बीकानेर का राठौड़ वंश: जांगल देश के 15 रोचक तथ्य

By: LM GYAN

On: 13 June 2025

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बीकानेर का राठौड़ वंश

बीकानेर का राठौड़ वंश जोधपुर के राठौड़ वंश की एक शाखा है, जिसकी नींव राव बीका ने 1465 ई. में रखी। यह क्षेत्र पहले जांगल देश या राती घाटी के नाम से जाना जाता था। राठौड़ों ने अपनी वीरता और कूटनीति से इस रेगिस्तानी क्षेत्र को एक समृद्ध राज्य में बदल दिया।का राठौड़ वंश- प्रमुख शासक और उनकी उपलब्धियाँ

Table of Contents

बीकानेर का राठौड़ वंश – प्रमुख शासक और उनकी उपलब्धियाँ

1. राव बीका (1465-1504 ई.): बीकानेर के संस्थापक

  • संस्थापक: राव बीका, जोधपुर के शासक राव जोधा के पुत्र थे। उन्होंने करणी माता के आशीर्वाद, काका कांधल, भाई बीदा, और गोदारा-सारण जाटों की आपसी फूट का लाभ उठाकर 1465 ई. में जांगल देश पर कब्जा किया और बीकानेर राज्य की स्थापना की।
  • बीकानेर नगर: 1488 ई. में बीका ने नेरा जाट की मदद से बीकानेर नगर बसाया, जिसका नाम बीका+नेर से बना। इसे राजधानी बनाया गया।
  • निर्माण: बीका ने कोडमदेसर में भैरूजी मंदिर और देशनोक में करणी माता के मूल मंदिर का निर्माण करवाया। उनका निवास बीकाजी की टेकरी या गढ़ गणेश कहलाता है।
  • परंपरा: बीकानेर राजपरिवार का राजतिलक गोदारा जाट करते थे।
  • स्थापना दिवस: आखातीज को बीकानेर का स्थापना दिवस मनाया जाता है।

2. राव लूणकरण (1505-1526 ई.): दानशील शासक

  • उत्तराधिकारी: बीका के बाद राव नरा गद्दी पर बैठे, लेकिन 1505 ई. में उनकी मृत्यु के बाद लूणकरण शासक बने। वे लोकसंत जसनाथ जी के आशीर्वाद से राजा बने।
  • उपाधि: लूणकरण की दानशीलता के लिए बीठू सूजा ने राव जैतसी रो छन्द और कर्मचन्द्रवंशोत्कीर्तनक काव्यम् में उनकी तुलना कर्ण से की। उन्हें कलयुग का कर्ण कहा गया।
  • निर्माण: लूणकरण ने लूणकरणसर झील बनवाई।
  • अंत: 1526 ई. में ढोसी युद्ध में नारनौल के नवाब शेख अबीमीरा से लड़ते हुए वे वीरगति को प्राप्त हुए।

3. राव जैतसी (1526-1542 ई.): वीर योद्धा

  • खानवा युद्ध: 1527 ई. में जैतसी ने अपने पुत्र कुंवर कल्याणमल को राणा सांगा की मदद के लिए भेजा।
  • भटनेर युद्ध: 1534 ई. में जैतसी ने बाबर के उत्तराधिकारी कामरान पर आक्रमण कर भटनेर पर कब्जा किया। इस युद्ध का वर्णन बीठू सूजा के राव जैतसी रो छन्द में है।
  • पाहेबा युद्ध: 1541 ई. में मारवाड़ के राव मालदेव के सेनापति कूंपा ने जैतसी को हराया। जैतसी मारे गए, और बीकानेर पर मालदेव का कब्जा हो गया। कल्याणमल शेरशाह सूरी की शरण में चले गए।

4. राव कल्याणमल (1544-1574 ई.): मुगल संबंध

  • गिरी सुमेल युद्ध: 1544 ई. में कल्याणमल ने शेरशाह सूरी की मदद की, जिसके बाद उन्हें बीकानेर का राज्य वापस मिला।
  • मुगल अधीनता: 1570 ई. में कल्याणमल ने अकबर के नागौर दरबार में अधीनता स्वीकार की और मुगलों से वैवाहिक संबंध स्थापित किए।
  • जोधपुर: अकबर ने कल्याणमल के पुत्र राय सिंह को 1572 ई. में जोधपुर का प्रतिनिधि बनाया।
  • पृथ्वीराज राठौड़: कल्याणमल के पुत्र पृथ्वीराज (पीथल) प्रसिद्ध कवि थे। उनकी रचना वेलि किसन रुकमणी री को दुरसा आढ़ा ने 5वाँ वेद और 19वाँ पुराण कहा। जेम्स टॉड ने इसमें 10,000 घोड़ों का बल बताया, और लुईजी पिओ तैस्सीतोरी ने उन्हें डिंगल का हैरोस कहा। अन्य रचनाएँ: गंगा लहरी, दशम भागवत राव दूहा, दशरथ वराउत। अकबर ने उन्हें गागरोन का किला जागीर में दिया।

5. महाराजा राय सिंह (1574-1612 ई.): राजपूताने का कर्ण

  • उपाधियाँ: राय सिंह को अकबर ने महाराजा और राय की उपाधियाँ दीं। मुंशी देवीप्रसाद ने उन्हें राजपूताने का कर्ण कहा। कर्मचन्द्रवंशोत्कीर्तनकं काव्यम् में उन्हें राजेन्द्र कहा गया।
  • मुगल सेवा: राय सिंह अकबर और जहाँगीर के मनसबदार थे। अकबर ने उन्हें जोधपुर का प्रतिनिधि बनाया, 1593 ई. में जूनागढ़ और 1604 ई. में शमशाबादनूरपुर की जागीरें दीं। जहाँगीर ने 1605 ई. में 5000 जात और 5000 सवार का मनसब दिया।
  • दत्ताणी युद्ध: 1583 ई. में राय सिंह ने सिरोही के सूरताण देवड़ा को हराया, जिसमें महाराणा प्रताप के भाई जगमाल मारे गए।
  • निर्माण: राय सिंह ने जूनागढ़ किला का पुनर्निर्माण करवाया, जिसमें राय सिंह प्रशस्ति लिखी गई। सूरजपोल के बाहर जयमल-फत्ता की मूर्तियाँ स्थापित कीं। किले का प्रवेश द्वार कर्णपोल है।
  • साहित्य: राय सिंह ने राय सिंह महोत्सव, वैधक वंशावली, ज्योतिष रत्नाकर, और बालबोधिनी लिखे। उनके दरबारी जइता (राय सिंह प्रशस्ति) और जयसोम (कर्मचन्द्रवंशोत्कीर्तनकं काव्यम्) थे।
  • अंत: 1612 ई. में बुरहानपुर में उनकी मृत्यु हुई। उनके पुत्र दलपत सिंह (1612-13) और सूर सिंह (1613-31) शासक बने। दलपत को जहाँगीर ने मृत्युदंड दिया। सूर सिंह ने सूरसागर महल बनवाया।

6. महाराजा कर्ण सिंह (1631-1669 ई.): साहित्य प्रेमी

  • उपाधि: कर्ण सिंह को जांगलधर बादशाह कहा गया।
  • साहित्य: उन्होंने साहित्य कल्पद्रुम लिखा। उनके दरबारी गंगाधर मैथिल (कर्णभूषण, काव्य डाकिनी), होसिक भट्ट (कर्णवंतस), और मुद्नल (कर्ण संतोष) थे।
  • मतीरे री राड़: 1644 ई. में कर्ण सिंह और नागौर के अमर सिंह राठौड़ के बीच युद्ध हुआ।
  • मुगल सहायता: 1658 ई. में कर्ण सिंह ने अपने पुत्रों पद्म सिंह और केसरी सिंह को औरंगजेब की मदद के लिए भेजा।
  • अंत: 1669 ई. में उनकी मृत्यु हुई।

7. महाराजा अनूप सिंह (1669-1698 ई.): विद्वान शासक

  • उपाधियाँ: औरंगजेब ने अनूप सिंह को महाराजा और माही मरातिब की उपाधियाँ दीं।
  • साहित्य: अनूप सिंह ने अनूप विवेक, काम-प्रबोध, अनूपोदय, और श्राद्धप्रयोग चिंतामणि लिखे। उनके दरबारी मणिराम (अनूप व्यवहार सागर, अनूपविलास), अनंन भट्ट (तीर्थ रत्नाकर), और भावभट्ट (संगीत अनूप अकुंश, अनूप संगीत विलास, अनूप संगीत रत्नाकर) थे। आनंदराम ने गीता का मारवाड़ी में अनुवाद किया।
  • निर्माण: अनूप सिंह ने अनूप पुस्तकालय की स्थापना की और 33 करोड़ देवी-देवताओं का मंदिर (जूनागढ़) बनवाया। हेरम्ब गणपति (शेर पर सवार गणेश) की मूर्ति बीकानेर में है।
  • चित्रशैली: उनके काल में बीकानेर चित्रशैली का स्वर्णिम युग था, और उस्त कला लोकप्रिय हुई।
  • अनुवाद: अनूप सिंह ने शुक्रकारिका और बैताल पचीसी का राजस्थानी में अनुवाद करवाया।

8. महाराजा स्वरूप सिंह (1698-1700 ई.): बाल शासक

  • शासन: 9 वर्ष की आयु में स्वरूप सिंह गद्दी पर बैठे। उनकी माता सिसोदणी ने शासन संभाला, और स्वरूप सिंह औरंगजेब के प्रतिनिधि के रूप में औरंगाबाद और बुरहानपुर में रहे।
  • निर्माण: सिसोदणी ने चतुर्भुज मंदिर बनवाया।
  • अंत: 1700 ई. में उनकी मृत्यु हुई।

9. महाराजा सूजान सिंह (1700-1735 ई.): युद्ध और कूटनीति

  • प्रतिरोध: जोधपुर के अजीत सिंह के आक्रमण को पृथ्वीराज और हिन्दू सिंह ने विफल किया।
  • साहित्य: जोगीदास ने वरसलपुर विजय लिखा।
  • हुरड़ा सम्मेलन: 1734 ई. में सूजान सिंह ने बीकानेर का प्रतिनिधित्व किया।

10. महाराजा जोरावर सिंह (1735-1746 ई.): संस्कृत विद्वान

  • साहित्य: जोरावर सिंह ने पूजा-पद्धति और वैद्यक सार लिखे।

11. महाराजा गज सिंह (1746-1787 ई.): सिक्कों का युग

  • मुगल सहायता: गज सिंह ने अवध के नवाब सफदरजंग के खिलाफ मुगल सेना की मदद की। अहमद शाह ने उन्हें 7000 का मनसब, श्री राजेश्वर महाराजाधिराज, और माही मरातिब की उपाधियाँ दीं।
  • निर्माण: गज सिंह ने नौहरगढ़ की नींव रखी और गज साही सिक्के चलाए।
  • साहित्य: गोपीनाथ (महाराजा गज सिंहघजी रौ रूपक) और फतेराम (महाराजा गजसिंघ जी रा गीतकवित दूहा) उनके दरबारी थे।
  • खोज: 1753 ई. में दड़ीबा गाँव में ताँबे की खान मिली।

12. महाराजा सूरत सिंह (1787-1828 ई.): हनुमानगढ़ विजय

  • विजय: 1805 ई. में सूरत सिंह ने भटनेर को जीतकर हनुमानगढ़ नाम दिया।
  • संधि: 1818 ई. में चार्ल्स मेटकॉफ और काशीनाथ ओझा के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि की।
  • निर्माण: सूरत सिंह ने सूरतगढ़, फतहगढ़ (बीगोर), और करणी माता मंदिर (देशनोक) बनवाए।
  • गिंगोली युद्ध: 1807 ई. में सूरत सिंह ने जयपुर के साथ जोधपुर को हराया।
  • चूरू आक्रमण: 1814 ई. में चूरू पर आक्रमण किया, जहाँ शिवजी सिंह ने चाँदी के गोले दागे।
  • सती प्रथा: सूरत सिंह के पुत्र मोती सिंह की पत्नी दीपकुँवरी बीकानेर की अंतिम सती थीं। उनकी याद में देवीकुंड पर मेला लगता है।

13. महाराजा रतन सिंह (1828-1851 ई.): सुधारक

  • सुधार: 1836 ई. में रतन सिंह ने कन्या वध रोकने की शपथ दिलाई और 1844 ई. में आण जारी की।
  • युद्ध: 1829 ई. में वासणपी युद्ध में जैसलमेर से हारे। मेवाड़ के जवान सिंह ने समझौता करवाया।
  • मुगल उपाधि: अकबर द्वितीय ने माही मरातिब की उपाधि दी।
  • साहित्य: बीठू भोमा (रतन विलास), सागरदान (रतनरूपक), और अन्य ने जसरत्नाकररतनजस प्रकाश लिखे।
  • निर्माण: 1846 ई. में रतन बिहारी मंदिर बनवाया।
  • अंग्रेज सहायता: प्रथम आंग्ल-अफगान युद्ध (1839-42), प्रथम और द्वितीय आंग्ल-सिक्ख युद्ध (1845-49) में अंग्रेजों की मदद की।

14. महाराजा सरदार सिंह (1851-1872 ई.): 1857 का नायक

  • 1857 की क्रांति: सरदार सिंह ने अंग्रेजों की मदद की और राजस्थान के एकमात्र शासक थे, जो स्वयं युद्ध में गए। अंग्रेजों ने उन्हें हनुमानगढ़ के 41 गाँव दिए।
  • सुधार: 1859 ई. में सती प्रथा और जीवित समाधि बंद की। बाढ़ कर माफ किया और वैवाहिक खर्चों पर कानून बनाए।
  • निर्माण: रसिक शिरोमणि मंदिर और सरदार शहर (चूरू) बसाया।
  • सिक्के: 1859 ई. में सिक्कों पर विक्टोरिया और शाहआलम द्वितीय का नाम अंकित करवाया।
  • अंत: 1872 ई. में उनकी मृत्यु हुई।

15. महाराजा गंगा सिंह (1887-1943 ई.): आधुनिक बीकानेर के निर्माता

  • रेलवे: 1891 ई. में बीकानेर में रेलवे शुरू हुआ।
  • सुधार: 1891 ई. में पी.डब्ल्यू.डी. और 1913 ई. में प्रजा प्रतिनिधि सभा की स्थापना की।
  • खोज: 1896 ई. में पलाना में कोयले की खान मिली।
  • छप्पनिया अकाल: 1899-1900 ई. में गंगा सिंह ने शहरपनाह और गजनेर झील बनवाई।
  • अंग्रेज सहायता: 1900 ई. में बॉक्सर विद्रोह में मदद की, जिसके लिए केसर-ए-हिंद और चीन युद्ध मेडल मिला। प्रथम विश्व युद्ध में गंगा रिसाला (ऊँटों की सेना) भेजी और वर्साय शांति सम्मेलन में भाग लिया। द्वितीय विश्व युद्ध में भी मदद की।
  • उपाधियाँ: गंगा सिंह इम्पीरियल वॉर कैबिनेट के एकमात्र अश्वेत सदस्य और जनरल सम्मान प्राप्त करने वाले एकमात्र भारतीय नरेश थे।
  • सम्मेलन: 1903 ई. में दिल्ली दरबार, 1919 ई. में पेरिस सम्मेलन, 1924 ई. में लीग ऑफ नेशन्स, और 1930-32 ई. में गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया। नरेन्द्र मंडल और चैम्बर्स ऑफ प्रिंसेज के प्रथम चांसलर रहे।
  • गंग नहर: 1927 ई. में गंग नहर बनवाई, जिसका उद्घाटन लॉर्ड इरविन ने किया। इसे राजस्थान की पहली नहर कहा जाता है। गंगा सिंह को राजस्थान का भगीरथ कहा जाता है।
  • निर्माण: लालगढ़ पैलेस, गंगा निवास दरबार हॉल, विक्रम निवास दरबार हॉल, रामदेवड़ा, और देशनोक मंदिर बनवाए।
  • शिक्षा: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय को सर्वाधिक सहायता दी और आजीवन चांसलर रहे।
  • अंत: 1943 ई. में बम्बई में उनकी मृत्यु हुई।

16. महाराजा शार्दूल सिंह (1943-1949 ई.): अंतिम शासक

  • विलय: शार्दूल सिंह ने 7 अगस्त 1947 को इन्स्ट्रुमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर किए, और 30 मार्च 1949 को बीकानेर का वृहत राजस्थान में विलय हुआ।
  • सुधार: तख्तनशीनी की छाछ और नोता समाप्त किए।
  • स्थापना: शार्दूल स्पोर्ट्स स्कूल की स्थापना की।
  • विरोध: 26 अक्टूबर 1944 को बीकानेर दमन विरोधी दिवस मनाया गया।
  • संविधान सभा: बीकानेर पहली रियासत थी, जो संविधान सभा में शामिल हुई।
  • पंचपाना: शार्दूल सिंह की मृत्यु (1950) के बाद उनके पुत्रों ने रियासत को पाँच भागों में बाँटा, जिसे पंचपाना कहा जाता है।

बीकानेर के राठौड़ों की विरासत

  • स्थापत्य: जूनागढ़ किला, लालगढ़ पैलेस, करणी माता मंदिर, रतन बिहारी मंदिर, और गंग नहर।
  • साहित्य: वेलि किसन रुकमणी री, राय सिंह प्रशस्ति, कर्मचन्द्रवंशोत्कीर्तनकं काव्यम्, और अनूप विवेक
  • संस्कृति: गंगा रिसाला, बीकानेरी भुजिया, और छप्पनिया अकाल के दौरान राहत कार्य।
  • परंपराएँ: करणी माता, गोदारा जाटों द्वारा राजतिलक, और देवीकुंड मेला।

निष्कर्ष: बीकानेर का गौरव

बीकानेर के राठौड़ वंश ने न केवल यीति और कला में योगदान दिया, बल्कि आधुनिक बीकानेर की नींव भी रखी। गंग नहर से लेकर लालगढ़ पैलेस तक, उनकी विरासत आज भी जीवित है। क्या आपने बीकानेर की इन ऐतिहासिक धरोहरों को देखा है? अपनी राय कमेंट में साझा करें!

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