प्रारंभिक खोज
1826 : चार्ल्स मैसन ने हड़प्पा स्थल पर प्राचीन सभ्यता के प्रमाण दिए
1856 : जॉन बर्टन व विलियम बर्टन ने हड़प्पा की ईंटों का रेलवे निर्माण में उपयोग किया
1857 : एलेक्जेंडर कनिंघम ने हड़प्पा खंडहरों का निरीक्षण किया
1921 : भारतीय पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष जॉन मार्शल के नेतृत्व में खोज
20 सितंबर 1924 : जॉन मार्शल ने द इलस्ट्रेटेड लंदन न्यूज में प्रकाशन
सभ्यता के नामकरण
हड़प्पा सभ्यता – प्रथम खोज स्थल के आधार पर
सिंधु सभ्यता – जॉन मार्शल द्वारा दिया गया नाम (अधिकांश नगर सिंधु नदी के किनारे)
सिंधु-सरस्वती सभ्यता – सिंधु व सरस्वती नदियों के तट पर स्थित
नगरीय सभ्यता – भारत में प्रथम नगरों की स्थापना (गार्डेन चाइल्ड द्वारा “प्रथम नगरीय क्रांति” कहा गया)
काँस्य युगीन सभ्यता – ताँबे में टिन मिलाकर काँसा तैयार करना (8:1 अनुपात)
सिंधु घाटी सभ्यता के निर्माता
प्रोटो-आस्ट्रेलियड :
सिंधु क्षेत्र में आने वाली प्रथम प्रजाति
वर्तमान में मध्य भारत में SC/ST समुदाय में पाई जाती है
भू-मध्य सागरीय/द्रविड़ :
मुख्य निर्माता प्रजाति मानी जाती है
वर्तमान में दक्षिण भारत में पाई जाती है
मोहनजोदड़ो में सर्वाधिक संख्या
मंगोलॉयड :
हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाती है
मोहनजोदड़ो से प्राप्त “पुजारी की मूर्ति” इसी प्रजाति की
अल्पाइन :
सिंध प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक व तमिलनाडु में निवास
काल निर्धारण
कार्बन डेटिंग : 50,000 वर्ष तक के जीवाश्मों की आयु निर्धारण
यूरेनियम डेटिंग : अधिक प्राचीन वस्तुओं के लिए
विद्वानों के अनुसार कालक्रम:
विद्वान काल सीमा (ई.पू.) माधवस्वरूप वसु 3500-2500 जॉन मार्शल 3250-2700 आर.के. मुखर्जी 3200-2700 अर्नेस्ट मैके 2800-2500 मार्टिमर व्हीलर 2500-1500 रोमिला थापर 2300-1750 धर्मपाल अग्रवाल 2300-1700 कार्बन-14 2350-1750
सिंधु घाटी सभ्यता के चरण:
पूर्व हड़प्पा काल (3500-2500 ई.पू.):
परिपक्व हड़प्पा काल (2600-1900 ई.पू.):
हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चंहुदड़ो, लोथल, कालीबंगा , बनावली
उत्तर हड़प्पा काल (1900-1300 ई.पू.):
राखीगढ़ी, रोजदी, झूमर संस्कृति
सिंधु घाटी सभ्यता की उत्पत्ति के सिद्धांत
1. विदेशी उत्पत्ति (सुमेरियन सभ्यता से)
समर्थक : जॉन मार्शल, व्हीलर, गार्डेन चाइल्ड, क्रेश्मर, कौशाम्बी, एच.डी. सांकलिया
तर्क :
दोनों नगरीय सभ्यताएँ
कच्ची व पक्की ईंटों का प्रयोग
मिट्टी के बर्तन बनाने की तकनीक
लिपि का ज्ञान
काँस्य, ताँबे व पत्थर का उपयोग
2. स्वदेशी उत्पत्ति
अमलानंद घोष : सोथी (बीकानेर) संस्कृति से उत्पत्ति
समर्थक : धर्मपाल अग्रवाल, आल्चिन
फेयर सर्विस : बलूचिस्तान की नाल, कुल्ली, रानाधुंडई व सिंध की आमरी, कोटदीजी से जन्म
सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार
क्षेत्रफल : 12,99,600 वर्ग किमी (त्रिभुजाकार)
विस्तार : भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान
भारत में : जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश
खोजे गए स्थल : लगभग 1500-2800
तुलना : मिस्र व मेसोपोटामिया से 12 गुना बड़ी
प्रमुख स्थल:
स्थल स्थान विशेषता माण्डा जम्मू-कश्मीर (चिनाब नदी) सबसे उत्तरी स्थल (1982 में जगपति जोशी द्वारा खोज) दैमाबाद महाराष्ट्र (प्रवरा नदी) सबसे दक्षिणी स्थल, काँस्य रथ प्राप्त आलमगीरपुर उत्तर प्रदेश (हिंडन नदी) सबसे पूर्वी स्थल, रोटी बेलने का पाटा मिला सुत्कागेंडोर बलूचिस्तान (दाशक नदी) सबसे पश्चिमी स्थल (1927 में मार्क ऑरेलस्टाइन द्वारा खोज)
हड़प्पा सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ
1. नगरीय सभ्यता
नगर योजना :
दो भागों में विभाजित: दुर्गीकृत (ऊपरी भाग) और अदुर्गीकृत (निचला भाग)
शतरंज/ग्रिड पद्धति (ऑक्सफोर्ड सिस्टम) में नगर निर्माण
मुख्य सड़कें 9.15 मीटर चौड़ी, सहायक सड़कें 3 मीटर चौड़ी
सड़कें उत्तर-दक्षिण व पूर्व-पश्चिम दिशा में समकोण पर
भवन निर्माण :
ईंटों का मानकीकृत आकार (अनुपात 4:2:1 या 28x14x7 सेमी)
दो मंजिला भवन (सीढ़ियों के प्रमाण मिले हैं)
घरों के दरवाजे सहायक सड़कों पर खुलते थे
प्रत्येक गली में सार्वजनिक कुआँ
सार्वजनिक सुविधाएँ :
कुएँ में फन्नीदार ईंटों का प्रयोग
कूड़ा एकत्र करने के लिए मिट्टी के पात्र
प्रकाश के लिए दीप स्तंभ
2. व्यापार व वाणिज्य
व्यापार प्रणाली :
वस्तु विनिमय प्रणाली प्रचलित
16 के गुणज वाले बाटों का प्रयोग (16, 64, 160, 320)
सेलखड़ी की मोहरें प्रयुक्त होती थीं
व्यापारिक सम्बन्ध :
आयात : टिन व चाँदी (ईरान से), क्लोराइट पत्थर (मेसोपोटामिया से)
निर्यात : सूती वस्त्र, कपास, हाथी दाँत, पशु-पक्षी
अन्य आयात: ताँबा (खेतड़ी), सेलखड़ी (काठियावाड़), सोना (कर्नाटक)
परिवहन :
लोथल से जलयान/नौका के प्रमाण मिले हैं
कालीबंगा से मेसोपोटामिया की बेलनाकार मोहर मिली
3. पशुपालन
प्रमुख पशु :
एक शृंगी बैल (सबसे पवित्र माना जाता था)
हाथी, भैंस, भेड़, सूअर, बंदर, भालू
बत्तख (पवित्र पक्षी)
घोड़े के प्रमाण :
सुरकोटदा से अस्थियाँ
राणाघुंडई से दाँत
लोथल व रंगपुर से मृण्मूर्तियाँ
अनुपस्थित पशु : शेर व गाय के स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले
4. कृषि व्यवस्था
प्रमुख फसलें :
गेहूँ, जौ, चावल (लोथल व रंगपुर से प्रमाण)
कपास (विश्व में सर्वप्रथम प्रमाण)
सरसों, तिल, बाजरा (रोजदी से रागी के प्रमाण)
कृषि उपकरण :
बनवाली व बहावलपुर से मिट्टी का हल मिला
कालीबंगा से हल से जुते हुए खेत के साक्ष्य
वृक्ष पूजा : पीपल को पूजनीय माना जाता था
5. सामाजिक व्यवस्था
समाज संरचना :
मातृसत्तात्मक समाज के संकेत
संयुक्त परिवार प्रथा
तीन वर्ग: विद्वान/पुजारी, व्यापारी/शिल्पी, श्रमिक/किसान
जीवन शैली :
शाकाहारी व माँसाहारी दोनों प्रकार का भोजन
मनोरंजन: पासा, शिकार, नृत्य
शृंगार: हड़प्पा से शृंगारदान, चहुँदड़ों से लिपिस्टिक प्रमाण
धार्मिक विश्वास :
ताबीजों का प्रयोग (भूत-प्रेत में विश्वास)
नाग पूजा व बैल पूजा प्रचलित
मंदिरों के स्पष्ट प्रमाण नहीं
6. अंतिम संस्कार प्रथाएँ
पूर्ण समाधिकरण (मुस्लिम शैली)
आंशिक समाधिकरण (पारसी शैली)
दाह संस्कार (हिंदू शैली)
विशेष प्रथाएँ :
लोथल व कालीबंगा से युगल समाधि (सती प्रथा के संकेत)
रोपड़ में कुत्ते के साथ दफनाने के प्रमाण
मृतक के साथ उपयोगी वस्तुएँ रखना (पुनर्जन्म में विश्वास)
7. लिपि व लेखन
लिपि की विशेषताएँ :
भावचित्रात्मक (चित्रों पर आधारित)
बुस्ट्रोफेडॉन शैली (दाएँ से बाएँ)
64 मूल चिह्न व 250-400 अक्षर
‘U’ व मछली का सर्वाधिक अंकन
नोट : अभी तक पूर्णतः पढ़ी नहीं जा सकी
8. शांतिप्रिय समाज
युद्धक सामग्री के अभाव के कारण शांतिप्रिय माना जाता है
कोई बड़े हथियार या किलेबंदी के प्रमाण नहीं
9. धार्मिक विश्वास
प्रमुख देवता :
पशुपति शिव (योगी की मुद्रा में)
मातृदेवी (स्त्री के गर्भ से पौधा निकलते दिखाया गया)
एक शृंगी पशु (सर्वाधिक पूजनीय)
प्रतीक व पूजा :
स्वस्तिक चिह्न (सूर्य पूजा)
लिंग-योनि पूजा (हड़प्पा से प्रमाण)
जल पूजा (विशाल स्नानागार)
पीपल वृक्ष की पूजा
10. प्रशासनिक व्यवस्था
संभवतः केंद्रीय प्रशासन था
विद्वानों के मत:
स्टुअर्ट पिट: दो राजधानियाँ (हड़प्पा व मोहनजोदड़ो)
प्रो. दशरथ शर्मा: कालीबंगा राजधानी थी
11. कला व शिल्प
मूर्तिकला :
टेराकोटा (मिट्टी) की मूर्तियाँ
75% पशु-पक्षियों की, 25% मानव आकृतियाँ
कूबड़दार वृषभ व गौरिया की मूर्तियाँ सर्वाधिक
मृद्भांड :
चाक व हाथ से निर्मित
मुख्यतः लाल व गुलाबी रंग, काले रंग से चित्रांकन
पीपल, एक शृंगी पशु, हाथी, बाघ के चित्र प्रमुख
हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारण
प्रमुख सिद्धांत एवं समर्थक विद्वान
1. आर्य आक्रमण सिद्धांत
समर्थक विद्वान :
गार्डन चाइल्ड
मार्टिमर व्हीलर
स्टुअर्ट पिग्गट
डी.एच. गार्डन
प्रमाण :
मोहनजोदड़ो से 38 नरकंकाल प्राप्त हुए (कुछ कटे हुए)
वैदिक साहित्य में दासों के साथ संघर्ष का उल्लेख
2. बाढ़ एवं जलवायु परिवर्तन
समर्थक विद्वान :
जॉन मार्शल
अर्नेस्ट मैके
एस.आर. राव
प्रमाण :
मोहनजोदड़ो में 7 बार पुनर्निर्माण के स्तर
चन्हूदड़ो और लोथल में बाढ़ के प्रमाण
सिंधु नदी के मार्ग परिवर्तन
3. सूखा एवं जलवायु परिवर्तन
समर्थक विद्वान :
ऑरेल स्टीन
अमलानंद घोष
रफीक मुगल
डी.पी. अग्रवाल
बी.बी. लाल
प्रमाण :
सरस्वती नदी का सूखना
वर्षा में कमी के भूवैज्ञानिक साक्ष्य
4. महामारी
समर्थक विद्वान :
के.आर. यू. कैनेडी
प्रमाण :
कंकालों पर मलेरिया के लक्षण
जनसंख्या में अचानक गिरावट
5. नदियों का मार्ग परिवर्तन
समर्थक विद्वान :
माधवस्वरूप वत्स
जॉर्ज एफ. डेल्स
प्रभावित स्थल :
हड़प्पा
कालीबंगा
मोहनजोदड़ो
6. भूगर्भिक परिवर्तन/भूकंप
समर्थक विद्वान :
एम.आर. साहनी
आर.एल. रेइक्स
जॉन मार्शल
प्रमाण :
भवनों में दरारें
नींवों का टेढ़ा होना
7. प्रशासनिक शिथिलता
समर्थक विद्वान :
जॉन मार्शल
प्रमाण :
नगर नियोजन में गिरावट
सार्वजनिक भवनों का उपेक्षा
8. व्यापारिक गतिरोध
समर्थक विद्वान :
डब्ल्यू.एफ. अल्ब्राइट
प्रमाण :
मेसोपोटामिया से व्यापार में कमी
आर्थिक संकट के संकेत
9. अन्य सिद्धांत
भौतिक-रासायनिक विस्फोट :
एम. दिमित्रियेव (रूसी विद्वान)
शुष्कीकरण :
एम.आर. मुगल
विद्वानों के मतों का तुलनात्मक विश्लेषण
क्रम पतन का कारण प्रमुख समर्थक प्रमुख प्रमाण 1 आर्य आक्रमण व्हीलर, पिग्गट नरकंकाल, वैदिक उल्लेख 2 बाढ़ मार्शल, मैके बहुस्तरीय पुनर्निर्माण 3 सूखा घोष, अग्रवाल सरस्वती नदी का सूखना 4 महामारी कैनेडी कंकालों पर रोग चिह्न 5 नदी मार्ग परिवर्तन वत्स, डेल्स हड़प्पा-कालीबंगा का परित्याग 6 भूकंप साहनी, रेइक्स भवनों में दरारें 7 प्रशासनिक विफलता मार्शल नगर योजना का पतन 8 व्यापार गतिरोध अल्ब्राइट मेसोपोटामिया संपर्क में कमी
निष्कर्ष
हड़प्पा सभ्यता का पतन किसी एक कारण से नहीं, बल्कि अनेक कारकों के सम्मिलित प्रभाव से हुआ प्रतीत होता है। अधिकांश विद्वानों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन, नदियों के मार्ग परिवर्तन और आर्थिक गिरावट जैसे कारकों ने मिलकर इस सभ्यता के पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आर्य आक्रमण का सिद्धांत वर्तमान में कम मान्य है।