राजस्थानी भाषा और बोलियाँ 2025: संस्कृति की मधुर ध्वनि 🎶

By: LM GYAN

On: 10 September 2025

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राजस्थानी भाषा और बोलियाँ

राजस्थानी भाषा और बोलियाँ 🎤 जैसे मारवाड़ी, मेवाड़ी, हाड़ौती, मेवाती, और ढूँढाड़ी की विस्तृत जानकारी। डिंगल, पिंगल, और साहित्यिक महत्व के साथ 2025 की ताजा जानकारी!


परिचय: राजस्थानी भाषा की सांस्कृतिक धरोहर 🌟

राजस्थान, रंग-बिरंगी संस्कृति की धरती, अपनी भाषा और बोलियों के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है। 🏜️ राजस्थानी भाषा को अपभ्रंश की पहली संतान माना जाता है, जो शौरसेनी प्राकृत के गुर्जरी अपभ्रंश से विकसित हुई। 😊 यहाँ की लोकोक्ति “पाँच कोस पर पाणी बदले, सात कोस पर वाणी” राजस्थान की भाषाई विविधता को खूबसूरती से बयाँ करती है। 🌈

मारवाड़ी, मेवाड़ी, हाड़ौती, और मेवाती जैसी बोलियाँ इस भाषा की शोभा बढ़ाती हैं। डिंगल और पिंगल इसके साहित्यिक रूप हैं, जिनमें जैन, चारण, और भाट साहित्य की समृद्ध परंपरा देखने को मिलती है। 📜 इस लेख में हम राजस्थानी भाषा के उद्भव, विकास, और इसकी प्रमुख बोलियों जैसे मारवाड़ी, ढूँढाड़ी, मेवाती, मालवी, और अहीरवाटी की पूरी जानकारी देंगे। तालिकाएँ, उपशीर्षक, और मस्ती भरे अंदाज के साथ तैयार हो जाओ राजस्थान की भाषाई यात्रा के लिए! 🚪🎤


राजस्थानी भाषा का उद्भव और विकास 🌱

उद्भव 📜

  • जननी: भारतीय आधुनिक भाषाओं की जननी अपभ्रंश है, और राजस्थानी भाषा को इसकी पहली संतान कहा जाता है।
  • उत्पत्ति: शौरसेनी प्राकृत के गुर्जरी अपभ्रंश से।
  • प्रमुख प्रभाव: भारोपीय भाषा की आर्य भाषा
  • प्राचीन उल्लेख:
    • 8वीं सदी में उद्योतन सूरी ने कुवलयमाला में मरुवाणी को मरुदेश की भाषा कहा।
    • अबुल फजल की आइन-ए-अकबरी और कवि कुशललाभ के पिंगल शिरोमणि में मारवाड़ी शब्द का प्रयोग।
  • राजस्थान शब्द:
    • 1800 ई. में जॉर्ज थॉमस ने राजपूताना शब्द का प्रयोग किया।
    • 1829 ई. में कर्नल जेम्स टॉड ने दी एनल्स एण्ड एंटीक्वीटीज ऑफ राजस्थान में राजस्थान, रायथान, और रजवाड़ा शब्दों का उल्लेख किया।
  • 1912 ई. में जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया में राजस्थानी नाम का पहली बार प्रयोग किया।

विकास के चरण 🕰️

डॉ. एल.पी. टैस्सीटोरी, कन्हैयालाल माणिक्यलाल मुंशी, और डॉ. मोतीलाल मेनारिया ने राजस्थानी भाषा का विकास गुर्जरी अपभ्रंश से माना। इसके विकास को चार चरणों में देखा जाता है:

  1. गुर्जरी अपभ्रंश (11वीं–13वीं सदी): प्रारंभिक रूप।
  2. प्राचीन राजस्थानी (13वीं–16वीं सदी): स्वतंत्र भाषा की शुरुआत।
  3. मध्य राजस्थानी (16वीं–18वीं सदी): साहित्यिक समृद्धि।
  4. आधुनिक राजस्थानी (18वीं सदी से अब तक): समकालीन स्वरूप।
  • स्वर्णकाल: 1700–1900 ई. का काल, जब राजस्थानी साहित्य अपने चरम पर था।

सांस्कृतिक महत्व 🌟

  • राजभाषा: हिंदी।
  • मातृभाषा: राजस्थानी।
  • दिवस:
    • 21 फरवरी: राजस्थानी भाषा दिवस।
    • 14 सितंबर: हिंदी दिवस।

राजस्थानी भाषा के दो प्रमुख रूप 🎙️

राजस्थानी भाषा को मुख्यतः दो रूपों में बाँटा जाता है:

  1. पश्चिमी राजस्थानी
    • प्रतिनिधि बोलियाँ: मारवाड़ी, मेवाड़ी, वागड़ी, शेखावाटी।
    • साहित्यिक रूप: डिंगल (जैन और चारण साहित्य).
    • प्रमुख ग्रंथ: अचलदास खींची री वचनिका, रुक्मणी हरण, ढोला मारू रा दूहा, सगत रासो, राव जैतसी रो छंद, राजरूपक।
  2. पूर्वी राजस्थानी
    • प्रतिनिधि बोलियाँ: ढूँढाड़ी, हाड़ौती, मेवाती, अहीरवाटी।
    • साहित्यिक रूप: पिंगल (भाट साहित्य).
    • प्रमुख ग्रंथ: विजयपाल रासो, खुमाण रासो, पृथ्वीराज रासो।

राजस्थानी भाषा का वर्गीकरण 📋

जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन का वर्गीकरण

ग्रियर्सन ने 1907-1908 ई. में भारतीय भाषा विषयक कोश में राजस्थानी बोलियों का उल्लेख किया। उन्होंने बोलियों को पाँच श्रेणियों में बाँटा:

  1. पश्चिमी राजस्थानी: मारवाड़ी, मेवाड़ी, ढढकी, बीकानेरी, बागड़ी, शेखावाटी, खैराड़ी, गोड़वाड़ी, देवड़ावाटी।
  2. उत्तर-पूर्वी राजस्थानी: अहीरवाटी, मेवाती।
  3. मध्य-पूर्वी राजस्थानी: ढूँढाड़ी, तोरावाटी, खड़ी, जयपुरी, राजावाटी, अजमेरी, किशनगढ़ी, हाड़ौती।
  4. दक्षिण-पूर्वी राजस्थानी: मालवी, रांगड़ी, सोंथवाड़ी।
  5. दक्षिणी राजस्थानी: नीमाड़ी, भीली।

डॉ. एल.पी. टैस्सीटोरी का वर्गीकरण

  • पूर्वी राजस्थानी: ढूँढाड़ी, हाड़ौती, मेवाती, अहीरवाटी।
  • पश्चिमी राजस्थानी: मारवाड़ी, मेवाड़ी, वागड़ी, शेखावाटी।

राजस्थानी भाषा की प्रमुख बोलियाँ 🎤

A. मारवाड़ी बोली

  • उत्पत्ति: 8वीं सदी, शौरसेनी प्राकृत के गुर्जरी अपभ्रंश से।
  • उल्लेख: उद्योतन सूरी ने कुवलयमाला में मरुवाणी कहा।
  • क्षेत्र: जोधपुर (विशुद्ध मारवाड़ी), जैसलमेर, पाली, नागौर, बाड़मेर, बीकानेर, जालोर, सिरोही
  • विशेषताएँ:
    • राजस्थान की सबसे प्राचीन और सर्वाधिक बोली जाने वाली बोली।
    • साहित्यिक रूप: डिंगल।
    • प्रमुख रचनाएँ: मीराबाई के पद, राजिया रा सोरठा, वेलि क्रिसन रूक्मणी री, ढोला-मरवण, मूमल।
  • उपबोलियाँ:
    1. मेवाड़ी: उदयपुर, राजसमंद, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़।
      • दूसरी प्राचीन बोली।
      • कुंभा की कीर्तिस्तंभ प्रशस्ति में प्रयोग।
      • धावड़ी: उदयपुर की उपबोली।
    2. वागड़ी: डूँगरपुर, बाँसवाड़ा (मेवाड़ी-गुजराती प्रभाव).
      • ग्रियर्सन: भीली बोली।
    3. खैराड़ी: शाहपुरा (भीलवाड़ा), बूँदी, मीणाओं की प्रिय।
    4. शेखावाटी: सीकर, चूरू, झुंझुनू (मारवाड़ी-ढूँढाड़ी प्रभाव).
    5. गोड़वाड़ी: जालोर, पाली, सिरोही, बाली केंद्र।
      • बीसलदेव रासो (नरपति नाल्ह).
    6. देवड़ावाटी: सिरोही (सिरोही बोली).
    7. थली: बीकानेर।
    8. ढाटी: बाड़मेर।

B. ढूँढाड़ी बोली

  • प्रमाण: 18वीं सदी, आठ देस गूजरी ग्रंथ।
  • उपनाम: झाड़शाही, जयपुरी।
  • क्षेत्र: जयपुर, आमेर, दौसा, टोंक, किशनगढ़।
  • प्रभाव: ब्रज, गुजराती।
  • रचनाएँ: संत दादू और उनके शिष्यों की रचनाएँ।
  • उपबोलियाँ:
    1. तोरावाटी: सीकर, झुंझुनू, जयपुर उत्तर (काँतली नदी).
    2. किशनगढ़ी: किशनगढ़।
    3. अजमेरी: अजमेर गाँव।
    4. राजावाटी: सवाई माधोपुर, जयपुर पूर्व।
    5. काठेड़ी: जयपुर दक्षिण, दौसा।
    6. चौरासी: जयपुर दक्षिण-पश्चिम, टोंक पश्चिम।
    7. नागरचोल: सवाई माधोपुर, टोंक दक्षिण-पूर्व।
    8. जगरौती: करौली।
    9. हाड़ौती: कोटा, बूँदी, बाराँ, झालावाड़।
      • विशेषता: वर्तनी में कठिन।
      • रचनाएँ: सूर्यमल्ल मीसण (वंश भास्कर, चम्पू शैली).
      • उल्लेख: एम. केलॉग (1875, हिन्दी ग्रामर), ग्रियर्सन (बोली के रूप में).

C. मेवाती बोली

  • क्षेत्र: अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली पूर्व।
  • प्रभाव: ब्रजभाषा।
  • वक्ता: मेव मुसलमान।
  • रचनाएँ: संत लालदासजी, चरणदासजी, सहजोबाई (सहज प्रकाश, सोलह तिथि), दयाबाई (दयाबोध, विनयमलिका), डूँगरसिंह।

D. मालवी बोली

  • विशेषता: मधुर, कर्णप्रिय।
  • क्षेत्र: कोटा, झालावाड़, भैंसरोड़गढ़, प्रतापगढ़।
  • वक्ता: मालवा के राजपूत।
  • प्रभाव: गुजराती, मराठी।
  • उपबोलियाँ:
    1. नीमाड़ी: डूँगरपुर, बाँसवाड़ा, उत्तरी मालवा (दक्षिणी राजस्थानी).
    2. रांगड़ी: मालवी-मारवाड़ी मिश्रण, कर्कश।

E. अहीरवाटी (राठी) बोली

  • वक्ता: अहीर जाति।
  • उपनाम: राठी, हीरवाल, हीरवाटी।
  • क्षेत्र: अलवर (मुंडावर, बहरोड़), जयपुर (कोटपुतली).
  • प्रभाव: हरियाणा की बांगरू, मेवाती।
  • रचनाएँ: जोधराज (हम्मीर रासो), शंकरराव (भीमविलास), अलीबख्शी ख्याल (नाट्य).

सांस्कृतिक महत्व 🌟

राजस्थानी भाषा और बोलियाँ इस धरती की सांस्कृतिक और साहित्यिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा हैं। 😊 डिंगल में जैन और चारण साहित्य, और पिंगल में भाट साहित्य ने इसे समृद्ध किया। मीराबाई के भक्ति पद, ढोला-मरवण की प्रेम कथा, और पृथ्वीराज रासो जैसे ग्रंथ राजस्थानी की शान हैं। 📖

  • पर्यटन: पुष्कर मेला, जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल, और रामदेवजी मेला में इन बोलियों की झलक सुनने को मिलती है। 🎉
  • विश्व पहचान: ग्रियर्सन और टैस्सीटोरी जैसे विद्वानों ने राजस्थानी को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई।

राजस्थानी बोलियों की तालिका 📋

बोलीक्षेत्रसाहित्यिक रूपप्रमुख रचनाएँ
मारवाड़ीजोधपुर, जैसलमेर, बीकानेरडिंगलढोला-मरवण, मूमल
मेवाड़ीउदयपुर, चित्तौड़गढ़डिंगलकीर्तिस्तंभ प्रशस्ति
वागड़ीडूँगरपुर, बाँसवाड़ाडिंगल
शेखावाटीसीकर, चूरू, झुंझुनूडिंगल
ढूँढाड़ीजयपुर, आमेर, दौसापिंगलदादू की रचनाएँ
हाड़ौतीकोटा, बूँदी, झालावाड़पिंगलवंश भास्कर
मेवातीअलवर, भरतपुर, धौलपुरपिंगलसहज प्रकाश, दयाबोध
मालवीकोटा, झालावाड़, प्रतापगढ़
अहीरवाटीअलवर, जयपुर (कोटपुतली)हम्मीर रासो

निष्कर्ष: राजस्थानी भाषा की मधुर ध्वनि 🌈

राजस्थानी भाषा और बोलियाँ इस धरती की सांस्कृतिक और साहित्यिक गहराई को जीवंत करती हैं। 😊 मारवाड़ी, मेवाड़ी, हाड़ौती, और मेवाती जैसी बोलियाँ हर कोस पर बदलती हैं, फिर भी एकता का सूत्र पिरोती हैं। 🌟 डिंगल और पिंगल ने इसे साहित्यिक ऊँचाइयाँ दीं।

अगर आप राजस्थान की सैर पर जा रहे हैं, तो पुष्कर मेला, गणगौर, या जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में इन बोलियों को जरूर सुनें। मीराबाई के पद और ढोला-मरवण की कथाएँ आपके अनुभव को और मधुर बनाएँगी! 🚪


प्रश्न और जवाब (FAQs)

  1. राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति कहाँ से हुई?
    शौरसेनी प्राकृत के गुर्जरी अपभ्रंश से। 🎤
  2. डिंगल और पिंगल क्या हैं?
    डिंगल: पश्चिमी राजस्थानी का साहित्यिक रूप; पिंगल: पूर्वी राजस्थानी का। 📜
  3. सबसे प्राचीन बोली कौन सी है?
    मारवाड़ी (मरुवाणी).
  4. राजस्थानी भाषा दिवस कब मनाया जाता है?
    21 फरवरी
  5. प्रमुख साहित्यिक रचनाएँ कौन सी हैं?
    ढोला-मरवण, पृथ्वीराज रासो, वंश भास्कर।

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