वैदिक सभ्यता का उदय
Table of Contents
- सिन्धु घाटी सभ्यता के बाद जो नई सभ्यता उभरी, उसे वैदिक या आर्य सभ्यता कहते हैं।
- वेद इस सभ्यता की जानकारी का सबसे बड़ा खज़ाना हैं, और ऋग्वेद इनमें सबसे पुराना है।
- ये भारत की पहली ग्रामीण सभ्यता थी, लौह युग से जुड़ी।
- वेदों में इस सभ्यता के संस्थापकों को “आर्य” कहा गया।
आर्य कौन थे?
- “आर्य” संस्कृत का शब्द है, “अरि+य” से बना, जिसका मतलब है सुसंस्कृत या श्रेष्ठ इंसान।
- ये भाषा को दर्शाता है, न कि किसी प्रजाति को।
- आर्य का अर्थ: उच्च कुल का, शिष्ट या बेहतरीन व्यक्ति।
आर्यों का मूल स्थान
- विद्वानों के अलग-अलग मत हैं:
- बाल गंगाधर तिलक: उत्तरी ध्रुव।
- दयानंद सरस्वती: तिब्बत।
- मैक्समूलर (जर्मन विद्वान): मध्य एशिया (सबसे मान्य मत)।
- गंगानाथ झा: ब्रह्मऋषि प्रदेश।
- अविनाश चन्द्र: सप्तसैंधव प्रदेश।
- राजबली पाण्डेय: मध्यप्रदेश।
- गाइल्स: हंगरी या डेन्यूब नदी घाटी।
- पेंका व हर्ट: जर्मनी।
वैदिक साहित्य
- वैदिक काल की सारी जानकारी वैदिक साहित्य से मिलती है।
- वेद:
- “वेद” शब्द “विद्” धातु से बना, मतलब ज्ञान का भंडार।
- वेद अपौरुषेय हैं, यानी किसी एक इंसान ने नहीं लिखे।
- इन्हें दैवीय ज्ञान माना जाता है, संकलन महर्षि वेदव्यास ने किया।
- चार वेद: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद।
- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद को “वेदत्रयी” कहते हैं।
- यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद उत्तरवैदिक काल के हैं।
ऋग्वेद
- आर्यों का सबसे पुराना ग्रंथ।
- इसमें अग्नि देवता को समर्पित ऋचाएँ, 10 मंडलों में बँटीं।
- मंडल 2 से 7 को “वंश मंडल” कहते हैं, मंडल 1 और 10 बाद में जोड़े गए।
- कुल 1028 सूक्त, लगभग 10,600 मंत्र।
- गायत्री मंत्र (सविता देवता) तीसरे मंडल में, रचनाकार विश्वामित्र।
- सोमरस (9वाँ मंडल) को सबसे शानदार पेय माना गया।
- मंत्र पढ़ने वाला पुरोहित “होता” कहलाता था।
- 10वें मंडल के पुरुष सूक्त में चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) का पहला ज़िक्र।
यजुर्वेद
- “यजु” का मतलब यज्ञ।
- इसमें 40 अध्याय, 1990 मंत्र।
- यज्ञ की विधियों का ज़िक्र, गद्य और पद्य दोनों में।
- यज्ञ कराने वाला पुरोहित “अध्वर्यु”।
- दो शाखाएँ:
- शुक्ल यजुर्वेद: सिर्फ़ पद्य, उत्तर भारत में प्रचलित, सबसे प्रामाणिक।
- कृष्ण यजुर्वेद: गद्य-पद्य दोनों, दक्षिण भारत में मान्य, इसे वाजसनेयी संहिता भी कहते हैं।
- ब्राह्मण ग्रंथ: शुक्ल यजुर्वेद (शतपथ), कृष्ण यजुर्वेद (तैतिरीय)।
सामवेद
- ऋग्वेद के मंत्रों को गाने लायक बनाया गया।
- “साम” मतलब गायन।
- मंत्र पढ़ने वाला “उद्गाता” कहलाता है।
- कुल 1549 मंत्र, मूल 75।
- भारत की पहली संगीत पुस्तक, “भारतीय संगीत का जनक”।
अथर्ववेद
- रचनाकार: अथर्वा ऋषि।
- रोग, जादू, टोने-टोटके की जानकारी।
- इसे अनार्यों की रचना माना जाता है।
- 5849 मंत्र, 20 कांड।
- “सत्यमेव जयते” मुण्डकोपनिषद से लिया गया।
- लोक विश्वासों और प्रथाओं का खज़ाना।
वेदों के उपवेद
- चार उपवेद:
- ऋग्वेद: आयुर्वेद (रचनाकार धन्वन्तरी)।
- यजुर्वेद: धनुर्वेद (विश्वामित्र)।
- सामवेद: गन्धर्ववेद (भरतमुनि)।
- अथर्ववेद: शिल्पवेद/स्थापत्यवेद (विश्वकर्मा)。
अन्य वैदिक साहित्य
- आरण्यक: वानप्रस्थ आश्रम में जंगलों में लिखे गए, “वन पुस्तक”।
- ब्राह्मण ग्रंथ: वेदों की व्याख्या करने वाले ग्रंथ।
- उपनिषद: “उप+नि+षद्” (गुरु के पास ध्यान से बैठना)।
- वेदों का अंत, इसलिए “वेदान्त”।
- आत्मा और ब्रह्म का ज़िक्र।
- कुल 108 उपनिषद, 12 प्रमुख: ईश, कठ, केन, प्रश्न, मुण्डक, मांडुक्य, तैतिरीय, छान्दोग्य, कौषीतिकी, वृहद, श्वेताश्वतर, ऐतरेय।
- उपनिषद, ब्रह्मसूत्र, गीता को “प्रस्थान-त्रयी” कहते हैं。
- वेदांग: छह वेदांग: शिक्षा, व्याकरण, कल्प, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
- सूत्र साहित्य: वेदों को समझने में मददगार, वैदिक साहित्य का हिस्सा नहीं।
ऋग्वैदिक काल
- सारी जानकारी ऋग्वेद से मिलती है।
- आर्य “सप्त सैंधव” (सात नदियों का क्षेत्र) में रहते थे: सिन्धु, सरस्वती, परुष्णी (रावी), वितस्ता (झेलम), शतुद्रि (सतलज), अस्किनी (चिनाब), विपासा (व्यास)।
- भौगोलिक विस्तार: पंजाब, अफगानिस्तान, राजस्थान, हरियाणा, यमुना के पश्चिम तक।
- दशराज्ञ युद्ध: परुष्णी (रावी) नदी पर हुआ। भरतवंशी राजा सुदास और दस कबीलों (5 आर्य, 5 गैर-आर्य) के बीच। सुदास का पुरोहित वशिष्ठ, पराजित का विश्वामित्र।
- सभा, समिति, विदथ का ज़िक्र।
- सभा: श्रेष्ठ लोगों की, राजा को सलाह देती।
- समिति: आम लोगों की, अध्यक्ष “ईशान”।
- विदथ: सबसे पुरानी और महत्वपूर्ण संस्था।
- कोई नियमित कर व्यवस्था नहीं।
सामाजिक स्थिति
- सबसे छोटी इकाई: परिवार → कुल → ग्राम → विश → जन।
- वर्ण व्यवस्था: ऋग्वेद के 10वें मंडल (पुरुष सूक्त) में ज़िक्र।
- ब्राह्मण: मुख से, यज्ञ-हवन।
- क्षत्रिय: भुजाओं से, शासन-रक्षा।
- वैश्य: जांघों से, व्यापार।
- शूद्र: पैरों से, सेवा।
- वर्ण कर्म पर आधारित थे।
रत्निन (उच्च पदाधिकारी)
- शतपथ ब्राह्मण में 12 रत्निन:
- राजा: सर्वोच्च प्रशासक।
- पुरोहित: राजा का सलाहकार, कर-मुक्त।
- महिषी: पटरानी।
- युवराज: उत्तराधिकारी।
- सूत: रथवान, युद्ध में उत्साह बढ़ाता।
- सेनानी: मुख्य सेनापति।
- संगृहीता: कोषाध्यक्ष।
- अक्षवाप: पासा विभाग का प्रमुख।
- पालागल: राजा का मित्र-विदूषक।
- गोविकर्तन: गाय विभाग का प्रमुख।
- भागदुध: कर संग्रहकर्ता।
- क्षत्रि: राजप्रसाद का रक्षक।
आश्रम व्यवस्था
- जीवन को 100 साल में चार हिस्सों में बाँटा:
- ब्रह्मचर्य: 0-25 साल।
- गृहस्थ: 26-50 साल।
- वानप्रस्थ: 51-75 साल।
- संन्यास: 76-100 साल।
- छान्दोग्य उपनिषद में तीन आश्रम, जाबालोपनिषद में चारों का ज़िक्र।
- उत्तरवैदिक काल में पूरी तरह विकसित।
उत्तर वैदिक काल (1000-600 ई.पू.)
- यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, आरण्यक, उपनिषद की रचना।
- लौह प्रौद्योगिकी की शुरुआत।
- नदियों के नाम:
- वितस्ता: झेलम।
- अस्किनी: चिनाब।
- विपासा: व्यास।
- परुष्णी: रावी।
- शतुद्रि: सतलज।
- कुभा: काबुल।
- क्रुमु: कुर्रम।
- गोमती: गोमल।
- दृषद्वती: घग्घर/रक्षी/चितंग।
- शतपथ ब्राह्मण में रेवा (नर्मदा) और गण्डक का ज़िक्र।
- केन्द्र: पंजाब से गंगा-यमुना दोआब तक।
राजनीतिक स्थिति
- कबीलों ने मिलकर जनपद बनाए, क्षेत्रीय राज्य उभरे।
- “राष्ट्र” शब्द पहली बार इस काल में।
- राजतंत्र, राजा का पद वंशानुगत।
- राजा को देवताओं का प्रतिनिधि माना जाता था।
- रत्निनों का तंत्र प्रशासन में मदद करता था।
विवाह के प्रकार
- मनुस्मृति में 8 प्रकार:
- ब्रह्म विवाह: माता-पिता योग्य वर ढूंढकर कन्या का विवाह (सबसे मान्य)।
- आर्ष विवाह: कन्या के बदले 1-2 गाय लेकर विवाह।
- देव विवाह: यज्ञ करने वाले पुरोहित से कन्या का विवाह।
- गंधर्व विवाह: प्रेम आधारित विवाह।
- आसुर विवाह: धन के बदले कन्या का विक्रय।
- प्रजापत्य विवाह: वर खुद कन्या माँगकर विवाह।
- राक्षस विवाह: बलपूर्वक कन्या छीनकर विवाह।
- पैशाच विवाह: सोई या विक्षिप्त कन्या से विवाह।
सोलह संस्कार
- 16 संस्कार:
- गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, कर्ण भेद, विद्यारंभ, उपनयन, वेदारंभ, केशांत/गोदान, समावर्तन, विवाह, अन्त्येष्टि।
धार्मिक स्थिति
- यज्ञ और कर्मकांड बढ़े।
- पंच महायज्ञ:
- ब्रह्म यज्ञ: पढ़ाई और पढ़ाना।
- देव यज्ञ: होम और देवताओं की स्तुति।
- पितृ यज्ञ: पितरों को तर्पण।
- मनुष्य यज्ञ: अतिथि सत्कार, कल्याण की कामना।
- भूत यज्ञ: जीवों का पालन।
- तीन ऋण: देव, ऋषि, पितृ।
- शतपथ ब्राह्मण में पुनर्जन्म का पहला ज़िक्र।
- चार पुरुषार्थ: धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।