प्राचीन राजस्थान: नाम, साहित्य और पाषाण काल की कहानी

By: LM GYAN

On: 7 June 2025

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पाषाण काल

राजस्थान का इतिहास सिर्फ़ किलों और महलों तक सीमित नहीं है। इसकी मिट्टी में प्राचीन साहित्य, अभिलेखों और पाषाण काल के अवशेषों की कहानियाँ बिखरी पड़ी हैं। प्राचीन ग्रंथों में यहाँ के क्षेत्रों के अनोखे नाम मिलते हैं, जैसे मरु, जांगल देश और मत्स्य। साथ ही, पाषाण काल के औज़ार और शैलाश्रय हमें उस दौर में ले जाते हैं, जब इंसान ने पत्थरों से अपनी दुनिया बनानी शुरू की थी। आइए, इस ऐतिहासिक यात्रा में राजस्थान के प्राचीन नामों और पाषाण काल की खोज करें!

प्राचीन साहित्य और अभिलेखों में राजस्थान के क्षेत्रों के नाम

प्राचीन साहित्य और अभिलेखों में राजस्थान के विभिन्न हिस्सों को अलग-अलग नामों से जाना जाता था, जो उस समय की भौगोलिक और सांस्कृतिक विशेषताओं को दर्शाते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख क्षेत्र और उनके नाम हैं:

  • मरु और धन्व: जोधपुर संभाग के मरुस्थलीय क्षेत्र को प्राचीन काल में “मरु” और “धन्व” कहा जाता था। जोधपुर पहले “मरु” के नाम से जाना जाता था, फिर “मरुवार” और बाद में “मारवाड़” नाम पड़ा।
  • जांगल देश: बीकानेर, नागौर और आसपास के क्षेत्रों को “जांगल देश” के नाम से पुकारा जाता था, जो इस क्षेत्र की जंगली और बीहड़ प्रकृति को दर्शाता है।
  • मत्स्य: महाभारत में जयपुर, अलवर और भरतपुर के क्षेत्र को “मत्स्य” राज्य के रूप में उल्लेखित किया गया है। इसकी राजधानी “विराटनगर” थी।
  • शूरसेन: भरतपुर का कुछ हिस्सा और धौलपुर व करौली का अधिकांश भाग “शूरसेन” राज्य का हिस्सा था, जिसका ज़िक्र भी महाभारत में मिलता है।
  • कांठल: माही नदी के आसपास का क्षेत्र “कांठल” कहलाता था।
  • छप्पन का मैदान: प्रतापगढ़ और बांसवाड़ा के बीच छप्पन गाँवों का समूह इस नाम से प्रसिद्ध था।
  • ऊपरमाल: भैंसरोड़गढ़ से बिजोलिया तक का पठारी क्षेत्र “ऊपरमाल” के नाम से जाना जाता था।
  • गिरवा: उदयपुर और आसपास का पहाड़ी क्षेत्र “गिरवा” कहलाता था।
  • मांड: जैसलमेर का प्राचीन नाम “मांड” था।
  • वागड़: डूंगरपुर और बांसवाड़ा का क्षेत्र “वागड़” के नाम से मशहूर था।
  • हाड़ौती: कोटा और बूँदी का भू-भाग “हाड़ौती” कहलाता था।
  • शेखावाटी: सीकर, झुंझुनू और चूरू का क्षेत्र “शेखावाटी” के नाम से जाना जाता था।

अभिलेखों में राजस्थान: सिरोही के बसन्तगढ़ अभिलेख (625 ई.) में पहली बार “राजस्थान” शब्द का उल्लेख मिलता है, जो क्षेमकरी माता के मंदिर से प्राप्त हुआ। हालाँकि, 1949 से पहले “राजस्थान” नाम से कोई भौगोलिक क्षेत्र नहीं था।

  • राजपूताना: 1800 ई. में जॉर्ज थॉमस ने इस क्षेत्र को “राजपूताना” कहा। 1829 ई. में कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी किताब Annals and Antiquities of Rajasthan में “रायथान/राजस्थान” शब्द का इस्तेमाल किया।
  • आधिकारिक नाम: स्वतंत्रता के बाद, 30 मार्च 1949 को विभिन्न रियासतों के एकीकरण के बाद इस क्षेत्र का नाम सर्वसम्मति से “राजस्थान” रखा गया।

प्रागैतिहासिक काल और मानव विकास

प्रागैतिहासिक काल, यानी वह समय जब लिखित इतिहास नहीं था, हमें मानव विकास की शुरुआती कहानी बताता है। इस काल को समझने के लिए कुछ महत्वपूर्ण तथ्य हैं:

  • प्रागैतिहासिक शब्द: इस शब्द का पहला इस्तेमाल डेनियल विल्सन ने 1851 में अपनी किताब The Archaeology and Prehistoric Annals of Scotland में किया।
  • मानव जीवाश्म: 1924 में अफ्रीका में रेमण्ड डॉट ने ऑस्ट्रेलोपिथेकस के जीवाश्म खोजे। भारत में 1930 में शिवालिक क्षेत्र से रामापिथेकस के अवशेष मिले (खोजकर्ता: लेबिस)।
  • होमोसेपियन्स: राजस्थान में आधुनिक मानव (होमोसेपियन्स या क्रोमेग्नॉन मानव) की उत्पत्ति मानी जाती है, जिसे “प्रज्ञ मानव” भी कहा जाता है।
  • मस्तिष्क विकास: होमो इरेक्टस में मस्तिष्क विकास शुरू हुआ, और निएण्डरथल में यह पूर्ण हुआ।
  • प्रागैतिहासिक काल का विभाजन: 1961 में दिल्ली में एशियाई विद्वानों के सम्मेलन में प्रागैतिहासिक काल को तीन भागों में बाँटा गया:
    1. पुरापाषाण काल
    2. मध्यपाषाण काल
    3. नवपाषाण काल

भारत में पाषाण काल की खोज

  • पुरापाषाण काल: 1863 में रॉबर्ट ब्रुसफुट ने पल्लवरम (मद्रास के पास) से पहली प्रामाणिक जानकारी दी।
  • मध्यपाषाण काल: 1867 में सी.एल. कार्लाइल ने विंध्याचल पर्वत क्षेत्र में खोज की।
  • नवपाषाण काल: 1860 में ले मेसुरियर ने टोंस नदी घाटी (उ.प्र.) में खोज की।

राजस्थान में पाषाण काल

राजस्थान में पाषाण काल के अवशेष हमें उस समय की मानव जीवनशैली की झलक देते हैं। यहाँ के बनास, बेड़च, गंभीरी और चंबल नदियों की घाटियों और आसपास के क्षेत्रों से डेढ़ लाख साल पुराने पाषाण उपकरण मिले हैं। आइए, तीनों कालों को विस्तार से देखें:

पुरापाषाण काल

इस काल में इंसान खुरदरे पत्थर के औज़ार इस्तेमाल करता था।

  • खोज: 1870 में सी.ए. हैकर ने जयपुर और इंद्रगढ़ में हैण्डएक्स, एश्यूलियन और क्लीवर औज़ार खोजे। श्री सेटनकार ने झालावाड़ से साक्ष्य प्राप्त किए।
  • स्थल: ढिंगरिया (जयपुर), मानगढ़, नाथद्वारा, हम्मीरपुर, बींगोद (भीलवाड़ा), मण्डपिया (चित्तौड़), देवली (टोंक)।
  • विस्तार: जयपुर, इंद्रगढ़, अजमेर, अलवर, भीलवाड़ा, झालावाड़, चित्तौड़गढ़, जालोर, पाली, जोधपुर।
  • विशेष: विराटनगर और भानगढ़ से हैण्डएक्स संस्कृति के अवशेष। विराटनगर में शैलाश्रय और गुफाओं से पुरापाषाण से उत्तरपाषाण काल तक की सामग्री।
  • शैलचित्र: विराटनगर में चित्र नहीं मिले, लेकिन भरतपुर के दर में मानव, व्याघ्र, बारहसिंगा और सूर्य के चित्रित शैलाश्रय मिले।
  • लूणी नदी: बी. ऑलचिन ने पश्चिमी राजस्थान में लूणी नदी और जालोर के बालू टीलों में हैण्डएक्स, चॉपर और क्लीवर खोजे।

मध्यपाषाण काल

इस काल का आरंभ 10,000 ई.पू. से माना जाता है।

  • उपकरण: छोटे, हल्के और कुशल स्क्रेपर और पाइंट
  • स्थल: लूणी और सहायक नदियाँ, चित्तौड़गढ़ की बेड़च नदी, विराटनगर (जयपुर)।
  • जीवनशैली: पशुपालन शुरू, लेकिन कृषि का ज्ञान नहीं। सामाजिक जीवन का अभाव।

नवपाषाण काल

भारत में इस काल का आरंभ 5,000 ई.पू. से माना जाता है।

  • विशेषताएँ: कृषि से खाद्य उत्पादन, उन्नत पशुपालन। मानव घर बनाकर रहने लगा और मृतकों को समाधियों में दफनाने लगा।
  • स्थल:
    • चित्तौड़गढ़: बेड़च, गंभीरी नदियाँ।
    • भैंसरोड़गढ़, नवाघाट: चंबल, बामनी नदियाँ।
    • हम्मीरगढ़, जहाजपुर, देवली, गिलूण्ड: बनास नदी।
    • पाली, समदड़ी: लूणी नदी।
    • टोंक: भरनी।
  • उपकरण: बागोर (उदयपुर), तिलवाड़ा (मारवाड़)।
  • नामकरण: गार्डन चाइल्ड ने इसे “पाषाणकालीन क्रांति” कहा।

शैलाश्रय

राजस्थान के अरावली पर्वत और चंबल नदी की घाटी से शैलाश्रय मिले हैं, जिनमें पाषाण उपकरण, अस्थि अवशेष और आखेट से संबंधित चित्र प्रमुख हैं।

  • स्थल: बूँदी (छाजा नदी), कोटा (चंबल नदी), विराटनगर (जयपुर), सोहनपुरा (सीकर), हरसौरा (अलवर)।
  • विशेष: चित्रों में आखेट दृश्य सर्वाधिक, जो प्रागैतिहासिक मानव की जीवनशैली को दर्शाते हैं।

समापन

राजस्थान का प्राचीन इतिहास इसके क्षेत्रों के नामों और पाषाण काल के अवशेषों से जीवंत हो उठता है। मरु, मत्स्य और शूरसेन जैसे नाम हमें प्राचीन साहित्य और महाभारत के दौर में ले जाते हैं, जबकि पाषाण काल के औज़ार और शैलाश्रय मानव के शुरुआती संघर्ष और विकास की कहानी कहते हैं। ये सभी अवशेष और नाम राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं, जो हमें हमारे अतीत से जोड़ते हैं।

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