करौली जिले का संपूर्ण विवरण
करौली जिला राजस्थान के पूर्वी भाग में स्थित है और इसे “मंदिरों की नगरी” कहा जाता है। यह जिला अपने किले, प्राचीन मंदिरों और राष्ट्रीय उद्यानों के लिए प्रसिद्ध है। करौली का किला, कैलादेवी मंदिर और रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान के समीप स्थित होने के कारण यह जिला पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।
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भौगोलिक स्थिति
- देशांतर एवं अक्षांशीय विस्तार: 26.50° N, 77.02° E
- कुल क्षेत्रफल: लगभग 5,530 वर्ग किमी
- सीमाएँ:
- उत्तर में धौलपुर जिला
- दक्षिण में सवाई माधोपुर जिला
- पूर्व में मध्य प्रदेश राज्य
- पश्चिम में दौसा और टोंक जिले
- जलवायु:
- गर्मियों में तापमान 46°C तक और सर्दियों में 5°C तक गिर सकता है।
- भूभाग:
- अरावली पर्वत श्रृंखला के ऊँचे-नीचे इलाके और चंबल नदी का मैदान।
प्रशासनिक एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- स्थापना:
- यादव वंश द्वारा 1040 ई. में (महाराजा विजयपाल द्वारा)
- जिला दर्जा: 19 जुलाई 1997 (सवाई माधोपुर से अलग होकर राजस्थान का 32वाँ जिला बना)
- शुभंकर: घड़ियाल
- उपनाम:
- कल्याणपुरी
- डांग की रानी
- राजस्थान का वृंदावन
- ऐतिहासिक घटनाएँ:
- 18 मार्च 1948: मत्स्य संघ में शामिल
- 1817: महाराव हरवक्षपाल द्वारा अंग्रेजों के साथ पहली सहायक संधि
- 1857: महाराव मदनपाल ने कोटा विद्रोह दबाने में सहायता की
भौगोलिक विशेषताएँ
- स्थिति: पूर्वी राजस्थान में स्थित
- प्रमुख नदियाँ:
- पार्वती नदी (छापर की पहाड़ियों से उद्गम)
- भद्रावती नदी (बाढ़ नियंत्रण हेतु भद्रावती बांध)
- कालीसिल नदी (कैलादेवी मंदिर के निकट)
प्रमुख धार्मिक स्थल
- कैलादेवी मंदिर:
- यादव वंश की कुलदेवी
- त्रिकुट पर्वत पर स्थित, अष्टभुजीय मूर्ति
- विशेषता: दर्शन से पूर्व कालीसिल नदी में स्नान अनिवार्य
- लांगुरिया नृत्य: देवी आराधना के समय प्रस्तुत किया जाता है
- श्री महावीर जी:
- 400 वर्ष पुरानी दिगंबर जैन मूर्ति
- वार्षिक मेला (चैत्र सुदी 13 से वैशाख बदी दूज तक)
- राज्य की प्रसिद्ध “लट्ठमार होली” का आयोजन
- अंजनी माता मंदिर:
- भारत का एकमात्र मंदिर जहाँ अंजनी माता द्वारा हनुमानजी को स्तनपान कराती प्रतिमा
- मदन मोहन जी मंदिर:
- गौड़ीय संप्रदाय से संबंधित, काले संगमरमर की मूर्ति
ऐतिहासिक दुर्ग एवं स्थापत्य
- तिम्मनगढ़ दुर्ग: महाराजा तिम्मनपाल द्वारा निर्मित
- मण्डरायल दुर्ग:
- “ग्वालियर दुर्ग की कुंजी” उपनाम
- मर्दानशाह पीर की मस्जिद स्थित
- ऊँटागिरी दुर्ग: प्राचीन सैन्य महत्व का स्थल
- राव गोपालसिंह की छतरी: स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण
सांस्कृतिक विरासत
- कन्हैया ख्याल:
- करौली व सवाई माधोपुर की प्रसिद्ध लोक नाट्य शैली
- प्रस्तुतकर्ता को “मेड़िया” कहते हैं
- घुटकन नृत्य: करौली का पारंपरिक नृत्य
- मुश्तर बाई: हिंडौन सिटी की प्रथम महिला नौटंकी कलाकार
आर्थिक एवं प्राकृतिक संसाधन
- पान की खेती: जिले की विशेषता
- हिंडोन: स्लेट निर्माण का प्रमुख केंद्र
- पांचना बांध:
- राजस्थान का सबसे बड़ा मिट्टी का बांध
- पाँच नदियों (भद्रावती, मसावट, माची, अट्टा, बरखेड़ा) का संगम
वन्यजीव एवं पर्यटन
- कैलादेवी अभयारण्य (1923):
- “डांगलैण्ड” के नाम से प्रसिद्ध
- तेंदुआ, सांभर, चिंकारा आदि का आवास
- महाशिवरात्रि पशु मेला:
- हरियाणवी नस्ल की गायों व भैसों का व्यापार
शैक्षणिक एवं सामाजिक योगदान
- स्वामी दयानंद सरस्वती: राजस्थान में प्रथम बार करौली आए
- करौली प्रजामंडल (1939): त्रिलोकचंद माथुर द्वारा स्थापित
- कँवर मदन सिंह:
- “करौली का भीष्म पितामह”
- “बेगारी विलाप” पुस्तक के लेखक
- सर्वहितकारी पुस्तकालय की स्थापना (1915)
करौली जिला अपनी धार्मिक विविधता (कैलादेवी, महावीर जी), ऐतिहासिक दुर्गों और सांस्कृतिक परंपराओं (कन्हैया ख्याल, घुटकन नृत्य) के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ का पांचना बांध जल संरक्षण का अनूठा उदाहरण है, जबकि कैलादेवी अभयारण्य प्राकृतिक समृद्धि को दर्शाता है। यादव वंश की विरासत और मत्स्य संघ के इतिहास ने इस जिले को राजस्थान के पूर्वी क्षेत्र में एक विशिष्ट पहचान दी है। करौली की पान की खेती और हस्तशिल्प स्थानीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाते हैं।