मनोज कुमार, जिन्हें ‘भारत कुमार’ के नाम से जाना जाता है, हिंदी सिनेमा के वो दिग्गज थे जिन्होंने देशभक्ति को एक नई पहचान दी। ‘शहीद’, ‘उपकार’, ‘पूरब और पश्चिम’ और ‘क्रांति’ जैसी फिल्मों के जरिए उन्होंने भारतीय संस्कृति, बलिदान और नैतिकता को सिनेमा में जीवंत किया। जानिए कैसे उनकी फिल्मों ने देश को प्रेरित किया।
मनोज कुमार: भारतीय सिनेमा का ‘भारत’
मनोज कुमार ने हिंदी सिनेमा में देशभक्ति को एक नया स्वर दिया। उनकी फिल्में सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज को जागृत करने का माध्यम थीं। ‘भारत कुमार’ के नाम से मशहूर इस अभिनेता-निर्देशक ने अपनी फिल्मों में भारतीय संस्कृति, स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रप्रेम को गहराई से दर्शाया।
शुरुआत: एक रोमांटिक हीरो से ‘भारत कुमार’ तक का सफर
मनोज कुमार ने अपने करियर की शुरुआत रोमांटिक फिल्मों से की, लेकिन 1965 में ‘शहीद’ आई, जिसमें उन्होंने भगत सिंह का किरदार निभाया। यह फिल्म इतनी प्रभावशाली रही कि आज भी भगत सिंह की छवि मनोज कुमार के चेहरे के साथ जुड़ी हुई है।
देशभक्ति की परिभाषा बदल दी
मनोज कुमार की फिल्मों में देशभक्ति का मतलब सिर्फ “जय हिंद” बोलना नहीं था, बल्कि समाज की कुरीतियों से लड़ना था। उनकी फिल्म ‘उपकार’ (1967) में “मेरे देश की धरती…” गीत ने देशभक्ति को एक नया आयाम दिया। इस फिल्म ने “जय जवान, जय किसान” का नारा भी लोकप्रिय बनाया।
पश्चिमी संस्कृति vs भारतीय मूल्य
‘पूरब और पश्चिम’ (1970) में मनोज कुमार ने भारतीय और पश्चिमी संस्कृति के टकराव को दिखाया। इस फिल्म में उन्होंने यह संदेश दिया कि “विदेशी चकाचौंध में भारतीयता न खोएं।”
‘क्रांति’ (1981): जब पूरा देश झूम उठा
दिलीप कुमार के साथ आई ‘क्रांति’ ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया। इस फिल्म के गाने “जिंदगी की ना टूटे लड़ी…” और “हम लाए हैं तूफान से…” आज भी याद किए जाते हैं।
संगीत का जादू: लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और कल्याणजी-आनंदजी का योगदान
मनोज कुमार की फिल्मों के गाने आज भी अमर हैं:
- “कस्मे वादे प्यार वफा…” (उपकार)
- “एक प्यार का नगमा है…” (शोर)
- “मैं ना भूलूंगा…” (रोटी, कपड़ा और मकान)
बदलते दौर में गुमनामी
1980 के बाद मनोज कुमार की फिल्में (‘कलयुग और रामायण’, ‘क्लर्क’) पुरानी शैली की लगने लगीं। लेकिन उनकी विरासत आज भी जिंदा है।
आज के सिनेमा पर प्रभाव
आज की फिल्में जैसे ‘नमस्ते लंदन’ (2007) और ‘केसरी’ (2019) में मनोज कुमार की ‘पूरब और पश्चिम’ और ‘शहीद’ की छाप साफ दिखती है।
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