सिन्धु घाटी के प्रमुख स्थल
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- सिन्धु घाटी सभ्यता के शहर नदियों और समुद्र के किनारे बसे थे। यहाँ प्रमुख स्थल और उनके खोजकर्ता हैं:
- हड़प्पा: रावी नदी के किनारे, दयाराम साहनी ने खोजा।
- मोहनजोदड़ो: सिन्धु नदी पर, राखालदास बनर्जी ने ढूंढा।
- लोथल: भोगवा नदी के पास, एस.आर. राव ने खोजा।
- कालीबंगा: घग्घर नदी के किनारे, अमलानन्द घोष ने पाया।
- रोपड़: सतलज नदी पर, यज्ञदत्त शर्मा ने खोजा।
- कोटदीजी: सिन्धु नदी के किनारे, फजल अहमद खाँ ने ढूंढा।
- चन्हुदड़ो: सिन्धु नदी पर, एन.जी. मजूमदार ने खोजा।
- रंगपुर: भादर नदी के पास, एम.एस. वत्स ने पाया।
- आलमगीरपुर: हिन्डन नदी पर, यज्ञदत्त शर्मा ने खोजा।
- सुत्कागेंडोर: दाश्क नदी के किनारे, ऑरेल स्टाइन ने ढूंढा।
- बनवाली: सरस्वती नदी पर, रवीन्द्र सिंह बिस्ट ने खोजा।
- सुरकोटड़ा: कच्छ (गुजरात), जगपति जोशी ने पाया।
- धौलावीरा: कच्छ (गुजरात), जे.पी. जोशी ने खोजा, उत्खनन आर.एस. बिस्ट ने किया।
- राखीगढ़ी: घग्घर नदी (हरियाणा), रफीक मुगल और सुरजभान ने ढूंढा।
रेडियो कार्बन डेटिंग
- रेडियो कार्बन (C-14) विधि से पुरानी चीज़ों की उम्र पता की जाती है।
- डॉ. डी.पी. अग्रवाल ने इसके आधार पर सिन्धु सभ्यता का समय 2300 ई.पू. से 1750 ई.पू. बताया।
प्रमुख स्थल और उनकी खासियतें
हड़प्पा
- स्टुअर्ट पिग्गट के मुताबिक, ये आधा-औद्योगिक शहर था, जहाँ लोग व्यापार, तकनीक, और धर्म के कामों में लगे थे।
- दयाराम साहनी ने 1921 में खोजा, जब जॉन मार्शल ASI के निदेशक थे। ये मॉन्टगोमरी (पाकिस्तान, अब शाहीवाल) में है।
- खास चीज़ें:
- गर्भ से निकलते पौधे की मृण्मूर्ति, जिसे उर्वरा या पृथ्वी देवी माना गया।
- बिना धड़ की पत्थर की मूर्ति।
- शहर 5 किमी की परिधि में फैला था।
- दक्षिण में “समाधि आर-37” नाम का कब्रिस्तान, और कब्र-H भी मिली।
- व्हीलर ने दुर्ग वाले टीले को माउण्ड-ए-बी कहा।
- काँसे का दर्पण और शृंगार पेटी (प्रसाधन मंजूषा)।
- 12 अन्नागारों की दो पंक्तियाँ (6-6)।
- सबसे ज़्यादा अलंकृत मोहरें हड़प्पा से, लेकिन कुल मोहरें मोहनजोदड़ो से ज़्यादा।
- मोहरें सेलखड़ी (स्टीटाइट) की थीं, आयताकार, वृत्ताकार, और वर्गाकार (सबसे ज़्यादा)।
- मोहरों पर एकशृंगी बैल, हरिण, कूबड़वाला बैल, मातृदेवी, बाघ, पशुपतिनाथ, और भैंसा जैसे चित्र।
- श्रमिकों के घरों के सबूत।
मोहनजोदड़ो
- सिन्धु नदी के दाहिने किनारे, पाकिस्तान के सिंध प्रांत (लरकाना) में। राखालदास बनर्जी ने 1922 में खोजा। इसे “सिंध का नखलिस्तान” कहते हैं।
- ये शहर 8 बार उजड़ा, 9 बार बसा, 7 स्तर मिले।
- खास चीज़ें:
- सबसे बड़ी इमारत अन्नागार थी, व्हीलर ने इसे ग्रैनरी कहा।
- सबसे बड़ा सार्वजनिक स्थल “विशाल स्नानागार”, जिसका धार्मिक महत्व था। इसके आसपास पानी के टैंक।
- जॉन मार्शल ने स्नानागार को “विश्व का आश्चर्यजनक निर्माण” और “विराट वस्तु” कहा।
- डी.डी. कौशाम्बी ने स्नानागार की तुलना पुष्कर और कमलताल से की।
- एक मोहर पर तीन मुख वाले देवता (पशुपतिनाथ, आद्यतम शिव) के साथ भैंसा, हाथी, गैंडा, बाघ, दो हरिण, मछली, और 10 अक्षर।
- मानव कंकाल (शायद नरसंहार) और पुरोहितों के घर।
- काँसे की नर्तकी मूर्ति, द्रवी-मोम विधि से बनी। हड़प्पावासी ताँबे-टिन से काँसा बनाते थे।
- एक मोहर पर ध्यान मुद्रा में योगी, एक टांग पर दूसरी टांग डाले।
लोथल
- गुजरात में भोगवा नदी के किनारे। 1954-55 में खोजा, एस.आर. राव ने 1957-58 में उत्खनन किया।
- खास चीज़ें:
- औद्योगिक शहर, सिन्धु सभ्यता का बड़ा गोदीबाड़ा (बंदरगाह)।
- बाट-माप के लिए हाथी दाँत का पैमाना।
- सिकोत्तरी माता (समुद्री देवी) की पूजा।
- नाव के सबूत से दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापार का पता।
- सबसे बड़ा सार्वजनिक स्थल गोदीबाड़ा, पक्की ईंटों से त्रिभुजाकार।
- पश्चिम एशिया (मेसोपोटामिया, फारस) से व्यापार, ईरान की खाड़ी जैसी मोहरें।
- मनके बनाने का कारखाना।
- खोपड़ी की शल्य चिकित्सा के निशान।
- तीन युगल शव (उत्तर में सिर, दक्षिण में पैर)।
- अग्निकुंड और अग्निवेदिकाएँ।
- एस.आर. राव ने इसे “लघु हड़प्पा” या “लघु मोहनजोदड़ो” कहा।
कालीबंगा
- राजस्थान के हनुमानगढ़ में घग्घर नदी के बाएँ किनारे। 1952-53 में अमलानन्द घोष ने खोजा, 1961-67 में उत्खनन।
- खास चीज़ें:
- हड़प्पा और प्राक्-हड़प्पा दोनों के अवशेष।
- “काले रंग की चूड़ियाँ” (कालीबंगा का मतलब)।
- ऊँट के पहले सबूत।
- हल और जोते हुए खेत के निशान।
- लोग दो फसलें एक साथ बोते थे।
- “दीन-हीन” बस्ती कहलाता था।
- लकड़ी की नालियाँ।
- खोपड़ी में छेद (शल्य चिकित्सा का सबूत)।
- तीन तरह के शवाधान: आंशिक, पूर्ण, और दाह संस्कार।
- विश्व का पहला भूकंप (2100 ई.पू.) का सबूत।
- अलंकृत फर्श, ईंट, बेलनाकार मोहरें, और हवनकुंड।
चन्हुदड़ो
- मोहनजोदड़ो से 130 किमी दक्षिण में। 1930-31 में एन.जी. मजूमदार ने खोजा, 1935 में अर्नेस्ट मैके ने उत्खनन किया।
- खास चीज़ें:
- वक्राकार ईंटें, सिन्धु सभ्यता में अनोखी।
- मनके बनाने का कारखाना।
- सौंदर्य प्रसाधन (लिपस्टिक जैसे अवशेष)।
- हाथी का खिलौना।
- पीतल की इक्का गाड़ी।
- स्याही की दवात के निशान।
बनवाली
- हरियाणा के हिसार में सरस्वती नदी पर। 1974 में आर.एस. बिस्ट ने खोजा।
- खास चीज़ें:
- मिट्टी के हल जैसे खिलौने।
रंगपुर
- गुजरात के काठियावाड़ में भादर नदी के पास। 1974 में एस.आर. राव ने खोजा।
सुरकोटड़ा
- कच्छ (गुजरात) में। 1964 में जगपति जोशी ने खोजा।
- खास चीज़ें:
- घोड़े की हड्डियाँ।
- कलश शवाधान के सबूत।
धौलावीरा
- कच्छ (गुजरात) के भचाऊ तालुका में। 1967-68 में जे.पी. जोशी ने खोजा, 1991 में आर.एस. बिस्ट ने उत्खनन किया।
- खास चीज़ें:
- सिन्धु सभ्यता का एकमात्र स्टेडियम।
- घोड़े की कलाकृतियाँ।
- शहर तीन हिस्सों में: दुर्ग, मध्यम नगर, निचला नगर।
सुत्कागेंडोर
- पाकिस्तान के बलूचिस्तान में दाश्क नदी पर। सिन्धु सभ्यता का सबसे पश्चिमी शहर।
- खास चीज़ें:
- बंदरगाह के निशान।
आलमगीरपुर
- मेरठ (उ.प्र.) में हिन्डन नदी पर। 1958 में यज्ञदत्त शर्मा ने उत्खनन किया, भारत सेवक समाज ने मदद की।
- खास चीज़ें:
- कोई मातृदेवी मूर्ति या मोहर नहीं मिली।
रोपड़
- 1950 में बी.बी. लाल ने खोजा, 1953-56 में यज्ञदत्त शर्मा ने उत्खनन किया।
- खास चीज़ें:
- हड़प्पा और प्राक्-हड़प्पा अवशेष।
राखीगढ़ी
- हरियाणा के जींद में घग्घर नदी पर। रफीक मुगल और सुरजभान ने खोजा।
- खास चीज़ें:
- भारत का सबसे बड़ा हड़प्पाई शहर।
सामाजिक ज़िंदगी
- खाना: गेहूँ, जौ, खजूर, और मांस।
- समाज चार वर्गों में: पुरोहित, योद्धा, व्यापारी, श्रमिक।
- कपड़े: सूती और ऊनी।
- मनोरंजन: मछली पकड़ना, शिकार, चौपड़, और पासा (पासा सबसे पॉपुलर)।
- परिवार: समाज की बुनियादी इकाई।
- साज-सज्जा: पुरुष-महिलाओं के आभूषण मिले।
धार्मिक मान्यताएँ
- स्वास्तिक के निशान मिले।
- कोई मंदिर नहीं मिला।
- लिंग और योनि पूजा के सबूत, जो बाद में शिव से जोड़े गए। प्रजनन शक्ति की पूजा।
राजनीतिक ढाँचा
- सभ्यता व्यापार-वाणिज्य पर आधारित थी, व्यापारी वर्ग का दबदबा।
- पिग्गट और व्हीलर के मुताबिक, पुरोहित शासक थे, जो प्रजा का ख्याल रखते थे।
- मोहनजोदड़ो और हड़प्पा शायद दो राजधानियाँ थीं।
आर्थिक ज़िंदगी
- खेती: हल या कुदाल की जगह पत्थर की कुल्हाड़ी या लकड़ी के हल से खेती। ज़रूरत से ज़्यादा अनाज उगाकर व्यापार करते थे।
- उद्योग: कपास उगाना, कातना, मिट्टी के बर्तन बनाना, कपड़े रंगना। कपास का निर्यात संभव।
कृषि
- मुख्य फसलें: गेहूँ, जौ। साथ में राई, मटर, तिल, चना, कपास, खजूर, तरबूज।
- चावल: लोथल और रंगपुर से सबूत।
- सिंचाई: नहरों या नालों के कोई निशान नहीं।
पशुपालन
- पाले गए पशु: बैल, भेड़, हिरण, मोर, गाय, खच्चर, बकरी, भैंस, सूअर, हाथी, कुत्ता, गधा।
- कूबड़वाला साँड़ सबसे पसंदीदा।
- मोहरों पर ऊँट, गैंडा, मछली, कछुए के चित्र।
धातुकर्म
- ताँबे और टिन से काँसा बनाया।
- मोहनजोदड़ो से सूती कपड़ा और कालीबंगा से मिट्टी के बर्तन पर कपड़े की छाप।
- लोहे की जानकारी नहीं थी।
- काँस्य मूर्तियाँ द्रवी-मोम विधि से।
कला
- बर्तनों और मोहरों पर खूबसूरत चित्र: बैल, हाथी, चीता, बारहसिंगा, घड़ियाल, गैंडा।
- मोहरों के चित्रों से कलात्मक रुचि का पता चलता।
व्यापार
- राजस्थान, सौराष्ट्र, महाराष्ट्र, दक्षिण भारत, और बिहार से व्यापार।
- मेसोपोटामिया, सुमेर, और बहरीन के साथ रिश्ते।
- 2350 ई.पू. के मेसोपोटामियाई अभिलेखों में मेलूहा (सिन्धु क्षेत्र) का ज़िक्र।
माप-तौल
- मोहनजोदड़ो से सीप का पैमाना, लोथल से हाथी दाँत का।
- तौल: 1, 2, 4, 8 से 64, और 16 या उसके गुणकों (16, 64, 160, 320, 640) में।
मुहर और लिपि
- सबसे ज़्यादा मोहरें मोहनजोदड़ो से, ज़्यादातर सेलखड़ी की।
- एकशृंगी पशु की आकृति सबसे आम।
- लोथल और देसलपुर से ताँबे की मोहरें।
- लिपि भाव-चित्रात्मक, वर्णात्मक नहीं।
- लोथल और मोहनजोदड़ो से नाव की मोहर।
- मोहरों का आकार: गोल, अंडाकार, घनाकार, आयताकार, वर्गाकार।
- लिपि के पहले नमूने 1853 में कनिंघम ने पाए।
- लिपि के नाम: सर्पिलाकार, गोमूत्राक्षर, ब्रस्टोफेदन (भाव-चित्रात्मक)।
- वेडेन महोदय ने लिपि पढ़ने की कोशिश की, नटवर झा पहले भारतीय थे, लेकिन असफल रहे।
- लिपि मुख्यतः मोहरों से समझी गई।
- 64 मूल चिह्न, 250-400 चित्राक्षर, सबसे ज़्यादा उल्टा यू ‘ ’ आकार।