सिन्धु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल: भारत का प्राचीन जादू

By: LM GYAN

On: 29 May 2025

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सिन्धु घाटी

सिन्धु घाटी के प्रमुख स्थल

  • सिन्धु घाटी सभ्यता के शहर नदियों और समुद्र के किनारे बसे थे। यहाँ प्रमुख स्थल और उनके खोजकर्ता हैं:
    • हड़प्पा: रावी नदी के किनारे, दयाराम साहनी ने खोजा।
    • मोहनजोदड़ो: सिन्धु नदी पर, राखालदास बनर्जी ने ढूंढा।
    • लोथल: भोगवा नदी के पास, एस.आर. राव ने खोजा।
    • कालीबंगा: घग्घर नदी के किनारे, अमलानन्द घोष ने पाया।
    • रोपड़: सतलज नदी पर, यज्ञदत्त शर्मा ने खोजा।
    • कोटदीजी: सिन्धु नदी के किनारे, फजल अहमद खाँ ने ढूंढा।
    • चन्हुदड़ो: सिन्धु नदी पर, एन.जी. मजूमदार ने खोजा।
    • रंगपुर: भादर नदी के पास, एम.एस. वत्स ने पाया।
    • आलमगीरपुर: हिन्डन नदी पर, यज्ञदत्त शर्मा ने खोजा।
    • सुत्कागेंडोर: दाश्क नदी के किनारे, ऑरेल स्टाइन ने ढूंढा।
    • बनवाली: सरस्वती नदी पर, रवीन्द्र सिंह बिस्ट ने खोजा।
    • सुरकोटड़ा: कच्छ (गुजरात), जगपति जोशी ने पाया।
    • धौलावीरा: कच्छ (गुजरात), जे.पी. जोशी ने खोजा, उत्खनन आर.एस. बिस्ट ने किया।
    • राखीगढ़ी: घग्घर नदी (हरियाणा), रफीक मुगल और सुरजभान ने ढूंढा।

रेडियो कार्बन डेटिंग

  • रेडियो कार्बन (C-14) विधि से पुरानी चीज़ों की उम्र पता की जाती है।
  • डॉ. डी.पी. अग्रवाल ने इसके आधार पर सिन्धु सभ्यता का समय 2300 ई.पू. से 1750 ई.पू. बताया।

प्रमुख स्थल और उनकी खासियतें

हड़प्पा

  • स्टुअर्ट पिग्गट के मुताबिक, ये आधा-औद्योगिक शहर था, जहाँ लोग व्यापार, तकनीक, और धर्म के कामों में लगे थे।
  • दयाराम साहनी ने 1921 में खोजा, जब जॉन मार्शल ASI के निदेशक थे। ये मॉन्टगोमरी (पाकिस्तान, अब शाहीवाल) में है।
  • खास चीज़ें:
    • गर्भ से निकलते पौधे की मृण्मूर्ति, जिसे उर्वरा या पृथ्वी देवी माना गया।
    • बिना धड़ की पत्थर की मूर्ति।
    • शहर 5 किमी की परिधि में फैला था।
    • दक्षिण में “समाधि आर-37” नाम का कब्रिस्तान, और कब्र-H भी मिली।
    • व्हीलर ने दुर्ग वाले टीले को माउण्ड-ए-बी कहा।
    • काँसे का दर्पण और शृंगार पेटी (प्रसाधन मंजूषा)।
    • 12 अन्नागारों की दो पंक्तियाँ (6-6)।
    • सबसे ज़्यादा अलंकृत मोहरें हड़प्पा से, लेकिन कुल मोहरें मोहनजोदड़ो से ज़्यादा।
    • मोहरें सेलखड़ी (स्टीटाइट) की थीं, आयताकार, वृत्ताकार, और वर्गाकार (सबसे ज़्यादा)।
    • मोहरों पर एकशृंगी बैल, हरिण, कूबड़वाला बैल, मातृदेवी, बाघ, पशुपतिनाथ, और भैंसा जैसे चित्र।
    • श्रमिकों के घरों के सबूत।

मोहनजोदड़ो

  • सिन्धु नदी के दाहिने किनारे, पाकिस्तान के सिंध प्रांत (लरकाना) में। राखालदास बनर्जी ने 1922 में खोजा। इसे “सिंध का नखलिस्तान” कहते हैं।
  • ये शहर 8 बार उजड़ा, 9 बार बसा, 7 स्तर मिले।
  • खास चीज़ें:
    • सबसे बड़ी इमारत अन्नागार थी, व्हीलर ने इसे ग्रैनरी कहा।
    • सबसे बड़ा सार्वजनिक स्थल “विशाल स्नानागार”, जिसका धार्मिक महत्व था। इसके आसपास पानी के टैंक।
    • जॉन मार्शल ने स्नानागार को “विश्व का आश्चर्यजनक निर्माण” और “विराट वस्तु” कहा।
    • डी.डी. कौशाम्बी ने स्नानागार की तुलना पुष्कर और कमलताल से की।
    • एक मोहर पर तीन मुख वाले देवता (पशुपतिनाथ, आद्यतम शिव) के साथ भैंसा, हाथी, गैंडा, बाघ, दो हरिण, मछली, और 10 अक्षर।
    • मानव कंकाल (शायद नरसंहार) और पुरोहितों के घर।
    • काँसे की नर्तकी मूर्ति, द्रवी-मोम विधि से बनी। हड़प्पावासी ताँबे-टिन से काँसा बनाते थे।
    • एक मोहर पर ध्यान मुद्रा में योगी, एक टांग पर दूसरी टांग डाले।

लोथल

  • गुजरात में भोगवा नदी के किनारे। 1954-55 में खोजा, एस.आर. राव ने 1957-58 में उत्खनन किया।
  • खास चीज़ें:
    • औद्योगिक शहर, सिन्धु सभ्यता का बड़ा गोदीबाड़ा (बंदरगाह)।
    • बाट-माप के लिए हाथी दाँत का पैमाना।
    • सिकोत्तरी माता (समुद्री देवी) की पूजा।
    • नाव के सबूत से दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापार का पता।
    • सबसे बड़ा सार्वजनिक स्थल गोदीबाड़ा, पक्की ईंटों से त्रिभुजाकार।
    • पश्चिम एशिया (मेसोपोटामिया, फारस) से व्यापार, ईरान की खाड़ी जैसी मोहरें।
    • मनके बनाने का कारखाना।
    • खोपड़ी की शल्य चिकित्सा के निशान।
    • तीन युगल शव (उत्तर में सिर, दक्षिण में पैर)।
    • अग्निकुंड और अग्निवेदिकाएँ।
    • एस.आर. राव ने इसे “लघु हड़प्पा” या “लघु मोहनजोदड़ो” कहा।

कालीबंगा

  • राजस्थान के हनुमानगढ़ में घग्घर नदी के बाएँ किनारे। 1952-53 में अमलानन्द घोष ने खोजा, 1961-67 में उत्खनन।
  • खास चीज़ें:
    • हड़प्पा और प्राक्-हड़प्पा दोनों के अवशेष।
    • “काले रंग की चूड़ियाँ” (कालीबंगा का मतलब)।
    • ऊँट के पहले सबूत।
    • हल और जोते हुए खेत के निशान।
    • लोग दो फसलें एक साथ बोते थे।
    • “दीन-हीन” बस्ती कहलाता था।
    • लकड़ी की नालियाँ।
    • खोपड़ी में छेद (शल्य चिकित्सा का सबूत)।
    • तीन तरह के शवाधान: आंशिक, पूर्ण, और दाह संस्कार।
    • विश्व का पहला भूकंप (2100 ई.पू.) का सबूत।
    • अलंकृत फर्श, ईंट, बेलनाकार मोहरें, और हवनकुंड।

चन्हुदड़ो

  • मोहनजोदड़ो से 130 किमी दक्षिण में। 1930-31 में एन.जी. मजूमदार ने खोजा, 1935 में अर्नेस्ट मैके ने उत्खनन किया।
  • खास चीज़ें:
    • वक्राकार ईंटें, सिन्धु सभ्यता में अनोखी।
    • मनके बनाने का कारखाना।
    • सौंदर्य प्रसाधन (लिपस्टिक जैसे अवशेष)।
    • हाथी का खिलौना।
    • पीतल की इक्का गाड़ी।
    • स्याही की दवात के निशान।

बनवाली

  • हरियाणा के हिसार में सरस्वती नदी पर। 1974 में आर.एस. बिस्ट ने खोजा।
  • खास चीज़ें:
    • मिट्टी के हल जैसे खिलौने।

रंगपुर

  • गुजरात के काठियावाड़ में भादर नदी के पास। 1974 में एस.आर. राव ने खोजा।

सुरकोटड़ा

  • कच्छ (गुजरात) में। 1964 में जगपति जोशी ने खोजा।
  • खास चीज़ें:
    • घोड़े की हड्डियाँ।
    • कलश शवाधान के सबूत।

धौलावीरा

  • कच्छ (गुजरात) के भचाऊ तालुका में। 1967-68 में जे.पी. जोशी ने खोजा, 1991 में आर.एस. बिस्ट ने उत्खनन किया।
  • खास चीज़ें:
    • सिन्धु सभ्यता का एकमात्र स्टेडियम।
    • घोड़े की कलाकृतियाँ।
    • शहर तीन हिस्सों में: दुर्ग, मध्यम नगर, निचला नगर।

सुत्कागेंडोर

  • पाकिस्तान के बलूचिस्तान में दाश्क नदी पर। सिन्धु सभ्यता का सबसे पश्चिमी शहर।
  • खास चीज़ें:
    • बंदरगाह के निशान।

आलमगीरपुर

  • मेरठ (उ.प्र.) में हिन्डन नदी पर। 1958 में यज्ञदत्त शर्मा ने उत्खनन किया, भारत सेवक समाज ने मदद की।
  • खास चीज़ें:
    • कोई मातृदेवी मूर्ति या मोहर नहीं मिली।

रोपड़

  • 1950 में बी.बी. लाल ने खोजा, 1953-56 में यज्ञदत्त शर्मा ने उत्खनन किया।
  • खास चीज़ें:
    • हड़प्पा और प्राक्-हड़प्पा अवशेष।

राखीगढ़ी

  • हरियाणा के जींद में घग्घर नदी पर। रफीक मुगल और सुरजभान ने खोजा।
  • खास चीज़ें:
    • भारत का सबसे बड़ा हड़प्पाई शहर।

सामाजिक ज़िंदगी

  • खाना: गेहूँ, जौ, खजूर, और मांस।
  • समाज चार वर्गों में: पुरोहित, योद्धा, व्यापारी, श्रमिक।
  • कपड़े: सूती और ऊनी।
  • मनोरंजन: मछली पकड़ना, शिकार, चौपड़, और पासा (पासा सबसे पॉपुलर)।
  • परिवार: समाज की बुनियादी इकाई।
  • साज-सज्जा: पुरुष-महिलाओं के आभूषण मिले।

धार्मिक मान्यताएँ

  • स्वास्तिक के निशान मिले।
  • कोई मंदिर नहीं मिला।
  • लिंग और योनि पूजा के सबूत, जो बाद में शिव से जोड़े गए। प्रजनन शक्ति की पूजा।

राजनीतिक ढाँचा

  • सभ्यता व्यापार-वाणिज्य पर आधारित थी, व्यापारी वर्ग का दबदबा।
  • पिग्गट और व्हीलर के मुताबिक, पुरोहित शासक थे, जो प्रजा का ख्याल रखते थे।
  • मोहनजोदड़ो और हड़प्पा शायद दो राजधानियाँ थीं।

आर्थिक ज़िंदगी

  • खेती: हल या कुदाल की जगह पत्थर की कुल्हाड़ी या लकड़ी के हल से खेती। ज़रूरत से ज़्यादा अनाज उगाकर व्यापार करते थे।
  • उद्योग: कपास उगाना, कातना, मिट्टी के बर्तन बनाना, कपड़े रंगना। कपास का निर्यात संभव।

कृषि

  • मुख्य फसलें: गेहूँ, जौ। साथ में राई, मटर, तिल, चना, कपास, खजूर, तरबूज।
  • चावल: लोथल और रंगपुर से सबूत।
  • सिंचाई: नहरों या नालों के कोई निशान नहीं।

पशुपालन

  • पाले गए पशु: बैल, भेड़, हिरण, मोर, गाय, खच्चर, बकरी, भैंस, सूअर, हाथी, कुत्ता, गधा।
  • कूबड़वाला साँड़ सबसे पसंदीदा।
  • मोहरों पर ऊँट, गैंडा, मछली, कछुए के चित्र।

धातुकर्म

  • ताँबे और टिन से काँसा बनाया।
  • मोहनजोदड़ो से सूती कपड़ा और कालीबंगा से मिट्टी के बर्तन पर कपड़े की छाप।
  • लोहे की जानकारी नहीं थी।
  • काँस्य मूर्तियाँ द्रवी-मोम विधि से।

कला

  • बर्तनों और मोहरों पर खूबसूरत चित्र: बैल, हाथी, चीता, बारहसिंगा, घड़ियाल, गैंडा।
  • मोहरों के चित्रों से कलात्मक रुचि का पता चलता।

व्यापार

  • राजस्थान, सौराष्ट्र, महाराष्ट्र, दक्षिण भारत, और बिहार से व्यापार।
  • मेसोपोटामिया, सुमेर, और बहरीन के साथ रिश्ते।
  • 2350 ई.पू. के मेसोपोटामियाई अभिलेखों में मेलूहा (सिन्धु क्षेत्र) का ज़िक्र।

माप-तौल

  • मोहनजोदड़ो से सीप का पैमाना, लोथल से हाथी दाँत का।
  • तौल: 1, 2, 4, 8 से 64, और 16 या उसके गुणकों (16, 64, 160, 320, 640) में।

मुहर और लिपि

  • सबसे ज़्यादा मोहरें मोहनजोदड़ो से, ज़्यादातर सेलखड़ी की।
  • एकशृंगी पशु की आकृति सबसे आम।
  • लोथल और देसलपुर से ताँबे की मोहरें।
  • लिपि भाव-चित्रात्मक, वर्णात्मक नहीं।
  • लोथल और मोहनजोदड़ो से नाव की मोहर।
  • मोहरों का आकार: गोल, अंडाकार, घनाकार, आयताकार, वर्गाकार।
  • लिपि के पहले नमूने 1853 में कनिंघम ने पाए।
  • लिपि के नाम: सर्पिलाकार, गोमूत्राक्षर, ब्रस्टोफेदन (भाव-चित्रात्मक)।
  • वेडेन महोदय ने लिपि पढ़ने की कोशिश की, नटवर झा पहले भारतीय थे, लेकिन असफल रहे।
  • लिपि मुख्यतः मोहरों से समझी गई।
  • 64 मूल चिह्न, 250-400 चित्राक्षर, सबसे ज़्यादा उल्टा यू ‘ ’ आकार।

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