राजस्थान के प्रमुख मंदिर की जानकारी इस article के माध्यम से प्राप्त करेंगे।
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मन्दिरों का निर्माण गुप्तकाल में हुआ था। राजस्थान में पहले मंदिरों के अवशेष बैराठ सभ्यता से मिले हैं। कोटा में मुकन्दरा का शिव मंदिर, कन्सुवा का शिव मंदिर और चारचौमा का शिव मंदिर राजस्थान में पुस्कालीन प्रमुख मंदिर हैं। झालरापाटन में निर्मित शीतलेश्वर महादेव मन्दिर (689 ई.) राजस्थान का पहला तिथियुक्त मंदिर है, जहां सूर्य पूजा और क्षेत्रपाल पूजा सबसे अधिक प्रचलित हैं।
राजस्थान के मंदिरों का महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है।
भारत में मन्दिर निर्माण की तीन शैलियां हैं-
- नागर शैली
- द्रविड़ शैली
- बेसर शैली
1. नागर शैली :-
इस शैली में मन्दिरों में गोल गुम्बदनुमा ऊँची चोटी व बीच में गर्भ गृह होता है। मंदिर चबूतरे पर होता है जिसके बीच में गर्भ गृह होता है, गर्भ गृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ होता है। इसमें मंदिर शिखर युक्त होता है। राजस्थान के अधिकांश मन्दिर इसी शैली में बने हैं। यह उत्तरी भारत की शैली है।
- इसकी तीन उपशैलियाँ हैं :-
महामारु / गुर्जर प्रतिहार शैली :- इसमें अश्लील मूर्तियों का निर्माण होता है। इस शैली का सर्वाधिक विकास गुर्जर प्रतिहारों ने किया। 8वीं-12वीं सदी यह शैली सर्वाधिक पनपी। जैसे- कुंभ स्वामी मंदिर, कालिका माता मंदिर (चित्तौड़गढ़), सास-बहु मंदिर (नागदा ), हरिहर मंदिर (ओसियाँ) - पंचायतन शैली :- पंचायतन शैली में एक मुख्य मंदिर होता है तथा चार अन्य मंदिर होते हैं। मुख्य मंदिर में विष्णु का तथा अन्य मंदिर में शक्ति शिव, सूर्य, गणेशजी के मन्दिर होते हैं। ये मंदिर श्रृंखला में होते हैं। प्रथम उदाहरण – देवगढ़ (झांसी) का दशावतार मंदिर। जैसे – ओसियाँ (जोधपुर) मन्दिर का हरिहर मंदिर, बाड़ौली का शिव मंदिर, भंडदेवरा मंदिर (बारों), जगदीश मंदिर (उदयपुर), बूढ़ादीत मंदिर (कोटा)
- एकायतन शैली :- इस मंदिर में एक गर्भ गृह होता है, गर्भ गृह के आगे सभामंडप होता है तथा सभामंडप के आगे द्वारमंडप होता है। एक ही देवता का मन्दिर होता है।
2. द्रविड़ शैली
दक्षिण भारत के मन्दिर इसी शैली में है। इस शैली में मंदिर के ऊपर का भाग पिरामिडनुमा होता है, बीच का भाग गुंबदाकार होता है तथा नीचे का भाग वर्गाकार होता है। इस शैली के मंदिरों के प्रवेश द्वार को गोपुरम कहते हैं। इसमें मन्दिर स्तम्भनुमा होते हैं। मन्दिर के चारों ओर मूर्तियाँ तथा जलकुण्ड होते हैं। जैसे- चोपड़ा मन्दिर (धौलपुर)
3. बेसर शैली
नागर व द्रविड़ का मिश्रण बेसर शैली कहलाती है यह शैली चालुक्य वंश द्वारा मध्य भारत में फैली थी। इसलिए इसे चालुक्य शैली भी कहते हैं।
मंदिर निर्माण की अन्य शैलियाँ :-
भूमिज शैली
मारु – गुर्जर शैली
चालुक्य शैली
कच्चापघात शैली
राजस्थान के प्रमुख मंदिर
जयपुर के प्रमुख मंदिर :-
जगत शिरोमणि मन्दिर :- आमेर शासक मानसिंह प्रथम (1589- 1614 ई.) के पुत्र जगतसिंह की मृत्यु बंगाल व बिहार अभियान में 1594 ई. में हो गयी थी जिसकी याद में मानसिंह की रानी कनकावती ने जगतशिरोमणि मन्दिर का निर्माण करवाया। इस मन्दिर का निर्माण पंचायतन शैली में हुआ है।
कल्की मन्दिर (जयपुर) :- भगवान विष्णु के 10वें अवतार भगवान कल्की का यह मन्दिर विश्व का प्रथम मन्दिर है जिसमें कल्की को घोड़े के साथ दिखाया गया है। इस मन्दिर का निर्माण सवाई जयसिंह ने 1739 ई. में करवाया।
लाड़ली मन्दिर (जयपुर) :- इसका निर्माण 1823 ई. में हुआ। यह मन्दिर किशोरी रमण का है जिसे लाडली मन्दिर के नाम से जाना जाता है। चरण मन्दिर (जयपुर)- इस मन्दिर में भगवान कृष्ण के चरणचिह्न रखे गये हैं। माना जाता है कि भगवान कृष्ण यहाँ गाय चराने आते थे।
गोविन्द देवजी का मंदिर :- यह गौड़ीय सम्प्रदाय का मन्दिर है जिसमें राधाकृष्ण की पूजा की जाती है। सवाई जय सिंह ने वृन्दावन से मूर्ति लाकर इनका मन्दिर बनवाया। इन्हें जयपुर का वास्तविक शासक माना जाता है। इनकी पूजा विधि अष्टयाम सेवा के नाम से प्रसिद्ध है।
- नकटी माता मंदिर (भवानीपुरा ,जयपुर )
- कल्याणजी का मंदिर (आमेर )
- सूर्य मंदिर (आमेर )
- गोपीनाथ मंदिर
- बिड़ला मंदिर
- अम्बिकेश्वर महादेव मंदिर (आमेर )
- द्वादश ज्योति लिंगेश्वर महादेव मंदिर (आमेर)
- नृसिंह मंदिर (आमेर )
- वीर हनुमान मंदिर (सामोद , जयपुर )
- गलता तीर्थ :- रामानंदी संप्रदाय की प्रधान पीठ
- चूलगिरी जैन मंदिर
- शीतला माता मंदिर – चाकसू
अजमेर के प्रमुख मंदिर :-
सोनीजी की नसियां :- इसका निर्माण प्रारम्भ मूलचन्द सोनी तथा इसे पूर्ण 1865 में इसके पुत्र टीकमचन्द सोनी ने किया। यह प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव/आदिनाथ का मंदिर है। यहाँ एक दिगम्बर जैन मंदिर भी स्थित है।
ब्रह्मा मन्दिर (पुष्कर) :- माना जाता है कि मंदिर का प्ररम्भिक निर्माण शंकराचार्य ने करवाया था। मन्दिर का निर्माण गोकलचंद पारीक ने करवाया था। (1809) इस मंदिर को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया है।
यह भारत में एकमात्र ब्रह्मा मन्दिर है। इस मन्दिर के परिसर में पंचमुखी महादेव, लक्ष्मीनारायण, गौरीशंकर पातालेश्वर महादेव, नारद और नवग्रह के छोटे-छोटे मन्दिर बने हुए हैं।
सावित्री मन्दिर (पुष्कर):- माना जाता है कि यज्ञ के समय सावित्री माता अपने पति ब्रह्मा से रूठकर यहाँ चली आयी थीं। यहीं सावित्री माता ने ब्रह्माजी को श्राप दिया था कि उनकी पूजा पुष्कर के अतिरिक्त कहीं नहीं होगी। सावित्री मंदिर का निर्माण रत्नागिरि पर्वत (अजमेर) में गोकुलचंद पारीक ने करवाया था। यहाँ 3 मई, 2016 ई. 700 मीटर लम्बा रोपवे लगा है जो राजस्थान का तीसरा रोप वे है।
- काचरिया मंदिर (किशनगढ़)
- वराह मंदिर (पुष्कर, अजमेर) :- इस मंदिर का निर्माण 12वीं सदी में अर्णोराज चौहान ने करवाया था।
- रंगनाथजी मंदिर- (पुष्कर, अजमेर
- आनंदी माता का मंदिर (नोसल, किशनगढ़)
- नौ ग्रहों का मंदिर (किशनगढ़)
- बजरंगगढ़ मंदिर
- पीपलाज माता मंदिर (ब्यावर)
- कल्पवृक्ष मंदिर (ब्यावर)
- बलाड़ का जैन मंदिर
जोधपुर के प्रमुख मंदिर :-
सूर्य मंदिर (ओसियाँ):- इस मन्दिर का निर्माण 10वीं सदी में करवाया गया। यह मन्दिर पंचायतन शैली में बना है। इस शिव मंदिर को राजस्थान का ब्लैक पैगोड़ा, राजस्थान का कोणार्क कहा जाता है।
महावीर मंदिर (ओसियाँ):- इस मन्दिर का निर्माण 8वीं शदी में प्रतिहार शासक वत्सराज ने करवाया। यह महामारु शैली में बना मन्दिर है।
सचिया माता (ओसियाँ) :- इस मन्दिर का निर्माण 12वीं सदी में पंचायतन शैली में करवाया गया। यह ओसवाल की कुल देवी हैं। यहाँ विष्णु शिव व सूर्य मन्दिर बनवाये गये।
हरिहर मंदिर (ओसियाँ):- ये मन्दिर पंचायतन शैली में है जिनका निर्माण खजुराहो व ओडिशा के परशुरामेश्वर मन्दिरों जैसा हुआ है। यहाँ कुल 3 मन्दिर हैं जिनमें 2 पंचायतन शैली के तथा 1 एकायतन शैली का है।
महामंदिर (जोधपुर) :- महामंदिर का निर्माण जोधपुर शासक मानसिंह ने 1812 में अपने गुरू आयस देवनाथ के कहने पर करवाया। यह मंदिर राजस्थान में नाथ संप्रदाय का सबसे बड़ा मंदिर था। इस मंदिर का निर्माण 84 खम्भों पर किया गया था।
- ओसियां के जैन मंदिर
- रावण मन्दिर (जोधपुर)
- ज्वालामुखी मंदिर (जोधपुर)
- कुंजबिहारी मंदिर (जोधपुर)
- रणछोड़ मंदिर (जोधपुर)
- तीजा मांगी मंदिर (जोधपुर)
- बाणगंगा मन्दिर (बिलाड़ा)
- ब्राह्मणी मन्दिर (फलौदी)
- लटियालजी मन्दिर (कापरड़ा)
- आईमाता मन्दिर (बिलाड़ा)
- जैन अम्बिका मंदिर (घटियाला)
- काला गौरा भैरव मंदिर (मंडोर)
- घनश्याम मंदिर (जोधपुर)
- पीपडला माता मंदिर (जोधपुर)
- उष्ट्रवाहिनी माता मंदिर (जोधपुर)
उदयपुर के प्रमुख मंदिर :-
एकलिंगजी का मन्दिर (कैलाशपुरी):- इस मन्दिर का निर्माण 8वीं सदी में बप्पा रावल ने करवाया। महाराणा रायमल ने इसे वर्तमान स्वरुप दिया। यह मन्दिर लकुलीश मन्दिर कहलाता है। राजस्थान में पाशुपत सम्प्रदाय का यह एकमात्र मन्दिर है। एकलिंगजी को मेवाड़ शासक अपना वास्तविक राजा मानते हैं। राणा मोकल ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था।
जगदीश मन्दिर (उदयपुर):- इस मन्दिर का निर्माण जगतसिंह प्रथम 1651 ई. में करवाया। इस मन्दिर के गर्भ गृह के सामने गरुड़ की विशाल मूर्ति है। इस मन्दिर के चारों कोणों में शिव पार्वती, गणपति, सूर्य तथा देवी के मन्दिर हैं। इसे सपनों से बना मन्दिर भी कहते है। इस मन्दिर का निर्माण पंचायतन शैली में हुआ। इस मन्दिर का निर्माण अर्जुन, भाणा, मुकुन्द की देख-रेख में हुआ।
ऋषभदेव मंदिर धूलेव (उदयपुर) :- उपनाम केसरियानाथजी, धूलेव के धणी, भील इसे ‘कालाजी’ कहते हैं। यह मंदिर 1100 में मूर्ति है। इस मंदिर का निर्माण कोयल नदी के तट पर हुआ। मेल खम्भों पर बना है। यहाँ तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की पद्मासन मुद्रा चैत्र कृष्ण अष्टमी को भरता है। यहाँ दिगम्बर, श्वेताम्बर, वैष्णव, ‘जैन, शैव मन्दिर हैं। केसर का उपयोग होने के कारण इसे केसरियानाथ जी कहते है।
जगत अम्बिका मन्दिर :- इस मन्दिर का निर्माण 925 ई. में किय गया। मंदिर का निर्माण अल्लट ने करवाया। इस मन्दिर में दुर्गा के कई रूप हैं जिसमें महिषासुरमर्दिनी रुप सर्वप्रमुख है। यह मन्दिर खजुराहो के लक्ष्मण मन्दिर से मिलता है जिस कारण इसे मेवाड़ का खजुराहो व राजस्थान का दूसरा खजुराहो कहते हैं।
सास-बहु मन्दिर नागदा (उदयपुर) :- यह मन्दिर पंचायतन शैली में बना है। इनमें बड़ा मन्दिर सास का तथा छोटा मन्दिर बहु का है। इन मन्दिरों का निर्माण 10वीं सदी में किया गया। इस मन्दिर को सहस्त्रबाहु मन्दिर कहते हैं क्योंकि यह भगवान विष्णु को समर्पित है।
- आहड़ के मंदिर (उदयपुर)
- शैव मंदिर (कल्याणपुर , उदयपुर)
- गुप्तेश्वर महादेव मंदिर (उदयपुर )
- बोहरा गणेश मंदिर (उदयपुर )
बाड़मेर के प्रमुख मंदिर :-
किराडू के मन्दिर (बाड़मेर) :- यहाँ भगवान शिव का मन्दिर है। यहाँ पाँच मन्दिर हैं जिसमें चार भगवान शिव के तथा एक भगवान विष्णु का है। ये मूल निर्माण शैली नागर है ये मन्दिर परमार और सोलंकी शैली का मिश्रण है। इन मन्दिरों का निर्माण 11वीं 12वीं सदी में किया गया। इन्हें राजस्थान का खुजराहो कहते हैं। यहाँ स्थित सोमेश्वर मंदिर प्रतिहार/महामारू शैली में बना है। शिल्पकला के कारण इस मंदिर को ‘मूर्तियों का खजाना’ कहा जाता है।
मल्लीनाथजी मंदिर तिलवाड़ा, बाड़मेर :- तिलवाड़ा गाँव में लूनी नदी के किनारे लोकदेवता मल्लीनाथजी ने समाधि ली जहाँ इनका मंदिर बना है। चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी को मल्लीनाथजी का पशु मेला है जो राजस्थान का सबसे प्राचीन पशु मेला है।
नाकोड़ा/मेवानगर पार्श्वनाथ मंदिर (बालोतरा ) :- यहाँ पौष बदी दशमी को पार्श्व नाथ का जन्म महोत्सव मनाया जाता है तथा चांदी के रथ पर पार्श्वनाथ की शोभायात्रा निकलती है।
रणछोड़ मन्दिर (खेड़, बालोतरा ) :- यहाँ स्थित वैष्णव मन्दिर को रणछोड़ मन्दिर कहते हैं जिसके प्रवेश द्वार पर गरुड़ की प्रतिमा है। मन्दिर का निर्माण 1173 ई. में हुआ था।
ब्रह्मा मंदिर आसोतरा बाड़मेर :- यह राजस्थान में दूसरा ब्रह्मा मंदिर है जिसका निर्माण 1984 ई. में खेतरामजी महाराज ने करवाया।
कपालेश्वर महादेव (चौहटन, बाड़मेर) :- पांडवों ने अपना अज्ञातवास का अन्तिम समय यहाँ बिताया था।
- गरीबनाथ मंदिर शिव, बाड़मेर
- विरात्रा माता मन्दिर (चौहटन)
- हल्देश्वर महादेव मन्दिर (पीपलूद)
- भटियाणी माता मन्दिर (जसोल)
- नागणेची माता मन्दिर (नगाणा)
- आलमजी का मन्दिर (धोरीमन्ना)
बीकानेर के प्रमुख मंदिर :-
कपिल मुनि का मन्दिर ( कोलायत) :- यहाँ सांख्य दर्शन के प्रणेता कपिलमुनि का मन्दिर है। कार्तिक मास की पूर्णिमा को यहाँ मेला भरता है जिसे मारवाड़ का पुष्कर कहते हैं। इस मंदिर में दीपदान होता है। इस झील मे 52 घाट बने है ।
हेरंब गणेश मंदिर :- मंदिर का निर्माण बीकानेर शासक अनूपसिंह ने जूनागढ़ में करवाया था। यहाँ स्थित गणेशजी की मूर्ति चूहे पर सवार नहीं है बल्कि सिंह पर सवार है जो पूरे भारत में एकमात्र है।
भांडेश्वर जैन मंदिर :- मंदिर की नींव में पानी की जगह घी काम में लिया गया था। जिससे आज भी मन्दिर में घी की सुगन्ध आती है। इस मन्दिर का निर्माण 1411 ई. में ओसवाल महाजन भांडाशाह ने करवाया।
भैरूजी मंदिर (कोड़मदेसर, बीकानेर) :- कोडमदेसर, बीकानेर के राठौड़ो की प्रारम्भिक राजधानी थी जहाँ राव बीका ने भैरूजी मंदिर का निर्माण करवाया।
लक्ष्मीनारायणजी का मंदिर (बीकानेर) :- इस मंदिर का निर्माण राव लूणकरण ने करवाया था।
- रतनबिहारी जी का मंदिर (बीकानेर)
- जाम्भोजी का मंदिर – मुकाम , नोखा
- 33 करोड़ देवी – देवता मंदिर (बीकानेर )
- पूर्णेश्वर महादेव मंदिर – भीनासर, बीकानेर
- रसिक बिहारी मंदिर (बीकानेर)
सिरोही के प्रमुख मंदिर :-
देलवाड़ा जैन मंदिर (आबू, सिरोही) :- यहाँ जैन धर्म के कुल पांच मंदिर है जिनका निर्माण सोलंकी शैली में हुआ है। 5 जैन मंदिरों का समूह है –
- (1) विमलशाही/आदिनाथ मंदिर (दिलवाड़ा)- निर्माता-गुजरात शासक भीमदेव चालुक्य का सेनापति विमलशाह द्वारा 1031 ई. में शिल्पकार- कीर्तिधर, ऋषभदेव / आदिनाथ का। विमलवसही जैन मंदिर के बारे में कर्नल जेम्स टॉड का कथन- ‘भारत वर्ष के भवनों में ताजमहल के बाद यदि कोई भवन है तो वह है विमलवसही का मंदिर’। मंदिर का निर्माण संगमरमर से किया गया है।
- (2) लूणवसही मंदिर (दिलवाड़ा ) – निर्माण धावल के अमात्य वास्तुपाल व तेजपाल 1230 ई. शिल्पी शोभन, मूर्ति-नेमीनाथ (22वें) की जिसकी स्थापना आचार्य श्री विजय सेन सूरि द्वारा गई गई। मन्दिर के मुख्य द्वार के दोनों ओर दो ताक हैं जिन्हें देवरानी जेठानी के गवाक्ष कहते हैं। इस मंदिर का शिल्पी शोमनदेव था।
- (3) पित्तलहर जैन मंदिर – इस मंदिर का निर्माण भीमाशाह ने करवाया था। जिस कारण इसे भीमाशाह मंदिर भी कहते है। इस मंदिर में जैन धार्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ / ऋषभदेव की 108 मन की पीतल की मूर्ति है। जिस कारण इन्हें पित्तलहर मंदिर कहते है।
- (4) पार्श्वनाथ जैन मंदिर – यह तीन मंजिला मंदिर है जिसके गर्भगृह में जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मूर्ति स्थापित है। इसे सिलावटों का मंदिर कहते हैं।
- (5) महावीर स्वामी जैन मंदिर – यह मंदिर जैन धर्म के अन्तिम व 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी का है।
- गोपेश्वरजी का शिव मंदिर (पिंडवाड़ा)
- लक्ष्मीनारायण मंदिर (पिंडवाड़ा)
- ब्रह्मा मंदिर (बसन्तगढ़)
- क्षेमकरी माता मन्दिर (बसन्तगढ़)
- परशुराम मन्दिर (कोजरा)
- ऋषिकेश मंदिर (आबूरोड़)
पाली के प्रमुख मंदिर :-
ऋषभदेव/आदिनाथ जैन मंदिर :- इस मन्दिर का निर्माण सेठ धरणकशाह ने मथाई नदी के किनारे करवाया जिस कारण इस मन्दिर को धरणीविहार मंदिर भी कहते है। मन्दिर का शिल्पी दैपाक था। इस मन्दिर में आदिनाथ की मूर्ति है जिसके चार मुख है जिस कारण इसे चौमुखा मन्दिर कहा है। इस मंदिर में 1444 स्तंभ है जिस कारण इसे स्तंभों का वन कहते है। मंदिर का निर्माण राणा कुम्भा के समय 1439 ई. में करवाया गया। मंदिर में आदिनाथ/ऋषभदेव की 5 फीट ऊँची संगमरमर की मूर्ति लगी है। मंदिर में कुल 24 मण्डप, 84 शिखर है। मंदिर के मुख्य द्वार की छत पर ऋषभदेव की मात मारूदेवी की हाथी पर बैठे मूर्ति है।
नेमिनाथ जैन मंदिर (पाली) :- दीवारों पर नग्न मूर्तियाँ है जिस कारण इसे पातरिया से देहरो कहते है। यानि वेश्याओं का मंदिर कहा जाता है। मंदिर की दीवारों पर लगी संभोग मुद्रा की मूर्तिया ‘काम’ को ईश्वर प्राप्ति में बाधा को प्रकट करती है।
पार्श्वनाथ जैन मंदिर (पाली) :- यह मंदिर नेमिनाथजी के मंदिर के पास ही स्थित है। मंदिर में श्यामल वर्ण की जैन धर्म के 23वें तीर्थकर पार्श्वनाथजी की मूर्ति स्थापित है।
सूर्यनारायण मंदिर (पाली) :- इस मंदिर में गणेशजी, सूर्य, पार्वती, ब्रह्मा, लक्ष्मी, विष्णु की मूर्तियाँ है।
फालना के जैन मन्दिर :- यहाँ राजस्थान का प्रथम स्वर्ण जैन मन्दिर स्थापित किया गया। इसे गेट-वे-ऑफ गॉडवल या मिनी मुम्बई कहा जाता है।
- मुछाला महावीर मंदिर (घाणेराव, पाली )
- परशुरामेश्वर मंदिर (सादड़ी , पाली )
- सेवाड़ी जैन मंदिर (पाली)
- सोमनाथ मंदिर (पाली)
- वराह अवतार मंदिर (सादड़ी , पाली)
- चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर (सादड़ी ,पाली)
- कामेश्वर मंदिर (आउवा )
- ओम बन्नासा मंदिर (चोटिला , पाली )
सीकर में प्रमुख मंदिर :-
खाटू श्याम जी का मन्दिर :- यहाँ शीश की पूजा की जाती है। मन्दिर की नींव 1720 ई. में अजमेर के अजीतसिंह सिसोदिया के पुत्र अभयसिंह ने रखी थी। महाभारत में बर्बरीक के मस्तक को कलियुग में श्याम के रुप में पूजते हैं। यहाँ फाल्गुन शुक्ल एकादशी व द्वादशी को मेला भरता है। श्यामजी भीम के पुत्र घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक थे। यहाँ स्थित मूर्ति दाढ़ी-मूंछ युक्त है।
हर्षनाथ मंदिर :- यहाँ भगवान शिव का मन्दिर, भैरवजी का मन्दिर व हर्षनाथ का मन्दिर है। यह मन्दिर महामारू शैली में बना है, जिसका निर्माण 956 ई. विसलदेव चौहान के समय हुआ। प्रतिवर्ष भाद्रपद त्रयोदशी को यहाँ विशाल मेला भरता है। हर्ष जीण माता के भाई थे।
जीणमाता मन्दिर (रैवासा)
मुरली मनोहर मन्दिर (लक्ष्मणगढ़)
चितौड़गढ़ के प्रमुख मंदिर :-
समिद्धेश्वर महादेव मन्दिर :- इस मन्दिर का निर्माण मालवा के शासक राजाभोज परमार ने (1011-55 इ.) करवाया। इस मन्दिर क पुनः निर्माण 1428 में महाराणा मोकल ने करवाया जिस कारण इसे मोकल मंदिर भी कहते हैं। इस मंदिर में जैनधर्म की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं। यह मंदिर मारू गुर्जर शैली में बना है। यहाँ भगवान शिव की त्रिमुखी मूर्ति स्थित है जिस कारण इस मंदिर को त्रिभुवन नारायण मंदिर कहा जाता है।
मीराबाई का मन्दिर :- यह मन्दिर राणाकुम्भा ने बनाया था जो चित्तौड़गढ़ दुर्ग में है। इस मन्दिर के सामने रैदास की छतरी है जो मीराबाई के गुरु थे। यह मंदिर इण्डो आर्य शैली में बना है।
बाड़ौली का शिव मन्दिर (भैंसरोड़गढ़) :- इस मन्दिर का निर्माण 8वीं सदी में हुआ था। तोरमाण हूण के पुत्र मिहिरकुल को इसका निर्माता माना जाता है। यहाँ शिव पार्वती की मूर्तियाँ स्थापित हैं। यह मन्दिर चम्बल व बामणी नदी के किनारे है। ये मन्दिर नागर व पंचायतन शैली का मिश्रण है।
कालिका माता मंदिर, चित्तौड़गढ़ :- यह प्रारम्भ में सूर्य मंदिर “जिसका निर्माण 8वीं 9वीं शदी में हुआ। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 713 ई. में राजा मान मौर्य ने करवाया। मुगलों द्वारा जब इस मन्दिर को तोड़ दिया गया तब महाराणा सज्जनसिंह ने इसका पुन: निर्माण करवाकर यहाँ कालिका माता की मूर्ति स्थापित की।
मातृ कुण्डिया मंदिर, चित्तौड़गढ़ :- यह भगवान शिव का मंदिर है। इसे मेवाड़ का हरिद्वार कहते है। मातृकुंडिया में मंगलेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है। यह मंदिर चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित है। यहाँ स्थित कुण्ड में अस्थियां विसर्जित की जाती है, जिस कारण इसे राजस्थान का हरिद्वार कहा जाता है।
- श्रृंगार चंवरी मंदिर (चितौड़गढ़ दुर्ग)
- तुलजा भवानी मंदिर (चितौड़गढ़ दुर्ग)
- अन्नपूर्णा माता मंदिर (चितौड़गढ़ दुर्ग)
- नीलकंठ महादेव मंदिर (चितौड़गढ़ दुर्ग)
- बाण माता मंदिर (चितौड़गढ़ दुर्ग)
चूरू के प्रमुख मंदिर :-
सालासर हनुमान मन्दिर :- यह पूरे भारत में एक मात्र दाढ़ी-मूंछ युक्त हनुमान मन्दिर है। माना जाता है कि हनुमानजी की यह मूर्ति जमीन से प्रकट हुई थी। इसे सिद्ध पीठ हनुमान मन्दिर भी कहते हैं। हनुमान जयंती (चैत्र पूर्णिमा) को यहाँ विशाल मेला भरता है।
गोगाजी मंदिर (ददरेवा गाँव, राजगढ़) :- ददरेवा गाँव में गोगाजी महाराज का जन्म हुआ था। मोहम्मद गजनवी के साथ युद्ध में गोगाजी की गर्दन यहाँ आकर गिरी थी। जहाँ उनकी शीशमेड़ी बनी है। यहाँ प्रतिवर्ष गोगानवमी (भाद्रपद कृष्ण नवमी) को विशाल मेला भरता है।
तिरुपति बालाजी मंदिर (सुजानगढ़) :- इस मन्दिर का निर्माण मोहनलाल जानोदिया ने 1994 में डॉ. एम. नागराज एवं डॉ. वैंकटाचार्य की देख-रेख में करवाया। यहाँ मंदिर में पाषाण एवं लौह की मूर्तियाँ प्रतिष्ठापित की गई है। मंदिर में भगवान विष्णु के दसों अवतारों के भित्ति चित्र है।
जैसलमेर के प्रमुख मंदिर :-
- तनोट माता का मंदिर (तनोट गांव) – थार की वैष्णो देवी , सैनिकों की देवी , रुमाल वाली देवी, BSF के जवानों की देवी
- पार्श्वनाथ मंदिर (लोद्रवा )
- चूंधी गणेश तीर्थ मंदिर (जैसलमेर)
- लक्ष्मीनाथ जी मंदिर (जैसलमेर)
- सूर्य मंदिर (जैसलमेर)
- रत्नेश्वर महादेव मंदिर (जैसलमेर)
- चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर (लोद्रवा)
- घटियाली माता मंदिर (तनोट)
- आशापूर्णा मंदिर (पोकरण )
- चारभुजा मंदिर (पोकरण )
अलवर के प्रमुख मंदिर :-
- पांडुपोल हनुमानजी का मंदिर (अलवर)
- भृतहरि मंदिर (सरिस्का,अलवर)
- तिजारा जैन मंदिर (अलवर)
- नीलकंठ महादेव मंदिर (टहला,राजगढ़)
- बूढ़े जगन्नाथ मंदिर (रूपवास,अलवर)
- नारायणी माता मंदिर (बरबा डूंगरी)
भरतपुर के प्रमुख मंदिर :-
- उषा मंदिर (बयाना)
- गंगा मंदिर (भरतपुर)
- लक्ष्मण मंदिर (भरतपुर)
- गोकुलचन्द्र मंदिर (कामां)
भीलवाड़ा के प्रमुख मंदिर :-
- रामद्वारा (शाहपुरा ) – रामस्नेही संप्रदाय की प्रधान पीठ
- सवाई भोज मंदिर (आसींद)
- तिलस्वां महादेव मंदिर (मांडलगढ़)
- हरणी महादेव मंदिर (भीलवाड़ा )
- बीजासण माता मंदिर (मांडलगढ़)
- सिंगोली श्याम मंदिर (मांडलगढ़)
- यक्षणी माता मंदिर (मांडलगढ़)
- मन्दाकिनी मंदिर (बिजोलिया)
- कबीरद्वारा मंदिर (हम्मीरगढ़)
- नृसिंह मंदिर (हम्मीरगढ़)
- चावंड माता मंदिर (हम्मीरगढ़)
बांसवाड़ा के प्रमुख मंदिर :-
- ब्रह्मा मंदिर (छींछ, बांसवाड़ा)
- घोटिया अम्बा का मंदिर (बागीदोरा )
- त्रिपुरा सुंदरी मंदिर (तलवाड़ा, बांसवाड़ा)
- लकुलीश मंदिर (अरथूना)
- मंडलेश्वर का शिव मंदिर (बांसवाड़ा)
- पार्श्वनाथ जैन मंदिर (कालींजरा)
- सूर्य मंदिर (तलवाड़ा)
डूंगरपुर के प्रमुख मंदिर :-
- बेणेश्वर धाम (नवाटापुरा) – आदिवासियों का कुम्भ , बागड़ का पुष्कर , बागड़ का कुम्भ
- कालिका माता मंदिर (डूंगरपुर)
- श्रीनाथ जी मंदिर
- देव सोमनाथ मंदिर (डूंगरपुर)
- हरी मंदिर (साबला ,डूंगरपुर)
- गंवरी बाई मंदिर (डूंगरपुर)
- धनमाता मंदिर (डूंगरपुर)
- मामा भांजा मंदिर (डूंगरपुर)
- संत मावजी का मंदिर (साबला, डूंगरपुर)
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