झालावाड़ जिले का संपूर्ण विवरण
झालावाड़ जिला राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित है और इसे “झीलों और मंदिरों का शहर” कहा जाता है। यह जिला अपनी प्राकृतिक सुंदरता, ऐतिहासिक दुर्गों, जलप्रपातों और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है।
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भौगोलिक स्थिति
- देशांतर एवं अक्षांशीय विस्तार: 24.60° N, 76.16° E
- कुल क्षेत्रफल: लगभग 6,928 वर्ग किमी
- सीमाएँ:
- उत्तर में कोटा जिला
- पश्चिम में बूंदी और बारां जिले
- दक्षिण में मध्य प्रदेश का राजगढ़ और शाजापुर जिला
- पूर्व में मध्य प्रदेश का गुना जिला
- जलवायु:
- यह क्षेत्र नदी-झीलों से युक्त और हरित है।
- गर्मियों में तापमान 40°C तक और सर्दियों में 5°C तक गिर सकता है।
- भूभाग:
- यह जिला राजस्थान के अन्य जिलों की तुलना में अधिक हरा-भरा है।
- यहाँ मुख्य रूप से मालवा का पठार फैला हुआ है।
स्थापना एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- स्थापना: 1791 ई. में जालिमसिंह झाला (कोटा के सेनापति) द्वारा
- रियासत का गठन: 1838 में अंग्रेजों द्वारा महारावल झाला मदनसिंह के लिए
- उपनाम:
- राजस्थान का नागपुर (संतरों के उत्पादन के कारण)
- सोयाजिला
- पूर्व नाम: उम्मेदपुरा की छावनी
- शुभंकर: गागरोनी तोता
भौगोलिक विशेषताएँ
- अवस्थिति: दक्षिणी-पूर्वी पठार (मालवा का पठार)
- प्रमुख नदियाँ:
- कालीसिंध, चंद्रभागा, आहू, निवाज, परवन, अंधेरी
- राजस्थान में सर्वाधिक नदियाँ वाला जिला
- जलवायु:
- सर्वाधिक वर्षा वाला जिला (40 दिन)
- न्यूनतम आंधियाँ (3 दिन)
- सीमाएँ:
- मध्यप्रदेश के साथ सर्वाधिक लंबी अंतर्राज्यीय सीमा
प्रमुख ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थल
(क) किले
- गागरोन का किला:
- विशेषता:
- बिना नींव के चट्टान पर निर्मित
- कालीसिंध व आहू नदी का संगम
- सूफी संत मिट्ठे शाह की दरगाह, भगवान मधुसूदन मंदिर
- कोटा रियासत की टकसाल
- विशेषता:
(ख) मंदिर
- शीतलेश्वर महादेव मंदिर (689 ई.):
- राजस्थान का सबसे प्राचीन तिथियुक्त मंदिर
- सूर्य मंदिर (झालरापाटन):
- कोणार्क के सूर्य मंदिर की तर्ज पर निर्मित
- सूर्य प्रतिमा के जूते पहने हुए
- द्वारकाधीश मंदिर (1796 ई.):
- गोमती सागर झील के किनारे
- चाँदखेड़ी के जैन मंदिर:
- 6 फुट ऊँची आदिनाथ प्रतिमा
- उन्हेल जैन मंदिर:
- 1000 वर्ष पुरानी पार्श्वनाथ प्रतिमा
(ग) पुरातात्विक स्थल
- कोटड़ा व खानपुरा: हड़प्पाकालीन सभ्यता
- कोलवी की गुफाएँ:
- बौद्ध धर्म से संबंधित
- “राजस्थान की अजंता-एलोरा” कहलाती हैं
सांस्कृतिक विरासत
- लोकनृत्य: बिंदौरी नृत्य (होली पर)
- मेले:
- चंद्रभागा पशु मेला (राज्य स्तरीय, कार्तिक पूर्णिमा)
- गोमती सागर पशु मेला (वैशाख पूर्णिमा)
- भवानी नाट्यशाला (1921):
- पारसी ओपेरा शैली में निर्मित
प्राकृतिक संपदा
- मुकुंदरा हिल्स अभयारण्य:
- कोटा व झालावाड़ में विस्तृत
- बाघ संरक्षण हेतु प्रसिद्ध
- बड़बेला तालाब:
- पक्षियों की आश्रयस्थली
- असनावर में वाटिका के रूप में विकसित
आर्थिक एवं औद्योगिक विकास
- कृषि:
- संतरा उत्पादन में अग्रणी
- अश्वगंधा मंडी
- ऊर्जा:
- कालीसिंध क्रिटिकल थर्मल प्लांट (1200 मेगावाट)
- सिंचाई परियोजनाएँ:
- परवन, कालीसिंध, भीमसागर
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- झालरापाटन: “घंटियों का शहर”
- गिद्ध संरक्षण: 3 प्रजनन केंद्र (विश्व में लुप्तप्राय गिद्धों की संख्या 50+)
- राज्य की पहली किसान कंपनी: बकानी
- हर्बल गार्डन: आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का संग्रह
निष्कर्ष
झालावाड़ जिला अपनी ऐतिहासिक धरोहर, प्राकृतिक सौंदर्य और कृषि समृद्धि के लिए प्रसिद्ध है। गागरोन किला, चंद्रभागा नदी और संतरों के बाग इसकी विशिष्ट पहचान हैं। पर्यटन, पुरातत्व और पारिस्थितिकी के क्षेत्र में इस जिले का विशेष योगदान है।
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