राजस्थान की वेशभूषा और आभूषण 🧣💍 जैसे पगड़ी, लहरिया, घाघरा, नथ, और बिछिया की विस्तृत जानकारी। पुरुष, स्त्री, और आदिवासी परिधानों के साथ 2025 की ताजा जानकारी!
Table of Contents
परिचय: राजस्थान की वेशभूषा और आभूषण की सांस्कृतिक धरोहर 🌟
राजस्थान, जिसे रंगों की धरती कहा जाता है, अपनी वेशभूषा और आभूषणों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। 🏜️ यहाँ के परिधान और गहने न केवल सौंदर्य बढ़ाते हैं, बल्कि संस्कृति, परंपरा, और सामाजिक स्थिति को भी दर्शाते हैं। 😊 पगड़ी पुरुषों के मान-सम्मान का प्रतीक है, तो लहरिया और घाघरा स्त्रियों की शोभा बढ़ाते हैं। 💖 नथ, बिछिया, और चंद्रहार जैसे आभूषण सुहाग और सौंदर्य की पहचान हैं।
कालीबंगा और आहड़ सभ्यता से लेकर आज तक, राजस्थान के आभूषणों ने मृण्मय मणियों से लेकर सोना, चाँदी, और रत्नों तक का सफर तय किया है। 💎 जयपुर अपने रत्न व्यवसाय और नाथद्वारा अपनी तारकशी कला के लिए मशहूर है। इस लेख में हम पुरुषों, स्त्रियों, और आदिवासियों की वेशभूषा, साथ ही उनके आभूषणों की पूरी जानकारी देंगे। तालिकाएँ, उपशीर्षक, और मस्ती भरे अंदाज के साथ तैयार हो जाओ राजस्थान की रंग-बिरंगी यात्रा के लिए! 🚪🎨
राजस्थान की वेशभूषा: एक अवलोकन 🌈
राजस्थान की वेशभूषा ऋतुओं, अवसरों, और सामाजिक स्थिति के अनुसार बदलती है। लाल रंग यहाँ के परिधानों में प्रमुखता रखता है, जैसा कि प्रसिद्ध कथन है: “मारू थारे देश में उपजै तीन रतन, इक ढोला, दूजी मरवण, तीजौ कसूमल रंग।” ❤️
- पुरुषों की वेशभूषा: पगड़ी, अंगरखी, धोती, चुगा, पायजामा, और कमरबंद।
- स्त्रियों की वेशभूषा: घाघरा, कुर्ती, काँचली, लहरिया, चुनरी, और पोमचा।
- आदिवासी परिधान: जामसाई साड़ी, नांदणा, कटकी, और रेनसाई।
- विशेषताएँ: रंग-बिरंगे, कशीदाकारी, और मौसम के अनुकूल। 🌸
1. पुरुषों की वेशभूषा 🎩
पगड़ी: मान-सम्मान का प्रतीक 🧣
पगड़ी राजस्थान के पुरुषों का सबसे महत्वपूर्ण परिधान है, जो आन-बान और स्वाभिमान का प्रतीक है। 😊 उदयपुर में बागोर की हवेली में विश्व की सबसे बड़ी पगड़ी का संग्रहालय है।
- उपनाम: पाग, घुमालो, फेंटा, लपेटो, बागा, साफा, पेचा, अमलो, फालियो, सेलो, शिरोत्राण।
- प्रकार:
- मेवाड़: अमरशाही, अरसी शाही, उदयशाही, स्वरूपशाही, बरखारमा (सर्वाधिक प्रचलित).
- मारवाड़: जसवन्तशाही, चूँडावतशाही, शाहजहाँनी, मांडपशाही, मानशाही, राठौड़ी, विजयशाही, उम्मेदशाही, गजशाही।
- जयपुर: राजशाही/झाड़शाही/जयपुरी पगड़ी (लाल लहरिया, केवल राजाओं के लिए).
- विशेष: जोधपुरी साफा (जसवन्तसिंह-I), राठौड़ी पेंच (राजपूतों की पसंद), खिड़किया पाग (गणगौर पर ईसरजी के लिए).
- विशेषताएँ:
- पाग: सबसे लंबी पगड़ी।
- पेचा: जरीदार, एक रंग।
- मदील: बहुरंगी पेचा।
- छाबदार: मेवाड़ में पगड़ी बाँधने वाला।
- अटपटी: अकबर काल में ईरानी पद्धति।
अवसरों और ऋतुओं के अनुसार पगड़ियाँ 🎉
अवसर/ऋतु | पगड़ी |
---|---|
दशहरा | मदील |
विवाह | मोठड़े |
होली | फूल-पत्ती छपाई |
श्रावण | लहरिया |
बसंत | गुलाबी |
ग्रीष्म | फूल गुलाबी, बहरिया |
वर्षा | मलय गिरि |
शरद | गुल-ए-अनार |
हेमंत | मोलिया |
शिशिर | केसरिया |
- जातियों के अनुसार:
- उच्च वर्ग: चीरा, फेंटा।
- सुनार: आँटे वाली।
- बनजारे: मोटी पट्टेदार।
- माली, रेबारी: गहरा लाल।
- राजपूत: केसरिया।
- मेघवाल: हल्का गुलाबी।
- शोक: सफेद साफा।
- सजावट: तुर्रे, सरपेच, बालाबंदी, धुगधुगी, गोसपेच, पछेवड़ी, लटकन, फतेपेच।
अन्य पुरुष परिधान 👔
- अंगरखी:
- शरीर के ऊपरी हिस्से का वस्त्र, सामान्य जन का पहनावा।
- प्रकार: तनसुख, दुतई, गदर, गाबा, मिरजाई, डोढी, कानो, डगला।
- सर्दी में रूई भरी जाती थी।
- धोती:
- कमर पर पहना जाने वाला श्वेत वस्त्र।
- लांगदार: जाँघों के बीच से कमर पर बँधा छोर।
- आतमसुख:
- कश्मीरी फिरन जैसा, तेज सर्दी में ओढ़ा जाता है।
- घूघी:
- ऊन का बना, सर्दी-वर्षा से बचाव।
- अचकन:
- अंगरखी का रूप, ऊपरी हिस्से पर।
- चुगा/चोगा:
- अंगरखी के ऊपर पहना जाता है।
- जामा:
- ऊपरी हिस्से में चोली और नीचे घेर (घुटनों तक).
- पायजामा:
- अंगरखी, चोगा, जामा के नीचे।
- कमरबंद/पटका:
- कमर पर, तलवार/कटार रखने के लिए।
आदिवासी पुरुषों की वेशभूषा 🌿
- अंगोछा: सिर पर सफेद वस्त्र।
- अंगरखा: काला, सफेद धागे की कढ़ाई।
- ढेपाड़ा: तंग धोती।
- खोयतू: कमर पर लंगोटी।
- पोतिया: मोटा सिर का वस्त्र।
- सहरिया: खपटा (साफा), पंछा (धोती), सलूका (अंगरखी).
2. स्त्रियों की वेशभूषा 👗
लाल रंग राजस्थानी स्त्रियों के परिधानों में प्रमुख है, जिसमें कसूमल (लाल) की विशेष छटा दिखती है। मलयगिरि रंग की सुगंधित अंगरखियाँ आज भी जयपुर सिटी पैलेस में देखी जा सकती हैं।
प्रमुख परिधान 🌸
- पोमचा:
- कमल पुष्प की ओढ़नी।
- प्रकार:
- लाल-गुलाबी।
- लाल-पीला।
- अवसर:
- बेटे के जन्म पर पीला।
- बेटी के जन्म पर गुलाबी।
- लहरिया:
- आड़ी धारियों वाला कपड़ा।
- रंग: एक, दो, तीन, पाँच, सात।
- अवसर: श्रावण, तीज, मांगलिक अवसर (पचरंग).
- प्रकार: प्रतापशाही, राजाशाही (जयपुर, चमकदार गुलाबी).

- मोठड़ा:
- आड़ी धारियाँ एक-दूसरे को काटती हुई।
- समुद्र लहर: चौड़ी धारियाँ, दो-पाँच-सात रंग।
- धनक:
- बड़ी चौकोर बिंदियाँ।
- अमोवा:
- खाकी रंग, शिकारियों द्वारा।
- चुनरी:
- बध्द तकनीक, जोधपुर-सीकर की प्रसिद्ध।
- चमकीले रंग, पशु-पक्षी, फूल-पत्ती डिज़ाइन।
- घाघरा:
- कमर से एड़ी तक घेरदार।
- कुर्ती, काँचली:
- ऊपरी हिस्से का वस्त्र।

- पेसवाज:
- पूर्ण पोशाक (चोली + स्कर्ट).
- तिलका:
- मुस्लिम स्त्रियों का पहनावा।
- साड़ी:
- नाम: चोल, निचोल, चीर-पटोरी, पट, दुकूल, अंसुक, चोरसो, ओढ़नी, वसन, चूँदड़ी, धोरावाली।
- दामड़ी/दामणी:
- मारवाड़, लाल ओढ़नी।
अन्य कपड़े 🧵
- जामदानी, किमखाब, टसर, चिक, छींट, मखमल, पारचा, मलमल, मसरू, इलायची, महमूदी चिक, मीर-ए-बादला, नौरंगशाही, फर्रूखशाही छींट, बहादुरशाही, बाफ्ता, मोमजामा, गंगाजली।
आदिवासी स्त्रियों की वेशभूषा 🌿
- जामसाई साड़ी: लाल जमीन, फूल-पत्ती, बूँटा।
- नांदणा/नानड़ा: नीली छींट, चतुष्कोण, तितलियाँ, दाबू छपाई।
- कटकी: अविवाहित युवतियों की लाल ओढ़नी, काले-सफेद बूँटी।
- रेनसाई: काली जमीन, लाल-भूरी बूँटियाँ वाला लहंगा।
- लूगड़ा: विवाहिताओं की साड़ी।
- चूनड़: कत्थई लाल, सफेद बिंदियाँ, उदयपुर (भील).
- फूँदड़ी: ताराभाँत अलंकरण।
- कछाबू: घुटनों तक घाघरा।
- फड़का: कथौड़ी जनजाति, मराठी अंदाज।
- ज्वारभाँत: ज्वार दानों जैसी बिंदियाँ।
- लहरभाँत: लहरिया बिंदियाँ।
- केरीभाँत: केरी किनारी, लाल जमीन।
- ताराभाँत: भूरी-लाल, काले षट्कोण तारे।
3. राजस्थान के आभूषण 💍
आभूषण राजस्थान की संस्कृति का अभिन्न अंग हैं, जो सौंदर्य और सुहाग का प्रतीक हैं। कालीबंगा और आहड़ में मृण्मय मणियाँ, शुंग काल में मिट्टी और हाथीदाँत के गहने, और वर्तमान में सोना, चाँदी, और रत्न प्रचलित हैं।
- जयपुर: रत्न व्यवसाय का केंद्र। 💎
- नाथद्वारा: तारकशी (चाँदी के बारीक तार)।
- प्रतापगढ़: थेवा कला (कांच में सोने का बारीक काम).
स्त्रियों के आभूषण 🌸
सिर के आभूषण
- सुवालळकौ, तिलकमणी, माँगफूल, मांगटीका, चूड़ामण, सिणगारपट्टी, मावटी, काचर, गेडी, तीबगट्टौ, मैण, सरकयारौ, शीशफूल, बोर बोरला, मेमंद, रखड़ी, गोफण, टीका/टिकड़ा, टीडीभळको, बिन्दी/टीकी, सेलड़ौ, सोहली, मोरमींडली, फूलगूधर, शिवतिलक।
- विशेष:
- रखड़ी: सुहाग का प्रतीक।
- शीशफूल: सोने की साँकल, पीछे।
- बोर बोरला: गोल आकार।
- टीका: फूल आकृति, ललाट पर।
कान के आभूषण
- झेलौ, एरंगपत्तो, अंगोट्या, बाळा, पासौ, पत्तीसुरलिया, झाळ, फूलझूमका, सुरळियो, सुरगवाली, कर्णफूल, पीपलपत्रा, लटकन, बाली, टॉप्स, लूंग, टोटी, कोकरूं, कुड़कली, खींटली, गुड़दौ, डरगलियौ/डुगरली, बूझली, माकड़ी, मुरकी, वेड़लौ, संदोल।
- विशेष:
- झुमकी: घुँघरियाँ, सोना-चाँदी।
- कर्णफूल: पुष्पाकार, नगीने।
- लौंग: मसाले के लौंग जैसा।
- मोरूवर: मोर आकृति।
नाक के आभूषण
- भँवरकड़ी, नथ, बिजली लूंग, बारी, काँटा, भोगली, बुलाक, चोप, चुनी, कोकौ, खीवण, नकफूल, नकेसर, वेण, वेसरि, लौंग।
- विशेष:
- नथ: मोटा छल्ला, विश्नोई महिलाएँ।
- बेसरी: मोर चिह्न।
दाँत के आभूषण
- रखन: सोने का पत्तर।
- चूँप: सोने की कील।
- मेख: सोने की चूँप।
गले और वक्ष के आभूषण
- हंसहार, सरी, डोरो, कंठसरी, निगोदर, निगोदरी, तेड़ियौ, हाँसली, आड़, रूचक, हांस, पोत, थेड्यो, बंगड़ी, तगतगई, थमण्यो, ठुस्सी, कंठी, नक्कस, निंबोळी, हालरो, पचमाणियौ, बजट्टी, पटियौ, तिमणिया, तुलसी, मांदल्या, चंद्रहार, ताबीज, तेवटियौ, तांतणियौ, मंगलसूत्र, हौदळ, बटण, खींवली, खूंगाळी, छेड़ियौ, हमेल, हांकर, रामनवमी, चम्पाकली, हार।
- विशेष:
- चंद्रहार: शहरी महिलाओं में लोकप्रिय।
- मंगलसूत्र: काले मोती, सुहाग का प्रतीक।
- बजट्टी: सोने के खोखले दाने।
बाजू (भुजा) के आभूषण
- बाजूबंद, बाहुसंगार, बिजायठ, डंटकड़ौ, टडौ, खाँच, कातरियौ, अड़कणी, अणत।
अंगुली के आभूषण
- पट्टा बींटी, पवित्री, छड़ा, दामणा, हथपान, अंगूथळौ।
- विशेष:
- पट्टा बींटी: पाणिग्रहण से पहले।
- पवित्री: ताँबा-चाँदी।
हाथ के आभूषण
- पछेली, धांगापुणछी, ठड्डा, गजरा, चूड़ियाँ, नोगरी, गोखरू, गजरौ, दुड़ी, पुणची, कँकण, चूड़ा, बँगड़ी, कड़ा, हथफूल, खंजरी, आरसि, बाजूसोसण, सूतड़ौ, सोवनपान, हाथुली, अंगूठी, मूंदड़ी, बल्लया, चांट, कात् रया, मोकड़ी, लाखीणी, बंगड़ीदार, छैलकड़ौ।
- विशेष:
- कात् रया: काँच की चूड़ी।
- मोकड़ी: लाख की चूड़ी।
- लाखीणी: दुल्हन की लाख की चूड़ी।
कमर के आभूषण
- सटकौ, मेखला, तगड़ी, वसन, करधनी, कन्दोरा, सटका, चौथ, कणकती, जंजीर।
पैर के आभूषण
- नेवर, पींजणी, पायल, पादसकळिका, दोलीकियो, तेघड़, तांति, झाँझर, सिंजनी, कंकणी, पायजेब, रमझोल, नेवरी, नूपुर, पैंजनिया, टणका, घुँघरू, आँवला, कड़ा, लंगर, तोड़ा-छोड़ा, अंगूथळौ, अणोटपोल, कड़लौ, झंकारतन, टणको, टोडरौ, तोड़ौ, तोड़ासाट, मकियौ, मसूरियौ, रोळ, लछौ, हीरानामी, बिछियाँ, फोलरी, गोर, पगपान, गोळया, गूठलौ, नखलियौ, छल्ला।
- विशेष:
- बिछिया: सुहाग का प्रतीक, विवाहिताओं के लिए।
- झाँझर: रुणझुन ध्वनि।
- पगपान: हथफूल जैसा, पैर में।
पुरुषों के आभूषण 💼
- चूड़: गोल कड़ा।
- कलंगी: साफे पर।
- बलेवड़ा: गले में।
- सेहरा: विवाह में साफा।
- मुरकियाँ: कान में गोलाकार।
- चौकी: देवता चित्र वाला हार।
- रखन/चूँप: दाँतों पर।
- मादीकड़कम, मुरकिया, लौंग, झाले, छैलकड़ी: कान।
- बाजूबंद, कड़ा, नरमुख: हाथ।
- अंगूठी, बीठियाँ, मुंदड़िया: अंगुली।
बच्चों के आभूषण 🧒
- नजरिया: लाल कपड़े में सोना, मूँग, चंदन, बुरी नजर से बचाव।
- झाँझरिया/पैंजणी: घुँघरू वाली साँकली।
- कड़ो/कंडूल्या: हाथ-पैर।
- कुड़क, लूँग, गूड़दा, मुरकी, बाली: कान।
- हँसुली: कण्ठ।
सांस्कृतिक महत्व 🌟
राजस्थान की वेशभूषा और आभूषण यहाँ की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक हैं। 😊 पगड़ी पुरुषों के सम्मान और सामाजिक स्थिति को दर्शाती है, तो लहरिया और घाघरा स्त्रियों की शोभा बढ़ाते हैं। 💖 नथ और बिछिया सुहाग की निशानी हैं, जबकि तारकशी और थेवा कला राजस्थान की कारीगरी को विश्व मंच पर ले जाती हैं।
- पर्यटन: पुष्कर मेला, तेजाजी मेला, और गणगौर में इन परिधानों और आभूषणों की छटा देखने लायक है। 📸
- विश्व पहचान: जयपुर के रत्न और नाथद्वारा की तारकशी ने वैश्विक ख्याति पाई।
राजस्थान की वेशभूषा और आभूषण: तालिका 📋
वस्त्र/आभूषण | प्रकार | क्षेत्र/अवसर | विशेषता |
---|---|---|---|
पगड़ी | अमरशाही, उदयशाही, जोधपुरी साफा | मेवाड़, मारवाड़, जयपुर | मान-सम्मान |
लहरिया | पचरंग, राजाशाही | श्रावण, तीज | आड़ी धारियाँ |
घाघरा | घेरदार | राज्यव्यापी | लाल रंग |
नथ | भँवरकड़ी, बेसरी | विश्नोई, सुहाग | मोटा छल्ला |
बिछिया | चूटकी, छल्ला | विवाहिताएँ | सुहाग का प्रतीक |
चंद्रहार | हार | शहरी महिलाएँ | रत्न जड़ित |
तारकशी | चाँदी | नाथद्वारा | बारीक तार |
थेवा कला | सोना-कांच | प्रतापगढ़ | बारीक काम |
निष्कर्ष: राजस्थान की रंग-बिरंगी शोभा 🌈
राजस्थान की वेशभूषा और आभूषण इस धरती की सांस्कृतिक और कलात्मक धरोहर को जीवंत करते हैं। 😊 पगड़ी और लहरिया से लेकर नथ और बिछिया तक, हर परिधान और गहना एक कहानी कहता है। 🌟 जयपुर, नाथद्वारा, और प्रतापगढ़ की कारीगरी ने इसे विश्व प्रसिद्ध बनाया।
अगर आप राजस्थान की सैर पर जा रहे हैं, तो होली, गणगौर, या नवरात्रि में इन परिधानों और आभूषणों को जरूर देखें। पुष्कर मेला या तेजाजी मेला में इनकी छटा अविस्मरणीय है! 🚪
प्रश्न और जवाब (FAQs)
- राजस्थान की सबसे प्रसिद्ध पगड़ी कौन सी है?
जोधपुरी साफा और उदयशाही पगड़ी। 🧣 - लहरिया का क्या महत्व है?
श्रावण और तीज पर पहना जाता है, पचरंग मांगलिक। 🌈 - नथ और बिछिया का प्रतीक क्या है?
सुहाग और सौंदर्य। 💍 - जयपुर और नाथद्वारा की कारीगरी में क्या अंतर है?
जयपुर: रत्न व्यवसाय; नाथद्वारा: तारकशी (चाँदी). - आदिवासी वेशभूषा की विशेषता क्या है?
जामसाई, नांदणा, और ताराभाँत की ओढ़नी। 🌿
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