राजस्थान की लोक देवियाँ 2025: आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर 🌺

By: LM GYAN

On: 8 September 2025

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राजस्थान की लोक देवियाँ

राजस्थान की लोक देवियाँ 🌟 जैसे जीण माता, करणी माता, कैला देवी, शीतला माता की विस्तृत जानकारी। मंदिर, मेले, चमत्कार, और तालिका के साथ जानें इनकी महिमा!


Table of Contents

परिचय: राजस्थान की लोक देवियों की शक्ति और भक्ति 🙏

अरे भाई, राजस्थान का नाम सुनते ही दिल में एक अलग सी बात उठती है! 🏰 यह धरती ना केवल अपने किलों, रंग-बिरंगे मेलों, और वीरों की कहानियों के लिए जानी जाती है, बल्कि अपनी लोक देवियों के लिए भी पूरी दुनिया में मशहूर है! 🌍 ये देवियाँ सिर्फ़ आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक नहीं हैं, बल्कि राजस्थान के सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का भी एक बड़ा हिस्सा हैं। 🚩 जीण माता की मधुमक्खियों से लेकर करणी माता के चूहों तक, हर देवी की अपनी एक ख़ास कहानी है, जो दिल को छू जाती है। 💫

यहाँ के लोग इन लोक देवियों के प्रति इतनी श्रद्धा रखते हैं कि नवरात्रि में मंदिरों में भीड़ लग जाती है, और लोग इनके चमत्कारों की बातें करते नहीं थकते! 😊 इस लेख में हम राजस्थान की प्रमुख लोक देवियों के बारे में विस्तार से बात करेंगे। हर देवी के जन्म, मंदिर, मेले, चमत्कार, और सांस्कृतिक महत्व की पूरी जानकारी मिलेगी। साथ ही, एक तालिका भी दी जाएगी जिससे सब कुछ एक नज़र में समझ आ जाए। तो चलो, इस आध्यात्मिक यात्रा पर निकलते हैं! 🌟


राजस्थान की लोक देवियाँ: विस्तृत जानकारी 📜

1. जीण माता 🐝

भाई, जीण माता तो राजस्थान की सबसे प्रमुख लोक देवियों में से एक हैं! इन्हें मधुमक्खियों की देवी के नाम से जाना जाता है, और इनका मंदिर एक शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है।

  • जन्म: धांधू गाँव, चूरू
  • मूल नाम: जयंती या जयवंती बाई
  • उपनाम: मधुमक्खियों की देवी, भ्रामरी माता
  • कुलदेवी: चौहानों की
  • मुख्य मंदिर: रैवासा, सीकर
    • निर्माण: चौहान राजा पृथ्वीराज प्रथम के समंत हट्टड़ मोहिल ने करवाया।
  • मेला: चैत्र और आश्विन नवरात्रि
  • विशेषताएँ:
    • इनके भाई हर्षनाथ का मंदिर भी पास में है, जिसका निर्माण गुवक चौहान ने करवाया।
    • एक बार मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने इस मंदिर में छत्र भेंट किया था, जो इनकी महिमा को दर्शाता है।
    • लोकगीत: जीण माता का लोकगीत राजस्थान का सबसे लंबा लोकगीत है! कनफटे जोगी इसे डमरू और सारंगी के साथ करुण रस में गाते हैं, जो सुनने में दिल को छू जाता है। 🎶
    • पूजा: पहले यहाँ ढाई प्याले शराब चढ़ाई जाती थी, लेकिन अब यह प्रतिबंधित है। 🚫
  • चमत्कार: लोग कहते हैं कि जीण माता के दर्शन से मनोकामना पूरी होती है, और मधुमक्खियाँ उनके भक्तों की रक्षा करती हैं। ये देवी अपने भक्तों के लिए हमेशा हाज़िर रहती हैं। 🐝
  • सांस्कृतिक महत्व: जीण माता का मंदिर चौहान वंश के लिए एक पवित्र स्थल है, और इसका लोकगीत राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत का एक अनमोल हिस्सा है। 🌟

2. करणी माता 🐀

अरे, करणी माता का मंदिर तो पूरी दुनिया में टेम्पल ऑफ रैट्स के नाम से मशहूर है! 😮 ये देवी बीकानेर के राठौड़ों की रक्षक हैं और इनके चूहे भक्तों के दिल में विशेष स्थान रखते हैं।

  • जन्म: सुआप गाँव, जोधपुर
  • परिवार:
    • पिता: मेहाजी
    • माता: देवलबाई
    • मूल नाम: रिढ़ु बाई या रिद्धि बाई
  • उपनाम: दाढ़ी वाली डोकरी
  • कुलदेवी: बीकानेर के राठौड़ों की
  • मुख्य मंदिर: देशनोक, बीकानेर
  • मेला: चैत्र और आश्विन नवरात्रि
  • विशेषताएँ:
    • प्रतीक: चील 🦅
    • चारजायें: करणी माता की स्तुतियाँ, जो चारण कवियों ने रचित की हैं। ये स्तुतियाँ भक्तों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं।
    • काबा: सफ़ेद चूहे, जिनके दर्शन को शुभ माना जाता है। लोग कहते हैं कि काबा के दर्शन से मनोकामना पूरी होती है। 🐁
    • सावन-भादो कड़ाई: मंदिर के अंदर ये विशेष रूप से मौजूद हैं, जो इनकी पूजा का एक अनोखा हिस्सा हैं।
    • चमत्कार:
      • 5 वर्ष की उम्र में इन्होंने अपनी बुआ की टेढ़ी अंगुली ठीक की।
      • साँप के काटने से मृत पिता को जीवित किया।
      • मथानिया गाँव को प्लेग, ओले, और आग से बचाया, जब पूरे भारत में ये बीमारी फैली थी। 🌪️
    • प्रभाव:
      • 1419 ई. में देशनोक की स्थापना की।
      • मेहरानगढ़ दुर्ग और बीकानेर राज्य (राव बीका के साथ) की नींव रखी।
    • मंदिर:
      • इस मंदिर का संगमरमर का सिंह द्वार अपनी बारीक़ कारीगरी के लिए प्रसिद्ध है।
      • अलवर के महाराजा बख्तावर सिंह, और बीकानेर के शासक सूरतसिंह, डूंगरसिंह, और गंगासिंह ने इसकी भव्यता बढ़ाने में योगदान दिया। 🏛️
  • सांस्कृतिक महत्व: करणी माता के चूहे ना केवल भक्ति का प्रतीक हैं, बल्कि लोगों के विश्वास को भी दर्शाते हैं कि ये देवी अपने भक्तों की हर मुसीबत में साथ देती हैं। इनका मंदिर बीकानेर की सांस्कृतिक पहचान का एक बड़ा हिस्सा है। 🙏

3. कैला देवी 🌸

कैला देवी के लक्खी मेला में तो भीड़ का कोई ठिकाना नहीं होता! 😊 ये देवी करौली के यादव वंश की रक्षक हैं और इनका मंदिर एक शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है।

  • उपनाम: जोगमाया, अंजनी माता
  • कुलदेवी: करौली के यादव वंश की
  • मुख्य मंदिर: त्रिकूट पर्वत की पहाड़ियों के बीच, कालीसिल नदी के किनारे, करौली
    • ये मंदिर नौ शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
  • मेला: चैत्र शुक्ल अष्टमी (लक्खी मेला)
  • विशेषताएँ:
    • मंदिर के सामने बोहरा भगत की छतरी है, जो भक्तों के लिए एक विशेष स्थल है।
    • लांगुरिया: यहाँ हनुमान जी का मंदिर है, जिसे लोग लांगुरिया के नाम से पुकारते हैं। कैला देवी के भक्त भी लांगुरिया के नाम से जाने जाते हैं, और इसके लिए विशेष लांगुरिया गीत गाए जाते हैं, जो राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं। 🎵
  • चमत्कार: लोग कहते हैं कि कैला देवी के दर्शन से संकट दूर होते हैं, और ये देवी अपने भक्तों के साथ हमेशा रहती हैं। इनकी शक्ति से हर मुसीबत टल जाती है। 🌟
  • सांस्कृतिक महत्व: कैला देवी का लक्खी मेला करौली के सांस्कृतिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और यहाँ के लांगुरिया गीत लोगों के दिलों में बसते हैं। 🙏

4. शीतला माता 🌡️

शीतला माता तो बच्चों और परिवारों की रक्षक हैं, ख़ास कर चेचक से! ये देवी स्वास्थ्य और सुखी जीवन का प्रतीक हैं।

  • उपनाम: महामाई, बस्योड़ा की देवी, चेचक निवारक देवी
  • मुख्य मंदिर: चाकसू, जयपुर
    • निर्माण: माधोसिंह प्रथम ने करवाया।
  • मेला: चैत्र कृष्ण अष्टमी (बैलगाड़ी मेला)
  • विशेषताएँ:
    • पुजारी: कुम्हार
    • वाहन: गधा 🦓
    • बस्योड़ा: चैत्र कृष्ण सप्तमी को घरों में ठंडे पकवान बनाए जाते हैं, और अष्टमी को माता को भोग लगाकर पूजा की जाती है। ये परंपरा बस्योड़ा के नाम से जानी जाती है, जो राजस्थान के घर-घर में मनाई जाती है। 🍲
    • विशेष:
      • बाँझ महिलाओं के लिए संतान प्राप्ति के लिए पूजा होती है।
      • चेचक से बचाव के लिए इनकी पूजा की जाती है।
      • ये एकमात्र देवी हैं जिनकी खंडित मूर्ति की पूजा की जाती है, जो इस मंदिर को और भी विशेष बनाता है। 🕉️
  • चमत्कार: शीतला माता के भक्त मानते हैं कि इनकी पूजा से रोगों से मुक्ति मिलती है, और परिवार का स्वास्थ्य सुरक्षित रहता है। 🌡️
  • सांस्कृतिक महत्व: शीतला माता के मेले में लोग अपने परिवारों के स्वास्थ्य और सुखी जीवन के लिए प्रार्थना करते हैं, और बस्योड़ा की परंपरा राजस्थान की सांस्कृतिक पहचान का एक बड़ा हिस्सा है। 🙏

5. आई माता ✨

अरे, आई माता के बारे में सुना है? ये सीरवी जाति के क्षत्रियों की रक्षक हैं और इनका मंदिर एक चमत्कारी स्थल है!

  • कुलदेवी: सीरवी जाति के क्षत्रियों की
  • जन्म: मालवा
  • परिवार:
    • पिता: बीका दाभी (मालवा के सुल्तान की बुरी नज़र के कारण मालवा छोड़कर मारवाड़, जोधपुर आए)।
  • मुख्य मंदिर: बिलाड़ा, जोधपुर (इसे बढ़ेर कहते हैं)
  • विशेषताएँ:
    • गुरु: रैदास
    • चमत्कार: अपनी तपस्या के बल पर बिलाड़ा में परम ज्योति में विलीन हो गईं, जो इनकी शक्ति का प्रमाण है।
    • पूजा: हर महीने की शुक्ल द्वितीया को विशेष पूजा होती है, जिसमें बड़ी संख्या में भक्त शामिल होते हैं।
    • विशेष: मंदिर में अखंड ज्योत से केसर टपकता है, जो भक्तों के लिए एक चमत्कार है और इनकी शक्ति का प्रतीक है। 🪔
  • सांस्कृतिक महत्व: आई माता के भक्त मानते हैं कि उनकी पूजा से हर संकट दूर होता है, और केसर का टपकना उनकी शक्ति का प्रमाण है। ये मंदिर सीरवी समाज के लिए एक पवित्र स्थल है। 🌟

6. जमुवाय माता 🏰

जमुवाय माता तो जयपुर के कच्छवाहा राजवंश की रक्षक हैं और इनका मंदिर एक पवित्र स्थल है!

  • कुलदेवी: जयपुर के कच्छवाहा राजवंश की
  • मुख्य मंदिर: जमुवारामगढ़, जयपुर
    • निर्माण: कच्छवाहा शासक दूल्हेराय (तेजकरण) ने बनवाया, जब उन्होंने देवी के आशीर्वाद से शत्रुओं पर विजय प्राप्त की।
  • विशेषताएँ:
    • जमुवाय माता का मंदिर कच्छवाहा राजवंश के लिए एक पवित्र स्थल है, और यहाँ के भक्त अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए आते हैं। ये मंदिर राजवंश के इतिहास और वीरता से जुड़ा है। 🏰
  • सांस्कृतिक महत्व: जमुवाय माता का मंदिर जयपुर के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 🙏

7. शिलादेवी 🗡️

शिलादेवी का मंदिर आमेर के किले में है, और ये देवी भी कच्छवाहा राजवंश से जुड़ी हैं!

  • आराध्य देवी: आमेर के कच्छवाहा राजवंश की
  • मुख्य मंदिर: आमेर किला, जयपुर
  • मेला: नवरात्रि में षष्ठी और अष्टमी को
  • विशेषताएँ:
    • प्रतिमा: महाराजा मानसिंह प्रथम ने पूर्वी बंगाल से लाई थी। ये काले संगमरमर की महिषासुरमर्दिनी मूर्ति है, जो पाल शैली में बनी है, लगभग तीन फीट ऊँची, और मुख थोड़ा वक्रपान लिए हुए है।
    • मंदिर: सवाई मानसिंह द्वितीय ने बनवाया, जिसमें चाँदी के कपाट हैं, जिन पर विद्या देवियों और नवदुर्गा का चित्रण है। 🏛️
  • चमत्कार: शिलादेवी के भक्त मानते हैं कि इनकी पूजा से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है, और ये राजवंश की रक्षा करती हैं। 🗡️
  • सांस्कृतिक महत्व: शिलादेवी का मंदिर आमेर के किले का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और यहाँ की पूजा राजवंश के पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ होती है। 🌟

8. तनोट माता 🛡️

तनोट माता को थार की वैष्णो देवी के नाम से जाना जाता है, और ये सैनिकों की रक्षक हैं!

  • उपनाम: थार की वैष्णो देवी, सैनिकों की देवी, रूमाल वाली माता
  • मुख्य मंदिर: तनोट, जैसलमेर (युद्ध देवी के रूप में प्रसिद्ध)
  • विशेषताएँ:
    • इन्हें हिंगलाज माता का रूप माना जाता है।
    • जैसलमेर के भाटी राजवंश ने इस मंदिर का निर्माण करवाया।
    • 1965 के भारत-पाक युद्ध में तनोट माता ने बीएसएफ सैनिकों की अप्रत्यक्ष रूप से मदद की, जो आज भी एक कथा के रूप में सुना जाता है। 🪖
  • चमत्कार: युद्ध के दौरान, तनोट माता के मंदिर पर गिरे बम फटे नहीं, जो भक्तों के लिए एक बड़ा चमत्कार है। 🇮🇳
  • सांस्कृतिक महत्व: बीएसएफ के सैनिक इन्हें अपनी रक्षक देवी मानते हैं, और ये मंदिर युद्ध के समय की कहानियों के लिए भी प्रसिद्ध है। 🙏

9. नारायणी माता 💈

नारायणी माता नाई जाति के लिए ख़ास हैं और इनका मंदिर एक प्राचीन शक्ति स्थल है!

  • कुलदेवी: नाई जाति की
  • मुख्य मंदिर: बारबा डूंगरी, राजगढ़, अलवर (11वीं शताब्दी, प्रतिहार शैली)
  • विशेषताएँ:
    • नाई जाति के लोग यहाँ जात, जड़ूले, सवामणी के लिए आते हैं, जो उनकी पारंपरिक रीति का हिस्सा है।
  • सांस्कृतिक महत्व: नारायणी माता का मंदिर नाई समाज के लिए एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक केंद्र है, और इसकी प्राचीन शैली इसकी विशेषता को बढ़ाती है। 🙏

10. राणी सती 🔥

रानी सती के नाम से झुंझुनूँ का मंदिर दुनिया भर में मशहूर है!

  • मूल नाम: नारायणी बाई
  • उपनाम: दादीजी
  • मुख्य मंदिर: झुंझुनूँ
  • मेला: भाद्रपद अमावस्या
  • विशेषताएँ:
    • इनके पति तनधनदास की हत्या हिसार नवाब के सैनिकों ने की, जिसके बाद रानी सती ने उन सैनिकों को मार दिया और अपने पति के साथ सती हो गईं।
    • अब सती पूजन और इसकी महिमा पर रोक लगी है, जो सामाजिक सुधार का हिस्सा है। 🚫
  • चमत्कार: रानी सती के भक्त मानते हैं कि इनकी पूजा से वीरता और बलिदान की शक्ति मिलती है। 🔥
  • सांस्कृतिक महत्व: रानी सती का मंदिर भक्ति और बलिदान का प्रतीक है, लेकिन सती प्रथा पर रोक के बाद इसकी पूजा के स्वरूप में बदलाव आया है। 🌟

11. नागणेची देवी 🐍

नागणेची देवी राठौड़ों के लिए ख़ास हैं और इनकी मूर्ति अपनी विशेषता के लिए जानी जाती है!

  • कुलदेवी: राठौड़ों की
  • मुख्य मंदिर: नागाणा गाँव, बाड़मेर; नागौर दुर्ग
  • विशेषताएँ:
    • राव धूहड़ ने कन्नौज से चक्रेश्वरी देवी की मूर्ति लाकर नागाणा में स्थापित की।
    • इन्हें नागिन के रूप में दर्शन देने वाली देवी कहा जाता है, और इनकी मूर्ति अठारह भुजावाली है।
    • राव बीका ने बीकानेर के पास इस देवी की मूर्ति स्थापित की।
    • ख्यातों में उल्लेख है कि इस देवी ने राव धूहड़ को नागिनी रूप में दर्शन दिए, इसलिए ये नागणेची के नाम से प्रसिद्ध हुईं। 🐍
  • सांस्कृतिक महत्व: नागणेची देवी की पूजा राठौड़ वंश के लिए एक पवित्र परंपरा है, और ये मंदिर उनके आध्यात्मिक विश्वास का प्रतीक है। 🙏

12. त्रिपुरा सुंदरी माता (तरतई माता) 🛠️

त्रिपुरा सुंदरी या तरतई माता एक सिद्ध तांत्रिक शक्तिपीठ हैं, जो पांचाल समाज के लिए विशेष हैं!

  • कुलदेवी: पांचाल समाज की
  • आराध्य देवी: वसुंधरा राजे सिंधिया
  • मुख्य मंदिर: उमराई गाँव, बाँसवाड़ा (बाँसवाड़ा से 19 किमी दूर)
  • विशेषताएँ:
    • प्रतिमा: काले पत्थर की अष्टादश भुजा वाली भव्य मूर्ति।
    • विशेष: ये देवी सिंहवाहिनी हैं, और इनकी 18 भुजाओं में हर एक में कोई ना कोई आयुध है।
    • नाम: तरतई शब्द त्रितयी का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है “त्रित्व (तीन) से युक्त”।
    • शाक्त ग्रंथ: श्री महात्रिपुरासुंदरी को जगत का बीज और परम शिव का दर्पण कहा गया है।
    • कालिका पुराण: त्रिपुरा को शिव की भार्या के रूप में देखा जाता है।
  • चमत्कार: त्रिपुरा सुंदरी के भक्त मानते हैं कि ये देवी तांत्रिक साधना में सिद्धि प्रदान करती हैं, और इनकी पूजा से मनोकामना पूरी होती है। 🛠️
  • सांस्कृतिक महत्व: ये मंदिर तांत्रिक साधना का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, और पांचाल समाज के लिए विशेष रूप से पवित्र है। 🌟

13. सकराय माता 🌿

सकराय माता खंडेलवाल समाज के लिए ख़ास हैं!

  • कुलदेवी: खंडेलवालों की
  • उपनाम: शाकम्भरी माता
  • मुख्य मंदिर: उदयपुरवाटी, सीकर
  • विशेषताएँ:
    • मंदिर में शाकम्भरी और काली की मूर्तियाँ प्रतिष्ठापित हैं।
    • इतिहास: डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार, इस मंदिर का नाम शंकरदेवी था, जो शक्र शब्द का अपभ्रंश है। यहाँ इंद्र ने तपस्या की थी, इसलिए ये शक्र तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है।
  • सांस्कृतिक महत्व: सकराय माता को दयालु और कृपालु माना जाता है, और ये मंदिर खंडेलवाल समाज के लिए एक पवित्र स्थल है। 🙏

14. आशापुरा देवी 🌳

आशापुरा देवी जालोर के चौहान शासकों की रक्षक हैं!

  • कुलदेवी: जालोर के चौहान शासकों की
  • मुख्य मंदिर:
    • मोदरा गाँव, जालोर
    • नाडोल, पाली
  • मेला: होली के तीसरे दिन
  • विशेषताएँ:
    • मंदिर के प्रांगण में कदम्ब वृक्ष लोगों की श्रद्धा का केंद्र है। 🌳
  • सांस्कृतिक महत्व: आशापुरा देवी के मंदिर चौहान वंश के लिए एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक केंद्र हैं। 🙏

15. सुगाली माता ⚔️

सुगाली माता 1857 की क्रांति के समय की प्रेरणा देवी थीं!

  • कुलदेवी: आउवा के चम्पावत ठाकुरों की
  • मुख्य मंदिर: आउवा, पाली (अब बंगड़ संग्रहालय, पाली)
  • विशेषताएँ:
    • इनकी मूर्ति में 10 सिर और 54 हाथ हैं।
    • 1857 की क्रांति: ये देवी क्रांतिकारियों की प्रेरणा थीं।
    • मूर्ति: क्रांति के बाद ये मूर्ति अजमेर ले जाई गई, और अब पाली के बंगड़ संग्रहालय में स्थापित है।
  • सांस्कृतिक महत्व: सुगाली माता का मंदिर बलिदान और वीरता का प्रतीक है। 🪖

16. सच्चियाय माता 🦁

सच्चियाय माता ओसवालों के लिए ख़ास हैं!

  • कुलदेवी: ओसवालों की
  • मुख्य मंदिर: ओसियां, जोधपुर (8वीं-9वीं शताब्दी, उप्पलदेव परमार द्वारा निर्मित)
  • विशेषताएँ:
    • प्रतिमा: काले पत्थर की महिषासुरमर्दिनी मूर्ति।
    • मंदिर के कोनों में विष्णु, शिव, सूर्य, और गणेश के छोटे मंदिर हैं। 🏛️
  • सांस्कृतिक महत्व: ये मंदिर ओसवाल समाज के लिए एक पवित्र स्थल है, और इसकी प्राचीन शैली इसकी विशेषता को बढ़ाती है। 🙏

17. दधिमति माता 🕉️

दधिमति माता दाधीच ब्राह्मणों की रक्षक हैं!

  • कुलदेवी: दाधीच ब्राह्मणों की
  • मुख्य मंदिर: गोठ, मांगलोद, नागौर
  • मेला: नवरात्रि
  • विशेषताएँ:
    • प्रतिमा: महिषासुरमर्दिनी रूप।
    • मंदिर के प्रांगण में पाए गए शिलालेख के आधार पर दाधीमा ब्राह्मण इस मंदिर को अपने पूर्वजों द्वारा निर्मित मानते हैं।
  • सांस्कृतिक महत्व: दधिमति माता का मंदिर ब्राह्मण समाज के लिए एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक केंद्र है। 🙏

18. भँवाल माता 🍷

भँवाल माता के मंदिर में एक अलग ही शक्ति का अनुभव होता है!

  • मुख्य मंदिर: भुँवाल, मेड़ता, नागौर (12वीं शताब्दी)
  • विशेषताएँ:
    • यहाँ ढाई प्याले शराब चढ़ाई जाती है।
    • महाकाली का एक प्राचीन मंदिर यहाँ मौजूद है।
  • सांस्कृतिक महत्व: भँवाल माता का मंदिर शक्ति आराधना का एक ख़ास केंद्र है। 🕉️

19. आवड़ माता 🕉️

आवड़ माता के मंदिर में सात देवियों की पूजा होती है!

  • उपनाम: टेमड़ताई
  • मुख्य मंदिर: जैसलमेर (एक पहाड़ी पर)
  • विशेषताएँ:
    • ये मंदिर सात चारण देवियों का है, जिन्हें लोग “चारण देवियाँ” कहते हैं।
  • सांस्कृतिक महत्व: आवड़ माता का मंदिर जैसलमेर के सांस्कृतिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 🌟

20. ब्राह्मणी माता 🌸

ब्राह्मणी माता एक विशेष देवी हैं जिनकी पीठ की पूजा होती है!

  • मुख्य मंदिर: सोरसन, बाराँ
  • मेला: माघ शुक्ल सप्तमी
  • विशेषताएँ:
    • ये एकमात्र देवी हैं जिनकी पीठ की पूजा की जाती है।
  • सांस्कृतिक महत्व: ब्राह्मणी माता का मंदिर एक अनोखा आध्यात्मिक अनुभव देता है। 🙏

21. स्वांगिया माता 🗡️

स्वांगिया माता जैसलमेर के भाटियों से जुड़ी हैं!

  • कुलदेवी: जैसलमेर के भाटियों की
  • मुख्य मंदिर: भादरिया, जैसलमेर
  • विशेषताएँ:
    • जैसलमेर के राज चिह्न में इनके हाथ में मुड़ा हुआ भाला दिखाया जाता है।
  • सांस्कृतिक महत्व: स्वांगिया माता का मंदिर भाटी राजवंश के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है। 🪖

22. हर्षद माता 🏛️

हर्षद माता का मंदिर प्राचीन कला का उदाहरण है!

  • मुख्य मंदिर: आभानेरी, दौसा (8वीं-9वीं शताब्दी, गुर्जर-प्रतिहार)
  • विशेषताएँ:
    • ये मूल रूप से एक विष्णु मंदिर था।
    • गुर्जर-प्रतिहार कालीन कला का उत्कृष्ट उदाहरण।
  • सांस्कृतिक महत्व: हर्षद माता का मंदिर प्राचीन सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। 🏛️

23. अम्बिका माता 🖼️

अम्बिका माता का मंदिर मेवाड़ का खजुराहो के नाम से जाना जाता है!

  • मुख्य मंदिर: जगत, उदयपुर (10वीं शताब्दी, राजा अल्लट, महामारु शैली)
  • विशेषताएँ:
    • इस मंदिर की स्थापत्य कला अपनी बारीक़ कारीगरी के लिए प्रसिद्ध है।
  • सांस्कृतिक महत्व: अम्बिका माता का मंदिर मेवाड़ के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 🌟

24. चामुण्डा माता ⚔️

चामुण्डा माता मेहरानगढ़ किले की रक्षक हैं!

  • मुख्य मंदिर: मेहरानगढ़ किला, जोधपुर
    • निर्माण: राव जोधा ने दुर्ग निर्माण के समय करवाया, जिसका जीर्णोद्धार महाराजा तख्तसिंह ने 1857 में किया।
  • विशेषताएँ:
    • 30 सितंबर 2008 को यहाँ भगदड़ के कारण कई लोग मारे गए, जिसकी जाँच के लिए जसराज चोपड़ा कमेटी का गठन किया गया।
  • सांस्कृतिक महत्व: चामुण्डा माता का मंदिर जोधपुर के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 🕉️

25. पथवारी माता 🛤️

पथवारी माता तीर्थयात्रा की सफलता के लिए पूजी जाती हैं!

  • विशेषताएँ:
    • तीर्थयात्रा की सफलता के लिए इनकी पूजा लोक देवी के रूप में की जाती है।
    • गाँव के बाहर जाने वाले मार्ग पर इनकी प्रतिमा स्थापित की जाती है।
    • चित्रों में काला-गौरा भैरुजी, कवड़िया वीर, और गंगाजी का कलश बनाया जाता है।
  • सांस्कृतिक महत्व: पथवारी माता का मंदिर तीर्थयात्रा और सुरक्षित यात्रा का प्रतीक है। 🙏

26. बड़ली माता 🌿

बड़ली माता के मंदिर में ताँती बाँधने से रोगी ठीक हो जाते हैं!

  • मुख्य मंदिर: चित्तौड़गढ़ (बेड़च नदी के तट पर)
  • विशेषताएँ:
    • ताँती बाँधने से बीमार व्यक्ति ठीक हो जाता है।
    • नवरात्रि में यहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है।
  • सांस्कृतिक महत्व: बड़ली माता का मंदिर स्वास्थ्य और सुखी जीवन के लिए पूजा का केंद्र है। 🌟

27. अर्बुदा देवी 🏔️

अर्बुदा देवी आबू की अधिष्ठात्री देवी हैं!

  • मुख्य मंदिर: आबू पर्वत, सिरोही
  • मेला: चैत्र और आश्विन नवरात्रि के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा
  • विशेषताएँ:
    • ये आबू के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
  • सांस्कृतिक महत्व: अर्बुदा देवी का मंदिर आबू के प्राकृतिक सौंदर्य के साथ जोड़ता है। 🌄

28. राजेश्वरी माता 👑

राजेश्वरी माता भरतपुर के जाट राजवंश से जुड़ी हैं!

  • कुलदेवी: भरतपुर के जाट राजवंश की
  • मुख्य मंदिर: भरतपुर
  • सांस्कृतिक महत्व: ये मंदिर जाट समाज के लिए एक पवित्र स्थल है। 🙏

29. लटियाल माता 🌳

लटियाल माता कल्ला ब्राह्मणों की रक्षक हैं!

  • कुलदेवी: कल्ला ब्राह्मणों की
  • उपनाम: खेजड़ बेरी राय भवानी
  • मुख्य मंदिर: फलोदी, जोधपुर
  • सांस्कृतिक महत्व: लटियाल माता का मंदिर ब्राह्मण समाज के लिए एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक केंद्र है। 🌟

30. बाण माता 🛡️

बाण माता मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश से जुड़ी हैं!

  • कुलदेवी: मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश की
  • मुख्य मंदिर: चित्तौड़गढ़ दुर्ग
  • सांस्कृतिक महत्व: बाण माता का मंदिर सिसोदिया राजवंश के लिए एक पवित्र स्थल है। 🏰

31. भदाणा माता 🛡️

भदाणा माता तांत्रिक क्रियाओं से रक्षा करती हैं!

  • मुख्य मंदिर: भदाणा, कोटा
  • विशेषताएँ:
    • मूठ (तांत्रिक क्रिया) से बचाने वाली देवी।
  • सांस्कृतिक महत्व: भदाणा माता का मंदिर तांत्रिक साधना और सुरक्षा का प्रतीक है। 🙏

32. घेवर माता 🌊

घेवर माता ने राजसमंद झील की नींव रखी!

  • मुख्य मंदिर: राजसमंद झील, राजसमंद
  • विशेषताएँ:
    • इन्होंने राजसमंद झील की नींव रखी, जो राजस्थान के जल संरक्षण का एक महत्वपूर्ण स्थल है।
  • सांस्कृतिक महत्व: घेवर माता का मंदिर जल और प्रकृति संरक्षण का प्रतीक है। 🌊

33. सुंधा माता 🚡

सुंधा माता का मंदिर राजस्थान के प्रथम रोपवे के लिए भी जाना जाता है!

  • मुख्य मंदिर: जसवंतपुरा की पहाड़ियाँ, जालोर
  • विशेषताएँ:
    • यहाँ राजस्थान का प्रथम रोपवे स्थापित है। 🚡
    • सुंधा माता अभयारण्य: भालू संरक्षण के लिए प्रसिद्ध। 🐻
  • सांस्कृतिक महत्व: सुंधा माता का मंदिर प्रकृति और आध्यात्मिकता का एक सुंदर संगम है। 🌄

34. खीमेल माता 🕉️

खीमेल माता को क्षेमकारी माता के नाम से भी जाना जाता है!

  • उपनाम: क्षेमकारी माता
  • मुख्य मंदिर: बसंतगढ़, सिरोही (682 संवत)
  • सांस्कृतिक महत्व: खीमेल माता का मंदिर प्राचीन आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक है। 🙏

35. नकटी माता 🖼️

नकटी माता की मूर्ति अपनी विशेषता के लिए जानी जाती है!

  • मुख्य मंदिर: जयभवानीपुरा, जयपुर (प्रतिहारकालीन)
  • विशेषताएँ:
    • इनकी नाक टूटी हुई है, जो इस मंदिर को एक अलग पहचान देता है।
  • सांस्कृतिक महत्व: नकटी माता का मंदिर प्राचीन कला और भक्ति का एक अनोखा उदाहरण है। 🏛️

36. कैवाय माता 🏛️

कैवाय माता का मंदिर चौहान शासकों से जुड़ा है!

  • मुख्य मंदिर: किन्सरिया गाँव, परबतसर, नागौर
    • निर्माण: चौहान शासक दुर्लभराज के समंत चाचादेव ने करवाया।
  • सांस्कृतिक महत्व: कैवाय माता का मंदिर चौहान वंश के लिए एक पवित्र स्थल है। 🙏

37. आवरी माता 🩺

आवरी माता रोगी के लिए वरदान हैं!

  • मुख्य मंदिर: निकुंभ, चित्तौड़गढ़
  • विशेषताएँ:
    • यहाँ लकवाग्रस्त व्यक्तियों का इलाज किया जाता है।
  • सांस्कृतिक महत्व: आवरी माता का मंदिर स्वास्थ्य और आध्यात्मिकता का एक ख़ास केंद्र है। 🌟

38. ज्वाला माता 🔥

ज्वाला माता खंगारोट समाज के लिए ख़ास हैं!

  • कुलदेवी: खंगारोटों की
  • मुख्य मंदिर: जोबनेर, जयपुर
  • सांस्कृतिक महत्व: ज्वाला माता का मंदिर खंगारोट समाज के लिए एक पवित्र स्थल है। 🙏

39. छींक माता 🌸

छींक माता का मेला माघ में लगता है!

  • मुख्य मंदिर: जयपुर
  • मेला: माघ शुक्ल सप्तमी
  • सांस्कृतिक महत्व: छींक माता का मंदिर जयपुर के सांस्कृतिक जीवन का एक हिस्सा है। 🌟

40. सारिका माता 🕉️

सारिका माता पुष्करणा ब्राह्मणों की रक्षक हैं!

  • कुलदेवी: पुष्करणा ब्राह्मणों की
  • सांस्कृतिक महत्व: सारिका माता का मंदिर ब्राह्मण समाज के लिए एक पवित्र स्थल है। 🙏

41. जिलाणी माता 🕉️

जिलाणी माता अलवर के लिए ख़ास हैं!

  • मुख्य मंदिर: बहरोड़, अलवर
  • सांस्कृतिक महत्व: जिलाणी माता का मंदिर अलवर के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन का एक हिस्सा है। 🌟

42. जोगणिया माता 🌿

जोगणिया माता कंजर जाति के लिए ख़ास हैं!

  • कुलदेवी: कंजर जाति की
  • सांस्कृतिक महत्व: जोगणिया माता का मंदिर कंजर समाज के लिए एक पवित्र स्थल है। 🙏

43. चौथ माता 🕉️

चौथ माता भी कंजर जाति से जुड़ी हैं!

  • आराध्य देवी: कंजर जाति की
  • सांस्कृतिक महत्व: चौथ माता का मंदिर कंजर समाज के लिए एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक केंद्र है। 🌟

44. कोड़िया देवी 🌿

कोड़िया देवी सहरिया जनजाति की रक्षक हैं!

  • कुलदेवी: सहरिया जनजाति की
  • सांस्कृतिक महत्व: कोड़िया देवी का मंदिर सहरिया समाज के लिए एक पवित्र स्थल है। 🙏

45. क्षेमकरी माता 🕉️

क्षेमकारी माता भिनमाल के लिए ख़ास हैं!

  • मुख्य मंदिर: भिनमाल, जालोर
  • सांस्कृतिक महत्व: क्षेमकारी माता का मंदिर जालोर के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन का एक हिस्सा है। 🌟

46. कंठेसरी माता 🌿

कंठेसरी माता आदिवासी समाज से जुड़ी हैं!

  • विशेषताएँ: आदिवासियों की देवी
  • सांस्कृतिक महत्व: कंठेसरी माता का मंदिर आदिवासी समाज के लिए एक पवित्र स्थल है। 🙏

47. अन्य लोक देवियाँ 🌟

राजस्थान में और भी कई लोक देवियाँ हैं जो अलग-अलग समाज और स्थानों से जुड़ी हैं:

  • विरतारा माता: चौहटान, बाड़मेर
  • भँवर माता: छोटी सादड़ी, प्रतापगढ़
  • धनोप माता: भीलवाड़ा
  • मगरमंडी माता: नीमज, पाली
  • ढोलागढ़ देवी: अलवर
  • बीजासन माता: इंद्रगढ़, बूंदी
  • ईड़ाना माता: उदयपुर

राजस्थान की लोक देवियों का महत्व 🌟

राजस्थान की लोक देवियाँ ना केवल आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक हैं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इनका महत्व इस प्रकार है:

  • आध्यात्मिक महत्व:
    • जीण माता, करणी माता, और कैला देवी जैसे देवी के मंदिर शक्तिपीठ के रूप में पूजे जाते हैं, और यहाँ लोग अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए आते हैं। 🙏
    • शीतला माता और आवरी माता स्वास्थ्य और रोगों से मुक्ति के लिए पूजी जाती हैं। 🌡️
  • सांस्कृतिक विरासत:
    • जीण माता का लोकगीत, करणी माता की चारजायें, और कैला देवी के लांगुरिया गीत राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध करते हैं। 🎶
    • मंदिरों में होने वाले मेले जैसे लक्खी मेला और बैलगाड़ी मेला लोगों को एक साथ लाते हैं और सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देते हैं। 🌺
  • सामाजिक प्रभाव:
    • तनोट माता ने 1965 के युद्ध में सैनिकों की रक्षा की, जो उनकी शक्ति का प्रमाण है। 🪖
    • सुगाली माता ने 1857 की क्रांति में क्रांतिकारियों को प्रेरणा दी। ⚔️
    • रानी सती के मंदिर ने बलिदान की भावना को दर्शाया, लेकिन सती प्रथा पर रोक के बाद इसकी पूजा के स्वरूप में बदलाव आया है। 🚫
  • प्रकृति संरक्षण:
    • करणी माता ने मथानिया गाँव को प्राकृतिक आपदाओं से बचाया।
    • सुंधा माता अभयारण्य भालू संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है। 🐻

राजस्थान की लोक देवियाँ: तालिका 📋

लोक देवीकुलदेवी/आराध्यदेवीमुख्य मंदिरमेलाप्रमुख विशेषता
जीण माताचौहानों की कुलदेवीरैवासा, सीकरचैत्र/आश्विन नवरात्रिमधुमक्खियों की देवी, सबसे लंबा लोकगीत 🐝
करणी माताबीकानेर के राठौड़ों की कुलदेवीदेशनोक, बीकानेरचैत्र/आश्विन नवरात्रिटेम्पल ऑफ रैट्स, काबा (सफ़ेद चूहे) 🐀
कैला देवीकरौली के यादव वंश की कुलदेवीत्रिकूट पर्वत, करौलीचैत्र शुक्ल अष्टमी (लक्खी मेला)लांगुरिया गीत, बोहरा भगत की छतरी 🌸
शीतला माताचाकसू, जयपुरचैत्र कृष्ण अष्टमी (बैलगाड़ी मेला)चेचक निवारक, खंडित मूर्ति 🌡️
आई मातासीरवी क्षत्रियों की कुलदेवीबिलाड़ा, जोधपुरशुक्ल द्वितीयाअखंड ज्योत से केसर टपकना ✨
जमुवाय माताजयपुर के कच्छवाहा राजवंश की कुलदेवीजमुवारामगढ़, जयपुरदूल्हेराय द्वारा निर्मित 🏰
शिलादेवीआमेर के कच्छवाहा राजवंश की आराध्यदेवीआमेर किला, जयपुरनवरात्रि (षष्ठी/अष्टमी)काले संगमरमर की महिषासुरमर्दिनी 🗡️
तनोट मातातनोट, जैसलमेरथार की वैष्णो देवी, 1965 युद्ध में सहायता 🛡️
नारायणी मातानाई जाति की कुलदेवीराजगढ़, अलवरजात, जड़ूले, सवामणी 💈
राणी सतीझुंझुनूँभाद्रपद अमावस्यादादीजी, सती पूजन पर रोक 🔥
नागणेची देवीराठौड़ों की कुलदेवीनागाणा, बाड़मेरअठारह भुजाएँ, नागिन रूप 🐍
त्रिपुरा सुंदरी मातापांचाल समाज की कुलदेवीउमराई, बाँसवाड़ाअष्टादश भुजा, सिद्ध तांत्रिक शक्तिपीठ 🛠️
सकराय माताखंडेलवालों की कुलदेवीउदयपुरवाटी, सीकरशाकम्भरी माता, शक्र तीर्थ 🌿
आशापुरा देवीजालोर के चौहान शासकों की कुलदेवीमोदरा, जालोर; नाडोल, पालीहोली के तीसरे दिनकदम्ब वृक्ष 🌳
सुगाली माताआउवा के चम्पावत ठाकुरों की कुलदेवीआउवा, पाली1857 क्रांति की प्रेरक, 10 सिर, 54 हाथ ⚔️
सच्चियाय माताओसवालों की कुलदेवीओसियां, जोधपुरमहिषासुरमर्दिनी, 8वीं-9वीं सदी 🦁
दधिमति मातादाधीच ब्राह्मणों की कुलदेवीगोठ, मांगलोद, नागौरनवरात्रिमहिषासुरमर्दिनी 🕉️
भँवाल माताभुँवाल, मेड़ता, नागौरढाई प्याले शराब, महाकाली 🍷
आवड़ माताजैसलमेरसात चारण देवियाँ 🕉️
ब्राह्मणी मातासोरसन, बाराँमाघ शुक्ल सप्तमीपीठ की पूजा 🌸
स्वांगिया माताजैसलमेर के भाटियों की कुलदेवीभादरिया, जैसलमेरराज चिह्न में मुड़ा भाला 🗡️
हर्षद माताआभानेरी, दौसागुर्जर-प्रतिहार कला 🏛️
अम्बिका माताजगत, उदयपुरमेवाड़ का खजुराहो 🖼️
चामुण्डा मातामेहरानगढ़ किला, जोधपुरराव जोधा द्वारा निर्मित ⚔️
पथवारी मातागाँव के बाहरतीर्थयात्रा की सफलता 🛤️
बड़ली माताचित्तौड़गढ़ताँती बाँधना 🌿
अर्बुदा देवीआबू पर्वत, सिरोहीचैत्र/आश्विन पूर्णिमाआबू की अधिष्ठात्री 🏔️
राजेश्वरी माताभरतपुर के जाट राजवंश की कुलदेवीभरतपुर– 👑
लटियाल माताकल्ला ब्राह्मणों की कुलदेवीफलोदी, जोधपुरखेजड़ बेरी राय भवानी 🌳
बाण मातामेवाड़ के सिसोदिया राजवंश की कुलदेवीचित्तौड़गढ़ दुर्ग– 🛡️
भदाणा माताभदाणा, कोटामूठ से बचाव 🛡️
घेवर माताराजसमंद झील, राजसमंदजल संरक्षण 🌊
सुंधा माताजसवंतपुरा, जालोरप्रथम रोपवे, भालू अभयारण्य 🚡
खीमेल माताबसंतगढ़, सिरोहीक्षेमकारी माता 🕉️
नकटी माताजयभवानीपुरा, जयपुरटूटी नाक 🖼️
कैवाय माताकिन्सरिया, परबतसर, नागौरचौहान शासक द्वारा निर्मित 🏛️
आवरी मातानिकुंभ, चित्तौड़गढ़लकवाग्रस्त रोगियों का इलाज 🩺
ज्वाला माताखंगारोटों की कुलदेवीजोबनेर, जयपुर– 🔥
छींक माताजयपुरमाघ शुक्ल सप्तमी– 🌸
सारिका मातापुष्करणा ब्राह्मणों की कुलदेवी– 🕉️
जिलाणी माताबहरोड़, अलवर– 🕉️
जोगणिया माताकंजर जाति की कुलदेवी– 🌿
चौथ माताकंजर जाति की आराध्य देवी– 🕉️
कोड़िया देवीसहरिया जनजाति की कुलदेवी– 🌿
क्षेमकारी माताभिनमाल, जालोर– 🕉️
कंठेसरी माताआदिवासियों की देवी– 🌿

निष्कर्ष: राजस्थान की लोक देवियों की अमर कहानियाँ 🌟

राजस्थान की लोक देवियाँ इस धरती की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक धरोहर का एक अनमोल हिस्सा हैं। ये देवियाँ ना केवल भक्तों के लिए शक्ति और विश्वास का स्रोत हैं, बल्कि राजस्थान की समृद्ध परंपराओं, लोकगीतों, और मेलों के माध्यम से इसकी सांस्कृतिक पहचान को भी जीवित रखती हैं। 😊 चाहे वो जीण माता का मधुमक्खियों से भरा मंदिर हो, करणी माता के काबा चूहों की कहानी हो, या कैला देवी के लक्खी मेले की रौनक, हर देवी की अपनी एक अनोखी कहानी है जो राजस्थान के इतिहास और संस्कृति को जीवंत करती है। 🌺

इन मंदिरों में नवरात्रि के दौरान होने वाली भीड़, लोकगीतों की मधुर धुनें, और भक्तों की अटूट श्रद्धा इस बात का प्रमाण हैं कि राजस्थान की लोक देवियाँ आज भी लोगों के दिलों में बसी हैं। 🙏 अगर आप इन मंदिरों के दर्शन करने की सोच रहे हैं, तो चैत्र और आश्विन नवरात्रि का समय सबसे अच्छा है, जब मेले और उत्सव अपनी चरम सीमा पर होते हैं। 🚩

तो भाई, अगली बार जब आप राजस्थान की सैर पर निकलें, तो इन लोक देवियों के मंदिरों में ज़रूर जाएँ और उनकी महिमा का अनुभव करें! 🌟


प्रश्न और जवाब (FAQs)

  1. राजस्थान की सबसे प्रसिद्ध लोक देवी कौन है?
    जीण माता, करणी माता, और कैला देवी राजस्थान की सबसे प्रसिद्ध लोक देवियों में से हैं, जिनके मंदिर शक्तिपीठ के रूप में पूजे जाते हैं। 🌟
  2. करणी माता के मंदिर को टेम्पल ऑफ रैट्स क्यों कहते हैं?
    करणी माता के मंदिर में हज़ारों चूहे रहते हैं, जिन्हें काबा कहा जाता है। इनके दर्शन को शुभ माना जाता है, इसलिए इसे टेम्पल ऑफ रैट्स कहते हैं। 🐀
  3. कैला देवी का लक्खी मेला कब लगता है?
    कैला देवी का लक्खी मेला चैत्र शुक्ल अष्टमी को लगता है, जिसमें लाखों भक्त शामिल होते हैं। 🌸
  4. शीतला माता की पूजा क्यों की जाती है?
    शीतला माता की पूजा चेचक और अन्य रोगों से बचाव के लिए की जाती है, और बस्योड़ा की परंपरा भी इन्हीं से जुड़ी है। 🌡️
  5. क्या राजस्थान की लोक देवियों के मंदिरों में कोई विशेष नियम हैं?
    हाँ, कुछ मंदिरों में विशेष नियम हैं, जैसे जीण माता और भँवाल माता के मंदिर में पहले शराब चढ़ाई जाती थी, लेकिन अब यह प्रतिबंधित है। 🚫

संबंधित खोजें:

  • राजस्थान की लोक देवियाँ 2025
  • जीण माता मंदिर सीकर
  • करणी माता टेम्पल ऑफ रैट्स
  • कैला देवी लक्खी मेला
  • शीतला माता बस्योड़ा परंपरा

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