अलवर जिले का संपूर्ण विवरण
अलवर राजस्थान का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध जिला है, जिसे “राजस्थान का प्रवेश द्वार” कहा जाता है। यह अपनी खूबसूरत झीलों, ऐतिहासिक किलों, वन्यजीव अभयारण्यों और राजपूती संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है।
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भौगोलिक स्थिति
- देशांतर एवं अक्षांशीय विस्तार: 27.55299° N, 76.63457° E
- कुल क्षेत्रफल: लगभग 8,380 वर्ग किमी
- जलवायु:
- ग्रीष्मकाल में तापमान 45°C तक जाता है, जबकि शीतकाल में 5°C तक गिर सकता है।
- भूभाग:
- अरावली पर्वतमाला जिले के अधिकांश भाग में फैली हुई है, जिससे यहाँ पहाड़ी और समतल भूभाग दोनों मिलते हैं।
सामान्य जानकारी
- पुनर्गठन: जिलों के पुनर्गठन के बाद अलवर जिला तीन हिस्सों में बंट गया है: अलवर जिला, खैरथल-तिजारा, और कोटपूतली-बहरोड़।
- उपखंड: अलवर जिले में 9 उपखंड (अलवर, गोविंदगढ़, रैणी, लक्ष्मणगढ़, मालाखेड़ा, राजगढ़, रामगढ़, थानागाजी, और डूमर) हैं।
- तहसील: अलवर जिले में 12 तहसील (अलवर, गोविंदगढ़, रैणी, लक्ष्मणगढ़, मालाखेड़ा, राजगढ़, टहला, रामगढ़, नौगावा, थानागाजी, प्रतापगढ़, और कठूमर) हैं।
- सीमाएँ: अलवर जिले की सीमा 6 जिलों (खैरथल-तिजारा, कोटपूतली-बहरोड़, जयपुर ग्रामीण, दौसा, भरतपुर, और डीग) से लगती है। अंतर्राज्यीय सीमा हरियाणा से लगती है।
- राष्ट्रीय राजमार्ग: अलवर जिले से एन.एच. 248 ए, 921, और दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे गुजरते हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- स्थापना: 1775 ई. में रावराजा प्रतापसिंह द्वारा अलवर की स्थापना की गई। राजधानी राजगढ़ को बनाया गया और बाद में अलवर को दूसरी राजधानी बनाया गया।
- ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ संधि: अलवर के राजा बख्तावर सिंह ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ सर्वप्रथम सहायक संधि की।
- विलय: मार्च 1949 में अलवर का मत्स्य संघ के वृहद् राजस्थान में विलय हुआ और यह एक जिले के रूप में स्थापित किया गया।
प्रमुख स्थल एवं संरचनाएँ
- मूसी महारानी की छतरी: 1815 ई. में विनयसिंह द्वारा निर्मित। इसमें 80 खम्भे होने के कारण इसे अस्सी खम्भों की छतरी भी कहा जाता है।
- सिलीसेढ़ झील: 1844 ई. में महाराजा विनयसिंह ने अपनी रानी शीला के लिए इस झील के पास महल बनवाया। इसे राजस्थान का नन्दकानन कहा जाता है।
- नीलकण्ठ: बड़गूर्जर नरेशों की राजधानी रहा यह स्थल नीलकण्ठेश्वर (शिवजी) के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
- नारायणी माता मंदिर: राजगढ़ तहसील के बरवा डूंगरी की तलहटी में स्थित। यह नाईयों की कुलदेवी का मंदिर है।
- भर्तृहरि मन्दिर: यह मंदिर भर्तृहरि (उज्जैन के शासक) को समर्पित है। यहाँ वर्ष में दो बार मेला लगता है: श्रावण पूर्णिमा और भाद्रपद पूर्णिमा।
- विजयसागर झील: अलवर के महाराजा जयसिंह द्वारा निर्मित।
- फतेहगंज गुम्बद: 1547 में निर्मित, यह 5 मंजिला गुम्बद अपनी स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है।
- सिटी पैलेस: 1776 ई. में महाराजा विनयसिंह द्वारा निर्मित विनय विलास महल के नाम से जाना जाता है।
- विजय मंदिर महल: 1918 ई. में महाराजा जयसिंह द्वारा निर्मित।
- होप सर्कस / कैलाश बुर्ज: अलवर शहर के मध्य स्थित। इसका नाम लिनलिथगो की पुत्री होप के नाम पर रखा गया।
- ईटाराणा की हवेली / कोठी: महाराजा जयसिंह द्वारा निर्मित।
- भानगढ़ का किला: आमेर के राजा भगवंतदास द्वारा निर्मित। यह सावण नदी के किनारे स्थित है।
- अलवर का किला / बाला किला: हसन खाँ मेवाती द्वारा निर्मित। इसे कुंवारा किला भी कहा जाता है।
- कुतुबखाना: महाराजा विनयसिंह के शासनकाल में स्थापित पुस्तकालय।
प्राकृतिक एवं वन्यजीव
- सरिस्का अभयारण्य: राजस्थान का क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे छोटा अभयारण्य। यहाँ बाघ, तेंदुआ, और अन्य वन्यजीव पाए जाते हैं।
- ताल-वृक्ष: ऋषि माण्डव्य की तपोस्थली। यहाँ गंगा माता का प्राचीन मंदिर भी स्थित है।
- रावण देहरा: अलवर किले के नीचे प्राचीन नगर के ध्वंसवशेष।
मुख्य नदियाँ:
- साबी नदी – यह जिले की प्रमुख नदी है, जो अरावली पर्वत से निकलती है।
- रूपारेल नदी
- चुहाड़ा नदी
उद्योग एवं व्यापार
- प्याज प्रोसेसिंग इकाई: अलवर में स्थित।
- माचिस उद्योग: अलवर का प्रसिद्ध उद्योग।
- ताँबा खनन: अलवर में खो-दरीबा ताँबा खनन के लिए प्रसिद्ध है।
- कलाकन्द (मावा): अलवर का प्रसिद्ध मिठाई।
सांस्कृतिक एवं लोक कला
- भपंग वाद्ययंत्र: अलवर क्षेत्र में प्रसिद्ध।
- अली बख्शी ख्याल: अलवर में प्रचलित लोक नाट्य।
- बम नृत्य: अलवर और भरतपुर में प्रचलित।
शिक्षा एवं अनुसंधान
- राज्य का पहला जल विश्वविद्यालय: अलवर में स्थापित।
- C.R.P.F की महिला बटालियन: 17 जुलाई 2013 को अलवर में गठित।
प्रमुख व्यक्तित्व
- राजेन्द्र सिंह: रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित। यह पुरस्कार उनके द्वारा संचालित सिंचाई एवं जल संरक्षण कार्यों के लिए दिया गया।
- मेजर सौरभ सिंह शेखावत: एवरेस्ट पर्वत को फतह करने वाले राजस्थान के प्रथम नागरिक।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- स्वामी विवेकानन्द: 1891 और 1897 में अलवर आए थे।
- अलवर का शुभंकर: सांभर।
- जलवायु: अलवर क्षेत्र में आर्द्र जलवायु पाई जाती है।
- पांडुपोल: पांडवों से संबंधित स्थल, जहाँ हनुमान जी की शयन मुद्रा में प्रतिमा है।