हर्यक वंश मगध का तीसरा राजवंश था, जिसने लगभग 131 साल (544–413 ई.पू.) तक शासन किया। इस वंश ने मगध को एक ताकतवर साम्राज्य बनाने की नींव रखी। कुल सात राजाओं ने इस वंश को गौरव दिलाया, और इसकी शुरुआत बिंबिसार ने की, जिन्होंने प्रद्योत वंश के आखिरी राजा वर्तिवर्धन को हराकर सत्ता हथियाई। राजधानी शुरू में राजगीर (गिरिव्रज) थी, और बाद में पाटलिपुत्र बनी। आइए, इस वंश की कहानी को करीब से देखें!
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हर्यक वंश का उदय
- स्थापना: 544 ई.पू. में बिंबिसार ने प्रद्योत वंश के वर्तिवर्धन को हराकर हर्यक वंश की नींव डाली।
- राजधानी: शुरू में गिरिव्रज (राजगीर), बाद में उदयिन ने पाटलिपुत्र को राजधानी बनाया।
- भाषाएँ: संस्कृत (मुख्य), मागधी, प्राकृत।
- धर्म: हिंदू धर्म, साथ में जैन और बौद्ध धर्म का प्रभाव।
- शासन: राजतंत्र।
- युग: लौह युग।
- मुद्रा: पण।
- पूर्ववर्ती: प्रद्योत वंश, वैदिक सभ्यता।
- परवर्ती: शिशुनाग वंश।
हर्यक वंश के प्रमुख राजा
1. बिंबिसार (544–492 ई.पू.)
हर्यक वंश का असली हीरो, बिंबिसार, मगध को नई ऊँचाइयों पर ले गया। जैन ग्रंथों में इसे श्रेणिक कहा जाता है। ये एक चतुर कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी शासक था।
- वैवाहिक गठबंधन:
- लिच्छवि गणराज्य: शिवराज गोमास्ता की बेटी चेल्लना से विवाह।
- कोशल: राजा प्रसेनजित की बहन महाकोशला से शादी।
- मुद्र देश (पंजाब): राजकुमारी क्षेमा से विवाह।
- महावग्ग के मुताबिक, बिंबिसार की 500 रानियाँ थीं!
- कूटनीति:
- अवंति के राजा चंद्र प्रद्योत, सिन्ध के रुद्रायन, और गांधार के मुक्कु रगति से दोस्ती।
- अंग राज्य जीता, बेटे अजातशत्रु को वहाँ उपराजा बनाया।
- धार्मिक सहिष्णुता:
- बुद्ध का दोस्त और संरक्षक, बौद्ध धर्म अपनाया।
- जैन और ब्राह्मण धर्म के प्रति भी उदार।
- बौद्ध भिक्षुओं को मुफ्त जल यात्रा की इजाज़त दी।
- वेलुबन (बाँस का जंगल) बौद्ध संघ को दान दिया (विनयपिटक)।
- खास बातें:
- भारतीय इतिहास का पहला शासक, जिसने स्थायी सेना बनाई।
- राजवैद्य जीवक को बुद्ध की सेवा में लगाया।
- बेटे दर्शक को उत्तराधिकारी बनाया, लेकिन अजातशत्रु ने 492 ई.पू. में उनकी हत्या कर दी।
- आम्रपाली:
- वैशाली की मशहूर नर्तकी और बुद्ध की उपासक।
- बिंबिसार ने उसे लिच्छवि से जीता, उससे विवाह किया।
- इनका बेटा जीवक हुआ, जिसे तक्षशिला में पढ़ने भेजा गया।
- अंत: बौद्ध-जैन ग्रंथों के मुताबिक, अजातशत्रु ने बुद्ध के विरोधी देवदत्त के उकसाने पर बिंबिसार को कैद किया, जहाँ उनकी मृत्यु हुई।
2. अजातशत्रु (492–460 ई.पू.)
बिंबिसार का बेटा अजातशत्रु (बचपन का नाम: कुणिक) एक महत्वाकांक्षी और युद्धप्रिय शासक था। उसने पिता की हत्या कर गद्दी हथियाई, जिससे वो भारतीय इतिहास का पहला पितृहंता कहलाया।
- साम्राज्य विस्तार:
- मगध-कोशल युद्ध:
- बिंबिसार की पत्नी (कोशल की महाकोशला) की मृत्यु से प्रसेनजित नाराज़।
- पहला युद्ध: प्रसेनजित हारा, श्रावस्ती भागा।
- दूसरा युद्ध: अजातशत्रु हारा, लेकिन प्रसेनजित ने बेटी वाज़ीरा से उसकी शादी कर काशी दहेज में दी।
- मगध-वज्जि युद्ध:
- बिंबिसार की पत्नी चेल्लना (लिच्छवि) ने अजातशत्रु की माँग (हाथी और हार) ठुकराई।
- अजातशत्रु ने लिच्छवियों पर हमला किया।
- मंत्री वस्सकार ने लिच्छवियों में फूट डालकर वैशाली जीता।
- मगध-मल्ल युद्ध:
- मल्ल संघ को हराकर पूर्वी उत्तर प्रदेश का बड़ा हिस्सा मगध में मिलाया।
- अवंति पर जीत: प्रबल प्रतिद्वंद्वी अवंति को हराया।
- मगध-कोशल युद्ध:
- हथियार:
- रथ मूसल: टैंक जैसा।
- महाशिलाकंटक: तोप जैसा।
- धार्मिक योगदान:
- बौद्ध और जैन धर्म का समर्थक।
- भरहुत स्तूप की वेदिका पर बुद्ध की वंदना करते दिखाया गया।
- बुद्ध के महापरिनिर्वाण (483 ई.पू.) के बाद राजगृह में उनके अवशेषों पर स्तूप बनवाया।
- 483 ई.पू. में सप्तपर्णी गुफा (राजगृह) में प्रथम बौद्ध संगीति कराई, जहाँ सुतपिटक और विनयपिटक बने।
- महत्वपूर्ण घटनाएँ:
- बुद्ध का महापरिनिर्वाण (483 ई.पू.) और महावीर का कैवल्य (468 ई.पू.) इसके समय में।
- अंत: 32 साल शासन के बाद 460 ई.पू. में बेटे उदयिन ने हत्या की।
3. उदयिन (460–444 ई.पू.)
अजातशत्रु का बेटा उदयिन (उदयभद्र) मगध का अगला राजा बना। बौद्ध ग्रंथ इसे पितृहंता कहते हैं, लेकिन जैन ग्रंथ इसे पितृभक्त मानते हैं।
- माता: पद्मावती।
- योगदान:
- चंपा का उपराजा रहा।
- पिता की तरह वीर और विस्तारवादी।
- पाटलिपुत्र (गंगा-सोन संगम) बसाया और राजधानी राजगीर से यहाँ शिफ्ट की।
- अंत: अवंति के गुप्तचरों ने इसकी हत्या कर दी।
4. अनिरुद्ध, मंडक, और नागदशक (444–413 ई.पू.)
- उदयिन के तीन बेटों ने शासन किया:
- अनिरुद्ध
- मंडक
- नागदशक (आखिरी राजा)
- नागदशक:
- विलासी और कमज़ोर शासक।
- शासन में ढीलापन, जनता में असंतोष।
- वंश का अंत:
- 413 ई.पू. में जनता ने विद्रोह किया।
- सेनापति शिशुनाग ने नागदशक को मारकर शिशुनाग वंश शुरू किया।
हर्यक वंश की खासियत
- साम्राज्य विस्तार: बिंबिसार और अजातशत्रु ने अंग, काशी, वैशाली, और मल्ल को मगध में मिलाया।
- पितृहंता: इस वंश में सबसे ज़्यादा पितृहंता (बिंबिसार, अजातशत्रु, उदयिन)।
- धार्मिक सहिष्णुता: हिंदू, जैन, और बौद्ध धर्म को बढ़ावा।
- प्रशासन: स्थायी सेना और वैवाहिक गठबंधनों से मज़बूत शासन।
- सांस्कृतिक योगदान: पाटलिपुत्र की स्थापना और बौद्ध संगीति जैसे कदम।