राठौड़ वंश की शुरुआत: अग्निकुल से इतिहास तक

By: LM GYAN

On: 13 June 2025

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राठौड़ वंश

राठौड़ शब्द का अर्थ “राष्ट्रकूट” से जुड़ा माना जाता है, जो राठौड़ वंश की प्राचीनता को दर्शाता है। उनकी उत्पत्ति को लेकर कई मत हैं:

  • पौराणिक कथाएँ: सदाशिव की पुस्तक राज रत्नाकर के अनुसार, राठौड़ हिरण्यकश्यप की संतान थे, जो उन्हें पौराणिक आभा देता है।
  • चंद्रवंशी: डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने राठौड़ों को बदायूँ के राठौड़ों का वंशज और चंद्रवंशी माना।
  • कन्नौज संबंध: मुहणोत नैणसी, कर्नल जेम्स टॉड, और विश्वेश्वर नाथ रेऊ ने राठौड़ों को कन्नौज के जयचंद गहड़वाल का वंशज बताया। पृथ्वीराज रासो, नैणसी री ख्यात, और जोधपुर राज्य री ख्यात भी इस कन्नौज संबंध को पुष्ट करते हैं।
  • सूर्यवंशी: दयालदास ने राठौड़ों री ख्यात में राठौड़ों को सूर्यवंशी और भल्लराव ब्राह्मण की संतान कहा।
  • मारवाड़: प्राचीन काल में मारवाड़ को मरुवार, धन्वक्षेत्र, और नवसहस्त्र कहा जाता था। इसका क्षेत्र जोधपुर, नागौर, पाली, बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर, और जालोर के कुछ हिस्सों तक फैला था। प्रारंभिक राजधानी मण्डोर थी, जिसे माण्डव्यपुर और मण्डोवर भी कहा जाता था।

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मारवाड़ के राठौड़: शौर्य और संस्कृति की गाथा

राठौड़ वंश ने मारवाड़ में अपनी वीरता और प्रशासनिक कुशलता से एक स्वर्णिम युग की शुरुआत की। यहाँ प्रमुख शासकों की कहानियाँ हैं:

1. राव सीहा (1240-1273 ई.): आदिपुरुष

  • संस्थापक: राव सीहा को मारवाड़ के राठौड़ वंश का आदिपुरुष और संस्थापक माना जाता है। वे कन्नौज के जयचंद गहड़वाल के वंशज थे।
  • मारवाड़ आगमन: 1240 ई. में पालीवाल ब्राह्मणों की सहायता के लिए सीहा कन्नौज से मारवाड़ आए। उन्होंने खेड़ (पाली) में राठौड़ वंश की नींव रखी और इसे राजधानी बनाया।
  • विवाह: सीहा ने कोलूमण्ड (जोधपुर) के सोलंकी सरदार की पुत्री पार्वती से विवाह किया, जो उनकी वीरता से प्रभावित होकर हुआ।
  • अंत: बीठू लेख (पाली) के अनुसार, 1273 ई. में बीठू युद्ध में मुस्लिम आक्रमणकारियों से पाली की रक्षा करते हुए सीहा वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी छतरी बीठू में है।

2. राव आसथान (1273-1291 ई.): पाली का रक्षक

  • उत्तराधिकारी: सीहा के पुत्र आसथान ने 1291 ई. में दिल्ली के सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी की सेना से पाली की रक्षा करते हुए वीरगति प्राप्त की।

3. राव धूहड़ (1291-1309 ई.): कुलदेवी की स्थापना

  • कुलदेवी: धूहड़ ने कर्नाटक से चक्रेश्वरी देवी की मूर्ति लाकर नागाणा (बाड़मेर) में स्थापित की, जो नागणेची माता (18 भुजाओं वाली) के नाम से राठौड़ों की कुलदेवी हैं।
  • उत्तराधिकारी: धूहड़ के बाद रायपाल, कर्णपाल, वीरमदेव, और मल्लीनाथ जैसे शासक हुए।
  • मल्लीनाथ: मल्लीनाथ की राजधानी मेवानगर (बाड़मेर) थी। उनके नाम पर बाड़मेर को मालाणी कहा जाता है। वे पश्चिमी राजस्थान के लोकदेवता हैं, और उनका मंदिर तिलवाड़ा (बाड़मेर) में है, जहाँ विशाल पशु मेला लगता है।

4. राव चूंडा (1394-1423 ई.): वास्तविक संस्थापक

  • संस्थापक: चूंडा को मारवाड़ के राठौड़ वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। वे वीरमदेव के पुत्र थे।
  • मण्डोर विजय: तुर्कों ने मण्डोर दुर्ग ईंदा प्रतिहार से छीन लिया था। चूंडा और ईंदा ने मिलकर मण्डोर पर पुनः कब्जा किया। ईंदा ने अपनी पुत्री किशोरी देवी/लालीदेवी का विवाह चूंडा से किया और मण्डोर दहेज में दिया।
  • राजधानी: चूंडा ने मण्डोर को राजधानी बनाया और सामंत प्रथा की शुरुआत की।
  • नागौर: चूंडा ने नागौर के शासक जलाल खाँ खोखर को हराकर नागौर पर कब्जा किया और चूण्डासर तालाब बनवाया।
  • निर्माण: उनकी पत्नी चाँद कँवर ने जोधपुर में चाँद बावड़ी बनवाई।
  • अंत: 1423 ई. में जैसलमेर के भाटियों ने धोखे से चूंडा की हत्या कर दी।

5. राव कान्हा (1423-1427 ई.): अयोग्य शासक

  • उत्तराधिकारी: चूंडा ने अपने ज्येष्ठ पुत्र रणमल को वंचित कर कान्हा को शासक बनाया।
  • अंत: कान्हा अत्याचारी और अयोग्य था। वह जोहियावाही में सांखला राजपूतों से लड़ते हुए मारा गया।

6. राव रणमल (1427-1438 ई.): मेवाड़ में प्रभाव

  • मेवाड़ संबंध: रणमल ने अपनी बहन हंसाबाई का विवाह मेवाड़ के राणा लाखा से किया, जिससे मोकल पैदा हुआ। मोकल की हत्या के बाद कुंभा मेवाड़ के शासक बने। रणमल का मेवाड़ में बढ़ता प्रभाव सामंतों को रास नहीं आया।
  • अंत: 1438 ई. में कुंभा ने रणमल की प्रेमिका भारमली की मदद से उनकी हत्या करवा दी।
  • निर्माण: रणमल की पत्नी कोड़मदे ने बीकानेर में कोड़मदेसर बावड़ी बनवाई, जो राजस्थान की सबसे प्राचीन बावड़ी है।

7. राव जोधा (1438-1489 ई.): जोधपुर के संस्थापक

  • उत्तराधिकारी: रणमल के पुत्र जोधा ने 1453 ई. में हड़बू सांखला की मदद से मारवाड़ पर कब्जा किया।
  • संधि: आवल-बावल संधि (1453 ई.) में कुंभा और जोधा के बीच मारवाड़-मेवाड़ की सीमाएँ निर्धारित हुईं, जिसका मध्य बिंदु सोजत था।
  • विवाह: जोधा ने अपनी पुत्री श्रृंगार देवी का विवाह कुंभा के पुत्र रायमल से किया।
  • जोधपुर स्थापना: 12 मई 1459 को जोधा ने जोधपुर नगर बसाया और इसे राजधानी बनाया।
  • मेहरानगढ़: जोधा ने पंचेटिया पहाड़ी पर मेहरानगढ़ (मयूरध्वज/गढ़चिन्तामणि) दुर्ग बनवाया, जिसकी नींव करणी माता ने रखी।
  • निर्माण: उनकी पत्नी जसमादे ने मेहरानगढ़ में राणीसर तालाब बनवाया।
  • सामंत प्रथा: जोधा को सामंत प्रथा का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
  • बीकानेर: उनके पुत्र बीका ने 13 अप्रैल 1488 को बीकानेर नगर बसाया।

8. राव सातलदेव (1489-1492 ई.): वीर योद्धा

  • उत्तराधिकारी: जोधा ने अपने बड़े पुत्रों को वंचित कर सातलदेव को शासक बनाया।
  • घुड़ला युद्ध: सातलदेव ने अजमेर के हाकिम मल्लू खाँ के सेनापति घुड़ले खाँ को हराकर गणगौर पूजा कर रही कन्याओं को मुक्त कराया। इसकी याद में घुड़ला त्योहार मनाया जाता है।
  • अंत: 1492 ई. में कोसाणा युद्ध में मुस्लिमों से लड़ते हुए सातलदेव की मृत्यु हुई।
  • निर्माण: उनकी रानी फूला भट्याणी ने जोधपुर में फूलेलाव तालाब बनवाया।

9. राव सूजा (1492-1515 ई.): बीकानेर विवाद

  • विवाद: सूजा ने बीका को राजचिह्न देने से मना किया, जिससे बीकानेर और जोधपुर के बीच युद्ध हुआ। रानी जसमादे की मध्यस्थता से विवाद सुलझा।
  • मेड़ता: सूजा के काल में वीरमदेव ने मेड़ता में स्वतंत्र राज्य स्थापित किया।

10. राव गांगा (1515-1531 ई.): दानशील शासक

  • उत्तराधिकारी: गांगा बाघा के पुत्र और सूजा के पौत्र थे।
  • खानवा युद्ध: 1527 ई. में गांगा ने अपने पुत्र मालदेव के नेतृत्व में राणा सांगा की मदद की।
  • विवाह: सांगा ने अपनी पुत्री पद्मावती का विवाह गांगा से किया।
  • निर्माण: गांगा ने गांगलाव तालाब, गांगा की बावड़ी, और गंगश्याम जी मंदिर बनवाए।
  • सेवकी युद्ध: 1529 ई. में गांगा ने विद्रोही चाचा शेखा और नागौर के दौलत खाँ को हराया।
  • अंत: कुछ इतिहासकारों के अनुसार, मालदेव ने गांगा की हत्या की। गांगा अफीम के शौकीन थे।

11. राव मालदेव (1531-1562 ई.): मारवाड़ का शिखर

  • उपाधियाँ: मालदेव को हिंदू बादशाह, हशमत वाला राजा (अबुल फज़ल), भारत का महान पुरुषार्थी (बदायूँनी), और हिंदुस्तान का सबसे शक्तिशाली राजा (फरिस्ता) कहा गया।
  • विजय: मालदेव ने भाद्राजून (1531), नागौर (1533), मेड़ता और अजमेर (1535), सिवाणा, जालोर, और सांचौर (1538) पर कब्जा किया।
  • पाहेबा युद्ध: 1541 ई. में मालदेव ने बीकानेर के जैतसी को हराया।
  • गिरी सुमेल युद्ध: 1544 ई. में शेरशाह सूरी ने मालदेव को कूटनीति से हराया। मालदेव के सेनापति जैता और कूंपा वीरगति को प्राप्त हुए।
  • पुनर्विजय: 1545 ई. में शेरशाह की मृत्यु के बाद मालदेव ने जोधपुर पर कब्जा किया।
  • हरमाड़ा युद्ध: 1557 ई. में मालदेव ने मेवाड़ के उदय सिंह को हराया।
  • निर्माण: मालदेव ने तारागढ़ दुर्ग (अजमेर) में पानी की व्यवस्था की, और मेड़ता, रियां, सोजत, पोकरण में किले बनवाए।
  • साहित्य: आशानंद (उमादे भटियाणी रा कवित) और ईसरदास (हाला झाला री कुण्डलियाँ) उनके दरबारी थे। जैन लेखक नरसेन ने जिनरात्रि कथा लिखी।
  • अंत: 1562 ई. में मालदेव की मृत्यु हुई। उनकी पत्नी उमादे (रूठी रानी) अनुमरण प्रथा के तहत सती हुईं।

12. राव चंद्रसेन (1562-1581 ई.): मारवाड़ का प्रताप

  • छापामार युद्ध: चंद्रसेन ने मुगलों के खिलाफ छापामार युद्ध लड़ा और अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की।
  • प्रतिरोध: अकबर ने जोधपुर पर कब्जा किया, लेकिन चंद्रसेन ने भाद्राजून, सोजत, और सिवाणा से प्रतिरोध जारी रखा।
  • अंत: 1581 ई. में सिंचियाई पहाड़ों में चंद्रसेन की मृत्यु हुई। उन्हें मारवाड़ का भूला बिसरा राजा और प्रताप का पथप्रदर्शक कहा जाता है।
  • निर्माण: अकबर ने 1570 ई. में शुक्रतालाब (नागौर) बनवाया।

13. मोटा राजा उदय सिंह (1583-1595 ई.): मुगल अधीनता

  • अधीनता: उदय सिंह ने अकबर की अधीनता स्वीकार की और मोटा राजा की उपाधि प्राप्त की।
  • विवाह: उनकी पुत्री जोधा बाई का विवाह जहाँगीर से हुआ।
  • मेला: 1593 ई. में मल्लीनाथ पशु मेला (तिलवाड़ा) शुरू हुआ।
  • किशनगढ़: उनके पुत्र किशनसिंह ने 1609 ई. में किशनगढ़ में राठौड़ शाखा स्थापित की।

14. सवाई सूर सिंह (1595-1619 ई.): सवाई उपाधि

  • उपाधि: अकबर ने सूर सिंह को सवाई राजा की उपाधि दी।
  • निर्माण: सूर सिंह ने सूरसागर तालाब, सूरजकुंड बावड़ी, और रामेश्वर महादेव मंदिर बनवाए।

15. महाराजा गज सिंह (1619-1638 ई.): दलथम्भन

  • उपाधि: जहाँगीर ने गज सिंह को दलथम्भन की उपाधि दी।
  • साहित्य: हेमकवि (गुण भाषा चित्र) और केशवदास गाडण (राजगुण रूपक) उनके दरबारी थे।

16. महाराजा जसवंत सिंह प्रथम (1638-1678 ई.): मारवाड़ का स्वर्णकाल

  • उपाधि: शाहजहाँ ने जसवंत सिंह को महाराजा की उपाधि दी।
  • युद्ध: धरमत युद्ध (1658) में जसवंत सिंह औरंगजेब से हारे।
  • साहित्य: जसवंत सिंह ने भाषा-भूषण, आनंद विलास लिखे। मुहणोत नैणसी ने नैणसी री ख्यात और मारवाड़ परगना री विगत लिखी, जिसे मारवाड़ का गजट कहा जाता है।
  • निर्माण: उनकी रानी जसवंतदे ने राईका बाग और कागा उद्यान बनवाए।
  • अंत: 1678 ई. में जमरूद (अफगानिस्तान) में उनकी मृत्यु हुई। औरंगजेब ने कहा, “आज कुफ्र का दरवाजा टूट गया।”

17. महाराजा अजीत सिंह (1679-1724 ई.): दुर्गादास का सहयोग

  • संरक्षण: दुर्गादास राठौड़ और गौराधाय (मारवाड़ की पन्नाधाय) ने अजीत सिंह को औरंगजेब से बचाया।
  • विजय: 1707 ई. में अजीत सिंह ने जोधपुर पर कब्जा किया।
  • संधि: देवारी समझौता (1708) में अजीत सिंह, सवाई जयसिंह, और अमर सिंह द्वितीय ने गठबंधन किया।
  • विवाह: अजीत सिंह ने अपनी पुत्री इन्द्रकुंवरी का विवाह फर्रूखसियर से किया।
  • अंत: 1724 ई. में उनके पुत्र बख्त सिंह ने उनकी हत्या की।
  • साहित्य: अजीत सिंह ने गुणसागर, अजीत चरित्र लिखे। उनके दरबारी जगजीवन भट्ट (अजीतोदय) और हरिदास भाट (अजीत सिंह चरित) थे।
  • निर्माण: घनश्याम जी मंदिर, फतेह महल, और काला-गोरा भैंस मंदिर (मंडोर)।

18. महाराजा अभयसिंह (1724-1749 ई.): खेजड़ली बलिदान

  • खेजड़ली बलिदान: 1730 ई. में अमृता देवी बिश्नोई के नेतृत्व में 363 लोगों ने खेजड़ली (जोधपुर) में वृक्षों की रक्षा के लिए बलिदान दिया। इसकी याद में खेजड़ली दिवस (12 सितंबर) मनाया जाता है।
  • निर्माण: अभयसिंह ने मेहरानगढ़ में फूल महल बनवाया।
  • साहित्य: करणीदान (सूरज प्रकाश) और वीरभाण (राजरूपक) उनके दरबारी थे।

अन्य प्रमुख शासक

  • महाराजा विजय सिंह (1752-1793): तुंगा युद्ध (1787) में मराठों को हराया। गुलाबराय (जोधपुर की नूरजहाँ) ने रानीसर तालाब और कुंजबिहारी मंदिर बनवाए।
  • महाराजा मान सिंह (1804-1843): नाथ सम्प्रदाय के अनुयायी। उन्होंने महामंदिर और मान पुस्तकालय बनवाया।
  • महाराजा तख्त सिंह (1843-1873): 1857 की क्रांति में अंग्रेजों का साथ दिया। बिथौड़ा और चेलावास युद्ध हुए।
  • महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय (1873-1895): जसवंतथड़ा (राजस्थान का ताजमहल) बनवाया।
  • महाराजा सरदार सिंह (1895-1911): पोलो के शौकीन। घंटाघर बनवाया।
  • महाराजा उम्मेद सिंह (1918-1947): उम्मेद भवन पैलेस और जवाई बाँध बनवाए।
  • महाराजा हनवंत सिंह (1947-1948): जोधपुर के अंतिम शासक। 1949 में जोधपुर का राजस्थान में विलय हुआ।

राठौड़ वंश का योगदान: मारवाड़ की धरोहर

  • स्थापत्य: मेहरानगढ़, उम्मेद भवन, जसवंतथड़ा, चाँद बावड़ी, रानीसर तालाब, और महामंदिर।
  • साहित्य: नैणसी री ख्यात, मारवाड़ परगना री विगत, सूरज प्रकाश, और अजीतोदय
  • संस्कृति: नागणेची माता, मल्लीनाथ पशु मेला, और खेजड़ली बलिदान।
  • वीरता: गिरी सुमेल, धरमत, और बिथौड़ा युद्धों में राठौड़ों ने साहस दिखाया।

निष्कर्ष: राठौड़ वंश की अमर गाथा

राठौड़ राजवंश ने मारवाड़ को न केवल एक शक्तिशाली राज्य बनाया, बल्कि अपनी सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत से भारत के इतिहास को समृद्ध किया। मेहरानगढ़ की ऊँचाइयों से लेकर खेजड़ली के बलिदान तक, इस वंश की कहानी हर भारतीय के लिए प्रेरणा है। क्या आपने जोधपुर की इन ऐतिहासिक धरोहरों को देखा है? अपनी राय कमेंट में जरूर साझा करें!

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