकों में पर्दा), गांधार शैली। 🎨
शक आक्रमण 🌍
- शाखाएँ:
- पंजाब: राजधानी तक्षशिला, एजेलिसेज के सिक्कों पर लक्ष्मी।
- मथुरा: प्रथम शासक राजुल, विक्रमादित्य द्वारा भगाए गए शक।
- महाराष्ट्र: नहपान, गौतमीपुत्र सातकर्णी से पराजित।
- मालवा: रूद्रदामन (जूनागढ़ अभिलेख), रूद्रसिंह III (चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा पराजित, विक्रम संवत शुरू)।
पार्थियन (पहलव) 👑
- संस्थापक: मिथ्रोडेट्स I (ईरान से), भारत में माओ/माउस।
- विशेषता: सीमित प्रभाव।
कुषाण वंश 🌟
- संस्थापक: कुजुल फडफिसस, वास्तविक संस्थापक विम फडफिसस (तक्षशिला, पंजाब)।
- सिक्के: यूनानी और खरोष्ठी लिपि, शिव, नंदी, त्रिशूल की आकृतियाँ।
- कनिष्क:
- सबसे प्रसिद्ध, शक संवत (78 ई.) शुरू।
- राजधानी: पुरुषपुर (पेशावर)।
- चौथी बौद्ध संगीति (कुण्डलवन, कश्मीर), बौद्ध धर्म का हीनयान-महायान विभाजन।
- मथुरा और गांधार कला का विकास। 🎨
- सिल्क रूट (चीन-रोम) पर नियंत्रण। 🌐
- दरबारी विद्वान: पार्श्व, वसुमित्र, अश्वघोष, नागार्जुन, चरक। 📖
- उत्तराधिकारी: वासिष्क, हुविष्क, वासुदेव (अंतिम)।
प्रशासन ⚖️
- शासक उपाधियाँ:
- शक: त्रातार (मुक्तिदाता), कुषाण: देवपुत्र, महाराजाधिराज।
- राजत्व का दैवीय सिद्धांत।
- विकेन्द्रीकरण: मौर्य काल का केन्द्रीकरण कम हुआ, प्रांतों में द्वैध शासन।
अर्थव्यवस्था 💰
- स्वर्णकाल: मौर्योत्तर काल में शिल्प, वाणिज्य, और व्यापार में अभूतपूर्व वृद्धि।
- कारण:
- नए वर्गों (नगरीय-ग्रामीण) का उदय।
- रोम, चीन, दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापार।
- रेशम मार्ग की खोज।
- शिल्पियों का विभेदीकरण।
- उद्योग:
- वस्त्र: मथुरा (साल्क कपड़ा)।
- लोहा-इस्पात: करीमनगर, नालकोण्डा (आंध्रप्रदेश)।
- मसाले: काली मिर्च (यवनप्रिय)।
- बंदरगाह: सोपारा, भडौच, देवल, नागपत्तनम, मुजिरिस, मुसलीपट्टनम। ⚓
- सिक्के:
- सोना: निष्क, दीनार, सुवर्ण, पल, कर्षापण।
- चाँदी: शतमान, कर्षापण।
- ताँबा: काकणी, कर्षापण।
- सीसा: सातवाहन।
सामाजिक स्थिति 🙏
- जनजातियाँ और विदेशी आत्मसातीकरण: मौर्योत्तर काल में वर्णशंकरों की संख्या में वृद्धि।
- शूद्र: सामाजिक स्थिति में सुधार।
- महिलाएँ:
- पुरुषों के अधीन, विधवा विवाह पर प्रतिबंध, बाल विवाह को प्रोत्साहन।
- क्षेत्रज: नियोग प्रथा से संतान।
- जारज: अनैतिक संबंधों से संतान।
- सातवाहन काल: शिक्षित, संपत्ति में भागीदार, मातृसत्तात्मक समाज।
धार्मिक स्थिति 🕉️
- बौद्ध और जैन धर्म: प्रभाव कम हुआ।
- बौद्ध धर्म:
- मौर्योत्तर काल में राजकीय संरक्षण नहीं।
- शुंग, कण्व के विरोध के कारण आडम्बरपूर्ण, विहार विलासिता के केंद्र।
- हीनयान-महायान विभाजन (कनिष्क)।
- जैन धर्म: खारवेल का संरक्षण।
- बौद्ध धर्म:
- वैष्णव और शैव सम्प्रदाय: मान्यता में वृद्धि।
- भागवत धर्म: बेसनगर अभिलेख (हेलियोडोरस), विष्णु-लक्ष्मी का उल्लेख।
निष्कर्ष 🌟
मौर्योत्तर काल भारत में राजनीतिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण काल था। शुंग और कण्व ने वैदिक धर्म को पुनर्जनन दिया, सातवाहनों ने दक्षिण में शक्ति स्थापित की, और खारवेल ने कालिंग को गौरवान्वित किया। विदेशी आक्रमणों (यवन, शक, पार्थियन, कुषाण) ने भारतीय संस्कृति को प्रभावित किया, विशेष रूप से कुषाणों ने मथुरा और गांधार कला को जन्म दिया। अर्थव्यवस्था में समृद्धि, सिक्कों का विकास, और व्यापारिक संबंधों (रोम, चीन) ने इस काल को स्वर्णकाल बनाया। सामाजिक और धार्मिक परिवर्तनों ने भारतीय समाज को नए आयाम दिए, जो गुप्त काल की नींव बने। 🙏

